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आप भूल सकते हैं पर गूगल नहीं; क्या भारत का कानून देता है आपको भूल जाने का अधिकार? जानिए क्या कहते हैं भारतीय कोर्ट

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2007 में रोडीज 5 और 2008 में बिग बॉस जीतने वाले आशुतोष कौशिक आपको याद ही होंगे। भूले तो नहीं? तस्वीर देखेंगे तो याद आ जाएगा। पर आशुतोष चाहते हैं कि उन्हें भुला दिया जाए। सुनने में अजीब है न! पर यह सच है।

आशुतोष ने जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट में ‘भूल जाने के अधिकार’ के तहत याचिका दाखिल की है। उनका कहना है कि 2009 में शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले से जुड़े वीडियो, फोटो और आर्टिकल्स को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से हटाया जाएं। 10 साल पुराने केस में आज भी सजा मिल रही है। गूगल सर्च पर पुराने वीडियो और आर्टिकल सामने आ रहे हैं।

खैर, आशुतोष की याचिका पर 20 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट सुनवाई करने वाला है। पर 3 अगस्त को मद्रास हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाया कि अगर आरोपी पर लगे आरोप झूठे साबित हुए तो भी उसे “राइट टु बी फॉरगॉटन’ नहीं है। उसे गूगल या इंटरनेट पर नहीं भुलाया जा सकता।

आइए समझते हैं कि कोर्ट ने कब और क्या कहा और राइट टु बी फॉरगॉटन यानी भूल जाने का अधिकार क्या है? इस पर हमारा कानून क्या कहता है?

राइट टु बी फॉरगॉटन क्या है?

  • राइट टु बी फॉरगॉटन, यानी अगर कोई पर्सनल इंफॉर्मेशन रेलेवंट नहीं रहती या जरूरी नहीं है तो इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइट्स या किसी भी अन्य प्लेटफॉर्म से उसे हटाने का अधिकार है।
  • यूरोपीय यूनियन ने जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) के तहत राइट टु बी फॉरगॉटन को कानूनन अधिकार माना है। यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई मामलों में इन प्रावधानों के पक्ष में फैसले आए हैं।
  • भारत में राइट टु बी फॉरगॉटन का अधिकार नहीं है। पर प्रस्तावित पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन कानून में यह अधिकार आम लोगों को दिया गया है। इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “राइट टु प्राइवेसी संविधान के आर्टिकल-21 के तहत राइट टू लाइफ और पर्सनल लिबर्टी का अभिन्न हिस्सा है।”
आशुतोष 2008 की बिग बॉस ट्रॉफी के साथ। आशुतोष चाहते हैं कि 2009 में ड्रंक ड्राइविंग और अन्य आरोपों से जुड़े आर्टिकल, वीडियो के लिंक इंटरनेट से हटाए जाएं। इसके लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है।
आशुतोष 2008 की बिग बॉस ट्रॉफी के साथ। आशुतोष चाहते हैं कि 2009 में ड्रंक ड्राइविंग और अन्य आरोपों से जुड़े आर्टिकल, वीडियो के लिंक इंटरनेट से हटाए जाएं। इसके लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है।

मद्रास हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में क्या कहा है?

  • जुलाई में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस वेंकटेशन ने कहा कि किसी के बारे में जानना है तो गूगल सर्च उसका सबसे अच्छा तरीका है। इससे ही किसी व्यक्ति के बारे में फर्स्ट इम्प्रेशन बनता है। अगर आपने किसी का नाम सर्च किया और वह किसी मामले में आरोपी था तो ये खबरें भी सामने आ जाती हैं। भले ही वह उन आरोपों से बरी हो गया हो। यह उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • पर 3 अगस्त को मद्रास हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो कहा कि कोर्ट के फैसलों में जस्टिस एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े मामलों में राइट टु बी फॉरगॉटन नहीं हो सकता। कोर्ट राइट टु प्राइवेसी, राइट टु रेपुटेशन और सम्मान के साथ जीने के अधिकार की रक्षा की बात करता है। पर राइट टु बी फॉरगॉटन सुनने में जितना आसान है, लागू करना उतना ही मुश्किल।
  • कोर्ट किसी भी व्यक्ति के नाम को हटाने का ब्लैंकेट ऑर्डर जारी नहीं कर सकता। कोर्ट का मानना है कि शिकायत दर्ज होने के बाद ही आरोपी की प्रतिष्ठा पर उसका असर होता है। आरोपों से मुक्त होने पर उसका सम्मान और प्रतिष्ठा खुद-ब-खुद कायम हो जाती है। ऐसे में अगर रिकॉर्ड ही नहीं होगा, तो यह सब साबित कैसे होगा?

पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट अमन छाबड़ा ने जानकारी देते बताया

आशुतोष कार्तिक ने अपनी याचिका में क्या मांग की है?

  • आशुतोष को मुंबई पुलिस ने 2009 में नशे में गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के करीब 10 दिन बाद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आशुतोष को एक दिन के लिए जेल भेजा और 3,100 रुपए का जुर्माना लिया। ड्राइविंग लाइसेंस भी दो साल के लिए सस्पेंड किया गया था।
  • उस समय आशुतोष पर शराब पीकर गाड़ी चलाने, हेलमेट न पहनने, ड्राइविंग लाइसेंस न रखने और ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों के कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप था। उस समय के वीडियो, खबरें और आर्टिकल आज भी कई वेबसाइट्स पर मौजूद हैं और गूगल सर्च करने पर सामने आ जाती हैं। आशुतोष ने इन लिंक्स को हटाने के लिए ही राइट टु बी फॉरगॉटन की मांग की है।
  • आशुतोष ने दिल्ली हाईकोर्ट से अपील की है कि उसे राइट टु बी फॉरगॉटन तो राइट टु प्राइवेसी के साथ मिला है। यह संविधान के आर्टिकल 21 यानी राइट टु लाइफ का अभिन्न हिस्सा है। याचिका कहती है कि आशुतोष ने गलती की, उसकी सजा भी भुगती। वह अब भी यह सब सहन कर रहा है। अब तो इंटरनेट से यह कंटेंट हटना चाहिए।

राइट टु बी फॉरगॉटन किन देशों में लागू है?

  • यूरोपीय यूनियन के देशों में। खासकर फ्रांस, जर्मनी, स्पेन आदि। गूगल जियोलोकेशन सिग्नल का इस्तेमाल कर अनुरोध करने वाले के देश से उससे संबंधित URL हटाता है।
  • इस अधिकार की चर्चा 2014 में स्पेन की एक कोर्ट के फैसले के बाद सामने आई। स्पेन के मारियो गोंजालेज ने दिवालिया होने से जुड़े न्यूजपेपर आर्टिकल के लिंक हटाने की मांग गूगल से की थी। उसने अपना कर्ज चुका दिया था। वह चाहता था कि गूगल से भी इससे जुड़ी जानकारी हटाई जाए। यूरोपीय कोर्ट ने गूगल के खिलाफ फैसला सुनाया। कहा कि कुछ परिस्थितियों में अप्रासंगिक जानकारियों को इंटरनेट से हटा दिया जाना चाहिए।
  • इसके बाद 2018 में यूरोपीय यूनियन (EU) ने जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) जारी किया। 28 देशों के संगठन यूरोपीय यूनियन ने इसके जरिए आम लोगों को राइट टु बी फॉरगॉटन दिया है। 2014 के फैसले के बाद से नवंबर 2020 तक गूगल को EU से जुड़े देशों से 38.5 लाख URL हटाने के लिए 9.85 लाख अनुरोध मिल चुके हैं।

डेटा प्रोटेक्शन बिल इस बारे में क्या कहता है?

  • पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था। इसमें आम लोगों के पर्सनल डेटा की सिक्योरिटी के लिए प्रावधान प्रस्तावित हैं। इस बिल के “राइट्स ऑफ डेटा प्रिंसिपल” शीर्षक वाले चैप्टर V में “राइट टु बी फॉरगॉटन” (भूल जाने का अधिकार) भी शामिल है। इसमें कहा गया है कि “डेटा प्रिंसिपल (जिस व्यक्ति का डेटा है) को डेटा फ़िड्यूशरी को पर्सनल डेटा दिखाने के लिए प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा।”
  • यहां डेटा फिड्यूशरी का अर्थ ऐसे किसी भी व्यक्ति, जिसमें सरकार, कंपनी, कोई कानूनी संस्था या कोई अन्य व्यक्ति शामिल है, जो अकेले या दूसरों के साथ मिलकर पर्सनल डेटा को प्रोसेस करता है। इस तरह पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल आपको राइट टु बी फॉरगॉटन के तहत पर्सनल जानकारी को डी-लिंक करने, हटाने या करेक्ट करने को कहने का अधिकार देता है।
  • इसके बाद भी पर्सनल डेटा और जानकारी की संवेदनशीलता पर कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से फैसले नहीं ले सकता। डेटा सिक्योरिटी अथॉरिटी (DPA) पर इसकी निगरानी की जिम्मेदारी रहेगी। इसका मतलब यह है कि प्रस्तावित कानून में डेटा प्रिंसिपल को अपना डेटा हटाने की मांग करने का अधिकार है। इस पर अंतिम फैसला DPA के एडजुडिकेटिंग ऑफिसर का होगा।

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