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पिता ही नहीं मां का सरनेम भी लगा सकते हैं बच्चे; गांव, शहर, पेशा, गोत्र और भी बहुत कुछ बताता है आपका नाम

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शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या है? जिसे हम गुलाब कहते हैं अगर उसे किसी और नाम से पुकारेंगे तो उससे उसकी खुशबू कम नहीं होगी, लेकिन आज के दौर में जब देश-दुनिया की टेक्नोलॉजी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, तो आपका नाम ही नहीं, सरनेम भी आपकी पहचान का बेहद अहम हिस्सा है। यही वजह है कि नाम और सरनेम को लेकर होने वाले विवाद कई बार कोर्ट तक पहुंच जाते हैं।

ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया और एक नाबालिग बच्ची के पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई। याचिकाकर्ता पिता ने कोर्ट से मां के सरनेम की जगह पिता का सरनेम इस्तेमाल करने का आदेश अधिकारियों को देने की अपील की।

यायिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उनकी बेटी नाबालिग है वो अपना सरनेम तय नहीं कर सकती है। उनकी बेटी का सरनेम उनसे अलग रह रही उनकी पत्नी ने बदल दिया था। हालांकि, कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि पिता अपनी बेटी को अपना सरनेम इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। जज ने याचिकाकर्ता पिता से पूछा कि अगर बच्ची मां का सरनेम इस्तेमाल करके खुश है तो आपको क्या दिक्कत है? हर बच्चे को अपनी मां का सरनेम इस्तेमाल करने का अधिकार है, अगर वो ऐसा चाहता है।

याचिका लगाने वाले पिता का कहना था कि इससे बच्ची के नाम से ली गई पॉलिसी का क्लेम मिलने में परेशानी होगी, क्योंकि पॉलिसी पिता के सरनेम श्रीवास्तव के साथ ली गई थी, जो अब बदलकर मां का सरनेम सक्सेना हो गया है।

नाम रखने के कैसे-कैसे चलन?

आमतौर पर किसी के भी नाम के दो हिस्से होते हैं। फर्स्ट नेम वो नाम होता है जो जन्म के वक्त मिलता है (जैसे- नरेंद्र), लास्ट नेम (यानी सरनेम) जो आपके परिवार से मिलता है (जैसे- मोदी)। लड़का हो या लड़की, दोनों के नाम इसी तरह से तय होते थे।

ये जरूर होता था कि शादी के बाद लड़की का लास्ट नेम पिता के परिवार की जगह पति के परिवार का हो जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ करियर, अपनी पहचान और विचारधारा के चलते कई महिलाओं ने सरनेम बदलना बंद कर दिया और अपने पूरे करियर के दौरान अपने जन्म के सरनेम के साथ ही रहीं। जैसे अनुष्का शर्मा, दीपिका पादुकोण, दीपिका पल्लीकल ने शादी के बाद भी अपने सरनेम नहीं बदले हैं।

वहीं, कई महिलाओं ने एक हाईब्रिड सिस्टम को अपनाया। जिसमें वो पिता और पति दोनों के परिवार का सरनेम इस्तेमाल करती हैं। जैसे- प्रियंका गांधी वाड्रा, हेलेरी रॉडहम क्लिंटन, सोनम कपूर अहूजा। भारत में कुछ अपवाद ऐसे भी हैं जो बिना सरनेम के हैं। जैसे-प्राण, धर्मेंद्र, श्रीदेवी।

दक्षिण के राज्यों में एक और चलन है। जिसमें महिलाएं फर्स्ट नेम की जगह पिता के नाम का पहला अक्षर इस्तेमाल करती हैं और लास्ट नेम की जगह मूल नाम होता है। जैसे- जे जयललिता के नाम में जे- उनके पिता जयराम के नाम का पहला अक्षर है। इस तरह के नाम रखने वाली महिलाएं शादी के बाद कई बार अपने फर्स्ट नेम को पति के नाम के पहले अक्षर से बदल लेती हैं। कई बार फर्स्ट नेम की जगह अपना मूल नाम कर लेती हैं और लास्ट नेम की जगह पति का पूरा नाम लिख देती हैं।

एक चलन और है। इसमें महिलाएं शादी के बाद अपना लास्ट नेम हटाकर पति का नाम और सरनेम दोनों लगाने लगती हैं। जैसे- स्मृति मल्होत्रा शादी के बाद स्मृति जुबेन ईरानी बन गईं।

बिहार में जातिगत सरनेम की जगह कुमार, प्रसाद जैसे सरनेम का चलन

देश में सिर्फ महिलाओं के सरनेम पर ही बात होती है, ऐसा भी नहीं है। पुरुषों के नाम और सरनेम के भी कई तरह के चलन हैं। नीतीश कुमार, रविशंकर प्रसाद इसी का हिस्सा हैं। इसी तरह बिहार में राय, सिन्हा, सिंह जैसे सरनेम भी एक से ज्यादा जातियां इस्तेमाल करती हैं।

कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि जेपी आंदोलन के वक्त UP और बिहार में इस तरह के नाम रखने का चलन शुरू हुआ। इसके पीछे जातिवादी भेदभाव मिटाने की मंशा थी। हालांकि, करीब 50 साल बाद भी इस तरह के भेद खत्म नहीं हुए हैं।

महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में नाम और सरनेम के बीच पिता या पति का नाम इस्तेमाल करने का भी चलन है। जैसे- सचिन रमेश तेंदुलकर। कुछ जगहों पर सरनेम की जगह गांव, जिले या कस्बे का नाम इस्तेमाल करने का भी चलन है। जैसे- अदार पूनावाला, शहजाद पूनावाला, पेरिस हिल्टन, ब्रूकलिन बेकहम, ओम प्रकाश चौटाला। देश-दुनिया में ऐसे नामों का भी चलन है जिसमें सरनेम उस वक्ति के परिवारिक पेशे से जुड़ा होता है। जैसे- मार्क टेलर, मार्क बुचर।

अब आप कहेंगे ये तो जिसका नाम है वो तय कर रहा है। इसमें क्या गलत है। गलत कुछ नहीं है, बस नाम रखने के इतने तरीकों को कम्प्यूटर नहीं समझता है। लोगों की पहचान करने और वैरिफाई करने में कम्प्यूटर का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में ये एक तरह की समस्या के रूप में सामने आता है।

ये परेशानी और बढ़ती है जब आप विदेश जाने के लिए वीजा लेने जाते हैं। अगर आपका नाम नरेंद्र मोदी है तो इसमें कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि आपका फर्स्ट नेम और लास्ट नेम हमेशा एक जैसा रहेगा। वीजा के लिए अप्लाई करते वक्त नाम का कॉलम सही तरीके से भरा जाएगा और आपके पास मौजूद ट्रेवल डाक्युमेंट से भी पूरी तरह मैच करेगा।

अब अगर धर्मेंद्र नाम से आप US के वीजा के लिए अप्लाई करेंगे तो परेशानी आएगी। अगर आपके पासपोर्ट में पूरा नाम फर्स्ट नेम में ही है, तो ऐसे में कम्प्यूटर धर्मेंद्र को आपके लास्ट नेम की तरह वैरिफाई करेगा। वहीं, फर्स्ट नेम की जगह FNU (First Name Unknown) लिखकर आएगा। ऐसे में जब आप ऐसे देश में जाएंगे जहां वैरिफिकेशन का पूरा प्रॉसेस कम्प्यूटर बेस्ड है तो वहां आपकी पासपोर्ट डीटेल और वीजा डीटेल अलग होने पर आपको कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

नाम को लेकर देश का कानून क्या कहता है?

2012 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक महिला के लिए अपना पहला नाम बरकरार रखना पूरी तरह से कानूनी है। महिला चाहे तो पति का सरनेम न इस्तेमाल करे।

2016 में अहमदाबाद वेस्ट से भाजपा सांसद किरीट सोलंकी एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए थे। इस बिल में किसी पर्सनल, लीगल या ऑफिशियल काम के लिए सरनेम के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। हालांकि ये बिल पास नहीं हो सका। भारतीय संविधान की बात करें तो उसमें नेम या सरनेम को लेकर किसी भी तरह का कोई जिक्र नहीं है।

दुनिया में नाम को लेकर क्या नियम हैं?

जापान की सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जून में कहा था कि मैरिड कपल का सरनेम एक जैसा होना चाहिए। कोर्ट में तीन शादीशुदा जोड़ों ने याचिका लगाई थी। ये लोग शादी के बाद भी अपना मूल सरनेम नहीं बदलना चाहते थे, लेकिन जापान का कानून उन्हें ये इजाजत नहीं देता है। इसके मुताबिक शादी के बाद पति-पत्नी दोनों का सरनेम एक जैसा होना चाहिए।

हालांकि, इसमें ये नहीं कहा गया है कि पत्नी ही पति का सरनेम इस्तेमाल करे, लेकिन जापान में शादी के बाद 96% महिलाएं अपना सरनेम बदलकर पति का सरनेम इस्तेमाल करने लगती हैं। कुछ इसी तरह का कानून दक्षिण कोरिया में भी है।

नीदरलैंड में पहला बच्चा होने पर पति-पत्नी में से किसी का भी सरनेम दिया जा सकता है, लेकिन इसके बाद जो बच्चे होंगे उनका सरनेम वही रहेगा जो पहले बच्चे का सरनेम रहेगा। मैरिड कपल अगर सरनेम तय नहीं करते तो पहले बच्चे को ऑटोमैटिकिली पिता का सरनेम मिलेगा। वहीं, अनमैरिड कपल अगर सरनेम तय नहीं करते तो बच्चे को मां का सरनेम मिलता है।

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