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कपड़े मर्द उतारता है, मुंह औरत छिपाती है, मर्द की बेशर्मी पर शर्मिंदा औरतें होती हैं, छेड़खानी मर्द करता है, घर में औरतों को बंद कर दिया जाता है

बात बराबरी की:सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है, लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं? न औरत ज्यादा मेकअप लगाती है ताकि प्यार की निशानियों को छिपा सके, घर आए मेहमानों का मुस्कुराकर स्वागत करती है, रसोई में छिपकर रोती है क्योंकि उसे यही सिखाया गया है कि बोलने में तुम्हारी ही बदनामी है समाज तो यही कहता है, वो लड़की को पीटता है तो क्या हुआ, प्यार भी तो करता है, लेकिन, कभी सोचा है कि इस प्यार के बदले में किसी दिन औरतें भी पलटकर प्यार का जवाब प्यार से देने लगीं तो क्या होगा

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इतनी बड़ी दुनिया में कोई ऐसी जगह होगी, जहां औरतों को डर न लगता हो। यूएन ने कुछ साल पहले एक स्टडी की थी और दुनिया के उन देशों की लिस्ट बनाई थी, जहां की सड़कें और सार्वजनिक जगहें औरतों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं।

हम औरतों को कतई आश्चर्य नहीं हुआ ये पढ़कर कि भारत को उस सूची में कोई सम्मानजनक जगह नहीं मिली थी। यहां की सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर हर दूसरे मिनट किसी-न-किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ हो रही थी।

अभी दो दिन पहले एक लड़की ने ट्विटर पर अपना एक अनुभव लिखा है। उसे दौड़ने और साइकिल चलाने का शौक है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि वो पैदल या साइकिल लेकर सड़क पर निकली हो और उसे कोई बुरा अनुभव न हुआ हो।

कभी कोई छाती पर हाथ मारकर जाता है तो कोई बीच सड़क अपनी पैंट की जिप खोलकर खड़ा हो जाता है। कोई लगातार पीछा करता है तो कोई बगल से अश्लील टिप्पणी करके गुजर जाता है। उसने हर अलग दिन, हर अलग वक्त पर जाकर देख लिया। कहानी नहीं बदलती,न उसका डर, न गुस्सा, न तकलीफ।

इन बातों का नतीजा ये कि सड़कें औरतों के लिए बहुत खतरनाक हैं। सड़क पर डर लगे तो औरत घर को भागती है। लेकिन घरों का क्या है, चलिए थोड़ा अपने घरों की भी थोड़ी पड़ताल कर लेते हैं।मेरी पिछली कॉलोनी में बगल में एक सुंदर सा घर था। घर में एक सुंदर सी औरत रहती थी। वो पांच महीने प्रेग्नेंट थी। उस घर से अकसर आदमी की चीखने और औरत के रोने की आवाज आती।

एक बार मैंने किचन की खिड़की से देखा, आदमी ने उसकी चोटी पकड़कर उसका सिर दीवार पर दे मारा। एक बार पुलिस भी आई थी, लेकिन घरेलू मामला कहकर, आदमी को बाबाजी की तरह ज्ञान देकर, रूह अफजा पीकर चलती बनी। उस घर से औरत के रोने की आवाजें आनी बंद नहीं हुईं।

लॉकडाउन के दिनों में सारे बड़े अखबारों में एक खबर छपी थी। 25 मार्च से लेकर 31 मई के बीच 1477 महिलाओं ने घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज की। इतने कम समय के भीतर घरेलू हिंसा के इतने केस पिछले 10 सालों में भी नहीं आए थे।

अगर 1477 सुनने भर से आपका दिल बैठा जा रहा है तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट भी पढ़ लें, जो कहती है कि घरेलू हिंसा की शिकार 86 फीसदी औरतें कभी हिंसा की रिपोर्ट नहीं करतीं, न पुलिस के पास जाती हैं और न ही मदद मांगती हैं। हिंसा की रिपोर्ट करने और मदद मांगने वाली औरतों का प्रतिशत सिर्फ 14 है और उनमें से भी सिर्फ 7 फीसदी औरतें पुलिस और न्यायालय तक पहुंच पाती हैं।

यानी हमारे महान देश के महान घरों में वास्तव में रोज मर्द के जूते खा रही औरतों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है, जितनी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की फाइलों में दर्ज है। एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर तीसरे मिनट एक औरत अपने घर में पिटती है।

मुंबई हाईकोर्ट की उस नामी महिला वकील की तरह, जो महीने में चार-पांच बार ढेर सारा मेकअप लगाकर कोर्ट जाती थी। चेहरे पर फाउंडेशन की मोटी पर्त और आंखों के नीचे ढेर सारा कंसीलर। कोई कुछ कहता नहीं था, लेकिन जब वो नजरें चुराकर बात करती और हर आधे घंटे में आईने में अपना मेकअप चेक करती तो साथ की वकील औरतें समझ जाती थीं पिछली रात की कहानी। पिछली रात वो फिर पिटी थी अपने पति से।

पिटी तो प्रीती सिंह भी थी अपने बॉयफ्रेंड कबीर सिंह से, जिस पर हॉल में खूब तालियां बजी थीं। चार दिन बाद फिल्म के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने एक इंटरव्यू में कहा कि “वो प्यार ही क्या, जिसमें थप्पड़ मारने की आजादी न हो। बकौल वांगा मर्द की पिटाई भी उसका प्यार ही है।”

आदमी जितना ज्यादा प्यार करता है, औरत उतना ज्यादा मेकअप लगाती है ताकि प्यार की निशानियों को छिपा सके। घर में आए मेहमानों का मुस्कुराकर स्वागत करती है, सबसे झूठ बोलती है, रसोई में छिपकर रोती है क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया गया है कि बोलने में तुम्हारी ही बदनामी है। हिंसा मर्द करता है और बदनामी औरत की होती है। रेप भी मर्द करता है, लेकिन चरित्र खराब औरत का होता है।

बीच सड़क पैंट खोलकर खड़ा आदमी होता है, डर औरत को लगता है। कपड़े मर्द उतारता है, अपना मुंह औरत छिपाती फिरती है। बेशर्मी मर्द करता है, उस बेशर्मी पर शर्मिंदा औरतें होती हैं। छेड़खानी मर्द करता है, घर में बंद औरतों को किया जाता है। नंगा पुरुष समाज है और औरतों के कपड़ों पर जांच आयोग बिठा रखा है। बलात्कारी मर्द है और बलात्कार से बचने का पाठ औरतों को सिखाया जाता है।

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने अपने सर्वे में यूं ही नहीं कहा था भारत को औरतों के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश। क्योंकि, आपके देश में हम औरतों को कहीं भी सुरक्षा और सुकून का एक कोना नसीब नहीं है। सड़क पर जाएं तो छेड़खानी और बलात्कार होगा, घर में रहें तो हमें पीटा जाएगा। पलटकर जवाब देंगे तो बेशर्म और मुंहफट कहलाएंगे, डरना बंद कर देंगे तो चरित्रहीन।

मेरी दादी कहती थी कि लेखपाल शुक्ला की बीवी इसलिए पिटती है क्योंकि 32 गज की उसकी जबान चलती है। वो पलटकर जवाब देती है। जब मर्द को गुस्सा आए तो चुप हो जाना चाहिए। मर्द से औरत की कोई बराबरी नहीं। फिर हर बार अंत में उनका एक ही ब्रम्ह वाक्य होता था,अपना ही आदमी है। पीटता है तो क्या हुआ, प्यार भी तो करता है।

वही कबीर सिंह की तरह। वो लड़की को पीटता है तो क्या हुआ, प्यार भी तो करता है। लेकिन, कभी सोचा है कि इस प्यार के बदले में किसी दिन औरतें भी पलटकर प्यार का जवाब प्यार से देने लगीं तो क्या होगा।

 

  • हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि बलात्कार से कैसे बचो या अपने बेटों को कि बलात्कार नहीं करो, बेटों को सिखाना चाहिए कि औरत को दबाकर मत रखना
  • याद है पाकिस्तान की मुख्तारन माई, इज्जत लड़के की लेनी थी, लेकिन लड़के की इज्जत तो उसकी बहन के शरीर में रखी थी, जहां थी, वहां से लूट ली
  • अपने शरीर में धरी इज्जत को ताउम्र मैं भी बचाती आई हूं, हर वक्त चौकन्नी, अपनी देह को संभालती, ढंकती, छिपाती, बुरी नजरों से बचाती

गांव की सरकारी कन्या पाठशाला से निकलकर शहर की बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का वो पहला साल था। मां की चिंताएं कुछ और रही होंगी, जो एक दिन मौका पाकर उन्होंने मुझे बाजार जाते हुए रास्ते में ये कहानी सुनाई। ‘प्रभा की सहेली की शादी टूट गई, अरेंज मैरिज थी। लड़का यहीं इलाहाबाद में कंपटीशन की तैयारी कर रहा था। दोनों मिलने लगे, वो उसके कमरे पर भी जाने लगी। फिर सबकुछ हो गया होगा उनके बीच। बाद में लड़के ने शादी करने से मना कर दिया। बोला, ‘तुम शादी से पहले मेरे साथ कर सकती हो तो किसी के भी साथ कर सकती हो।’ बताओ, क्या इज्जत रह गई लड़की की।’

पूछना तो मैं ये चाहती थी कि शादी से पहले सबकुछ तो लड़का भी कर चुका था। उसकी इज्जत नहीं गई क्या? लेकिन पूछा नहीं, मुंह बंद करके कहानी सुनी, हामी में सिर हिलाया। मां को लगा, उन्होंने जातक कथाओं की तरह जवानी की दहलीज पर कदम रख रही बेटी को बिना सेक्स शब्द उच्चारे जीवन का पहला जरूरी सबक सिखा दिया है। सबक ये कि सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है। लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं। लड़का शमी का पेड़ है। सदा पाक-पवित्र है। लड़की गूलर का फूल, जरा हाथ लगा नहीं कि भरभराकर झर जाएगी।

हाथरस में 19 साल की लड़की के साथ हुए नृशंस बलात्कार के बाद भारत के पूर्व चीफ जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने ट्विटर पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें एक लाइन थी- ‘सेक्स पुरुष की प्राकृतिक जरूरत है।’ फिर उन्होंने खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी के कारण लड़कों की वक्त पर शादी न हो पाने और उनके सेक्स से वंचित रह जाने को बढ़ते बलात्कार की एक वजह बताया। हालांकि, वो साथ-साथ ये सफाई देते चले कि वो बलात्कार की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन, इस बात की वकालत जरूर करते दिखे कि “सेक्स सिर्फ मर्द की प्राकृतिक जरूरत है, औरत की नहीं।”

अगर समाज ऐसा होता कि घर-खानदान की, बाप-दादा की और खुद लड़की की इज्जत उसके शरीर में न होती तो क्या इतनी शर्मिंदगी, इतना अपमान, इतना दुख उसके हिस्से में आता, जितना कि आया है। क्या मर्द एक दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे से प्रतिशोध लेने के लिए उनकी औरतों को निशाना बनाते। याद है पाकिस्तान की मुख्तारन माई। दुश्मनी उसके भाई से थी, बदला लेने के लिए चार लोगों ने मुख्तारन के साथ सामूहिक बलात्कार किया। 10 लोग घेरा बनाकर खड़े तमाशा देखते रहे। इज्जत लड़के की लेनी थी लेकिन, लड़के की इज्जत तो उसकी बहन के शरीर में रखी थी। जहां थी, वहां से लूट ली।

ये कहते हुए भी मैं थक सी रही हूं क्योंकि मैं कुछ भी ऐसा नहीं कह रही, जो हजारों बार पहले नहीं कहा जा चुका। लेकिन, दुनिया है कि बदलती नहीं, मर्दवाद है कि जाता नहीं, इज्जत है कि बचती नहीं और दुख है कि कम होता ही नहीं। मेरे साथ ऐसा कोई हादसा कभी नहीं हुआ, लेकिन अपने शरीर में धरी इज्जत को ताउम्र मैं भी बचाती आई हूं। हर वक्त चौकन्नी, अपनी देह को संभालती, ढंकती, छिपाती, बुरी नजरों से बचाती।

अमेरिकी लेखक और फिल्म निर्माता जेक्सन कार्ट्ज ने एक बार अपने एक टेड टॉक में कहा था कि हम कहते हैं कि पिछले साल कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ, हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। हम बताते हैं कि पिछले साल कितनी स्कूल की बच्चियों के साथ छेड़खानी हुई। हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने लड़कों ने स्कूल की लड़कियों के साथ छेड़खानी की।

आप देख रहे हैं कि इस भाषा में कहां दिक्कत है। वही दिक्कत जो हमारे समाज, हमारे घर, हमारी सोच में है। गलती किसी और की है, बताई किसी और की जा रही है। जिम्मेदारी किसी और की है, डाली किसी और पर जा रही है।

फर्ज करिए कि एनसीआरबी औरतों के साथ होने वाली हिंसा और बलात्कार का आंकड़ा इस तरह पेश करने लगे। पिछले साल 43,877 मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। उनमें से 33,000 विक्टिम के भाई, मामा, चाचा, काका, मौसा, फूफा थे। पिछले साल 972 लड़कों ने लड़कियों पर एसिड फेंका। 42000 लड़कों ने लड़कियों के साथ छेड़खानी की। 18,000 लड़कों ने अपनी गर्लफ्रेंड का पोर्न वीडियो बनाया। 14,000 मर्दों ने अपनी पत्नी और प्रेमिका की हत्या की।

औरतों के साथ हुआ नहीं है, मर्दों ने किया है

एक जरा से फेर से पूरी बात बदल जाती है। उसका अर्थ बदल जाता है, उसकी जिम्मेदारी बदल जाती है। बात तो वही है, बस कहने के तरीके से तय होता है कि जिसने अपराध किया, वो दोषी है या जिसके साथ हुआ, वो। इज्जत बलात्कार करने वाले लड़के की जाती है, या उसका शिकार होने वाली लड़की की। हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि बलात्कार से कैसे बचो या अपने बेटों को कि बलात्कार नहीं करो।

हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि प्रेग्नेंट नहीं होना या अपने बेटों को सिखाना चाहिए कि लड़की को प्रेग्नेंट कर अपनी जिम्मेदारी से भाग मत जाना। अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि मर्दों से दबकर रहना या बेटों को सिखाना चाहिए कि औरत को दबाकर मत रखना।

यूं तो होना इसे वैसा ही सामान्य ज्ञान चाहिए था, जैसे कि धरती गोल है और समंदर गीला कि स्त्री उतनी ही मनुष्य है, जितना कि पुरुष। किसी भी मनुष्य की इज्जत उसके शरीर में नहीं होती। प्रेम, करुणा, ईमानदारी और दायित्व-बोध ही पैमाना है इज्जत और बेइज्जती सबकुछ मापने का और पैमाना दोनों के लिए बराबर है। और जब तक इतनी बुनियादी बात हम नहीं समझ लेते, न कानून के भरोसे बलात्कार की संस्कृति को बदल पाएंगे, न लड़कियों के लिए एक बेहतर समाज बना पाएंगे।

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