मानसून के लिए क्या-क्या न किया:अविवाहित स्त्री को नग्न करके खेत जोतने से लेकर मेंढक-मेंढकी की शादी तक; बारिश के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में अनोखी प्रथाएं
1876 में भारत को विकराल अकाल ने जकड़ लिया था। ऐसी भुखमरी फैली कि महज 2 साल में ही 50 लाख लोगों का सफाया हो गया। इसके दो दशक बाद देश को एक बार फिर भयंकर सूखे का सामना करना पड़ा। ये सूखा बुंदेलखंड से शुरू होकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मद्रास और बॉम्बे तक बंजर खेत और बदहाल आबादी छोड़ गया। ये सिलसिला बदस्तूर चलता रहा।
19वीं सदी के आसपास किसानों को लगने लगा कि अकाल और सूखा इसलिए पड़ रहा है, क्योंकि उनके देवता नाराज हैं। देवताओं के क्रोध को शांत करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में तरह-तरह की कवायद होने लगी। धीरे-धीरे यही प्रथाएं बन गईं। बारिश के लिए कहीं मेंढक-मेंढकी की शादी करवाई जाती है, तो कहीं स्त्री को नग्न करके खेत की जुताई कराई जाती है। हम यहां मानसून के लिए देशभर में होने वाली ऐसी ही अनोखी प्रथाओं के बारे में बता रहे हैं…
अविवाहित स्त्री को नग्न करके खेत की जुताई
ब्रिटिश ओरिएंटलिस्ट विलियम क्रुक के अनुसार, ‘1873-74 में गोरखपुर में अकाल पड़ा। इस दौरान कई ऐसे मामले देखने को मिले थे, जहां रात में अविवाहित महिलाएं बिना कपड़े पहने खेत जोतती थीं।’ उनकी किताब पॉपुलर रिलिजन एंड फोक-लोर ऑफ नॉर्दर्न इंडिया के मुताबिक, इस पूरी प्रक्रिया में पुरुषों को दूर रखा जाता था। किसानों की मान्यता थी कि अगर खेत जोत रही महिला को कोई देख लेता तो उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते।
बिहार, UP और तमिलनाडु के कुछ ग्रामीण इलाकों में ये प्रथा आज भी चल रही है। लोगों की मान्यता है कि इससे बारिश के देवता को शर्म आ जाती है और वे बारिश भेज देते हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट में बिहार के बांके बाजार के उपेंद्र कुमार बताते हैं कि गांव के लोगों को इस प्रथा पर बहुत भरोसा है। वे इसे तब तक करते हैं, जब तक भारी बारिश नहीं हो जाती।
मेंढक-मेंढकी की शादी
बारिश के लिए मेंढक-मेंढकी की शादी पारंपरिक रूप से असम में होती थी, लेकिन अब UP, MP, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में भी पूरे रीति-रिवाज से ये प्रथा मनाई जाती है। 2019 में एक मामला काफी चर्चा में रहा था, जब बारिश के लिए पहले मेंढक-मेंढकी की शादी कराई गई, लेकिन जब ज्यादा बारिश होने लगी तो दोनों का तलाक करवा दिया गया।
लोक प्रथाओं के जानकारों का मानना है कि मेंढक-मेंढकी की शादी का मौसम से कनेक्शन है। मानसून के दौरान मेंढक बाहर निकलता है और टर्राकर मेंढकी को आकर्षित करता है। मेंढक-मेंढकी की शादी एक प्रतीक के तौर पर कराई जाती है जिससे वो दोनों मिलन के लिए तैयार हो जाएं और बारिश आ जाए।
तुंबा बजाने की प्रथा
पांडवों में तीसरे नंबर के भाई थे भीम। बस्तर में गोंड जनजाति के लोग इन्हें अपना लोक देवता मानते हैं। उन्हें बारिश और शक्ति का प्रतीक मानते हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार जब भी भीम तुंबा बजाते थे, तो बारिश होती थी। तुंबा एक तरह का वाद्ययंत्र है। गोंड में एक समुदाय इसे बजाने का काम करता है, जिसे भीमा कहते हैं। गोंड जनजाति में इनका बेहद सम्मान होता है। इन्हें समारोह में विशेष रूप से बुलाया जाता है। आज भी लोगों का मानना है कि जब भीमा तुंबा बजाते हैं तो बारिश होती है। ये प्रथा छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में प्रचलित है।
कीचड़ से नहाने की प्रथा
बस्तर के नारायणपुर इलाके में मुड़िया जनजाति में एक और रोचक प्रथा है। इसमें किसी को भीम देव का प्रतिनिधि बनाकर, उसे गाय के गोबर और कीचड़ से ढंक दिया जाता है। लोगों की मान्यता है कि इससे देवता को सांस लेने में तकलीफ होगी। इससे राहत के लिए वो बारिश करवाएंगे और कीचड़ धुल जाएगा। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में युवा लड़के कीचड़ में लोटते हैं और भगवान से हाथ जोड़कर बारिश की मांग करते हैं। उनका मानना है कि इंद्र देव इससे प्रसन्न होकर बारिश करवा देते हैं।
जमीन में बर्तन गाड़कर बारिश का पूर्वानुमान
बारिश की भविष्यवाणी के लिए झारखंड के सरायकेला में एक प्रथा प्रचलित है। चैत्र पर्व के उत्सव के दौरान कई पुरुष नदी से पानी भरकर शिव मंदिर तक कलश यात्रा निकालते हैं। इन बर्तनों को रात में मंदिर में गाड़ दिया जाता है। पुजारी अगले दिन इन बर्तनों को खोदता है और पानी का मुआयना करता है। अगर बर्तन में पानी का स्तर पहले जैसा ही है तो ये अच्छी बारिश का संकेत है। अगर पानी का स्तर कम हो जाता है तो ये सूखे की भविष्यवाणी है। इसके बाद देवताओं को खुश करने के लिए अनुष्ठान शुरू होते हैं। इसमें लोग कांटों पर लोटकर अपने पाप के लिए क्षमा मांगते हैं।
बारिश के लिए प्रचलित कुछ अन्य रिवाज
- तेलंगाना के कुछ गांवों में रहने वाले अपने घरों को छोड़कर जंगल में दिन बिताते हैं। उनका मानना है कि वनवास करने से भगवान खुश होंगे और बारिश करेंगे।
- 1890 से मदुरै में लोगों को कांटे से हवा में लटकाने की प्रथा रही है। हालांकि मद्रास सरकार ने दो दशक पहले इस प्रथा पर रोक लगा दी। इसमें एक हष्ट-पुष्ट युवा को 35-60 फीट ऊपर हवा में लटकाया जाता है। लोगों की मान्यता थी कि इससे बारिश होती है।
- तमिलनाडु में नल्लाथंगल नाम का एक लोकगीत है। जब कोई इलाका सूखे की चपेट में आ जाता है तो 10 रातों तक इसे गाया जाता है। कहा जाता है कि इस गीत की कहानी इतनी मार्मिक है कि देवताओं का दिल पिघल जाता है और बारिश होती है।
- स्पेन के टोमैटिना फेस्टिवल की तरह झारखंड में कीचड़ फेस्टिवल होता है। ओरांव जनजाति के लोग एक दूसरे पर कीचड़ फेंकते हैं। उनकी मान्यता है कि देवता उनके शरीर से मिट्टी और कीचड़ धुलवाने के लिए बारिश करेगा।
- कर्नाटक और गुजरात के कुछ मंदिरों में पानी से भरे बर्तनों में बैठकर पंडित वैदिक मंत्रोच्चार करते हैं। उनका मानना है कि इससे अच्छी बारिश होगी और तापमान में कमी आएगी।
थाईलैंड में बारिश के लिए बिल्ली पर फेंका जाता है पानी
एसोसिएट प्रोफेसर मयंक कुमार अपनी किताब मानसून इकोलॉजीज में लिखते हैं, ‘ये सभी कहावतें और प्रथाएं भले ही अंधविश्वास लगती हों, लेकिन इनका प्रकृति के मूल्यों के साथ गहरा संबंध है।’
ऐसी प्रथाएं सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं। थाइलैंड में बारिश के लिए बिल्ली पर पानी फेंकने का रिवाज है। यहां पिंजड़े में कैद बिल्ली पर पानी की बौछार मारी जाती है। मान्यता है कि बिल्ली के रोने से बारिश आती है। हालांकि आजकल इस प्रथा में बदलाव करके नकली बिल्ली का इस्तेमाल होता है। इसी तरह अमेरिका में बारिश के लिए पारंपरिक डांस की प्रथा है।