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PM Modi In Leh LIVE: चीन से तनाव के बीच लेह पहुंचे PM मोदी, नीमू पोस्ट पर अधिकारियों से की बात, फ्रंट पर प्रधानमंत्री का पहुंचना हौसले का हाईडोज, इससे उन्हें असल हालात पता चलेंगे, ताकि तुरंत एक्शन ले सकें

चीन से बॉर्डर पर जारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक लेह पहुंचे हैं. शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पहुंचे और जवानों से मुलाकात की. इससे पहले सिर्फ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत को इस दौरे के लिए आना था., मोदी का जाना बताता है कि वे सेना के साथ हैं और कमांडर को हर फैसला लेने की आजादी है:

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चीन से बॉर्डर पर जारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार सुबह लेह पहुंचे. पीएम मोदी का ये दौरा अचानक था, जिससे हर कोई चौंक गया. पीएम मोदी के साथ इस दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बिपिन रावत भी मौजूद रहे. यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेना, वायुसेना के अधिकारियों ने जमीनी हकीकत की जानकारी दी. मई महीने से ही चीन के साथ बॉर्डर पर तनाव की स्थिति बनी हुई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को नीमू की फॉरवर्ड पोस्ट पर पहुंचे. यहां पर सीनियर अधिकारियों ने उन्हें मौके की जानकारी दी. पीएम मोदी ने सेना, वायुसेना के अफसरों से सीधे संवाद भी किया. पहले इस दौरे पर सिर्फ CDS बिपिन रावत को ही आना था, लेकिन पीएम मोदी ने खुद पहुंचकर सभी को चौंका दिया.

पीएम मोदी के साथ CDS बिपिन रावत के अलावा सेना प्रमुख एम.एम. नरवणे भी लेह में मौजूद हैं. पिछले दो महीने में चीन के साथ सैन्य और डिप्लोमेटिक स्तर पर कई लेवल की बात हो गई है, जिसमें माहौल को शांत करने की कोशिश की गई है. हालांकि, इसमें अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया है.

आपको बता दें कि नीमू पोस्ट समुद्री तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद है, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची और खतरनाक पोस्ट में से एक माना जाता है.

जानकारी के मुताबिक, अपने इस दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 कॉर्प्स के अधिकारियों से बात की. इसके अलावा CDS बिपिन रावत के साथ मिलकर मौजूदा स्थिति का जायजा लिया. इस दौरान नॉर्दन आर्मी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह भी मौजूद रहे.

आपको बता दें कि लद्दाख बॉर्डर पर तनाव के बीच 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि कुछ जवान घायल भी हुए थे. इस झड़प में चीन के भी काफी जवानों को नुकसान हुआ था, लेकिन चीन ने आंकड़ा जारी नहीं किया था.

इसी घटना के बाद से तनाव लगातार बढ़ता गया, दोनों सेनाओं ने लगातार कई मौकों पर बात भी की है. और मौजूदा जगह से सेना को पीछे हटाने पर चर्चा की है. देश में लगातार चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता गया, सरकार की ओर से सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई.

टल गया था राजनाथ सिंह का दौरा

मई से ही चीन के साथ बॉर्डर पर तनाव जारी है और बॉर्डर पर लगातार गंभीर स्थिति बनी हुई है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यहां पर पहुंचना हर किसी को चौंकाता है.

इससे पहले शुक्रवार को सिर्फ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लेह जाना था, लेकिन गुरुवार को उनके कार्यक्रम में बदलाव कर दिया गया. फिर तय हुआ था कि सिर्फ बिपिन रावत ही लेह जाएंगे.

<img class=”i-amphtml-blurry-placeholder” src=”data:;base64,लेह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भारत के 20 जवान शहीद हुए थे

आपको बता दें कि लद्दाख बॉर्डर पर तनाव के बीच 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि कुछ जवान घायल भी हुए थे. इस झड़प में चीन के भी काफी जवानों को नुकसान हुआ था, लेकिन चीन ने आंकड़ा जारी नहीं किया था.

इसी घटना के बाद से तनाव लगातार बढ़ता गया, दोनों सेनाओं ने लगातार कई मौकों पर बात भी की है. और मौजूदा जगह से सेना को पीछे हटाने पर चर्चा की है. देश में लगातार चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता गया, सरकार की ओर से सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई.

सेना के लिए मोदी के लद्दाख दौरे के मायने / फ्रंट पर प्रधानमंत्री का पहुंचना हौसले का हाईडोज, इससे उन्हें असल हालात पता चलेंगे, ताकि तुरंत एक्शन ले सकें

  • गलवान झड़प के 18 दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी लद्दाख के नीमू में फाॅरवर्ड लोकेशन पर पहुंचे। उनके साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे भी थे।गलवान झड़प के 18 दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी लद्दाख के नीमू में फाॅरवर्ड लोकेशन पर पहुंचे। उनके साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे भी थे।
  • दिल्ली में लेयर बाय लेयर से गुजरने के बाद ब्रीफिंग से स्थिति का पता चलता है, जिसमें टाइम गैप बहुत हो जाता है
  • ये सिग्नल है कि देश आपके साथ है और सरकार सेना के साथ रहेगी हर चीज में, हर एक्शन के लिए
  • ब्यूरोक्रेट फ्रंट पर नहीं जाता, फाइलों पर ही काम करता है, पीएम को ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम से सीमा की जानकारी पता लगने पर चीजें डाइल्यूट हो जाती हैं

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को अचानक लेह पहुंचे। उनका लेह जाना फिलहाल वहां मौजूद सेना-आईटीबीपी के जवानों और अफसरों के लिए बेहद खास है। सेना-वायुसेना के रिटायर्ड सीनियर ऑफिसर्स से समझिए इसके मायने।

ऑन स्पॉट असेसमेंट का अलग असर होता है- रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ

प्रधानमंत्री मोदी लेह पहुंचे हैं, इसका बहुत अच्छा असर सिर्फ सेना के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के मोटिवेशन पर होगा। इसका सकारात्मक पक्ष ये है कि नेता जब खुद स्पॉट या फ्रंटलाइन पर जाता है तो वो पर्सनली सिचुएशन को रिव्यू करते हैं।

वरना उन्हें लेयर बाय लेयर से गुजरने के बाद ब्रीफिंग से स्थिति का पता चलता है। जिसमें टाइम गैप बहुत हो जाता है, एनालिसिस करने और वैल्यू एड होने के बाद उन्हें जानकारी मिलती है। ऑन स्पाट असेसमेंट का अलग असर होता है, इसमें वो सीधे उन लोगों से समझते हैं जो उससे जुड़े हैं और स्थिति का सामना कर रहे हैं।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ, सेना की कश्मीर स्थित कमांड के प्रमुख रह चुके हैं। उनके रहते ही सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

सोल्जर्स से खुद सुनना बेहद खास है। छोटी-छोटी बातें पता चलती हैं और कई बार छोटे फैसले तुरंत हो जाते हैं। ऑनग्राउंड उनको बताया जाता है, ये होगा तो अच्छा होगा और वे सीधे ऑर्डर देते हैं कि ऐसा करो। इससे एक्शन-रिएक्शन जल्दी होता है। बीच में कोई मंत्रालय, कोई फाइल नहीं आती।

जब मैं कश्मीर में कोर कमांडर था। उड़ी में हमला हुआ, उसी दिन तब रक्षा मंत्री रहे मनोहर पार्रिकर कश्मीर आए थे। वे उड़ी जाना चाहते थे, सैनिटाइनजेशन पूरा नहीं हुआ था इसलिए हमने उन्हें जाने से मना किया। उनके आने का फायदा ये हुआ कि हमें इजाजत मिली। हम सर्जिकल स्ट्राइक कर पाए और 10 दिन में एक्शन ले लिया।

मोदी का जाना बताता है कि वे सेना के साथ हैं और कमांडर को हर फैसला लेने की आजादी है: रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा

पीएम का जाना वहां तैनात सैनिकों के हौसले के लिए बहुत बड़ी बात है। ये सिग्नल है कि देश आपके साथ है और सरकार सेना के साथ रहेगी हर चीज में, हर एक्शन के लिए। पीएम का जाना ये भी दर्शाता है कि मोदी ने आर्मी कमांडर को आजादी दे दी है और ऑनग्राउंड कुछ होता है तो भारत सरकार और देश का प्रधानमंत्री उनके साथ हैं।

फिजिकली पीएम का जाना जहां एक्शन हो रहा है, ये इसलिए मायने रखता है कि ऑनग्राउंड ऑपरेशन में क्या होगा कोई नहीं जानता, ऐसे में सोल्जर को नहीं पता होता कि जो हमारा कमांडर बोल रहा है, क्या सरकार भी साथ है। मोदी के जाने से उन सोल्जर्स को ये पता चलेगा कि सरकार हमारे साथ है। सोल्जर्स के लिए जान देना एक बात होती है और उनकी शहादत को पहचान देना अलग।

रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा फाइटर पायलट रह चुके हैं, वे बतौर एयर ऑफिसर इंचार्ज पर्सनल 2012 में रिटायर हुए।

उन्हें ये कॉन्फिडेंस होना चाहिए कि जब मेरा कफन आएगा तो उसे इज्जत दी जाएगी। मोदी का जाना इस लिहाज से अहम होगा की ये गलवान में शहीद हुए लोगों को इज्जत देने की बात है। यही वजह है कि हम फोर्सेस में फ्यूनरल को अहमियत देते हैं, जिंदा लोगों को ये बताने के लिए कि आपका होना कितना मायने रखता है।

मोदी का ये फैसला सेंसिबल बात है। जॉर्ज फर्नांडीज सियाचिन ग्लेशियर जाते थे, वे सबसे ज्यादा बार वहां जाने वाले नेता बने। फर्नांडीज हर 2-3 महीने में ग्लेशियर चले जाते थे, सैनिकों के लिए फल ले जाते थे और केक भी।

ब्यूरोक्रेट कभी फ्रंट पर नहीं जाता बस फाइल पर बैठा होता है, पीएम को ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम से सीमा की जानकारी पता लगती है तो चीजें डायल्यूट हो जाती हैं। पीएम दो दिवाली पर कश्मीर लद्दाख बॉर्डर पर गए। जो उनका ग्राउंड कनेक्ट बताता है। लीडर जब लोकल कमांडर से मिलेगा तो उसे पल्स पता लगेगी, जिसे वो आगे एक्शन ले सकते हैं।

ये सोल्जर्स के लिए हौसले का हाईडोज है- रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन

मोदी की ये सरप्राइज विजिट जबरदस्त है। जिस तरह से उन्होंने ये फैसला लिया है। ये विजिट सेना और राजनीतिक एंगल दोनों के लिए गेम चेंजर साबित होगी। नीमू लेह का बाहरी इलाका है जहां सेना की एक बड़ी गैरिसन है। कोरोना के बाद दिल्ली से बाहर मोदी की ये दूसरी यात्रा है, इससे पहले वे पश्चिम बंगाल तूफान का जायजा लेने गए थे।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन, कश्मीर कोर के कमांडर रहे हैं, उनके रहते सेना ने आवाम और जवान को जोड़ने की कई अनूठी शुरुआत की।

ये उनकी स्ट्रैटजिक मैसेजिंग का हिस्सा है। सरकार लगातार ऐसे कदम उठा रही है ताकि इसका मजबूत संदेश जाए। जब प्रधानमंत्री खुद फ्रंटलाइन पर जाते हैं तो ये सोल्जर्स के लिए हौसले का हाईडोज होता है।

मोदी के लद्दाख दौरे के कूटनीतिक मायने / मोदी ने चीन और दुनिया को बताया- लद्दाख का ये पूरा इलाका भारत का है, जहां न सिर्फ सेना खड़ी है, बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी मौजूद हैं

  • लेह पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सेना, आईटीबीपी और वायुसेना के जवानों से बातचीत की। वहां उन्होंने मैप के जरिए सेना की स्ट्रैटजी भी समझी।लेह पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सेना, आईटीबीपी और वायुसेना के जवानों से बातचीत की। वहां उन्होंने मैप के जरिए सेना की स्ट्रैटजी भी समझी।
    • प्रधानमंत्री ने चीन को संदेश दिया कि भारत इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर है
    • विपक्ष को बताया कि भारत सबकुछ सोची समझी रणनीति के तहत कर रहा है
    • प्रधानमंत्री चीन का नाम न लेते हुए भी उसे अलग-थलग करने में सफल रहे हैं.

 

कूटनीतिक मायने

यह साफ है कि भारत सरकार इस पूरे मामले में चीन को अंडर स्कोर कर रही है। सरकार यह बताना चाह रही है कि यह विवाद एकतरफा चीन ने पैदा किया है। वह जमीन कल भी हिंदुस्तान के पास थी, आज भी है। हमारे प्रधानमंत्री वहां जा सकते हैं।

  • प्रधानमंत्री मोदी खुद वहां जाकर यह बता रहे हैं कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। वे चीन को संदेश दे रहे हैं कि भारत अपनी एक इंच जमीन नहीं छोड़ेगा, पूरा लद्दाख भारत का है।
  • प्रधानमंत्री का वहां जाना, इस बात को भी बताता है कि टॉप लेवल लीडरशिप इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रही है। सरकार यह भी बता रही है कि दोनों देशों के बीच भले ही बातचीत चल रही है, लेकिन यह विवाद चीन की वजह से है।

दुनिया को संदेश

  • प्रधानमंत्री यह भी बता रहे हैं कि भारत पूरी तरह से उस जमीन पर कब्जा बनाए रखने में सक्षम है। यह मैसेज सिर्फ चीन के लिए ही नहीं, उन देशों के लिए भी है, जो इस कन्फ्यूजन में हों कि आखिर यह मुद्दा क्या है। भारत का स्टैंड क्या है।
  • इस दौरे से दुनिया को यह पूरी तरह से पता चल गया कि यह भारत का इलाका है, जहां न सिर्फ सेना खड़ी है, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री भी मौजूद हैं।

आगे चीन का रवैया क्या हो सकता है

  • चीन बार-बार यही करता रहा है कि जब भी अरुणाचल प्रदेश में चुनाव होते हैं या प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री वहां जाते हैं, तो वो एक बयान जारी कर देता है कि यह ठीक नहीं है। लेकिन यहां चीन यह भी नहीं बोल सकता है कि प्रधानमंत्री लेह क्यों आए हैं।
  • चीन अपने माउथपीस मीडिया के जरिए यही कहेगा कि इस मुद्दे पर भारत में कितनी घबराहट है। भारत बौखला गया है। प्रधानमंत्री को खुद जाना पड़ रहा है। चीन किसी डिप्लोमैटिक स्टैंड की स्थिति में नहीं है।

गलवान के बाद भारत की डिप्लोमेसी

  • भारत ने चीन को यह साफ बता दिया है कि तुम हमारी सीमा को क्रॉस नहीं कर सकते हो। तुम हमारी जमीन की ओर देख भी नहीं सकते हो। वहीं, चीन पर बहुत प्रेशर में है। उस पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध हैं। कोरोना को लेकर दुनिया उसे घेर रही है। वहां इंटरनल पॉलिटिक्स भी चल रही है।
  • भारत अपनी डिप्लोमेटिक रणनीति को साधने में सफल हुआ है। भारत ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस में हांगकांग का मुद्दा उठाया है। भारत की रूस के साथ कल वार्ता हुई, इसमें रक्षा डील भी हुई है। अमेरिका खुलकर भारत के पक्ष में बोल रहा है।
  • चीन को मैसेज जा रहा है कि भारत न सिर्फ खुद खड़े होने सक्षम है, बल्कि दूसरे देश भी उसके साथ खड़े हैं। चीन से जो खफा देश हैं, वह भारत के साथ आ रहे हैं। बीच वाले देश जैसे रूस भी भारत के साथ आया है। चीन के पास कोई ऐसा देश नहीं है, जो उसके साथ खड़ा हो।

प्रधानमंत्री मोदी की स्ट्रैटेजी

  • भारत चीन को डिप्लोमेटिक तौर से अलग-थलग करने में सफल रहा है। पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा है कि प्रधानमंत्री ने चीन का एक बार भी नाम नहीं लिया है। लेकिन उन्होंने चीन का नाम न लेकर सबकुछ किया है।
  • इस मुद्दे को मीडिया और विपक्ष भी लगातार उठा रहा है। अभी भारत की तरफ से वो सबकुछ हो रहा है, जो चीन को टारगेट करके किया जा रहा है। चीन भी समझ गया है कि भारत की ओर से क्या किया जा रहा है। यह सब एक अच्छी रणनीति के तहत हो रहा है।
  • यह समझी हुई पहल है, क्योंकि डिप्लोमेसी में सिम्बोलिजम बहुत अहम होता है। प्रधानमंत्री का यह दौरा सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने के लिए है। हमारे दूसरे सहयोगी देशों को भी मैसेज जाएगा कि भारतीय प्रधानमंत्री यह बता दे रहे हैं कि कौन सा इलाका भारत का है और भारत उसके लिए कैसे खड़ा होगा।

प्रधानमंत्री के दौरे के राजनीतिक मायने

  • यह प्रधानमंत्री का स्टाइल है। वे चौंकाते रहते हैं, रक्षामंत्री तो बाकी डिप्लोमेटिक इंगेजमेंट कर ही रहे हैं। यहां प्रधानमंत्री का जाना ज्यादा जरूरी था। चीन के साथ उन्होंने विपक्ष को भी जवाब दिया है। वो विपक्ष को भी बता रहे हैं कि सबकुछ सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है।
  • प्रधानमंत्री यदि वहां जाते हैं, तो दो चीजें बता रहे हैं कि इस मुद्दे पर देश कितना गंभीर है। दूसरा यह है कि भारत अपने हितों के लिए खड़ा होगा। यदि चीन को यह लग रहा होगा कि भारत पीछे हट जाएगा, तो यह नहीं होगा।

दोनों देशों के बीच अब आगे का रास्ता

  • भारत और चीन के पास लड़ाई की वजह नहीं है। लेकिन चीन और भारत ने जिस तरह से वहां मिलेट्री बिल्टअप किया है। इसका कोई शॉर्टकट नहीं है। दोनों सेनाएं वहां लंबे समय के लिए हैं। दोनों सेनाओं ने वहां इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया है। यह विवाद तो ठंड के मौसम तक चल सकता है।
  • अभी तक दोनों पक्षों ने ऐसा कोई कदम भी नहीं उठाया है। चीन ने भी कोई कदम नहीं उठाया है। जिससे लगे कि तनाव कम होगा। चीन, भारत की एलएसी की बात भी नहीं मान रहा है। हां, भारत और चीन लड़ाई भी नहीं चाहते हैं।
  • भारत, चीन को ट्रेड मुद्दे पर दिखा रहा है कि यह बहुत गंभीर मामला है। भारत ने पूरी तरह से ट्रेड न बंद करते हुए भी साफ मैसेज दिया है कि हम आर्थिक नुकसान को भी अफोर्ड करने की स्थिति में हैं।
  • भारत ने चीन के सामने यह बात रखी है कि सीमा विवाद का कोई हल निकलना चाहिए, नहीं तो क्राइसिस बढ़ सकती है। पहले यह होता था कि सीमा विवाद चलता रहे, लेकिन बाकी काम न रुके। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
  • भारत ने इस बार सारी जिम्मेदारी चीन पर डाल दी है। यदि चीन हमारे साथ संबंध सुधारना चाहता है तो उसे कदम उठाना होगा। नहीं तो इससे दरार और ही बढ़ेगी।

गलवान के बाद दुनिया में भारत की स्थिति

  • दुनिया में चीन बहुत ही अलग-थलग पड़ा हुआ है। हिंदुस्तान की यह समस्या ऐसे वक्त में आई है, जब चीन अन्य मुद्दों पर घिरा हुआ है। ऑस्ट्रेलिया से लेकर जापान, वियतनाम, यूरोप, अमेरिका तक हर कोई चीन को समस्या बता रहा है। हांगकांग, ताइवान, दक्षिण चीन सागर की भी समस्या बनी हुई है।
  • रूस को चीन की बहुत जरूरत है, इसके बावजूद रूस ने भारत के साथ स्पेशल रिलेशनशिप बढ़ाने की बात कही है। हमारे साथ वो मिलेट्री स्ट्रेंथन की भी बात कर रहा है। चीन के मुकाबले ग्लोबली भारत की डिप्लोमेटिक पोजिशन बहुत मजबूत है। इस मुद्दे पर भारत के नजरिए पर दुनिया चीन की तुलना में ज्यादा यकीन कर रही है।

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