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एफडीए की जांच:पंजाब में बिक रहे हैंड सेनेटाइजर में 95 फीसदी मेथेनॉल इसके यूज से स्किन और किडनी के खराब होने का खतरा

कोरोना महामारी में नकली सेनेटाइजर से मुनाफाखोरी पर नकली ब्रांड के सेनेटाइजर पर असली ब्रांड की लेबलिंग कर ग्राहकों को दे रहे धोखा

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जालंधर की सबसे बड़ी दवा मार्केट दिलकुशा में हैंड सेनेटाइजर बेचने वाले दुकानदारों की भरमार है। यहां पर गत दिनों फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (पंजाब) ने रेड कर कई दुकानों से सेनेटाइजर के सैंपल लिए थे जिसके बाद यह पता चला था कि पंजाब में करीब 60 प्रतिशत हैंड सेनेटाइजर नकली हैं अथवा बिलो स्टैंडर्ड हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप सेनेटाइजर में 60-80 प्रतिशत एल्कोहल होना चाहिए लेकिन पंजाब में बिक रहे सैनिटाइजरों में 95 प्रतिशत तक मिथेनॉल मिला होता है।

कोरोना जैसी महामारी में नकली हैंड सैनिटाइजर से मुनाफाखोरी करने वालों को एक्सपोज करने के लिए भास्कर के रिपोर्टर जालंधर, लुधियाना, पटियाला, अमृतसर और बठिंडा में बड़े स्तर पर हो रहे सैनिटाइजर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स में अंडर कवर एजेंट बनकर गए और मिलावट के खेल को समझा। हैरानी वाली बात यह रही कि बहुत से मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट में तो स्प्रिट में साबुन का पानी मिलाकर सैनिटाइजर बनाया जा रहा है। यही नहीं कुछ तो खतरनाक केमिकल को भी मिला रहे हैं जिसके संपर्क पर आने से त्वचा संबंधी गंभीर बीमारी हो सकती है।

अधिकांश यूनिट्स में तय मानक से कम मात्रा में अल्काहोल मिलाकर सैनिटाइजर तैयार कर बाजार में धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इन सैनिटाइजर में मिलने वाले ये खतरनाक केमिकल हाथों के लिए नुकसानदायक है। लंबे वक्त तक मेथनॉल वाले सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने से किडनी में खराबी या कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती हैं।

मेथेनॉल जहरीला केमिकल, आंखों के संपर्क में आने से मनुष्य अंधा हो सकता है

सेहत विभाग की टीम ने पंजाब में 170 सैंपल सेनेटाइजर के लिए थे। इनके लेबलों पर एथनॉल व एल्कोहल होने की जानकारी दी गई थी। इनमें से 26 सैंपल ऐसे थे जिनमें दावे के मुताबिक कम एल्होकल या एथनॉल मिला था, जबकि 10 में तो मेथेनॉल मिलाया गया था। मेथेनॉल हल्का,रंगहीन, ज्वलनशील, केरमिकल है, जिसकी गन्ध एथेनॉल (पेय एल्कोहल) जैसी होती है। मेथेनॉल विषैला होता है इसके पीने से मनुष्य मर सकता है और मरने से पहले वह अंधा हो सकता होता है। इसका उपयोग एन्टीफ्रीज, ईंधन, बॉयोडीजल के उत्पादन में भी होता है।

असली सेनेटाइजर में कम से कम 60 फीसदी एल्कोहल होना चाहिए

जब आप सेनेटाइजर का इस्तेमाल करते हैं तो आपको हाथों में ठंडापन महसूस होता है, साथ ही सेनेटाइजर उड़ जाता है और हाथ सूख जाते हैं। इसमें आइसो प्रोपाइल एल्कोहल और इथाइल एल्कोहल होता है, जिसकी वजह से ये जल्द हवा में उड़ जाता है। नकली सेनेटाइजर सूखेगा नहीं और हाथ गीले ही रहेंगे। कई बार हाथों पर मिर्च लगने जैसा एहसास होगा।

1. 99.9% बैक्टीरिया खत्म करने का दावा करने वाले सेनेटाइजर पर लाइसेंस नंबर जरूर देखें। ब्रांडेड ही खरीदें।

2. हैंड सेनेटाइजर में कम से कम 60 फीसदी एल्कोहल की मात्रा होनी चाहिए। ऐसा सेनेटाइजर बीमार होने से रोकने और कीटाणुओं को फैलने से रोकने में कारगर होता है।

3. अल्कोहलयुक्त सेनेटाइजर किसी परिस्थिति में तेजी से हाथों में माइक्रोब्स की संख्या कम कर देता है, लेकिन सेनेटाइजर सभी तरह के कीटाणुओं का सफाया नहीं करता है।

सूबे में हर माह 1.5 करोड़ लीटर सेनेटाइजर की खपत, 85 लाख ली. सरकारी दफ्तर, इंडस्ट्री, अस्पताल में यूज

पंजाब की 2.75 करोड़ की आबादी में हर महीने 1.5 करोड़ लीटर हैंड सेनेटाइजर की खपत है। इसमें से 85 लाख लीटर सरकारी और निजी दफ्तर, इंडस्ट्री, स्कूल, शॉपिंग्स सेंटर, गुरुद्रारा व गलियों को सेनिटाइज करने में प्रयोग होता है। आयुर्वेद निदेशालय, (पंजाब) के रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले तीन महीनों में 70 नए ब्रांडों को सेनेटाइजर बेचने का लाइसेंस दिया गया था। एफडीए की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में ऐसे उदाहरण भी मिले हैं, जब एक निर्माता को एक दिन में लाइसेंस मिला और अगले दिन बाजार में उसके उत्पाद खत्म हो गए। इससे यह साबित होता है कि सूबे में मुनाफाखोर कैसे सक्रिय हैं।

एफडीए की रेड से पहले मुनाफाखोरों ने एक लीटर पर 300 रुपए तक कमाए, 100 वाला 400 में बेचा

जालंधर, बठिंडा, अमृतसर, लुधियाना और पटियाला के दवा मार्केट में बेनाम कंपनियों के सेनेटाइजर 5-5 लीटर की केन में उपलब्ध हैं। दुकानदार से इनका मूल्य पता करने पर मालूम हुआ कि 5 लीटर सेनेटाइजर का यह केन मात्र 400 रुपए में भी उपलब्ध हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक होलसेलर ने बताया कि बाजार में हर-तरह हैंड सेनेटाइजर उपलब्ध हैं। 800 रुपये ले लेकर 80 रुपए लीटर तक के।

सफेद डिब्बों में भरे नीले रंग के यह सेनेटाइजर लगभग यहां कई दुकान पर उपलब्ध हैं। इन सेनेटाइजर के भरे हुए कई डिब्बों पर कंपनी का पता, बैच नंबर, लाइसेंस या फॉर्मूला जैसी कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। होलसेलर ने बताया कि बाजार में ब्रांडेड सेनेटाइजर की कमी है। एफडीए की रेड से पहले बाजार में सब स्टैंर्डड सेनेटाइजर की खपत ज्यादा थी। एक लीटर पर 300 रुपए तक की कमाई होती थी।

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