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गणेश उत्सव 22 से:मिट्टी के गणेश में पंचतत्व; कैसे बनाएं मिट्टी से गणपति की मूर्ति, इसका महत्व क्या है और प्रतिमा बनाते वक्त ध्यान रखने वाली बातें

विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार गंगा और अन्य पवित्र नदियों की मिट्टी से बनी मूर्ति की पूजा से खत्म होते हैं पाप

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22 अगस्त को गणेश चतुर्थी पर मिट्टी के गणेश ही स्थापित करना चाहिए क्योंकि मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्मशास्त्रों के जानकार पं. गणेश मिश्र का कहना है कि मिट्टी की गणेश प्रतिमा पंचतत्व से बनी होती है। उस मूर्ति में भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश के अंश मौजूद होते हैं। इसलिए उसमें भगवान का आवाहन और उनकी प्रतिष्ठा करने से कार्य सिद्ध होते हैं।

  • मिट्टी के गणेश की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। वहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य केमिकल्स से बनी गणेश जी की मूर्ति में भगवान का अंश नहीं रहता। इनसे नदियां भी अपवित्र होती हैं। ब्रह्मपुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि नदियों को गंदा करने से दोष लगता है।

मिट्टी के गणेश ही क्यों

  1. शिवपुराण में श्रीगणेश जन्म की कथा में बताया है कि देवी पार्वती ने पुत्र की इच्छा से मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिवजी ने उसमें प्राण डाले थे। वो ही भगवान गणेश थे।
  2. शिव महापुराण में धातु की बजाय पार्थिव और मिट्‌टी की मूर्ति को ही महत्व दिया है।
  3. लिंग पुराण के अनुसार शमी या पीपल के पेड़ की जड़ की मिट्टी की मूर्ति बनाना शुभ माना गया है। इसके अलावा गंगा तीर्थ और अन्य पवित्र जगह से भी मिट्‌टी ली जा सकती है।
  4. जहां से भी मिट्‌टी लें वहां ऊपर से चार अंगुल मिट्टी हटाकर, अंदर की मिट्टी लेकर भगवान गणेश की मूर्ति बनानी चाहिए।
  5. विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार गंगा और अन्य पवित्र नदियों की मिट्टी से बनी मूर्ति की पूजा करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
  6. भविष्यपुराण में सोना, चांदी और तांबे से बनी मूर्तियों के साथ ही मिट्टी की मूर्ति को भी बहुत पवित्र माना है। इसके अलावा विशेष पेड़ों की लकड़ियों से बनी मूर्तियां भी पवित्र मानी गई हैं।
पं. गणेश मिश्रा का कहना है कि इस तरह बनाई गई मिट्‌टी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने से उसमें भगवान का अंश आ जाता है। मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से करोड़ों यज्ञों का फल मिलता है।

कैसे बनाएं मिट्‌टी के गणेश
पं. मिश्र का कहना है कि मिट्‌टी को इकट्‌ठा कर के साफ जगह रखें। फिर उसमें से कंकड़, पत्थर और घास निकाल कर मिट्‌टी में हल्दी, घी, शहद, गाय का गोबर और पानी मिलाकर पिण्डी बना लें। इसके बाद ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेशजी की सुन्दर मूर्ति बनाएं। ऐसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने से उसमें भगवान का अंश आ जाता है। मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से करोड़ों यज्ञों का फल मिलता है।

कैसी हो गणेश जी की मूर्ति

  1. पं. मिश्र बताते हैं कि गणेशजी को वक्रतुंड कहा गया है। यानी इनकी सूंड टेढ़ी होनी चाहिए। बाईं ओर मुड़ी हुई सुंड वाले गणेश जी की पूजा करने से मोक्ष मिलता है। वहीं दाईं और मुड़ी हुई सूंड वाले गणेश जी की पूजा से लौकिक और भौतिक सुख मिलता है। गणेशजी के दाएं और बाएं हाथ से सुंड की दिशा समझनी चाहिए।
  2. जिस मूर्ति में गणेश जी का वाहन न हो ऐसे प्रतिमा की पूजा करने से बचना चाहिए। ग्रंथों में देवी-देवताओं की पूजा वाहन के साथ ही करने का विधान है।
  3. धर्म ग्रंथों में गणेश जी का एक नाम धूम्रवर्ण है। यानि गणेश जी का रंग धुएं के समान है। इसलिए हल्का स्लेटी रंग भी गणेश प्रतिमा पर किया जा सकता है।
  4. गणेश जी को भालचंद्र कहा जाता है इसलिए गणेश जी की मूर्ति इस तरह बनाए जिनके भाल यानी ललाट पर चंद्रमा बना हुआ हो।
  5. ऐसी गणेश मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए जिसमें उनके हाथों में पाश और अंकुश दोनों हो। शास्त्रों में गणेश जी का ऐसा ही रुप बताया गया है।

मिट्टी के गणेश की स्थापना और पूजा
गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद गिली मिट्टी से गणेश जी की मूर्ति बनाकर सुखा लें। इसके बाद उस पर शुद्ध घी और सिंदूर मिलाकर श्रृंगार कर सकते हैं। श्रृंगार करने के बाद जनेऊ पहनाएं। इसके बाद मूर्ति को घर की उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में स्थापित करें। धूप-दीप जलाएं। दूर्वा, फल-फूल अर्पित करें। लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाकर आरती करें। गणेश उत्सव में रोज सुबह-शाम पूजा करें। अनंत चतुर्दशी पर इस मूर्ति का विसर्जन करें।

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