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भारत के लिए और मुश्किल हुई कोरोना महामारी की लड़ाई, जानिए कैसे

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एक नई स्टडी के मुताबिक भारत में कोरोना वायरस के एसिम्प्टमैटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि भारत में 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच टेस्ट किए गए 40,184 लोगों में से कोरोना के 28 फीसदी मरीज एसिम्प्टमैटिक थे. ये स्टडी इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों ने इस स्टडी को लेकर चिंता जाहिर की है.

स्टडी के लेखकों में से एक और ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के निदेशक मनोज मुरहेकर ने PTI को बताया, ‘एसिम्प्टमैटिक मरीजों की ये संख्या 28.1 फीसदी से भी अधिक हो सकती है और यह हमारे लिए चिंता का विषय है.’

इस स्टडी में ये भी सामने आया कि लक्षण वाले और एसिम्प्टमैटिक मरीजों के बीच संपर्क वाले मामलों का अनुपात सबसे ज्यादा था. ये अनुपात गंभीर श्वसन संक्रमण वाले मरीजों, विदेश से आने वाले मरीजों और संक्रमित स्वास्थ्यकर्मियों से दो-तीन गुना अधिक है.

स्टडी के अनुसार कोरोना वायरस की चपेट में सबसे अधिक 50-69 साल के उम्र के लोग (63.3 फीसदी) जबकि सबसे कम 10 साल से कम उम्र (6.1 फीसदी ) लोग आए थे. वायरस का हमला महिलाओं (24.3 फीसदी) की तुलना में पुरूषों में ज्यादा (41.6 फीसदी)  पाया गया.

भारत के लिए कोरोना वायरस के एसिम्प्टमैटिक मामले शुरू से ही चिंता का विषय रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने 20 अप्रैल को चेतावनी दी कि कोरोना वायरस के 80 फीसदी मरीज या तो एसिम्प्टमैटिक हैं या बहुत हल्के लक्षण वाले हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने भी एक प्रेस ब्रीफिंग में इसका जिक्र किया था.

लव अग्रवाल का कहना था, ‘दुनिया भर में विश्लेषण के आधार पर यह जानकारी मिलती है कि कोरोना वायरस के 100 में से 80 फीसदी मरीज एसिम्प्टमैटिक या बहुत हल्के लक्षण वाले हैं. आगे चलकर इनमें से 15 फीसदी मरीज गंभीर और पांच फीसदी नाजुक मामलों में बदल जाते हैं.’

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