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कोरोना पॉल्यूशन / इस्तेमाल किए मास्क-ग्लव्स, पीपीई और सैनिटाइजर्स की बोतलों का कचरा समुद्र में पहुंचा, ये 450 साल बना रहेगा

लोग पीपीई, सिंगल यूज मास्क को डिस्पोज करने में सावधानी नहीं बरत रहे सड़कों पर बिखरा मेडिकल वेस्ट इंसानों के साथ पालतू जानवरों के लिए खतरनाक थ्री-लेयर मास्क पॉलीप्रोपिलीन के बने, प्लास्टिक की तरह ही ये भी सैंकड़ों सालों तक नष्ट नहीं होते

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लॉकडाउन के कारण हवा-पानी तो कुछ हद तक साफ हो गया, लेकिन कोरोना से बचने की शर्त पर हम इंसान अपनी गंदी हरकतों से नदी-तालाबों और समुद्रों के लिए नया खतरा पैदा कर रहे हैं। महामारी के बीच सिंगल यूज मास्क, पीपीई, ग्लव्स और सैनेटाइजर की खपत रिकॉर्ड तोड़ रही है। लेकिन, इस्तेमाल के बाद लोग इन्हें ठीक से डस्टबिन में डिस्पोज ऑफ न करके, कहीं भी फेंक दे रहे हैं।

  • सड़कों पर बिखरा मेडिकल वेस्ट इंसानों के साथ पालतु पशुओं के लिए खतरनाक है और बहकर समुद्र में पहुंचने के बाद जलीय जीवों को भी इससे नुकसान हो सकता है।
  • कोरोनावायरस को रोकने के लिए सबसे अधिक प्रभावी बताए जा रहे अधिकांश थ्री-लेयर मास्क पॉलीप्रोपिलीन के और ग्लव्स व पीपीई किट रबर व प्लास्टिक से बने हैं।
  • कार्बन के इस पॉलीमर की कुदरती माहौल में बने रहने की उम्र करीब 450 साल है। प्लास्टिक की तरह ही ये मास्क भी सैकड़ों सालों तक पर्यावरण के लिए खतरा बने रहेंगे।
ऐसे दृश्य आम हुए क्योंकि कोरोना का डर बढ़ा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि दुनियाभर में हर महीने कोरोना से बचने के लिए मेडिकल स्टाफ को करीब 8 करोड़ ग्लव्स, 16 लाख मेडिकल गॉगल्स के साथ 9 करोड़ मेडिकल मास्क की जरूरत पड़ रही है। ये आंकड़ा सिर्फ मेडिकल स्टाफ का है और आम लोग जिन थ्री लेयर और N95 मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनकी संख्या तो करोड़ों-अरबों में पहुंच चुकी है।
सोको आइलैंड, हॉन्गकॉन्ग: यहां प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाले संगठन ‘ऑपरेशन क्लीन सी’ ने हाल ही में एक वीडियो रिलीज किया है। वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे मास्क, ग्लव्स और प्लास्टिक से बनी रक्षात्मक चीजें समुद्र में पहुंच कर जीवों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। ओशियंस-एशिया कंजर्वेशन ग्रुप के सदस्य गैरी कहते हैं हॉन्गकॉन्ग के सोको आइलैंड पर सैकड़ों यूस्ड मास्क मिले हैं। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।
 भ्रमित हो रहे जलीय जीव: मछलियां पानी में तैरते मास्क और प्लास्टिक वेस्ट को अपना खाना समझ रही हैं। खासतौर पर डाल्फिन पर तो बड़ा संकट है क्योंकि वे तटों के करीब आ जाती हैं। समुद्रों पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि हमने लॉकडाउन खुलने के थोड़े ही दिनों में तटों पर बहकर आई मुर्दा मछलियां देखी हैं। हमें बस इंतजार इस बात का है कि दुनिया को उनका पेट काटकर दिखाएं कि देखो, इनकी मौत मास्क खाने से हुई।
चेन्नई: यह तस्वीर चेन्नई के तटीय इलाके की है। मास्क, वाइप्स और ग्लव्स फेंकने की ऐसी ही तस्वीरें देश के अलग-अलग हिस्सों में देखी गई हैं। मवेशियों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन पीपुल फॉर कैटल ऑफ इंडिया के फाउंडर जी. अरुण प्रसन्ना का कहना है कि सड़कों पर इस तरह कचरा फेंका जा रहा है। गाय, बंदर, बकरी और दूसरे जानवर इसे खा सकते हैं। अगर इनमें से किसी में कोरोनावायरस हुआ तो स्लॉटर हाउस ही जानवरों के जीवन का अंतिम पड़ाव साबित होगा और इंसानों के लिए भी वायरस का नया खतरा पैदा हो जाएगा। 
मेडिटेरियन समुद्र का तट: ग्रीस के आर्किपेलागॉस इंस्टीट्यूट ऑफ मैरीन कंजर्वेशन के रिसर्च डायरेक्टर एनेस्टेसिया मिलिउ के मुताबिक, ग्लव्स, मास्क और पीपीई महामारी से बचाने के लिए सबसे जरूरी हैं। लेकिन डिस्पोज न किए जाने के कारण ये पर्यावरण, वाइल्ड लाइफ और मवेशियों के लिए परेशानी बढ़ाएंगे। कचरे को रोका नहीं गया तो प्लास्टिक पॉल्यूशन बढ़ेगा। लोग इसे सड़कों पर फेंकते हैं जो बहकर समुद्र तक पहुंच रहा है। फोटो: ओशियन-एशिया
हांगकांग : फोटो में गैरी स्ट्रोक्स दिखाई दे रहे हैं। गैरी ओशियंस-एशिया कंजर्वेशन ग्रुप के सदस्य हैं जो पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चलाता है। हांगकांग के सोको आइलैंड पर हाल ही में काफी संख्या में मास्क मिले हैं। गैरी कहते हैं कि हमने इससे पहले इस आयलैंड पर इतने मास्क नहीं देखे। हमें ये मास्क तब मिले जब लोगों ने 6-8 हफ्ते पहले ही इसका इस्तेमाल करना शुरू किया था। फोटो साभार: डायचे वेले
मुम्बई: यह तस्वीर मुम्बई के कुर्ला इलाके की है, जहां कचरा घर में प्लास्टिक से भरे बैग में पीपीई को फेंका गया था। ये बैग दिखने पर नगर निगम कर्मचारी संगठन के नेता विलास कोंडेगेकर ने अपने सीनियर को अलर्ट किया। उनका कहना है कि हमारे पास पीपीई सूट नहीं हैं जिसे कचरा हटाने के दौरान पहना जा सके। मास्क, ग्लव्स और सैनेटाइजर से ही बचाव किया जा रहा है। इसलिए हमनें पीपीई किट से भरे बैग को छुने की हिम्मत नहीं जुटाई। फोटो साभार : मुम्बई मिरर
फ्रांस: बीते दिनों सी-डाइवर्स ने फ्रांस के समुद्र तट के पास से डिस्पोजेबल ग्लव्स, मास्क और वाइप्स निकाले हैं। इसे डिस्पोज करने के लिए एनासिस आइलैंड वेस्ट वाटर
ट्रीटमेंट प्लांट में लाया गया है। प्लांट के सुपरवाइजर डेव हॉफमैन का कहना है कि हमें इसका पता तब चला जब कुछ मास्क ऊपर तैर रहे थे। फोटो साभार : सीबीसी
ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा: पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि अगर ये मास्क और बाकी मेडिकल वेस्ट जंगलों तक पहुंच गया तो इसके परिणाम भीषण और सदियों तक होंगे। ‘क्लीन दिस बीच अप’ नाम के पर्यावरण बचाने ग्रुप की फाउंडर मारिया अलगेरा ने एक पेड़ पर लटके मास्क में फंसकर मरी चिड़िया की ये तस्वीर शेयर कर खतरे का संकेत दिया है। ये घटना ब्रिटिश कोलंबिया की है जहां नीले रंग के यूज्ड मास्क को खाने के चक्कर में एक चिड़िया उसमें फंस गई। ये मास्क हवा से उड़कर पेड़ पर अटक गया था।
क्या छोड़कर जाएंगे नई पीढ़ी के लिए: फ्रांस के जूनियर पर्यावरण मंत्री ब्रून पॉरिसन इस मामले में बेहद चिंता से कहते हैं कि ये सब वो बदतर चीजें हैं जो हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए विरासत में छोड़कर जा रहे हैं। कहने को ये सिर्फ कचरा है, लेकिन इससे पर्यावरण को जो नुकसान होगा, वो कोरोना जितना ही बड़ा है। ली मोंडे अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस ने अपने यहां इस्तेमाल किए फेस मास्क, ग्लव्स और ऐसी ही चीजों को खुले में फेंकने पर सख्त पाबंदी लगाई है। यहां अगर कोई ऐसा करते पकड़ा जाता है तो उस पर करीब 12 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाने का बिल लाया जा रहा है।
प्रयोग के बाद मास्क को डिस्पोज कैसे करें: WHO ने मास्क पहनने, उतारने और उसे डिस्पोज करने के सही तरीका के बारे में बताते हए कहा है कि इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि मास्क, पीपीई और सैनिटाइजर्स का उपयोग समझदारी से किया जाए। इस्तेमाल के बाद गंदे हुए मास्क को एक प्लास्टिक की थैली में डालकर निर्धारित कचरे के डिब्बे में डाल दें या ऐसी जगह रखें जहां वह दूसरे लोगों और जानवरों की पहुंच से दूर हो। मास्क को खुले में न फेंके क्योंकि ये दूसरे व्यक्ति को संक्रमित बना सकती है। मास्क को छूने या उतारने के बाद हाथ को साफ करें। इसके साथ ही अल्कोहल बेस्ड हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करें।

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