राजस्थान में बनेगी कुंभलगढ़ से भी लंबी दीवार:जानवरों और पेड़ों को बचाने के लिए बीकानेर में बनेगी 40 किमी लंबी दीवार; 5 करोड़ खर्च होंगे, 15 मिनट में जुटा लिए 50 लाख रुपए
राजस्थान अपनी धरोहरों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इनमें से एक धरोहर है कुंभलगढ़। इसकी दीवार करीब 36 किलोमीटर लंबी है। जिसे ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। अब राजस्थान में ही इससे लंबी दीवार बनने जा रही है। जो 40 किलोमीटर लंबी होगी। बीकानेर में इस दीवार का काम भी शुरू हो गया है। दीवार के लिए लोगों की मदद से ही रुपए जुटाए जा रहे हैं।
27 हजार बीघा जमीन, तीन लाख खेजड़ी के पेड़, चार हजार गायें, एक हजार नील गायें, पांच हजार हिरण, चार हजार खरगोश और असंख्य सांप और चूहों की सुरक्षा के लिए ये 9 इंच मोटी दीवार बनाई जा रही है। 40 किमी लंबी इस दीवार को बनाने में करीब 70 लाख ईंटें लगेंगी।
खास बात ये है कि पांच करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली इस दीवार में राज्य या केंद्र सरकार से कोई सहयोग नहीं लिया जा रहा। जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ पर्यावरण प्रेमी बृजनारायण किराडू के दम पर हो रहा है। किराडू ने अपने साथ पूरे परिवार को इस पर्यावरण यज्ञ में शामिल कर लिया है।
किराडू ने इतने बड़े क्षेत्र को बचाने के लिए न सिर्फ अपना जीवन समर्पित कर दिया, बल्कि दर्जनों बार भूमाफियों से झगड़े किए, कई अदालती मामलों में गवाही दी। करीब 40 किलोमीटर लंबी दीवार इस जमीन के चारों और बनाई जा रही है ताकि कोई अंदर अतिक्रमण ना कर सके।
भावुक हो जाते हैं किराडू
गोचर को बचाने के लिए किराडू ने अपना जीवन लगा दिया है। अब जब इसे पूरी तरह सुरक्षित करने के लिए करोड़ों रुपए आम जनता खर्च कर रही है तो वे भावुक हो जाते हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत करते समय भी वो कई बार रोने लगे। किराडू का कहना है कि आम जनता को अगर स्वच्छ ऑक्सीजन लेनी है तो ऐसे स्थानों को बचाना होगा।
कहां बन रही है ये दीवार?
दरअसल, ये दीवार जिस गोचर को सुरक्षित करने के लिए बन रही है, वो बीकानेर शहर के मुरलीधर व्यास नगर से बिल्कुल सटी हुई है। जैसलमेर की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के एक तरफ यह दीवार नजर आएगी। बीकानेर में यह कोई सेंचुरी नहीं बल्कि गोचर भूमि है। महाराजा करण सिंह ने अपने समय में यह जमीन गायों को हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए मार्क की थी।
राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है कि इस 27 हजार 205 बीघा 18 बिस्वा जमीन पर सिर्फ गायों के लिए चारे की व्यवस्था होगी। यहां कोई अन्य जानवर चराई नहीं कर सकता। गाय के अलावा भेड़, ऊंट सहित अन्य जानवर चराने पर पेनल्टी का प्रावधान है। धीरे-धीरे यहां कब्जे होने शुरू हुए तो बृजनारायण किराडू ने सुरक्षा का जिम्मा उठाया। अपना पूरा जीवन इसी जमीन की सुरक्षा में गुजार चुके किराडू पर कई बार हमले हुए, झूठे मुकदमों में फंसाया गया, लेकिन वो इस जमीन के लिए लड़ते रहे। कई बार सरकारें यहां कॉलोनी काटने की कोशिश करती रहीं, लेकिन किराडू का विरोध भारी पड़ा। उन्होंने यहां न कॉलोनी काटने दी और न अतिक्रमण होने दिया।
चारदीवारी की जरूरत क्यों?
बीकानेर की मुरलीधर व्यास नगर कॉलोनी से नाल की ओर जाने वाले रास्ते पर कई जगह लोगों ने कब्जे की कोशिश की। किसी ने पार्क बना दिया तो किसी ने गोचर भूमि में मंदिर बना दिए। ऐसे में पिछले दिनों किराडू ने इस समस्या के बारे में पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी को बताया। पिछले कई सालों से गोचर के लिए काम कर रहे भाटी ने भी चारदीवारी बनाने को ही अंतिम विकल्प माना। इसके बाद यह समझ आया कि अगर गोचर को सुरक्षित करना है तो 40 किलोमीटर लंबी चारदीवारी बनानी होगी। यह काम आसान नहीं था। ऐसे में जन सहयोग की अपील की गई। महज 15 मिनट में भाटी समर्थकों और गोचर रक्षकों ने 50 लाख रुपए जुटा लिए। अब सिलसिला चल पड़ा है तो उम्मीद है कि पांच करोड़ रुपए भी जुटा लिए जाएंगे।
क्या है इस गोचर में?
इस गोचर में रोज करीब चार हजार गायें चरने के लिए आती हैं। इसके अलावा पांच हजार हिरण भी इस क्षेत्र में घूमते हैं। एक हजार से ज्यादा नील गायें हैं। चार हजार खरगोश भी अंदर रहते हैं। सांप सहित रेंगने वाले जानवरों की संख्या हजारों में हैं। इसी परिसर में तीन लाख खेजड़ी के पेड़ हैं। कीकर सहित अन्य पेड़ों की संख्या भी लाखों में है।
इस जमीन पर वन्य जीवों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था है। जगह-जगह छोटे-छोटे तालाब, कुंडी बनाए गए हैं, जहां पशु आकर पानी पीते हैं। इनमें पानी की सप्लाई नियमित रूप से करने के लिए टैंकर का भी इस्तेमाल किया जाता है तो कभी बरसाती पानी जमा होने से काम चल जाता है। सुबह और शाम के समय इन तालाबों और कुंडियों पर कई वन्य जीव देखे जा सकते हैं।
कुंभलगढ़ की दीवार 36 किलोमीटर लंबी
राजस्थान में स्थित कुम्भलगढ़ किले की दीवार ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ के नाम से जानी जाती है। ये एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है और चाइना की ग्रेट वाल ऑफ चाइना के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर आती है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था। इसकी लंबाई 36 किमी है और चौड़ाई 15 से 25 फीट है।