अकालियों के राजनीतिक दांव में फंसा ‘हाथी’:जालंधर में सीट बंटवारे को लेकर बसपा में बगावत के आसार, नेता बोले- फिल्लौर-आदमपुर सीट देने के लिए हाईकमान से बात करेंगे
पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन में अकाली दल के राजनीतिक दांव बहुजन समाज पार्टी (BSP) पर भारी पड़ा है। जिन सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, वो गठबंधन के बाद उनके खाते में नहीं गई। इसको लेकर बसपा के भीतर ही अकालियों की चालाकी से बगावत के आसार बन गए हैं। इसकी शुरुआत फिल्लौर से हो चुकी है। यहां रविवार को इकट्ठा हुए बसपा समर्थकों ने विरोध जताया कि फिल्लौर व आदमपुर सीट बसपा को मिलनी चाहिए थी। जिसके बाद नेताओं ने कहा कि इस बारे में पार्टी हाईकमान से बात करेंगे। यह चिंता अब अकाली दल को भी होगी क्योंकि अगर बगावत होने के बाद कोई आजाद खड़ा हुआ तो उसका नुकसान उन्हें ही होगा।
फिल्लौर व आदमपुर पर बसपा का दावा मजबूत क्यों?
पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा के कैंडिडेट बलविंदर कुमार को सबसे ज्यादा वोटें फिल्लौर व आदमपुर से मिली थी। फिल्लौर से 43,916 और आदमपुर में 39,472 वोट आई थी। तीसरा बड़ा विस क्षेत्र करतारपुर का था, जहां से बसपा को 31,047 सीटें मिली थी। करतारपुर तो अकाली दल ने बसपा के लिए छोड़ दी लेकिन फिल्लौर व आदमपुर अपने खाते में रख ली। यही बसपा नेताओं व समर्थकों की नाराजगी है कि जहां उनका सबसे बड़ा जनाधार है, वही सीट उन्हें नहीं दी गई।
फिल्लौर में बसपा दूसरे व आदमपुर में पहले पर थी तो सीटें हमें क्यों नहीं
बसपा के जिला प्रधान अमृतपाल भौंसले ने कहा कि हमने फिल्लौर में वर्कर सम्मेलन किया। इसमें अकाली-बसपा गठजोड़ का स्वागत किया गया लेकिन जो सीटें जालंधर में बसपा को दी गई हैं, उससे वर्कर सहमत नहीं। लोकसभा चुनाव में फिल्लौर से बसपा दूसरे व अकाली दल तीसरे नंबर पर रहा, फिर भी यह सीट अकालियों के पास रह गई। आदमपुर में तो बसपा पहले नंबर पर थी, लेकिन वह भी नहीं दी गई।
अकाली दल ने सिर्फ एक सीट छोड़ी पर फायदा 6 सीटों पर उठा रहे
अकाली दल सीट बंटवारे में फायदे में रहा। जालंधर में 9 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें अकाली दल 6 पर लड़ता था, 3 बीजेपी के खाते में थी। सीट बंटवारे में अकाली दल ने सिर्फ करतारपुर छोड़ी। जालंधर नॉर्थ व वेस्ट तो पहले से ही बीजेपी लड़ती रही तो उसे भी बसपा को दे दिया। इसके उलट फिल्लौर व आदमपुर जैसी सीट पर उन्हें बसपा के जनाधार का बड़ा फायदा मिलेगा। दिलचस्प बात यह है कि वेस्ट व नॉर्थ में लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा को कम वोटें मिली थी, यही वजह है कि सीट शेयरिंग का यह फॉर्मूला बसपा वर्करों को रास नहीं आ रहा।