गुजरात के CM के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी:जनवरी में RSS की बैठक में लिखी गई रुपाणी के इस्तीफे की स्क्रिप्ट, अगस्त के आखिर में भागवत के गुप्त दौरे में तारीख तय हुई
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने इस्तीफा दे दिया है। बिना किसी हलचल आखिर इस इस्तीफे के मायने क्या हैं? भाजपा सोर्सेस के मुताबिक विजय रुपाणी गुजरात के लिए कभी भी स्थाई CM थे ही नहीं। उनका जाना तो तय था, बस तारीख तय नहीं थी। तारीख पर मुहर संघ प्रमुख के हाल ही में हुए गुप्त दौरे में मिले फीडबैक के बाद लगा दी गई। हालांकि उन्हें 2022 की जनवरी या फरवरी में इस्तीफा देना था, लेकिन भागवत के गुप्त दौरे ने रुपाणी के CM पद की उम्र थोड़ी कम कर दी।
दरअसल रुपाणी के इस्तीफे की नींव इस साल जनवरी में हुई RSS की बैठक में रखी गई और मुहर अगस्त के आखिर में हुए भागवत के दौरे में लगी। दरअसल अगले साल होने वाले चुनाव की रणनीति लगभग बनकर तैयार है। सूत्रों की मानें तो 15-16 सितंबर के बाद RSS दो बैठकें कर सकता है। एक बैठक राज्य स्तर की होगी, जिसमें भाजपा के नेता भी शामिल रहेंगे तो दूसरी बैठक RSS के पदाधिकारियों के बीच होगी। इसमें अखिल भारतीय स्तर की टॉप RSS लीडरशिप भी शामिल होगी।
RSS सूत्रों के मुताबिक रुपाणी के अभी हटने की दो वजह हैं
पहली वजह यह है कि चुनाव के लिए भाजपा को ऐसा चेहरा चाहिए था जिस पर कोरोना के दौरान राज्य में हुई अव्यवस्था का दाग न लगा हो। एक अच्छा स्पीकर हो और जो चुनाव में गुजरात की जनता को साध सके। यह काम रुपाणी बिल्कुल भी नहीं कर सकते।
दूसरी और अहम वजह यह है कि कोरोना काल में हुई अव्यवस्था का ठीकरा फोड़ने के लिए एक सिर भाजपा और RSS को चाहिए। रुपाणी जैसे आज्ञाकारी लीडर के सिर पर इसका ठीकरा भी फूट गया और केंद्र ने नेतृत्व परिवर्तन कर जनता को जता भी दिया कि मुख्यमंत्री के कामों की समीक्षा की वजह से उन्हें हटाया गया। केंद्र ने सख्त फैसला लिया।
तीन चरणों में रुपाणी के इस्तीफे की लिखी गई पटकथा
- जनवरी में अहमदाबाद में RSS की बैठक में भाजपा नेताओं के कार्यों की समीक्षा हुई थी। इसके बाद रुपाणी को इस्तीफे का संदेश दे दिया गया था, लेकिन उन्हें जनवरी-फरवरी 2022 तक का वक्त दिया गया था। सूत्रों की मानें तो उनके सितंबर 2021 में हटने की वजह संघ प्रमुख भागवत के गुप्त बैठक के दौरान मिले फीडबैक का नतीजा है।
- संघ सूत्रों की मानें तो 28-29 अगस्त को हुई गुप्त बैठक में संघ प्रमुख भागवत ने रुपाणी से साफ कहा था, कोरोना काल में गुजरात की छवि को भारी क्षति पहुंची है। इतना ही नहीं, पिछले चुनाव में भाजपा 99 का आंकड़ा जैसे तैसे छू सकी। दोनों बातों का गुजरात की जनता पर गहरा असर पड़ा है। रुपाणी जितने दिन पद पर रहेंगे, मतदाता की नाराजगी उतनी ही गहरी होती जाएगी। लिहाजा उन्हें RSS की सितंबर के दूसरे पखवाड़े में प्रस्तावित बैठक से पहले इस्तीफा देना होगा।
- रुपाणी के इस्तीफे को प्रीपोंड करने के पीछे RSS की सितंबर के दूसरे पखवाड़े में प्रस्तावित बैठक है। दरअसल, इस बैठक में संघ नए मुख्यमंत्री के साथ चुनावी रणनीति पर फाइनल ड्राफ्ट तैयार करना चाहता है।
गुजरात में मोदी के अलावा भाजपा का कोई मुख्यमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका, चुनाव से पहले CM क्यों बदल देती है भाजपा?
2गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। रुपाणी ने शनिवार को राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मिलकर अपने इस्तीफे की पेशकश की, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इस्तीफा देने के बाद रुपाणी ने कहा कि यह ‘भाजपा की परंपरा’ है और पार्टी सभी कार्यकर्ताओं को बराबरी से मौके देने पर भरोसा करती है।
65 वर्षीय रुपाणी अगस्त 2016 में मुख्यमंत्री बनाए गए थे, जब आनंदी बेन पटेल ने 75 वर्ष के होने पर अपनी उम्र को आधार बनाकर इस्तीफा दिया था। रुपाणी के नेतृत्व में ही भाजपा ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बावजूद 2017 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। गुजरात में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सिर्फ एक साल पहले मुख्यमंत्री के पद छोड़ने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं।
क्या गुजरात में ऐसा पहली बार हो रहा है?
अगले साल नवंबर-दिसंबर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इस बदलाव को एंटी-इंकम्बेंसी कम करने की कवायद माना जा रहा है। इससे पहले 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से साल भर पहले आनंदी बेन पटेल को हटाकर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया था।आनंदी बेन मई 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पद पर आई थीं। खुद मोदी भी इसी तरह के बदलाव के बाद पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। अक्टूबर 2001 में जब नरेंद्र मोदी को पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया, उस वक्त भाजपा के केशुभाई पटेल अपना चार साल का कार्यकाल पूरा कर चुके थे।
जन्माष्टमी के दिन अहमदाबाद के एस्कॉन टैम्पल में अमित शाह और सुरेश सोनी।इस तरह के बदलाव की वजह क्या होती है?
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां मुख्यमंत्री बदलकर चार साल में पैदा हुई एंटी-इंकम्बेंसी को खत्म करने की कोशिश करती है। वहीं, दूसरी ओर पार्टी में जो विरोधी गुट होते हैं उन्हें चुनाव से पहले साधने की कोशिश की जाती है।भाजपा में इस तरह के बदलाव का एक कारण जमीन से RSS को मिला फीडबैक भी बताया जाता है। RSS को ग्राउंड से मुख्यमंत्री के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी का पता चलता है तो वो इस तरह के परिवर्तन के लिए कहती है। दो हफ्ते पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत गुजरात दौरे पर गए थे। यहां उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील समेत कई नेताओं के साथ बैठक की थी। भागवत के दौरे के बीच जन्माष्टमी के दिन सुरेश सोनी ने गुजरात में अमित शाह से मुलाकात की थी। इसके बाद से ही गुजरात में मुख्यमंत्री को बदलने की चर्चा चल रही थी।
तो क्या हर चुनाव से पहले भाजपा गुजरात में मुख्यमंत्री बदल देती है?
गुजरात में भाजपा 1995 में पहली बार सत्ता में आई थी। उस वक्त केशुभाई पटेल राज्य के मुख्यमंत्री बने। महज 221 दिन बाद ही उनकी जगह सुरेश मेहता मुख्यमंत्री बनाए गए। दरअसल, शंकर सिंह वाघेला और दीलिप पारिख का ग्रुप वाघेला को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहा था। उनके विद्रोह को दबाने के लिए केशुभाई की जगह मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया। भाजपा का ये फैसला भी ज्यादा काम नहीं आया। एक साल बीतते-बीतते वाघेला बगावत करके अलग हो गए और भाजपा सरकार गिर गई। वाघेला मुख्यमंत्री बने लेकिन वो भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।1998 में मध्यावधि चुनाव हुए और भाजपा 182 में से 117 सीट जीतकर फिर से सत्ता में आई। इस बार केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने। केशुभाई इस बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 2002 में होने वाले चुनाव से एक साल पहले भाजपा हाईकमान ने उनकी जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया। मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 2002 के चुनाव में जीत मिली। मोदी पहले भाजपाई मुख्यमंत्री रहे जिसने एक नहीं बल्कि दो-दो कार्यकाल पूरे किए। 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन मोदी के केंद्र की राजनीति में जाने के बाद भाजपा फिर उसी पैटर्न पर लौट आई है, जिसमें चुनाव से करीब एक साल पहले मुख्यमंत्री बदल दिया जाता है।
तो क्या ऐसा सिर्फ गुजरात में होता है?
ऐसा नहीं है। इससे हाल के कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है। जैसे उत्तराखंड में मार्च 2022 में चुनाव है। उससे करीब एक साल पहले भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया। तीरथ रावत को महज 114 दिन में ही बदल दिया गया। उनकी जगह पुष्कर धामी मुख्यमंत्री बना दिए गए। कर्नाटक में भी हाल ही में बीएस येद्युरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया है। कर्नाटक में भी मई 2023 में चुनाव होने हैं।क्या ये भाजपा की स्टाइल ऑफ वर्किंग है या दूसरी पार्टियों में भी इस तरह का चलन है?
गुजरात की बात करें तो 1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव के बाद से एक विधानसभा कार्यकाल में एक से ज्यादा मुख्यमंत्री बनने का चलन शुरू हो गया था। दूसरी विधानसभा के दौरान कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री बने। चौथी विधानसभा में भी कांग्रेस ने चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्री बदल दिया था। पांचवीं विधानसभा में तीन मुख्यमंत्री बने। हालांकि, हर बार अलग पार्टी का नेता CM बना। 1980 से 1985 के दौरान सोलंकी CM रहे। सोलंकी के नाम सबसे कम समय के लिए CM रहने का भी रिकॉर्ड है। 1989 में वो महज 83 दिन के CM बने थे। सोलंकी के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात ऐसे तीसरे नेता थे जिन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। मोदी ने ये करिश्मा दो बार किया।ऐसा भी नहीं है कि ये चलन सिर्फ गुजरात या भाजपा में है। देश का बाकी राज्यों और कांग्रेस में भी इस तरह के कई उदाहरण हैं जिसमें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को बदल दिया गया।
सबसे बड़ा सवाल रुपाणी ने इस्तीफा दे दिया तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
भाजपा ने गांधीनगर में कल विधायक दल की बैठक बुलाई है, इसमें नया मुख्यमंत्री चुना जा सकता है। नए CM की रेस में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल और गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल के नाम शामिल हैं। इनमें मांडविया सबसे आगे बताए जा रहे