राजस्थान में संकट टला, खत्म नहीं हुआ:संकट सुलझाने के लिए कांग्रेस ने 4 फॉर्मूले की रणनीति बनाई, 5 सवाल भी मौजूद- पायलट को पीसीसी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद मिलेगा?
प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे हट सकते हैं, संगठन में भी बदलाव होने की संभावना गहलोत खेमे के 102 और सचिन गुट के 22 मिलाकर संख्या 124 हो गई, लेकिन गहलोत खेमे के 100 विधायक 12 अगस्त तक जैसलमेर में ही रहेंगे, राजस्थान के सियासी घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी सबसे ज्यादा चौंकाने वाली रही वसुंधरा 4 दिन पहले दिल्ली गई थीं, वहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी
सचिन पायलट के राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद राजस्थान में सरकार का संकट फिलहाल टल गया है। पायलट और उनके बागी विधायकों को आश्वासन दिया गया है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। अ राजस्थान संकट को सुलझाने के लिए 4 फॉर्मूले की रणनीति को अमल में लाया गया। 5 सवालों में समझें कि खतरा टला है, लेकिन खत्म नहीं हुआ। अविनाश पांडे को प्रदेश प्रभारी पद से हटाने की बात भी कही जा रही है।
4 फाॅर्मूले: जो राहुल व प्रियंका ने सियासी समीकरण सुलझाने को बनाए
1. गहलोत ही रहेंगे मुख्यमंत्री
राहुल गांधी से समझौते में यह तय हो गया है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे। हालांकि सारी बगावत इसी मुद्दे को लेकर हुई थी कि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए।
2. पायलट को क्या पद? तय नहीं
सचिन पायलट को क्या पद मिलेगा? अभी यह तय नहीं हुआ है। सूत्रों की मानें तो उन्हें वापस डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का पद दिए जाने की संभावना बहुत कम है।
3. तीन सदस्यीय कमेटी गठित
प्रदेश में सरकार चलाने के लिए 3 सदस्यीय कमेटी गठित होगी। इसमें कौन सदस्य होंगे अभी उनके नाम तय नहीं। यह कमेटी बागी विधायकों की समस्याएं दूर करेगी।
4. सरकार-संगठन में आएंगे बागी
सचिन पायलट का समर्थन करने वाले 18 बागी कांग्रेस विधायकों को प्रदेश सरकार या संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। किसे क्या पद मिलेगा, अभी तय नहीं।
5 सवाल: जो बताते हैं कि खतरा सिर्फ टला है, पर खत्म नहीं हुआ
1. क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बदले जाएंगे?
नहीं। गहलोत ही सीएम रहेंगे। सीएम बदलने की मांग केंद्रीय नेतृत्व ने मंजूर नहीं की है।
2. क्या सचिन की वापसी पर पीसीसी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद उन्हें फिर मिलेगा?
ये आसान नहीं। गहलोत खेमा सचिन की वापसी नहीं चाहता। दो बार कैबिनेट बैठक में भी यही मैसेज दिया कि अब सचिन स्वीकार नहीं। फिर भी केंद्रीय नेतृत्व के साथ समझौता हुआ है तो सम्मानजनक पद मिल सकता है।
3. क्या सरकार पर खतरा अभी बरकरार है?
सचिन की वापसी से अभी सरकार पर संकट टल गया है। गहलोत खेमे के 102 व सचिन गुट के 22 मिलाकर संख्या 124 हो गई है। लेकिन गहलोत खेमे के 100 विधायक 12 अगस्त तक जैसलमेर में ही रहेंगे। साफ है कि सरकार नहीं मान रही कि खतरा खत्म हो गया।
4. क्या तल्ख बयानों, आरोप-प्रत्यारोप से पड़ी दरारें राहुल-प्रियंका से मीटिंग से खत्म हो जाएंगी?
नहीं, दरारें रहेंगी। पिछले एक माह से दोनों गुटों में व्यक्तिगत हमले की भाषा से दूरियां बढ़ गई हैं। सचिन की वापसी गहलोत से प्रत्यक्ष मीटिंग के बिना हो रही है। ऐसे में फिलहाल नहीं लगता कि व्यक्तिगत दरारें भरी हैं। हालांकि, गहलोत कह चुके हैं कि सचिन केंद्रीय नेतृत्व की मंजूरी से लौटते हैं तो सबसे पहले मैं गले लगाऊंगा। पर अंदरखाने दूरियां यूं खत्म होती लग नहीं रहीं।
5. क्या हटाए गए मंत्रियों को फिर वो पद मिलेगा?
जिस तरह के समझौते की खबरें आ रही हैं, उससे लगता है कि मिल सकता है। इन्हें वही मंत्रालय मिलेंगे, यह कहना अभी मुश्किल है।
अंकगणित जो कहता है कि फिलहाल सरकार को कोई खतरा नहीं
पायलट गुट के जाने के बाद सरकार अपने पास 102 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही थी। इनमें 2 बीटीपी और 2 सीपीएम के विधायक थे। पायलट के पास कांग्रेस के 19 और 3 निर्दलीय मिलाकर कुल 22 विधायक थे। पायलट की वापसी से अब सरकार के पास 124 विधायक हो गए, जो बहुमत से 23 ज्यादा हैं।
बयानबाजी भी चलती रही
राजस्थान के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। लेकिन बागियों की वापसी नहीं होनी चाहिए के स्टैंड पर हम अब भी कायम हैं।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि राजस्थान में 31 दिन रामलीला के बाद भाई-बहन जागे। प्रदेश में जो हालात हैं, लगता नहीं कि कांग्रेस स्थिर, मजबूत और ईमानदार सरकार चला पाएगी।उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बोले कि सियासी स्तर पर पूरी पटकथा कांग्रेसियों ने ही लिखी। इसमें नायक भी इन्हीं के थे और खलनायक भी। इस लड़ाई में उनका लालच सामने आ चुका है।
गहलोत से मिले भंवरलाल, कहा : 15-20 आदमियों से नेतृत्व परिवर्तन होता है क्या?
पायलट की आलाकमान से मुलाकात के बाद उनके गुट के विधायक भंवर लाल शर्मा भी जयपुर पहुंचे और मुख्यमंत्री गहलोत से मिले। इस मुलाकात में उन्होंने कहा कि आप सोचिए 15-20 आदमियों से नेतृत्व परिवर्तन होता है क्या? पार्टी तो बहुमत से चलती है और मैं बहुमत के साथ हूं।
निष्कर्ष: लोक हारा, तंत्र जीत गया
करीब एक महीने चली राजस्थान की सियासी जंग तो खत्म हो गई, लेकिन इसमें ‘लोकतंत्र’ बिखर गया, क्योंकि इस दौरान दिखे राजनीति के भ्रष्टाचार ने ‘तंत्र’ को तो जीत दिला दी, लेकिन ‘लोक’ यानी जिन लोगों से लोकतंत्र बना है, वे हार गए। इन 31 दिनों में जब कोरोना अपने चरम पर था और उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब उनमें से कुछ तो होटलों में बंद थे और कुछ उन्हें खरीदने के लिए बोलियां लगा रहे थे। उम्मीद है राजनीति का यह युद्ध विराम स्थाई होगा।
पायलट की वापसी के पीछे वसुंधरा फैक्टर:सचिन पायलट समझ गए थे कि जब तक वसुंधरा सक्रिय नहीं होंगी, गहलोत सरकार का गिरना मुश्किल है; इसलिए सुलह का रास्ता चुना
राजस्थान की राजनीति में एक महीने से जारी घमासान में सचिन पायलट की घर वापसी के साथ हैप्पी एंडिंग हो गई। शुरुआत में बेहद आक्रामक दिख रहा पायलट गुट आखिर सुलह की टेबल पर कैसे आ गया? सियासी गलियारों में इसके पीछे कई मतलब निकाले जा रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में हैं भाजपा नेता और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे।
राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि वसुंधरा ने 4 दिन पहले दिल्ली पहुंचकर भाजपा आलाकमान को तेवर दिखाए। लेकिन, उसका असर कांग्रेस में पायलट गुट की घर वापसी के रूप में दिखा। इस पूरे मामले में वसुंधरा की भूमिका को इन 4 पॉइंट्स में समझिए-
1. गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा की दिलचस्पी नहीं थी
पायलट विवाद के बाद अगर वसुंधरा सक्रिय होतीं तो गहलोत सरकार को गिराया जा सकता था। लेकिन, वसुंधरा ने चुप्पी साधे रखी। क्योंकि, ये तय था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती तो भी मुख्यमंत्री का ताज वसुंधरा के सिर पर नहीं सजना था। इसलिए, किसी और के लिए सक्रिय होने के बजाय वे दूर बैठकर नजारा देखती रहीं। भाजपा के सहयोगी दल रालोपा के सांसद हनुमान बेनीवाल ने खुलेआम वसुंधरा पर यह आरोप लगाया।
2. भाजपा के 45 से ज्यादा विधायक वसुंधरा समर्थक
वसुंधरा पर आरोप लगे कि वे गहलोत सरकार की मदद कर रही हैं। ये बात भले ही सच नहीं हो, लेकिन ये सही है कि गहलोत सरकार को गिराने में भी उनकी दिलचस्पी नहीं थी। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि पायलट की बगावत के बाद भाजपा ने जो रणनीति बनाई थी, उसमें वसुंधरा कहीं नहीं थीं। भाजपा ने जब अपने कई विधायकों को जोड़-तोड़ से बचाने के लिए भेजा तब भी वसुंधरा समर्थक विधायक नहीं माने थे। राजस्थान में भाजपा के 72 विधायकों में 45-46 विधायक वसुंधरा समर्थक बताए जाते हैं। एक महीने के इंतजार के बाद पायलट गुट समझ गया कि गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा की कोई रुचि नहीं है। ऐसे में पायलट गुट ने कांग्रेस में वापसी के रास्ते तलाशने शुरू कर दिए।
3. वसुंधरा ने भाजपा आलाकमान को भी संदेश दिया
राजनीतिक हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि वसुंधरा ने चुप्पी साधकर चतुराई से अपना मकसद पूरा कर लिया। वे पार्टी आलाकमान को साफ संदेश देने में भी सफल रहीं कि राजस्थान में उनकी अनदेखी कर काम नहीं चल सकता। इस मामले में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत काफी सक्रिय थे। लेकिन, गहलोत सरकार गिराने का प्लान फेल होने के बाद वसुंधरा ये मैसेज देने में भी कामयाब रहीं कि प्रदेश में पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत है और पार्टी के नए चेहरे अभी उतने मैच्योर नहीं हैं।
4- राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत युग के बाद भाजपा पर वसुंधरा का राज
भैरोसिंह शेखावत का दौर खत्म होने के बाद करीब 2 दशक से राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे का एकछत्र राज रहा है। प्रदेश में उन्हें चुनौती देने वाला पार्टी में कोई नेता नहीं रहा, लेकिन भाजपा में मोदी युग शुरू होने के साथ ही प्रदेश में नए समीकरण बनने शुरू हो गए। पार्टी ने पुराने नेताओं की जगह युवा चेहरों को तरजीह देना शुरू किया। पार्टी की सोच रही है कि दूसरी लाइन के 60 से कम उम्र के नेताओं को आगे बढ़ाया जाए, ताकि नई लीडरशिप तैयार हो सके। इसे ध्यान में रख पार्टी ने गजेन्द्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे नेताओं को बढ़ाना शुरू कर दिया।
वहीं मोदी-शाह की जोड़ी से वसुंधरा राजे की कभी पटरी नहीं बैठी। वसुंधरा एकमात्र ऐसी नेता हैं जो इस जोड़ी से अपनी बात मनवाने में हमेशा कामयाब रहीं। अब मोदी-शाह की जोड़ी ने राजस्थान में नए नेता के हाथ में बागडोर सौंपना तय कर लिया है। इसके पीछे यह सोच रही कि अगले चुनाव तक वसुंधरा 70 की हो जाएंगी। इसी सिलसिले में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को पूरी तरह से सक्रिय कर दिया गया।