बच्चों का कोरोना वैक्सीनेशन:क्या है भारत की स्थिति; एक्सपर्ट से जानिए बच्चों को अभी वैक्सीन लगाई जानी चाहिए या नहीं?
भारत में 16 जनवरी से कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन का महाअभियान चल रहा है। को-विन पोर्टल के अनुसार इसमें अभी तक 19 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन का पहला डोज लगवा चुके हैं। इनमें 8 करोड़ 30 लाख पुरुष हैं, 7 करोड़ 30 लाख महिलाएं हैं। लेकिन बच्चों के लिए वैक्सीनेशन शुरू नहीं हुआ है। हालांकि ट्रायल जारी हैं। मॉडर्ना ने बच्चों पर अपनी वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे भी सामने रख दिए हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या अभी बच्चों को वैक्सीन लगाई जानी चाहिए या ये जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इस सवाल पर एक्सपर्ट की अलग-अलग राय है। पेरेंट्स कंफ्यूज हैं। ऐसे में ये जरूरी हो गया है कि वैक्सीनेशन से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब दिए जाएं। हमने यहां यही कोशिश की है….
कैसे बनती है वैक्सीन?
इंसान के खून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं। बिना शरीर को नुकसान पहुंचाए वैक्सीन के जरिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं। जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया के हिसाब से ढल जाता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है। दशकों से वायरस से निपटने के लिए दुनियाभर में जो भी टीके बने, उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है।
भारत के बच्चों में संक्रमण
महामारी की शुरुआत में बच्चों पर कोरोना का प्रभाव कम था। दूसरी वेव के साथ ही संक्रमित बच्चों के आंकड़ों में उछाल आया है। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश में अभी 0-20 साल के 30 लाख 36 हजार 109 केस सामने आए हैं।
भारत में कैसे होता है बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल?
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी DCGI ने हाल ही में वैक्सीन को बच्चों पर ट्रायल करने की मंजूरी दी है। इसमें 2 साल से 18 साल के बच्चे शामिल होंगे। ट्रायल में 2 से 18 साल के 515 पार्टिसिपेंट्स होंगे। बच्चों में वैक्सीनेशन को दो चरणों में बांटा गया है। पहले चरण में बच्चों को अलग-अलग डोज दिया जाएगा। इसके 28 दिन बाद दूसरा डोज दिया जाएगा। वैक्सीनेशन के बाद बच्चों के स्वास्थ्य की लगातार निगरानी की जाएगी।
यह हू-ब-हू वयस्कों पर किए जा रहे ट्रायल की तरह ही है, लेकिन इसमें वैक्सीनेशन का दूसरा भाग अहम हो जाता है। बच्चों का सुपरविजन और एक्स्ट्रा केयर करनी पड़ती है। हर बच्चे का अपना इम्यून सिस्टम होता है, ऐसे में कोई ड्रग बच्चों पर कैसे रिएक्ट कर रही है, उसका ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इसलिए बच्चों के स्वास्थ्य की कम से कम 6 से 8 महीने निगरानी की जाएगी। इसके बाद ही ट्रायल को पूरा माना जाएगा।
बच्चों को वैक्सीन लगवानी क्यों जरूरी है?
भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में बच्चों का वैक्सीनेशन जल्द से जल्द होना जरूरी है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए हमारे सामने महाराष्ट्र का उदाहरण है। मुंबई में कोरोना की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में बच्चों में संक्रमण बढ़ा है।
BMC के अनुसार, मार्च में नवजात से 10 साल की उम्र के 1285 के बच्चे पॉजिटिव पाए गए हैं। 11 से 20 साल के 4045 युवा संक्रमण के शिकार हुए। राज्य स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि एक से 10 साल के 1 लाख 47 हजार 420 बच्चे अब तक कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे ही कर्नाटक में पिछले 2 महीने में 9 साल से छोटे 40 हजार बच्चे संक्रमित हुए हैं।
देश की जानी-मानी माइक्रोबायोलॉजिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग का कहना है कि जब बड़ों को वैक्सीन लग चुकी होगी। तब बच्चे ही ऐसे होंगे जो प्रोटेक्टेड नहीं होंगे। इस वजह से तीसरी लहर में उनके संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है।
जहां तक वैक्सीन का सवाल है, बच्चों के लिए डोज की मात्रा तय करने के लिए ट्रायल्स होते हैं। यह देखना होता है कि जो डोज वयस्कों को दिया जा रहा है, उतना ही बच्चों को देना है या उससे कम देना है। अमेरिका और कनाडा में फाइजर की वैक्सीन बच्चों को लग रही है। उसमें यह तय हुआ कि पूरा डोज दिया जाएगा। यानी वयस्कों जैसा ही डोज बच्चों को भी दिया जा रहा है। मॉडर्ना की वैक्सीन के ट्रायल्स के नतीजे भी अच्छे रहे हैं। जॉनसन एंड जॉनसन और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के नतीजे भी जल्द आ जाएंगे।
भारत में अगले महीने वैक्सीन के ट्रायल्स बच्चों पर शुरू होने वाला है। डॉक्टर कंग का अनुमान है कि चार-पांच महीने में फेज-3 के नतीजे यहां भी आ जाएंगे। सरकार उससे पहले भी अप्रूवल दे सकती है। पर तब तक वैक्सीन डोज की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती होगी।
पहली लहर के दौरान बच्चों में कोरोना के संक्रमण के गंभीर मामले भी कम सामने आए थे। उस दौरान एक्सपर्ट्स का कहना था कि बच्चों की इम्यूनिटी स्ट्रांग है इसलिए वयस्कों को पहले वैक्सीन लगाई जानी चाहिए। तो सवाल ये है कि देश में अभी 18- 45 साल की उम्र के कई लोगों को वैक्सीन का पहला डोज ही नहीं लगा है, तो क्या ऐसे वक्त में बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू करना सही होगा?
बच्चों का वैक्सीनेशन क्यों नहीं किया जाना चाहिए
इस पर एक्सपर्ट्स के अलग-अलग मत हैं। प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लैंसेट के मुताबिक, कई देशों में प्रत्येक एक लाख संक्रमित बच्चों में मरने वालों की संख्या दो से कम है। ज्यादातर केस में लक्षण भी ना के बराबर सामने आ रहे हैं। वहीं सिक्के के दूसरी ओर, एडल्ट्स में गंभीर मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में जर्नल गंभीर केस को प्राथमिकता देने की सलाह देते हैं।
वहीं अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) का कहना है कि, ‘12 और उससे ज्यादा उम्र वाले सभी वयस्कों को वैक्सीन लगनी चाहिए। एजेंसी के मुताबिक, ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन लगवाने से महामारी को रोका जा सकता है।’
बच्चों के वैक्सीनेशन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की राय CDC से पूरी तरह अलग है। WHO अपील कर कहा है कि अमीर देश फिलहाल बच्चों का वैक्सीनेशन न करें। बल्कि बच्चों के वैक्सीनेशन में इस्तेमाल की जा रही डोज गरीब देशों को दान दें। इससे महामारी से जल्द और ज्यादा बेहतर तरीके से निपटा जा सके।
संगठन का कहना है कि, कई देश बच्चों को वैक्सीन लगा रहे हैं वहीं दूसरी ओर दुनिया के कई गरीब देश अपने हेल्थ वर्कर्स तक को वैक्सीन नहीं दे पा रहे हैं।
इन देशों में चल रहा है बच्चों का वैक्सीनेशन
कनाडा- पूरी दुनिया में बच्चों का कोरोना वैक्सीनेशन सबसे पहले कनाडा ने शुरू किया। यहां 12-15 साल तक के बच्चों के लिए फाइजर की वैक्सीन को मंजूरी दी गई है। इससे पहले यह वैक्सीन 16 से ज्यादा उम्र वालों को लगाई जा रही थी।
अमेरिका- यहां भी 12 से 15 साल के बच्चों के लिए फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTecch) की कोरोना वैक्सीन लगाई जा रही है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US-FDA) ने इसे इजाजत दी है। कनाडा की ही तरह पहले यह भी 16 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों को लगाई जा रही थी। जिसके बाद अब 12 से 15 साल के छह लाख बच्चों को वैक्सीन के डोज लगाए जा चुके हैं।
अमेरिका में जॉनसन एंड जॉनसन और नोवावैक्स जैसी कंपनियां भी अपनी-अपनी वैक्सीन के बच्चों पर ट्रायल की शुरुआत कर चुकी हैं। नोवावैक्स ने 12-17 आयु वर्ग के 3,000 बच्चों पर अपनी वैक्सीन के ट्रायल्स शुरू किए हैं, लेकिन इसे अभी तक किसी भी देश में मंजूरी नहीं मिली है। इसमें शामिल हो रहे बच्चों की दो साल तक निगरानी की जाएगी।
ब्रिटेन- ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका 6 साल से 17 साल के बच्चों पर ट्रायल कर रही है। एस्ट्राजेनेका की ही वैक्सीन कोवीशील्ड के नाम से भारत में लगाई जा रही है।
भारत की क्या स्थिति है ?
भारत अभी इन देशों से बहुत पीछे है। भारत में अभी मॉडर्ना की वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे सामने आए हैं। इसमें 12 से 17 साल के बच्चों को शामिल किया गया था। कंपनी के अनुसार, वैक्सीन बच्चों पर 100% प्रभावी और सुरक्षित पाई गई है।
भारत में 18- 45 साल की आयु वाले लोगों का टीकाकरण चल रहा है। लेकिन प्रोडक्शन में देरी और डोज की कमी के कारण वैक्सीनेशन धीमा पड़ गया है। ऐसे में भारत अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर-बायोएनटेक की तरफ उम्मीदों भरी नजर से देख रहा है। कंपनी इस साल भारत को 5 करोड़ वैक्सीन देने को तैयार है, लेकिन वैक्सीनेशन के बाद कंपनी कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती। दूसरी तरफ, छोटे ही नहीं बड़े शहरों में भी पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) यानी बच्चों के आईसीयू नहीं हैं। ऐसे हालातों के बीच देश में बच्चों का वैक्सीनेशन एक बड़ी चुनौती है।