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विदेश में पंजाबियों का हाल: मुश्किलें तमाम हैं पर अमेरिका छोड़ नहीं सकते, अपने सामने कोरोना से अपनों को मरते देखा

पंजाबियों की बजाय अमेरिकियों को पहले मिल रहा काम, न्यूयॉर्क से बहुत से लोग सब-अर्बन एरिया में चले गए कोरोना ने न्यूयॉर्क और मैनहट्‌टन में सबसे घातक प्रहार किया, इन जगहों पर भारतीय, खासकर पंजाबियों की संख्या ज्यादा है

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एक लाख इक्कीस हजार लोगों की मौत ने अदृश्य वायरस के आगे अमेरिका की लाचारगी सामने ला दी है। कोरोना ने न्यूयॉर्क और मैनहट्‌टन में सबसे घातक प्रहार किया। इन जगहों पर भारतीय, खासकर पंजाबियों की संख्या ज्यादा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 से ज्यादा पंजाबियों की कोरोना से मौत हुई है।

ट्रम्प सरकार ने मार्च में अमेरिकियों और वर्क परमिट होल्डर्स की आर्थिक मदद शुरू की थी। फिलाडेल्फिया में 15 साल से रह रहे लुधियाना के भूपिंदर सिंह ने बताया कि मार्च में उन्हें और उनकी पत्नी को 1200-1200 डॉलर मिले। 5 साल की बेटी के लिए 500 डॉलर अलग से मिले। इसके बाद राज्य सरकार से 241 डॉलर प्रति हफ्ता और फेडरल गवर्नमेंट से 600 डॉलर प्रति हफ्ता मिले। यह राशि 31 जुलाई तक मिलेगी। बड़ी समस्या ले-ऑफ की है।

सरकार की पहली प्राथमिकता मूल अमेरिकी हैं। 25 साल पहले कपूरथला के भुलत्थ से न्यूयॉर्क जाकर ट्रक चला रहे मनोहर सिंह ने बताया कि जिस जगह पर आना हर शख्स का ख्वाब हुआ करता था, वहां कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया कि कई अमीर लोग 500-700 किलोमीटर दूर सब-अर्बन एरिया में जाकर रहने लगे ताकि जान बची रहे। जो लोग न्यूयॉर्क छोड़कर कहीं दूर जा सकते थे, चले गए। हमें यहीं पर रहना है। वाहेगुरु जी के आगे अरदास है कि कोरोना की दवा जल्द बन जाए ताकि जिंदगी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगे।

लोग उम्मीद कर रहे हैं कि हालात नवंबर तक सुधर जाएंगे और वे पहले की तरह डॉलर कमा सकेंगे

पंजाब से गए स्टूडेंट्स को कोरोना फैलने के बाद सबसे ज्यादा परेशानी किराये को लेकर हुई। न्यूयॉर्क के आसपास 80 से ज्यादा यूनिवर्सिटी और कॉलेज हैं। लोकेशन के हिसाब से एक कमरे का किराया 2000 से 2500 डॉलर के बीच है। ज्यादातर स्टूडेंट 200 किलोमीटर दूर सेमी-अर्बन एरिया की बेसमेंट में रह रहे हैं।

न्यूयॉर्क में दिसंबर 2019 की तुलना में सिंगल रूम के किराये में 50 डॉलर और डबल रूम के किराये में 100 डॉलर की कमी आई है। मैनहट्‌टन में अभी भी एक कमरे के लिए तीन से चार हजार डॉलर तक देने पड़ते हैं। न्यूयॉर्क से गुरजोत भुल्लर ने बताया कि कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क में जिन लोगों के पास पूरे डॉक्यूमेंट्स नहीं थे, उन्हें भी आर्थिक सहायता और मेडिकल हेल्प मिली।

केस बढ़े तो अस्पतालों ने भर्ती करने से मना किया

बोस्टन में रह रहे होशियारपुर के अमरदीप सिंह ने बताया कि भारत की तुलना में अमेरिका बहुत आगे है पर कोरोना ने हमारा अपने देश के प्रति प्यार और ज्यादा बढ़ा दिया है। यहां जिंदगी बहुत अच्छी है। काम थोड़ा-बहुत भी मिलता रहे तो भारत से ज्यादा पैसा बन जाता है, पर कोरोना ने यूएस का अलग ही रूप दिखाया।

न्यूयाॅर्क के अस्पतालों में कोविड-19 के केस बढ़ने लगे तो अस्पतालों ने मरीज भर्ती करने से मना कर दिया। यहां तक कि गंभीर रूप से बीमार जिन लोगों का अस्पतालों में इलाज चल रहा था, उन्हें भी यह कहकर घर भेज दिया कि घर जाकर होम क्वारैंटाइन हो जाएं। उनके एक दोस्त को न्यूयॉर्क के एक अस्पताल ने गंभीर हालत में घर भेज दिया। दो दिन बाद उसकी मौत हो गई। न्यूयॉर्क से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव मरीजों की देखभाल पंजाब में हो रही है।

नवंबर तक मिल जाएगा कोरोना का इलाज, सरकार भी बदलने के आसार

कोरोना फैलने के बाद अमेरिकी सरकार किसी भी देश के नागरिक को वीजा देने के पक्ष में नहीं। भुपिंदर सिंह ने बताया एच-1बी वीजा लेकर भारतीय प्रोफेशनल अमेरिका आकर अपने सपने पूरे करते हैं पर अब इस पर भी सख्ती बढ़ रही है। कंपनियों पर दबाव है कि दूसरे देशों से आए लोगों की बजाय मूल अमेरिकियों को नौकरी दी जाए पर भारत से आए लोग नवंबर तक इंतजार करने के मूड में हैं।

ज्यादातर लोगों का मानना है कि नवंबर में ट्रम्प सरकार बदल जाएगी और कोरोना की दवा तैयार होने से मौतें नहीं होंगी। इसके बाद वे यहां रहकर अमेरिकी डॉलर कमा सकेंगे। दिलचस्प यह भी है कि सरकार की गाइडलाइंस के विपरीत अमेरिकी कंपनियां कम सैलरी के कारण एशियाई प्रोफेशनल्स को छोड़ना नहीं चाहतीं।

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