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मिल्खा सिंह का फिटनेस मंत्र:जितनी भूख हो, उससे आधा खाइए क्योंकि बीमारियां पेट से शुरू होती हैं; खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियों को भी बहा देगा

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♠कई रिकॉर्ड बनाने वाले मिल्खा सिंह 91 साल की उम्र में इस दुनिया से कूच कर गए। 90 साल की उम्र के बाद भी उनका फिटनेस के प्रति जुनून कम नहीं हुआ था। उनके लिए फिटनेस क्या मायने रखती थी, इसे उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान साझा किया था। उन्होंने कहा था कि बदलाव फिटनेस से ही आएगा। मैं जो चल-फिर पा रहा हूं, वह केवल फिजिकल फिटनेस की वजह से ही हो पाया है।

मिल्खा ने कहा था कि मैं लोगों से कहता हूं कम खाओ, क्योंकि सारी बीमारी पेट से ही शुरू होती हैं। मेरी राय है कि चार रोटी की भूख है तो दो खाइए। जितना पेट खाली रहेगा आप ठीक रहेंगे। इसके बाद मैं चाहूंगा कि 24 घंटे में से 10 मिनट के लिए खेल के मैदान में जाना बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा था- पार्क हो, सड़क हो…जाइए और दस मिनट तेज वॉक कीजिए, थोड़ा कूद लीजिए, हाथ-पैर चला लीजिए। खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियों को भी बहा देगा। आपको मेरी तरह कभी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं होगी। सेहत के लिए दस मिनट निकलना बेहद जरूरी है।

स्टार्स टेल के एक इवेंट में मिल्खा की युवाओं को दी गई स्पीच उन्हीं के शब्दों में जानिए…
‘मेरे जमाने में 3 स्पोर्ट्समैन हुए। मैं, लाला अमरनाथ और मेजर ध्यानचंद जी थे। एक दिन नेशनल स्टेडियम के अंदर लाला अमरनाथ जी से मेरी बातें हो रही थीं। उन्होंने मुझे बताया कि मैच खेलने के लिए उन्हें दो रुपए मिलते हैं और थर्ड क्लास में उन्हें सफर करना होता है। अब हालात कितने बदल गए हैं। विराट कोहली के पास इतना पैसा, धोनी के पास इतनी दौलत है, सचिन कितने अमीर हैं, लेकिन तब इतना पैसा नहीं मिलता था।

ध्यानचंद जी जैसा हॉकी प्लेयर आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ। जब वे 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में खेल रहे थे तो हिटलर ने उनसे कहा था कि ध्यानचंद आप यहां रह जाइए, आपको जो चाहिए हम देंगे, लेकिन ध्यानचंद जी ने कहा था नहीं, मुझे अपना देश प्यारा है, मुझे वापस जाना है।

1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में जब मैंने पहला गोल्ड मैडल जीता, तो क्वीन ने मुझे गोल्ड मेडल पहनाया। स्टेडियम में करीब एक लाख अंग्रेज बैठे थे, भारतीय गिने-चुने ही थे। क्वीन जैसे ही गोल्ड मेडल पहनाकर गईं, तो एक साड़ी वाली औरत जो क्वीन के साथ ही बैठी थीं, दौड़ती हुई मेरे पास आई और बोली- मिल्खा जी…पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) का मैसेज आया है और उन्होंने कहा है कि मिल्खा से पूछो कि उन्हें क्या चाहिए।

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ आर्मी यूनिफॉर्म में मिल्खा सिंह (बाएं)।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ आर्मी यूनिफॉर्म में मिल्खा सिंह (बाएं)।

आपको मालूम है मिल्खा सिंह ने उस दिन क्या मांगा था? सिर्फ एक दिन की छुट्टी। मैं पंडित जी से कुछ भी मांगता तो मिल जाता। लेकिन मांगने में शर्म का भाव आता है। तब मेरी तनख्वाह 39 रुपए 8 आने थी। सेना में मैं सिपाही था। उसी में हम गुजारा किया करते थे। आज इतना पैसा आ गया है खेल में, इतने लेटेस्ट इक्विपमेंट आ गए हैं, इतने स्टेडियम बन गए हैं, मगर मुझे दुख इस बात का है कि 1960 में जो मिल्खा सिंह ने रिकॉर्ड बनाया था, वहां तक आज तक कोई भारतीय खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है। मुझे इस बात की तकलीफ है। आगे बढ़ो…सब कुछ है हमारे पास।

ओलिंपिक में मैडल जीतना अलग स्तर का काम है। वहां पर 220-230 देशों के खिलाड़ी आते हैं और अपनी पूरी तैयारी करके आते हैं। जोर लगाकर आते हैं कि हमें स्विमिंग में मेडल जीतना है, फुटबॉल में मेडल जीतना है, हॉकी में मेडल जीतना है। एथलेटिक दुनिया में नंबर वन गेम मानी जाती है। उसमें जो मैडल ले जाता है उसे दुनिया मानती है।

1960 रोम ओलिंपिक के दौरान मिल्खा सिंह (दाएं)।
1960 रोम ओलिंपिक के दौरान मिल्खा सिंह (दाएं)।

उसेन बोल्ट को पूरी दुनिया जानती है और कहती है कि जमैका का खिलाड़ी है। भारत की आजादी के बाद से केवल 5-6 खिलाड़ी फाइनल तक पहुंचे हैं, लेकिन मेडल नहीं ले पाए। मैं भी उनमें से एक हूं। जब कोई वहां से मेडल लेकर आएगा तब मैं मानूंगा कि बदलाव हुआ है।’

 

मिल्खा सिंह को रह गया मलाल:125 करोड़ की आबादी में दूसरा फ्लाइंग सिख पैदा नहीं हुआ; नहीं चाहते थे कि बेटा स्पोर्ट्स पर्सन बने

पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह (91) कोरोना की वजह से निधन हो गया है। उनका चंडीगढ़ के PGIMER में इलाज चल रहा था। 5 दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हुआ था। मिल्खा सिंह दुनिया को तो अलविदा कह गए, लेकिन कुछ ऐसी भी बातें हैं जिनका उनको मलाल रह गया।

वे चाहते थे कि 125 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा मिल्खा सिंह आना चाहिए था। दूसरा यह था कि वे अपने बेटे जीव मिल्खा सिंह को कभी भी स्पोर्ट्स पर्सन नहीं बनाना चाहते थे। यह बात उन्होंने 4 साल पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कही थी।

मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह ने कहा था- नहीं जानता था कि ओलिंपिक गेम्स होते क्या हैं, एशियन गेम्स और वन हंड्रेड मीटर और फोर हंड्रेड मीटर रेस क्या होती है? मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे। न ही ट्रैक सूट होता था। न कोचेस थे और न ही स्टेडियम। 125 करोड़ है देश की आबादी। मुझे दुख इस बात का है कि अब तलक कोई दूसरा मिल्खा सिंह पैदा नहीं हो सका।

उन्होंने कहा था कि मैं 90 साल का हो गया हूं, दिल में बस एक ही ख्वाहिश है कोई देश के लिए गोल्ड मेडल एथलेटिक्स में जीते। ओलंपिक में तिरंगा लहराए। नेशनल एंथम बजे। अपने हुनर से कई खिताब जीतने वाले मिल्खा सिंह ने दिल की ये टीस रोटरी क्लब के इवेंट ब्लेसिंग में शेयर की। तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन वे बतौर स्पेशल गेस्ट पहुंचे थे।

मिल्खा ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। अगले 56 साल तक यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका।
मिल्खा ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। अगले 56 साल तक यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका।

नहीं चाहता था बेटा स्पोर्ट्स में जाए
फ्लाइंग सिख ने कहा था कि मैं और मेरी पत्नी निर्मल कौर दोनों स्पोटर्स पर्सन रहे हैं। वे वॉलीबॉल टीम की नेशनल कैप्टन थीं। हम नहीं चाहते थे कि हमारा बेटा जीव मिल्खा सिंह स्पोर्ट्स में जाए। मैं, मेजर ध्यानचंद और लाला अमरनाथ (क्रिकेटर) साथ के ही थे। मुझे लाला अमरनाथ बताते थे मैच खेलने के दो रुपए मिलते थे। मेरा भी वही हाल था, पैसे तो थे नहीं।

मिल्खा सिंह ने कहा कि हमने तय किया बेटे को कोई प्रोफेशनल डिग्री दिलाएंगे। डॉक्टर, इंजीनियर वाली, मगर स्पोर्ट्स नहीं। मैं उसे शिमला के स्कूल में भेजना चाहता था, ताकि उसका ध्यान खेलों में न जाए। मगर कुछ और ही होना लिखा था शायद। एक बार स्कूल की तरफ से जूनियर गोल्फ में उसने (जीव मिल्खा) नेशनल जीता। फिर इंटरनेशनल के लिए लंदन और अमेरिका गया। 4 बार यूरोप की चैंपियनशिप जीती और फिर उसे पद्मश्री मिल गया।

न पैसे थे न सिफारिश, आर्मी से 3 बार हुआ रिजेक्ट
उन्होंने कहा था कि मुझे आर्मी से 3 बार रिजेक्ट किया गया। मेरी हाइट ठीक थी, दौड़ा भी। मेडिकल टेस्ट भी पास किया, मगर मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। उस दौर में भी पैसे और सिफारिश चलती थी। ये सब मेरे पास नहीं था। लिहाजा मैं 3 बार रिजेक्ट हुआ। मगर ये भी सच है कि मैं इसके बाद जो कुछ बना वो आर्मी के कारण ही बना। वहां स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग मिली, कोच मिले। तब कहीं जाकर मैं ये सब कर पाया।

पाकिस्तान में हुआ था जन्म
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया
1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलिंपिक खेल में भाग लिया। कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन आगे की स्पर्धाओं के रास्ते खोल दिए। 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 और 400 मीटर में कई रिकॉर्ड बनाए। इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर की स्पर्धाओं और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीते। उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

 

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