Newsportal

कोरोना कॉल में न्यूड कॉल्स से ब्लैकमेलिंग के मामले 500% तक बढ़े; छोटे कस्बों से ऑपरेट किया जा रहा है यह धंधा, राजस्थान से ओडिशा तक फैला है जाल

0 173

केस-1

बेंगलुरू के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अविनाश बीएस के पास सोशल मीडिया से एक कॉल आती है। जिसमें एक महिला न्यूड होकर बात कर रही होती है। कुछ दिनों के बाद उनसे पैसे की मांग शुरू हो जाती है। पैसे नहीं देने पर उन्हें बदनाम करने की धमकी दी जाती है। इससे परेशान होकर अविनाश इस साल 23 मार्च को सुसाइड कर लेते हैं।

केस-2

उत्तर प्रदेश में रामपुर के एक भाजपा नेता के पास इस साल 22 अप्रैल को इसी तरह की अश्लील कॉल आती है और फिर उनसे भी पैसे की मांग शुरू हो जाती है। पैसे न देने पर वीडियो वायरल करने की धमकी दी जाती है। वे 24 मई को हिम्मत करके पुलिस से इसकी शिकायत करते हैं तो पूरा मामला सामने आता है।

इन दोनों केसों में एक बात कॉमन है कि सोशल मीडिया पर अश्लील कॉल कर किसी व्यक्ति का आपत्तिजनक स्थिति में वीडियो बना लिया जाता है और फिर उसे ब्लैकमेल कर पैसे वसूले जाते हैं। पुलिस इस तरह के साइबर अपराध को सेक्सटॉर्शन का नाम देती है। सेक्सटॉर्शन यानी सेक्स संबंधी किसी वीडियो या चैट के जरिए पैसे वसूल करना।

इस तरह के इक्का-दुक्का मामले पहले भी सामने आते रहते थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान इस तरह के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं। पुलिस अधिकारी कहते हैं कि इस तरह के अपराधों के आंकड़ों का अभी पूरा विश्लेषण नहीं किया गया है, लेकिन मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सामान्य दिनों की तुलना में सेक्सटॉर्शन के मामले पांच गुना यानी 500% तक बढ़े हैं।

क्या होता है सेक्सटॉर्शन?
सवाल उठता है कि सिर्फ किसी के अश्लील वीडियो कॉल कर देने भर से ही कोई व्यक्ति ब्लैकमेल होना कैसे शुरू हो जाता है?

पुलिस अधिकारी इस बारे में बताते हैं कि सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति से नजदीकी बढ़ाई जाती है और फिर उसे वीडियो कॉल पर आने का लालच दिया जाता है। वीडियो कॉल पर उस आदमी के सामने आने पर रिकॉर्डेड पोर्न वीडियो इस तरह चलाया जाता है कि वह लाइव जैसा लगता है। पोर्न वीडियो चलने के दौरान कॉल पर सामने आए व्यक्ति को कपड़े उतारने को कहा जाता है और फिर उसकी स्क्रीन रिकॉर्ड कर ली जाती है। बाद में यही रिकॉर्ड स्क्रीन उस व्यक्ति को भेजकर ब्लैकमेल किया जाता है।

पीड़ित की आपबीती से समझिए अपराधियों के पैसे वसूलने का तरीका
सेक्सटॉर्शन का शिकार हुए यूपी बीजेपी नेता के अनुभव से इसे और बेहतर तरीके से जाना जा सकता है-

‘मेरी फेसबुक प्रोफाइल में एक महिला जुड़ी थी। उसने मुझे एक लड़की से इंट्रोड्यूस किया। उसने एक दो दिन मुझसे मैसेंजर पर इस तरह की चैट की कि मैं वीडियो कॉल पर आने को तैयार हो गया। एक दिन रात 11 बजे के आसपास उस लड़की ने न्यूड वीडियो कॉल किया। उसने मेरा वीडियो रिकॉर्ड कर लिया। फिर दो दिनों बाद मुझसे पैसे मांगे जाने लगे।

पहले उन्होंने बीस हजार रुपए मांगे थे। मैंने सोचा बीस हजार की तो बात है दे देता हूं, फिर मुझे लगा कि एक बार पैसे दे दिए तो ये आगे भी ब्लैकमेल करते रहेंगे। इसलिए, अगली कॉल आने पर मैंने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस को सूचना देने के बाद भी ब्लैकमेलरों ने पैसा मांगना नहीं छोड़ा। दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच का फर्जी अधिकारी बनकर फोन किया गया और मुझे धमकाया गया।

इसके बाद भी पैसे न देने पर ब्लैकमेलरों ने कहा कि उनका वीडियो यूट्यब पर डाल दिया गया है। मुझे कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हैं तो यू ट्यूब कस्टमर केयर पर बात कर लें। पीड़ित को एक नंबर भी दिया गया। जिस पर कॉल करने पर कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हो तो यूट्यूब को प्रोसेसिंग फीस देनी पड़ेगी।’

उत्तर प्रदेश के रामपुर में न्यूड कॉल कर भाजपा नेता को ब्लैकमेल करने वाला एक गैंग पकड़ा गया है। पकड़े गए दो आरोपित आमिर और मुस्तकीम राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले हैं। तीसरा आरोपित इमरान रामपुर का ही रहने वाला है।
उत्तर प्रदेश के रामपुर में न्यूड कॉल कर भाजपा नेता को ब्लैकमेल करने वाला एक गैंग पकड़ा गया है। पकड़े गए दो आरोपित आमिर और मुस्तकीम राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले हैं। तीसरा आरोपित इमरान रामपुर का ही रहने वाला है।

बदनामी के डर से 90% मामले सामने ही नहीं आते
यूपी भाजपा नेता की ब्लैकमेलिंग के मामले की जांच कर रहे रामपुर के पुलिस इंस्पेक्टर ब्रजेश सिंह बताते हैं कि ‘जब हमने अपराधियों को पकड़ा तो उनसे हमें कई ऐसे लोगों की जानकारी मिली, जिन्होंने अपराधियों को पैसे चुका दिए थे, लेकिन उन पीड़ितों के वीडियो इनके फोन में अभी भी थे। अगर ये न पकड़े जाते तो फिर यह लोग कभी भी उनको ब्लैकमेल करना शुरू कर देते। भाजपा नेता ने समय पर पुलिस को सूचना दे दी, ऐसे में उनकी कॉल ट्रेस कर आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन ऐसे 90% मामलों में पीड़ित पुलिस के सामने नहीं आते हैं।’

कई राज्यों में फैला होता है अपराधियों का नेटवर्क, पकड़ना आसान नहीं
उत्तर प्रदेश भाजपा नेता के मामले में अपराधियों ने सिम कार्ड ओडिशा के मजदूरों के नाम पर लिए थे। जबकि कॉल भरतपुर से किए जा रहे थे। इस गिरोह के कुछ लोग दिल्ली से भी फोन करते थे।

जांच अधिकारी ब्रजेश सिंह बताते हैं कि ‘जब हमने जांच की शुरुआत की तो तार राजस्थान के भरतपुर, ओडिशा, दिल्ली और हरियाणा के मेवात से जुड़े। पीड़ित को कॉल कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किए जा रहे थे। हर बार अलग-अलग लोकेशन आ रही थी। कभी भरतपुर तो कभी रामपुर की। कुछ फोन दिल्ली से भी आ रहे थे। मुश्किल ये थी कि जांच कहां से शुरू करें।’

बैंक खाते भी फर्जी दस्तावेजों से खोले गए थे। पुलिस 15 दिन की कोशिशों के बाद सिर्फ एक नंबर ही ट्रेस कर सकी। इसके बाद पीड़ित से कहा गया कि वह ब्लैकमेलर्स को नकद पैसा देने का लालच दे। उनमें से एक युवक पैसे लेने के लिए दिल्ली पहुंचा, तब पुलिस उसे गिरफ्तार कर पाई।

जांच अधिकारी बृजेश सिंह बताते हैं कि ‘मामले के खुलासे में पता चला कि रामपुर का एक युवक सेंट बेचने राजस्थान गया था। यहां अपराधी उसके संपर्क में आए और उसे सेक्सटॉर्शन और साइबर अपराध करने की ट्रेनिंग दी गई। वहां से लौटकर उसने रामपुर से ये ठगी शुरू की। इस गिरोह ने बरेली, उत्तराखंड, हापुड़ और कई दूसरे जिलों में लोगों को शिकार बनाया। पुलिस ने कुछ पीड़ितों से संपर्क भी किया, लेकिन उन्होंने सामने आने से इंकार कर दिया।’

लॉकडाउन में बढ़े हैं मामले
क्या लॉकडाउन के दौरान इस तरह के मामले बढ़े हैं? इस सवाल पर उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय में तैनात एसपी साइबर क्राइम त्रिवेणी सिंह कहते हैं कि ‘ लॉकडाउन में मामले निश्चित तौर पर बढ़े हैं। कितने बढ़े हैं, अभी इसकी एनालिसिस नहीं हुई है। लेकिन यह समझ लीजिए कि साइबर क्राइम ब्रांच के सभी रिसोर्सेज अभी ऐसे अपराधों की जांच में लगे हैं।’ यूपी पुलिस का कहना है कि ऐसे ज्यादातर अपराधों के सेंटर मथुरा, भरतपुर और मेवात में हैं। दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता चिन्मय विस्वाल भी कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ऐसे मामले बढ़े हैं।

साइबर क्राइम एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि ‘कोरोना काल और लॉकडाउन साइबर क्राइम के गोल्डन एज जैसा उभरा है। इस तरह के नए साइबर अपराध हो रहे हैं जो हमने कभी नहीं देखे हैं।’ इसकी वजह वे यह बताते हैं कि कोरोना काल में लोगों का ऑनलाइन रहना बढ़ा है। कंप्लीट लॉकडाउन के समय तो हम सबने 24 घंटे डाटा इस्तेमाल किया। इस डाटा का इस्तेमाल अपराध करने के लिए भी किया जा रहा है।

टेक एक्सपर्ट नहीं, कम पढ़े-लिखे लोग गांवों से चला रहे गिरोह
यूपी और दिल्ली पुलिस दोनों के अधिकारी मानते हैं कि भरतपुर और मेवात इस अपराध के गढ़ नजर आ रहे हैं। यूपी पुलिस की साइबर शाखा के एक अधिकारी बताते हैं कि ‘यह धंधा कुटीर उद्योग की तरह चलाया जा रहा है। हजारों युवक इससे जुड़े हैं। गिरोह युवाओं को अपराध करने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। इनमें से अधिकतर कम पढ़े-लिखे लोग हैं जो गांवों से ऑपरेट करते हैं।’

साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि ‘सेक्सटॉर्शन अब एक कॉटेज इंडस्ट्री बन गया है। पहले विदेशों से इस तरह के अपराध होते थे। अब यह कस्बों की ओर शिफ्ट हो गए हैं। कोरोना काल में लोगों की नौकरियां जा रही हैं। ऐसे में बहुत से लोग साइबर अपराध और सेक्सटॉर्शन की तरफ बढ़ रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें ईजी मनी मिलती है।’

मनी ट्रेल पकड़ना आसान नहीं होता
पुलिस अधिकारी मानते हैं कि ये धंधा कई परतों में चलता है। फर्जी दस्तावेजों से खाते खोलने वाले लोग अलग होते हैं, कॉल करने वाले अलग और फिर वसूली करने वाले अलग।

यूपी की साइबर शाखा के एसपी त्रिवेणी सिंह कहते हैं कि ‘पैसा ऐसे अकाउंट में लिया जाता है जो कई बार रिक्शेवाले या मजदूरों के नाम पर खोला जाता है। पुलिस टीम जब उन तक पहुंचती है तो पता चलता है कि उन्होंने हजार पांच सौ रुपए के लालच में अपने अकाउंट की जानकारी अपराधियों को दे दी थी। कुछ को तो पता भी नहीं होता कि उनका अकाउंट इस्तेमाल किया जा रहा है।’

अपराधी ट्रांजैक्शन होते ही एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में पैसा ट्रांसफर कर देते हैं। फिर वॉलेट में पैसा पहुंचा देते हैं। ये एक तरह से ट्रांजैक्शन की मल्टीलेयरिंग कर देते हैं ताकि आखिर में पैसा कहां गया ये पता ही ना चल पाए। दिल्ली पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि अकाउंट खोलने में झारखंड, छत्तीसगढ़ या ओडिशा के रिमोट एरिया के लोगों का इस्तेमाल किया जाता है, जहां पुलिस आसानी से न पहुंच सके।

क्या इस तरह के अपराध को रोकने में नाकाम है पुलिस
इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर विशेषज्ञ विराग गुप्ता कहते हैं कि ‘इस तरह के रैकेट में फर्जी आधार कार्ड बनाए जाते हैं, इसके आधार पर फर्जी तरीके से सिमकार्ड लिए जाते हैं, फिर फर्जी बैंक अकाउंट खोले जाते हैं और सोशल मीडिया प्रोफाइल बना लिए जाते हैं। इसका मतलब ये है कि पुलिस, प्रशासन, रेग्यूलेटरी नेटवर्क सभी अपनी-अपनी जवाबदेही में विफल हो रही हैं क्योंकि नीचे से लेकर ऊपर तक फर्जीवाड़ा है जो बेरोक-टोक चल रहा है।’

पवन दुग्गल का कहना है कि, ‘साइबर एविडेंस कैसे कलेक्ट किया जाता है, डाटा को कैसे प्रोसेस किया जाता है, डाटा को कहां से उठाना है, ये ऐसी बुनियादी बातें हैं जो अब हर पुलिसकर्मी को सिखाने की जरूरत है, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है।’

सेक्सटॉर्शन के जाल में फंस गए हैं तो क्या करें?
पहला स्टेप:
 साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल बताते हैं कि ‘सबसे पहले उस अकाउंट का लिंक या नंबर सेव करें क्योंकि इसकी मदद से पुलिस उस आईपी एड्रेस तक पहुंच सकती है, जहां से ब्लैकमेलर्स ऑपरेट कर रहे हैं।’

दूसरा स्टेप: यूपी पुलिस की साइबर शाखा के एसपी त्रिवेणी सिंह कहते हैं कि ‘सेक्सटॉर्शन का शिकार होने पर तुरंत लोकल साइबर सेल या नजदीक के थाने में शिकायत दर्ज कराएं। ऐसे मामलों में शिकायत करने वालों की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाती है। ब्लैकमेलर्स नंबर बदल-बदल कर फोन करते हैं, इन सभी की पूरी जानकारी पुलिस को दें।’

तीसरा स्टेप: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि ‘कई बार पुलिस पीड़ित से ही सवाल-जवाब करती है। ऐसे सवालों से परेशान न हों, अपनी एफआईआर दर्ज कराने पर जोर दें। ऐसे मामलों में आईटी एक्ट, धोखाधड़ी (धारा 420) और आईपीसी की कुछ अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है। पुलिस से FIR की कॉपी जरूर लें। अगर पुलिस की कार्रवाई में जरा सी भी ढील लगे तो तुरंत किसी वकील की मदद लें।’

Leave A Reply

Your email address will not be published.