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एक लाख करोड़ रुपए के मालिकाना हक वाले पद्मनाभस्वामी मंदिर का विवाद सुलझा; 5 प्रश्नों में जानिये पूरा विवाद

श्री पद्मनाभ मंदिर को 6वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था।

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुवनंतपुरम के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन और देखरेख की जिम्मेदारी पूरी तरह से त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार को सौंप दी। त्रावणकोर के शाही परिवार के सदस्यों की ओर से दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया।

क्या है इस मंदिर का इतिहास?

  1. श्री पद्मनाभ मंदिर को 6वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था। 1750 में मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक यानी ‘पद्मनाभ दास’ बताते हुए अपना जीवन और संपत्ति उन्हें सौंप दी। 1949 तक त्रावणकोर के राजाओं ने केरल में राज किया।
  2. त्रावणकोर के शासकों ने शासन को दैवीय स्वीकृति दिलाने के लिए अपना राज्य भगवान को समर्पित कर दिया था। उन्होंने भगवान को ही राजा घोषित कर दिया था। मंदिर से भगवान विष्णु की एक मूर्ति भी मिली है जो शालिग्राम पत्थर से बनी हुई है।
  3. 2011 में जब मामला अदालतों में पहुंचा तो इसके तहखाने खोले गए। कल्लार (वॉल्ट) ए खोला गया तो उसमें एक लाख करोड़ रुपए के बेशकीमती जेवरात, मूर्तियां मिली हैं। कल्लार (वॉल्ट) बी नहीं खोला गया है। शाही परिवार के सदस्यों का कहना है कि वह तहखाना श्रापित है। यदि उसे खोला गया तो वह अनिष्ट को न्योता देगा।

क्या है इस केस का बैकग्राउंड?

  1. त्रावणकोर और कोचिन के शाही परिवार और भारत सरकार के बीच अनुबंध 1949 में हुआ था। इसके तहत तय हुआ था कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रशासन ‘त्रावणकोर के शासक’ के पास रहेगा।
  2. हालांकि, त्रावणकोर कोचिन हिंदू रिलीजियस इंस्टिट्यूशंस एक्ट के सेक्शन 18(2) के तहत मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर के शासक के नेतृत्व वाले ट्रस्ट के हाथ में रहा। त्रावणकोर के अंतिम शासक का निधन 20 जुलाई 1991 को हुआ।
  3. केरल सरकार ने इसके बाद भी त्रावणकोर के आखिरी शासक के भाई उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा के नेतृत्व में प्रशासकीय समिति के पास मंदिर का प्रबंधन सौंपा।
  4. हालांकि, वर्मा ने जब मंदिर में छिपे खजाने पर शाही परिवार का दावा साबित करने की कोशिश की तो सिविल कोर्ट में याचिकाओं का अंबार लग गया। भक्तों ने याचिका लगाई कि त्रावणकोर शाही परिवार को मंदिर की संपत्ति का बेजां इस्तेमाल की अनुमति न दी जाए।

कोच्चि हाईकोर्ट ने क्या कहा था?

  1. उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा और कुछ अन्य इस मामले में हाईकोर्ट गए और वहां इससे जुड़ी सभी याचिकाओँ पर एक साथ सुनवाई हुई। तब हाईकोर्ट के सामने प्रश्न था कि क्या त्रावणकोर के आखिरी शासक के छोटे भाई के तौर पर वर्मा को 1950 के त्रावणकोर-कोचिन हिंदू रिलीजियस इंस्टिट्यूशंस एक्ट के सेक्शन 18(2) के तहत श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर पर मालिकाना हक, नियंत्रण और प्रबंधन का अधिकार है या नहीं।
  2. इस प्रश्न का जवाब देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि “शासक’ ऐसा दर्जा नहीं है जिसे उत्तराधिकारी के तौर पर हासिल किया जा सके। इस वजह से 1991 में अंतिम शासक की मौत के बाद पूर्व स्टेट ऑफ त्रावणकोर का कोई शासक जीवित नहीं है।
  3. यह भी कहा गया कि उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा त्रावणकोर के पूर्व शासक के तौर पर मंदिर के प्रशासन पर दावा नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि मंदिर के तहखानों में रखे खजाने को सार्वजनिक किया जाए। उसे एक म्युजियम में प्रदर्शित किया जाए और उससे व चढ़ावे में मिलने वाले पैसे से मंदिर का रखरखाव किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

  1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि त्रावणकोर शाही परिवार का मंदिर के प्रशासन में अधिकार कायम रहेगा। मंदिर के मामलों के प्रबंधन वाली प्रशासनिक समिति की अध्यक्षता फिलहाल तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश करेंगे।
  2. कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के 31 जनवरी 2011 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार से श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का नियंत्रण लेने के लिए ट्रस्ट गठित करने को कहा गया था।
  3. कोर्ट ने कहा कि त्रावणकोर के आखिरी शासक की मौत से शाही परिवार की भक्ति और सेवा को उनसे नहीं छीना जा सकता। वे अपनी परंपराओं के आधार पर मंदिर की सेवा जारी रख सकते हैं।
  4. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि कल्लार-बी यानी वॉल्ट बी को खोलना है या नहीं, इसका फैसला कमेटी करेगी। इस मामले में कोर्ट ने अपनी कोई राय जाहिर नहीं की है।

सुप्रीम कोर्ट में कब-क्या हुआ?

  • 2 मई 2011- उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा ने जस्टिस आरवी रवीन्द्रन और एके पटनायक की बेंच के सामने केरल हाईकोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की थी। तब कोर्ट ने कोच्चि हाईकोर्ट के फैसले को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मंदिर के तहखानों में बंद खजाने में शामिल वस्तुओँ, बेशकीमती नग-पत्थरों की लिस्ट बनाई जाए और यह करने के लिए एक टीम भी नियुक्त की गई।
  • 8 जुलाई 2011- कोर्ट ने मंदिर के तहखाने में स्थित कल्लारा (वॉल्ट) ‘ए’ और ‘बी’ को खोलने के आदेश को स्थगित कर दिया।
  • 21 जुलाई 2011- इस मामले में सरकार के जवाब के बाद बेंच ने एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने के निर्देश दिए। तहखाने के खजाने, उसके संरक्षण और सुरक्षा को लेकर सुझाव मांगे गए। समिति को यह भी जांच कर सुझाव देने को कहा गया था कि कल्लारा बी को खोला जाना चाहिए या नहीं।
  • 22 सितंबर 2011- कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट को एक्जामिन किया और दिशानिर्देश जारी किए। कोर् टने कहा कि अन्य तहखानों के सामान के डॉक्युमेंटेशन, कैटेगराइजेशन, सिक्योरिटी, प्रिजर्वेशन, कंजर्वेशन, मेंटेनेंस और स्टोरेज संबंधी जानकारी हासिल करने के बाद कल्लार बी का फैसला किया जाएगा।
  • 23 अगस्त 2012- कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमणियम को अमेकस क्यूरी नियुक्त किया।
  • 6 दिसंबर 2013- उत्राटम तिरुनल मार्तण्ड वर्मा का निधन हो गया।
  • 15 अप्रैल 2014- अमेकस क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की।
  • 24 अप्रैल 2014- कोर्ट ने तिरुवनंतपुरम के जिला जज की अध्यक्षता वाली कमेटी को प्रशासनिक कमेटी के तौर पर नियुक्त किया।
  • अगस्त-सितंबर 2014- सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमणियम ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा और कहा कि वह इस केस के अमेकस क्यूरी के तौर पर काम नहीं करना चाहते। हालांकि, बाद में उन्होंने अपना इस्तीफा वापस लिया और श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर मामले में अमेकस क्यूरी बने रहे।
  • नवंबर 2014- त्रावणकोर के शाही परिवार ने अमेकस क्यूरी गोपाल सुब्रमणियम की रिपोर्ट पर संदेह उठाए और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपत्तियां उठाई।
  • 27 नवंबर 2014- कोर्ट ने अमेकस क्यूरी की ओर से सुझाए गए कुछ मुद्दों को स्वीकार किया।
  • 4 जुलाई 2017- कोर्ट ने जस्टिस केएसपी राधाकृष्णन को श्रीकोविल और अन्य संबंधित कार्यों के लिए सिलेक्शन कमेटी का प्रमुख बनाया।
  • जनवरी-अप्रैल 2019- जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के सामने फाइनल हियरिंग के लिए केस लिस्टेड हुआ।
  • 10 अप्रैल 2019- बेंच ने इस मामले की सुनवाई पूरी की और फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • 13 जुलाई 2020- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शाही परिवार मंदिर की सेवा करता रहेगा। उसके पास प्रशासकीय अधिकार रहेंगे।

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के मध्य में स्थित है पद्मनाभ स्वामी का मंदिर। विशाल किले की तरह दिखने वाला यह मंदिर विष्णु भक्तों के लिए  महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। यहां भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा-अर्चना की थी।

मान्यता है कि मंदिर की स्थापना 5000 साल पहले कलयुग के प्रथम दिन हुई थी। लेकिन 1733 में त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यहां भगवान विष्णु का श्रृंगार शुद्ध सोने के भारी भरकम आभूषणों से किया जाता है।

माना जाता है कि यह भारत का सबसे अमीर मंदिर है।केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर में 6 तहखानों में से 5 तहखाने खुलने पर दुनिया के होश उड़ गए। इन पांच तहखानों से कीमती पत्थर, सोने और चांदी का भंडार निकल चुका है। लाख करोड़ से अधिक का खजाना वहां मिला था। छठे दरवाजे में इतना खजाना है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन इस तहखाने के दरवाजे को खोलने की कोई भी हिम्मत नहीं कर पाता। जानिए आखिर क्या है इस छठे दरवाजे का राज।

सदियों से बंद केरल के श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे बने पांच तहखानों को जब खोला गया तो वहां बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों के अलावा सोने के अकूत भंडार और प्राचीन मूर्तियां भी निकालीं गई। लेकिन छठे तहखाने के दरवाजे के आस पास भी जाने से लोग डरते हैं। जबकि इस बात का सभी को अंदाजा है कि इस छठे दरवाजे में दुनिया का सबसे ज्यादा खजाना इस दरवाजे के पीछे छुपा है।

<img class=”i-amphtml-intrinsic-sizer” style=”border: 0px; margin: 0px; padding: 0px; outline: 0px; list-style-type: none; box-sizing: border-box; max-width: 100%; display: block !important; object-fit: contain;” role=”presentation” src=”data:;base64,” alt=”” aria-hidden=”true” />Padmanabha Swamy temple

लेकिन जैसे ही इस मंदिर के छठे दरवाजे को खोलने की बात होती है, तो अनहोनी की कहानियों का जिक्र छिड़ जाता है। इस तहखाने में तीन दरवाजे हैं, पहला दरवाजा लोहे की छड़ों से बना है। दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और फिर आखिरी दरवाजा लोहे से बना एक बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता। दरअसल छठे दरवाजे में ना कोई बोल्ट है, और ना ही कुंडी। गेट पर दो सांपों के प्रतिबिंब लगे हुए हैं जो इस द्वार की रक्षा करते हैं। कहा जाता है इस गेट को कोई तपस्वी  ‘गरुड़ मंत्र’ बोल कर ही खोल सकता है। अगर उच्चारण सही से नहीं किया गया, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। पहले भी गई लोग इस दरवाजे को खोलने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन सभी को मृत्यु के दरवाजे का मुंह देखना पड़ा।

भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाभ स्वामी मंदिर

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भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल में स्थित है। यह भारत के बहुत पुराने व प्राचीन मंदिरों में से एक है। प्रचलित कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे, उन्होंने यहां स्नान करके भगवान के लिए प्रसाद बनाया था।
मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु की विशाल शयनमुद्रा के रुप में प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा में भगवान विष्णु शेष नाग पर विराजमान हैं। मंदिर परिसर में एक स्वर्ण स्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर के सौंदर्य को चार चांद लगाता है। हर वर्ष यहां बहुत से श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनकर आना अनिवार्य है। कहा जाता है कि इस मंदिर में सिर्फ हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं। इस मंदिर के अंदर कुल 6 तहखाने हैं। हर एक तहखाने के बाहर तीन अलग-अलग धातु के दरवाज़े हैं। इन तहखानों में से 5 को खोला जा चुका है। पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने से करीब 1 लाख करोड़ का खज़ाना मिला है जिसमें सोना,चांदी, हीरे, रुबी, पन्ना और कई कीमती रत्न मिले थे। अभी इस मंदिर का एक तहखाना खोलना अभी बाकी है। लेकिन इस तहखाने को खोलने के पीछे मान्यता मानी जाती है कि अगर इस तहखाने को खोलने की कोशिश की गई तो प्रलह भी आ सकती है। वहां के लोगों का मानना है कि इस दरवाज़े के पीछे से कुछ आवाज़ें आती हैं। जैसे कोई विशाल सर्प खजाने की रक्षा कर रहा हो।
इसी डर से आज तक किसी की छठे तहखाने को खोलने की हिम्मत नहीं हुई।

मंदिर के 7 दरवाजों के पीछे ऐसा रहस्य, डरती है दुनिया खुल गया

केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर, भगवान विष्णु को समर्पित है, जो पूरी दुनिया में मशहूर है। साथ ही दुनिया के कुछ रहस्यमय जगहों में इसकी गिनती होती है। दरअसल, यहां ऐसे कई रहस्य हैं, जिन्हें कई कोशिशों के बाद भी लोग इसको सुलझा नहीं पाएं हैं। इस मंदिर का सातवां दरवाजा हर किसी के लिए एक पहेली बना हुआ है, बताया जाता है यह दरवाजा केवल एक इंसान खोल सकता है और दूसरा नहीं। आइए जानते हैं आखिर क्या है इस सातवें दरवाजे का रहस्य…

इन्होंने बनवाया था मंदिर

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मान्यता है कि इस मंदिर को 6वीं शताब्‍दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था जिसका जिक्र 9वीं शताब्‍दी के ग्रंथों में भी आता है। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक यानी की ‘पद्मनाभ दास’ बताया। इसके साथ ही त्रावणकोर राजघराने ने पूरी तरह से भगवान को अपना जीवन और संपत्ति सौंप दी है। बता दें कि 1947 तक त्रावणकोर के राजाओं ने इस राज्‍य में राज किया था। फिलहाल मंदिर की देख-रेख का कार्य शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट संभाल रहा है।

दरवाजे का पास आते ही काम रोक दिया

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इस मंदिर में 7 तहखाने हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी खोले गए थे, जिसमें एक लाख करोड़ रुपये के हीरे और जूलरी निकली थी। इसके बाद जैसे ही टीम ने वॉल्ट-बी यानी की सातवां दरवाजे के खोलने की शुरुआत की, तो दरवाजे पर बने कोबरा सांप के चित्र को देखकर काम रोक दिया गया। कई लोगों की मान्यता थी कि इस दरवाजे को खोलना अशुभ होगा।

शापित बताया जाता है दरवाजा

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मान्यताओं के अनुसार, त्रावणकोर के महाराज ने बेशकीमती खजाने को इस मंदिर के तहखाने और मोटी दीवारों के पीछे छुपाया था। जिसके बाद हजारों सालों तक किसी ने इन दरवाजो खोलने की हिमाकत नहीं की है और इस तरह से बाद में इसे शापित माना जाने लगा। कथाओं के अनुसार, एक बार खजाने की खोज करते हुए किसी ने 7वें दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन कहते हैं कि जहरीले सांपों के काटने से सबकी मौत हो गई।

दरवाजे खोलने पर आ सकती है प्रलय

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बताया जाता है कि ये दुनिया का सबसे धनी हिंदू मंदिर है जिसमें बेशकीमती हीरे-जवाहरात जड़े हैं। इस दरवाजे को सिर्फ कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है। इस मंदिर को किसी भी तरह खोला गया तो मंदिर नष्ट हो सकता है, जिससे भारी प्रलय तक आ सकती है। दरअसल ये दरवाजा स्टील का बना है। इस पर दो सांप बने हुए हैं, जो इस द्वार की रक्षा करते हैं। इसमें कोई नट-बोल्ट या कब्जा नहीं हैं।

मंत्रों से खुल सकता है इस मंदिर का दरवाजा

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कहा जाता है कि इस दरवाजे को ‘नाग बंधम’ या ‘नाग पाशम’ मंत्रों का प्रयोग कर बंद किया है। इसे केवल ‘गरुड़ मंत्र’ का स्पष्ट और सटीक मंत्रोच्चार करके ही खोला जा सकता है। अगर इसमें कोई गलती हो गई तो मृत्यु निश्चित मानी जाती है। बताया जाता है कि फिलहाल भारत तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में ऐसा सिद्ध पुरुष नहीं मिल सका है तो इस मंदिर की गुत्थी सुलझा सके।

करोड़ों-अरबों का हो सकता है खजाना

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कहा जाता है कि इस मंदिर के खजाने में दो लाख करोड़ का सोना है। मगर इतिहासकारों के अनुसार, असल में इसकी अनुमानित राशि इससे कहीं दस गुना ज्यादा होगी। इस खजाने में सोने-चांदी के महंगे चेन, हीरा, पन्ना, रूबी, दूसरे कीमती पत्थर, सोने की मूर्तियां, रूबी जैसी कई बेशकीमती चीजें हैं, जिनकी असली कीमत आंकना बेहद मुश्किल है।

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