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US इलेक्शन LIVE:बाइडेन को 7 करोड़ से अधिक वोट, इतिहास में सबसे ज्यादा; ओबामा का रिकॉर्ड तोड़ा

12 साल पहले बाइडेन की पार्टी के ही ओबामा को 6.94 करोड़ वोट मिले थे बाइडेन को 7.10 करोड़ वोट मिल चुके हैं, गिनती अब भी जारी है

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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतेगा? जो बाइडेन या डोनाल्ड ट्रम्प। इसका जवाब संभवत: आज शाम तक मिल जाए। फिलहाल, बाजी बाइडेन के हाथ लगती नजर आ रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, वे 253 इलेक्टोरल वोट जीत चुके हैं। ट्रम्प के खाते में 214 वोट हैं। बाइडेन ने अपनी पार्टी के बराक ओबामा का 12 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। गुरुवार सुबह तक बाइडेन 7 करोड़ 10 लाख पॉपुलर वोट हासिल कर चुके थे। 2008 में ओबामा को 6 करोड़ 94 लाख 98 हजार 516 वोट मिले थे।

The Guardian के मुताबिक, ट्रम्प को 270 का जादुई आंकड़ा पाने के लिए 53 इलेक्टोरल वोट्स चाहिए। 4 राज्यों में काउंटिंग जारी है। अगर इनमें से तीन (जिसकी संभावना भी है) ट्रम्प जीत लेते हैं तो वे फिर राष्ट्रपति बन सकते हैं। पेन्सिलवेनिया इनमें सबसे अहम है। वहीं, बाइडेन अकेले पेन्सिलवेनिया को जीतकर बहुमत तक पहुंच सकते हैं। अगर पेन्सिलवेनिया में जीत नहीं मिलती तो बाइडेन अपने गढ़ नेवादा, जॉर्जिया और नॉर्थ कैरोलिना के जरिए व्हाइट हाउस तक पहुंच सकते हैं। लेकिन, इनमें से नेवादा छोड़कर हर जगह ट्रम्प का दबदबा है।

अपडेट्स

  • NYT के मुताबिक, इन राज्यों की तस्वीर अभी साफ होनी बाकी है। अलास्का (3 इलेक्टोरल वोट), एरिजोना (11 इलेक्टोरल वोट), नेवादा (6 इलेक्टोरल वोट), नॉर्थ कैरोलिना (15 इलेक्टोरल वोट), जॉर्जिया (16 इलेक्टोरल वोट) और पेन्सिलवेनिया (20 इलेक्टोरल वोट) के नतीजे आना बाकी हैं। यहां काउंटिंग जारी है।
  • USA Today के मुताबिक, जो बाइडेन अब तक कुल 264 इलेक्टोरल वोट हासिल कर चुके हैं। यानी वे बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 6 वोट से दूर हैं। ट्रम्प को 214 वोट मिले हैं।
  • USA Today के मुताबिक, जॉर्जिया में मुकाबला सबसे कड़ा है। यहां कुल 16 इलेक्टोरल वोट हैं। अब तक ट्रम्प को 49.8% और बाइडेन को 49.0% वोट मिल चुके हैं। कुल 98% वोटों की गिनती हो चुकी है। पेन्सिलवेनिया में कुल 20 वोट हैं। यहां ट्रम्प को 51 फीसदी जबकि बाइडेन को 47 फीसदी वोट मिले हैं। दोनों जगह काउंटिंग जारी है।
  • न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, मिशिनग के बाद अब जॉर्जिया में भी रिपब्लिकन पार्टी ने कोर्ट का रुख किया। पार्टी का आरोप है कि काउंटिंग के दौरान 53 एब्सेंटी वोटर्स गैरकानूनी निकले। इन्हें काउंटिंग में धांधली के जरिए जुड़वाया गया। मामले की सुनवाई कुछ देर में चैथहेम काउंटी कोर्ट करेगा।
  • न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, सीनेट में अब तक डेमोक्रेट्स को 48 (1 सीट का फायदा) और रिपब्लिकन्स को भी 48 (1 सीट का नुकसान) मिली हैं। हाउस रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेट्स को 205 सीटें मिली हैं। उसे फिर भी 5 सीटों का नुकसान है। वहीं, रिपब्लिकन्स को 190 सीटें मिली हैं और उसे 6 सीटों का फायदा है।
  • बाइडेन का नया बयान- कश्मकश भरी काउंटिंग के बीच जो बाइडेन दूसरी बार मीडिया से मुखातिब हुए। कहा- पूरी उम्मीद है कि हम जल्द ही 270 के आंकड़े को छू लेंगे। हालांकि, मैं यह दावा नहीं करूंगा कि हम जीत ही गए हैं। यह जल्दबाजी होगी। लेकिन, आखिरकार जब काउंटिंग खत्म होगी तो विनर हम ही होंगे।
  • CNN के मुताबिक, जॉर्जिया में भले ही ट्रम्प के वोट कम हुए हों, लेकिन वे अब भी लीड कर रहे हैं। एक इलेक्शन ऑफिशयल के मुताबिक, अब भी 1 लाख 22 हजार वोटों की गिनती की जानी है।
  • CNN के मुताबिक, पेन्सिलवेनिया में ट्रम्प बुधवार को 6 लाख वोटों से लीड कर रहे थे, लेकिन अब यह 50 फीसदी से भी कम हो गई है। वे करीब 2 लाख वोटों से आगे हैं। हालांकि, ज्यादा संभावना यही है कि ट्रम्प यहां बाजी मार लेंगे। यही वजह है कि डेमोक्रेट्स इस राज्य के साथ जॉर्जिया की काउंटिंग पर पैनी नजर रख रहे हैं।
ह्यूस्टन की एक कॉलोनी में लोग रात में इस तरह साथ बैठे और इलेक्शन अपडेट्स लेते नजर आए। यहां ट्रम्प लीड कर रहे हैं।
  • न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, पेन्सिलवेनिया में काउंटिंग जारी है। दोनों पार्टियां जीत का दावा कर रही हैं। लेकिन, अब तक तस्वीर साफ नहीं है। हालांकि, यहां पहले ही ट्रम्प का पलड़ा भारी माना जा रहा है।
  • न्यू जर्सी में 14 इलेक्टोरल वोट्स हैं। यहां 1 लाख से ज्यादा गुजराती वोटर्स हैं। यहां ट्रम्प हार गए हैं। 22 राज्यों में ट्रम्प को जीत मिलती दिख रही है, 5 में वे लीड लिए हुए हैं।
  • वहीं, कैलिफोर्निया (55 इलेक्टर्स) समेत 11 राज्यों में बाइडेन की जीत तय है, 3 में वे आगे चल रहे हैं।
  • सीनेट में अब तक डेमोक्रेट्स ने 47 और रिपब्लिकन्स ने 48 सीटें जीतीं। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेट्स 203 और रिपब्लिकन्स ने 186 सीटें जीत चुके हैं।

क्या हार गए ट्रम्प?

बाइडेन को भले ही ज्यादा वोट मिल गए हों, न्यूयॉर्क टाइम्स के पॉलिटिकल एक्सपर्ट एडम नार्गोनी ट्रम्प को खारिज न करने की सलाह देते हैं। उन्होंने कहा- ट्रम्प की जीत नामुमकिन नहीं है। एरिजोना, जॉर्जिया और पेन्सिलवेनिया के पूरे नतीजे आने दीजिए। वे फिर चौंका सकते हैं। ट्रम्प लगातार वोटों की गिनती में धांधली का आरोप लगा रहे हैं। काउंटिंग के दौरान ही उन्होंने ट्वीट कर पेनसिल्वेनिया में पांच लाख वोट गायब होने का दावा किया।

सबसे अहम स्विंग स्टेट फ्लोरिडा में ट्रम्प की जीत

इस बार बड़ी बात यह रही कि ट्रम्प 29 इलेक्टर्स वाले सबसे अहम स्विंग स्टेट फ्लोरिडा में जीत बरकरार रखने में कामयाब रहे। कहा जाता है कि इस स्विंग स्टेट में जो जीतता है, वही व्हाइट हाउस पहुंचता है। 100 साल का इतिहास यही कहता है। NBC का एग्जिट पोल बताता है कि फ्लोरिडा में रहने वाले लैटिन अमेरिकी वोटर्स ने ट्रम्प का साथ दिया। क्यूबा मूल के 55%, प्यूर्टोरिको के 30% और 48% अन्य लैटिन अमेरिकी मूल के वोटर्स ट्रम्प के साथ थे। इसी वजह से उन्हें यहां अब तक कुल 51.6% वोट मिले।

ट्रम्प-बाइडेन के दावे

बाइडेन ने – जहां अभी हम खड़े हैं, उससे काफी खुश हूं। विस्कॉन्सिन और मिशिगन से मिल रही खबरें अच्छा फील करा रही हैं। जब तक हर बैलट की गिनती नहीं हो जाती, तब तक चुनाव खत्म नहीं होगा। ट्रम्प ने कहा- हमने हर मामले में जीत दर्ज की है। इसके बाद अचानक सब बंद हो गया। (ये नहीं बताया कि वे किस चीज को बंद करने की बात कर रहे हैं।) ‘कुछ दुखी लोग नतीजों को खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं। हम उनका साथ नहीं दे सकते। जो नतीजे आए हैं, वे बेहतरीन हैं। रात में काउंटिंग कराने का क्या तुक है। इसको लेकर हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मेरे हिसाब से तो हम चुनाव जीत चुके हैं।’

72 साल बाद एरिजोना डेमोक्रेट्स का

CNN के मुताबिक, इस बार रिपब्लिकन्स के गढ़ कहे जाने वाले एरिजोना में डेमोक्रेट्स ने सेंध लगा दी। यहां बाइडेन खासी बढ़त हासिल कर चुके हैं। एरिजोना में इस उलटफेर की बड़ी वजह लैटिन लोग बताए जा रहे हैं। ट्रम्प इनको घुसपैठिया बताते आए हैं। वहीं, बाइडेन ने इनका समर्थन किया। नतीजा सामने है। 2016 में ट्रम्प ने यहां 3% ज्यादा वोट हासिल किए थे।

फोटो डेलावेयर में डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन के कैम्पेन हाउस चेस सेंटर (डेलावेयर) का है। यहां उनके समर्थकों ने कार रैली निकाली।
फोटो डेलावेयर में डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन के कैम्पेन हाउस चेस सेंटर (डेलावेयर) का है। यहां उनके समर्थकों ने कार रैली निकाली।

पहली ट्रांसजेंडर स्टेट सीनेटर

जो बाइडेन के होम स्टेट डेलावेयर से सारा मैक्ब्रि़ड स्टेट सीनेटर का चुनाव जीत चुकी हैं। वे अमेरिकी इतिहास की पहली ट्रांसजेंडर हैं जो स्टेट सीनेट के लिए चुनी गई हैं।

सारा मैक्ब्रि़ड, अमेरिका की पहली ट्रांसजेंडर सीनेटर।
सारा मैक्ब्रि़ड, अमेरिका की पहली ट्रांसजेंडर सीनेटर।
  • न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, एक रोचक आंकड़ा सामने आ रहा है। 2016 में जिन लोगों ने वोट नहीं किया था, या जिन्होंने पिछले चुनाव में थर्ड पार्टी को वोट दिया था, इन दोनों ने इस बार बाइडेन को वोट दिया है।
  • डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर मिच मैक्डोनेल ने पार्टी नेताओं से कहा- अगर हम जीतते हैं इसे बड़े दिल और विनम्रता से स्वीकार करें। अगर आप गलत बातें कहते हैं, नस्लवादी बातें करते हैं तो देश में हिंसा भड़क सकती है।
न्यू हैम्पशायर के विंडहैम में वोटिंग के दौरान दो महिलाएं। यहां वोटिंग के लिए मास्क मेंडेटरी था।
न्यू हैम्पशायर के विंडहैम में वोटिंग के दौरान दो महिलाएं। यहां वोटिंग के लिए मास्क मेंडेटरी था।

हिंसा की आशंका
अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा संभालने वाले यूएस नेशनल गार्ड को अलर्ट मोड पर रहने को कहा गया है। 18 राज्यों में चुनावी हिंसा या झड़पों की आशंका जताई गई है। करीब 4700 गार्ड्स को तैनात किया जा सकता है। सायबर डिफेंस एजेंसी को भी मॉनिटरिंग करने को कहा गया है। मिलिट्री टाइम्स ने इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की है।

फ्लोरिडा के डोरल में पोस्टल बैलट को काउंटिंग से पहले अरेंज करती इलेक्शन सुपरवाइजर।
फ्लोरिडा के डोरल में पोस्टल बैलट को काउंटिंग से पहले अरेंज करती इलेक्शन सुपरवाइजर।
  • कोरोना से मौत के बाद भी चुनावी जीत: नॉर्थ डकोटा स्टेट लेजिस्लेटिव के कैंडिडेट डेविड एंधाल (55) मौत के बाद भी चुनाव जीत गए। डेविड रिपब्लिकन पार्टी के टिकट पर स्टेट लेजिस्लेटिव का चुनाव लड़े थे। इस राज्य में से दो प्रतिनिधि चुने गए हैं। न्यूयॉर्क पोस्ट के मुताबिक, अक्टूबर में डेविड को कोरोना हुआ था। वे ठीक हो गए थे। चुनाव भी लड़े। लेकिन, संक्रमण की वजह से कमजोर थे। चार दिन पहले उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

चुनाव के मुख्य मुद्दे

  • कोरोनावायरस
  • इकोनॉमी
  • हेल्थ सेक्टर रिफॉर्म्स
  • फॉरेन पॉलिसी
  • नस्लवाद और पुलिस सुधार

डोनाल्ड ट्रम्प vs जो बाइडेन

  • टम्प 74 साल के हैं और बाइडेन उनसे 3 साल बड़े यानी 77 साल के हैं।
  • ट्रम्प कारोबारी से नेता बने। बाइडेन 1973 में ही सीनेटर बन गए थे।
  • ट्रम्प प्रोटेस्टेंट हैं। बाइडेन रोमन कैथोलिक।
  • ट्रम्प ने 3 जबकि बाइडेन ने 2 शादियां कीं। बाइडेन की एक पत्नी का निधन हो चुका है।
  • ट्रम्प के 5 और बाइडेन के 4 बच्चे हैं। एक बेटे की मौत हो चुकी है।
  • ट्रम्प की वेबसाइट (www.donaldjtrump.com) और बाइडेन की (www.joebiden.com) है।

US इलेक्शन:क्या नतीजों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे पाएंगे ट्रम्प, वहां उनका समर्थन ज्यादा, लेकिन राह आसान नहींी

 

 

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस समेत कुल 9 जज होते हैं। यह संख्या विषम इसलिए रखी गई ताकि अहम मामलों में चीफ जस्टिस का वोट निर्णायक हो सके।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। जो बाइडेन और डेमोक्रेट पार्टी आगे नजर आ रही है। वहीं, डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी रिपब्लिकन पार्टी भी जीत का दावा ठोक रही है। ट्रम्प ने काउंटिंग में धांधली के आरोप लगाए। गिनती रोकने की मांग की। मिशिनगन और जॉर्जिया की निचली अदालतों तक पहुंच गए। लेकिन, फिलहाल काउंटिंग रोकी नहीं गई है। वैसे, चुनाव के पहले ही फ्लोरिडा और पेन्सिलवेनिया की रैली में वे कह चुके थे कि राष्ट्रपति चुनाव का फैसला शायद इस बार सुप्रीम कोर्ट में हो।

अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ‘कौन बनेगा राष्ट्रपति’ वाले सवाल का जवाब दे पाएगा। या फिर हल लोकतांत्रिक संस्थाओं जैसे सीनेट या हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के जरिए निकलेगा।

पहले कानूनी पहलू समझिए
ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी दो राज्यों में नतीजों को चुनौती दे चुकी है। काउंटिंग रोकने की मांग कर रही है। उसका आरोप है कि जॉर्जिया में 53 पोस्टल बैलट फर्जी थे। ऐसा अन्य राज्यों में भी हुआ होगा। कानून के मुताबिक, जिन राज्यों में केस दायर किए गए हैं, वहां की अदालतें पहले सुनवाई करेंगी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचेगा। यानी हमारे देश जैसी व्यवस्था है।

लेकिन, इसका असर क्या होगा?
जाहिर तौर पर कानूनी लड़ाई जब तक चलेगी, तब तक राष्ट्रपति का फैसला नहीं हो पाएगा। इसमें कुछ दिन या कुछ हफ्ते लग सकते हैं। लेकिन, इस बात की आशंका बिल्कुल नहीं है कि ये 20 जनवरी या उसके बाद तक लटकेगा।

ट्रम्प सुप्रीम कोर्ट की धमकी क्यों दे रहे है?
कैम्पेन के वक्त से ही ट्रम्प ऐसा कर रहे हैं। ‘द गार्डियन’ के मुताबिक, इसकी एक वजह सुप्रीम कोर्ट में रूढ़िवादी (कंजर्वेटिव) जजों का बहुमत है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 9 जज हैं। 3 की नियुक्ति ट्रम्प के कार्यकाल में हुई। इनमें से एक एमी कोने बैरेट तो चुनाव के महज एक हफ्ते पहले चुनी गईं। साफ तौर पर यहां 6 जज ट्रम्प यानी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि कहा जाता है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जज कई बार उस पार्टी के समर्थकों की तरह व्यवहार करते हैं जिसने उन्हें कुर्सी तक पहुंचाया है। हालांकि, ऐसा करते हुए भी उन्हें निचली अदालतों के फैसले और राष्ट्रीय कानून को ध्यान में रखना होता है।

ये नौबत क्यों आई?
इसकी मुख्य वजह तो कोरोनावायरस है। इसकी वजह से राज्यों ने कुछ नियम (कानून नहीं) बनाए या बदले। इनकी वजह से पोस्टल और मेल इन बैलट कई गुना बढ़ गए। ट्रम्प का आरोप है कि इन्हीं वोटों के जरिए धांधली हुई। उन्होंने चुनाव के पहले ही इस तरह की वोटिंग का विरोध किया। ट्रम्प सिर्फ ‘मेन इन पर्सन’ यानी सीधे बूथ जाकर ही वोटिंग चाहते थे। बहरहाल, ट्रम्प की मांग मानी भी नहीं जा सकती और मानी भी नहीं गई। वरना करोड़ों लोग वोटिंग ही नहीं कर पाते।

कानूनी मामले और धमकी नई बात नहीं
साल 2000 और 2016 में भी कई मामले अदालतों तक पहुंचे पर कुछ हुआ नहीं। रिपब्लिकन्स और डेमोक्रेट्स चुनाव के पहले ही करीब 50 मामले एक-दूसरे पर दायर कर चुके हैं। अगर पेन्सिलवेनिया और जॉर्जिया से तस्वीर साफ नहीं हो पाती तो ट्रम्प या बाइडेन की अपील पर सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है।

फंस गए रे अमेरिकी इलेक्शन! ट्रम्प या बाइडेन की जीत के ऐलान में देरी क्यों?
फोटो पूर्व राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन की है। 2 नवंबर 1948 को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव थे। शुरुआती रुझानों के आधार पर ही शिकागो डेली ट्रिब्यून ने अगले दिन खबर छापी कि डेमोक्रेट ड्यूवी ने रिपब्लिकन ट्रूमैन को हरा दिया। ये रुझान गलत साबित हुए और ट्रूमैन चुनाव जीतकर दोबारा राष्ट्रपति बन गए।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे फंस गए हैं। आमतौर पर इलेक्शन-डे यानी जिस दिन वोटिंग होती है, उसी रात काउंटिंग हो जाती है और अगली सुबह तक दुनिया को नए राष्ट्रपति का नाम पता चल जाता है। इस बार कोरोनावायरस की वजह से बदले नियमों ने पूरी प्रक्रिया पर असर डाला है।

करीब 10 करोड़ वोटर्स ने अर्ली वोटिंग की है यानी इलेक्शन-डे से पहले ही पोस्टल बैलेट या मेल-इन वोटिंग से वोट दे दिए। अब चुनाव अधिकारियों को इन वोट्स को गिनने में वक्त लग रहा है। प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने यह कहकर कहानी और उलझा दी है कि वे बैलेट्स की काउंटिंग को रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। आइए, समझते हैं कि इस बार क्या अलग रहा और किस वजह से अमेरिका के चुनाव नतीजे अटक गए हैं…

आम तौर पर क्या होता है?

  • अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पॉपुलर वोट्स पर नहीं जीते जाते। हर राज्य को जीतने के साथ ही पार्टी वहां से अपने लिए इलेक्टोरल वोट्स जुटाती है। व्हाइट हाउस पहुंचने के लिए 50 राज्यों के 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स में से 270 का साथ होना जरूरी है।
  • हर चुनाव में कंफर्मेशन से पहले ही प्रमुख अमेरिकी मीडिया आउटलेट्स हर स्टेट में किसी एक कैंडिडेट को विजेता घोषित करते हैं। यह फाइनल वोट काउंट के आधार पर नहीं होता, बल्कि प्रोजेक्शन के आधार पर होता है, जो आम तौर पर सटीक होता है। 2016 के चुनाव देखें तो वॉशिंगटन में सुबह 2ः30 बज रहे थे और जरूरी 270 इलेक्टोरल वोट्स तक पहुंचते ही मीडिया ने ट्रम्प के नाम की घोषणा कर दी थी।
  • यह हमारे यहां से थोड़ा अलग है। एक तो हमारे यहां वोटिंग और काउंटिंग एक ही दिन नहीं होती। दूसरा, हमारे यहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से काउंटिंग होती है, जो कुछ ही घंटों में वोटों की सटीक गिनती कर देती हैं। जब तक आधिकारिक घोषणा नहीं होती, तब तक मीडिया हाउसेस बढ़त के आधार पर आकलन करते हैं। इस वजह से इंतजार नहीं करना पड़ता। अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां औपचारिक घोषणा में वक्त लगता है, इसलिए मीडिया आउटलेट्स की घोषणा से ही तस्वीर साफ होती है।

इस बार नतीजे क्यों फंस गए हैं?

  • ऐसा सिर्फ कोरोनावायरस की वजह से हो रहा है। 68% वोटर्स ने अर्ली-वोटिंग की है यानी इलेक्शन-डे से पहले। अमेरिका में ऐसा होता भी है। कुछ स्टेट्स में इलेक्शन-डे से पहले वोटिंग की इजाजत है। इसमें वोटर्स को पोस्टल बैलेट देने की परमिशन भी है।
  • पोस्टल बैलेट की गिनती धीमी होती है क्योंकि वोटर और गवाह के दस्तखत और पतों का मिलान करना होता है। काउंटिंग मशीनों में डालने से पहले बैलेट्स की कई दौर की चेकिंग होती है। कुछ स्टेट्स ने इलेक्शन-डे से पहले ही वेरिफिकेशन प्रक्रिया शुरू कर दी थी, ताकि इलेक्शन खत्म होने से पहले ही काउंटिंग शुरू हो सके। वहीं, कुछ स्टेट्स ने ऐसा नहीं किया।

हम किन स्टेट्स की बात कर रहे हैं?

  • ये ऐसे स्टेट्स हैं, जो इस बार के राष्ट्रपति चुनावों के लिए निर्णायक हो सकते हैं। ट्रम्प ने फ्लोरिडा, ओहियो और टेक्सास में जीत हासिल कर ली है और अपने री-इलेक्शन की उम्मीदों को कायम रखा है। लेकिन, एरिजोना बाइडेन के खाते में गया है। यदि डेमोक्रेटिक कैंडिडेट ने मिशिगन और विसकॉन्सिन जीत लिया तो उनके पास जॉर्जिया और पेनसिल्वेनिया गंवाने के बाद भी ट्रम्प के मुकाबले दो इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स ज्यादा रहेंगे।
  • इन स्टेट्स में लाखों पोस्टल वोट्स अब तक नहीं गिने जा सके हैं। वहीं, यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि ज्यादातर डेमोक्रेटिक वोटर्स ने इस बार कोरोना के डर से पोस्टल बैलेट से वोटिंग की है। उनकी तुलना में ऐसा करने वाले रिपब्लिकन वोटर्स की संख्या काफी कम है।
  • जॉर्जिया में नियम अबसेंटी बैलेट्स को पहले प्रोसेस करने की इजाजत देते हैं, लेकिन वहां भी कई बड़ी काउंटी में वोटिंग में देर हुई है। कुछ काउंटर्स पर मंगलवार देर शाम तक वोटिंग चलती रही। इस वजह से ओवरनाइट काउंटिंग नहीं हो सकी।
  • विसकॉन्सिन में भी ऐसा ही हुआ है, जहां बाइडेन को मामूली बढ़त मिली हुई है। पेनसिल्वेनिया में भी स्थिति लगभग ऐसी ही रही, जहां ट्रम्प आगे चल रहे हैं। यहां भी पोस्टल बैलेट्स को इलेक्शन डे से पहले तैयार करने की अनुमति दे दी गई थी। पेनसिल्वेनिया में इलेक्शन डे पर सुबह 7 बजे काउंट शुरू हुआ, वहां नतीजे आने में दो दिन लग सकते हैं। मिशिगन में भी इलेक्शन डे से 24 घंटे पहले पोस्टल बैलेट्स को तैयार करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन अधिकारी कह रहे हैं कि वहां भी जल्दी रिजल्ट की उम्मीद नहीं की जा सकती।

और भी कुछ है जो मामलों को उलझा रहा है?
आधे से ज्यादा स्टेट्स इलेक्शन डे के बाद पहुंचने वाले पोस्टल वोट्स को भी मंजूर कर रहे हैं। बशर्ते पोस्ट ऑफिस ने उन्हें 3 नवंबर के बाद प्रोसेस न किया हो। पेनसिल्वेनिया में शुक्रवार की डेडलाइन है और तब तक रिजल्ट्स को पूरा नहीं माना जा सकेगा। ऐसे भी केस हैं जहां लोगों ने पोस्टल बैलेट्स मांगे और इलेक्शन डे पर खुद ही वोटिंग को पहुंच गए। किसी का वोट दो बार काउंट न हो जाए, इसकी भी चुनाव अधिकारियों को सावधानी रखनी पड़ रही है।

यदि नतीजों में विवाद हुआ तो क्या होगा?

  • ट्रम्प तो पहले से कह रहे हैं कि यदि जरूरत पड़ी तो वे कोर्ट में चुनाव जीतेंगे। उनका इशारा 2000 के चुनावों की ओर है। उस समय डेमोक्रेटिक कैंडिडेट अल गोर फ्लोरिडा में 537 वोट्स से हारे थे। विवादों से घिरे रीकाउंट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश को विजेता घोषित किया गया था।
  • 2020 के चुनावों में पहले ही 300 से ज्यादा मुकदमे दाखिल हो चुके हैं। यह सारे चुनाव प्रक्रिया से जुड़े कानून तोड़ने को लेकर है। पोस्टल बैलेट्स की अनियमितताओं और बदले हुए चुनाव नियमों को देखते हुए और भी मुकदमे दर्ज हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो नतीजे आने में हफ्ता भी लग सकता है।
  • एनालिस्ट कह रहे हैं कि रीकाउंट एक से ज्यादा राज्यों में होगा और ट्रम्प ने तो पहले ही कह दिया है कि वे बैलट काउंटिंग रुकवाने सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। दरअसल, वे यह जानते हैं कि ज्यादातर पोस्टल बैलेट्स बाइडेन के समर्थन में हैं। वे इन्हें खारिज या अमान्य करवाने के लिए हरसंभव कोशिश करते दिख रहे हैं।

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