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बढ़ने के बाद भी कई राज्यों से कम होगी दिल्ली के MLAs की सैलरी; तेलंगाना में सबसे ज्यादा, त्रिपुरा में सबसे कम सैलरी

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दिल्ली के विधायकों की सैलरी बढ़ने वाली है। ये खबर 6 साल पहले भी आई थी, लेकिन तब केंद्र ने दिल्ली सरकार के प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया था। उस वक्त दिल्ली सरकार ने विधायकों की सैलरी करीब चार गुना करने का प्रस्ताव दिया था।

इस बार के प्रपोजल में करीब 67% की बढ़ोतरी की गई है। अब इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद विधायकों की सैलरी बढ़ेगी। अभी विधायकों को सैलरी और अलाउंस मिलाकर 54 हजार रुपए महीने मिलते हैं। नया प्रपोजल पास होता है तो ये बढ़कर 90 हजार महीना हो जाएगा। बता दें कि दिल्ली में विधायकों की सैलरी 2011 के बाद नहीं बढ़ी है।

विधायकों की सैलरी बढ़ाने का 2015 का प्रस्ताव क्यों रद्द हुआ?

दिसंबर 2015 में दिल्ली की AAP सरकार ने विधायकों की सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव पास किया। इसमें विधायकों की सैलरी 54 हजार से बढ़ाकर 2.10 लाख महीना करने का प्रस्ताव था, लेकिन इस बिल को केंद्र ने रद्द कर दिया। इस मामले में भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता कहते हैं कि 2015 का प्रस्ताव नियमों का उल्लंघन करके पास किया गया था। इस वजह से उसे मंजूरी नहीं मिली।

क्या सैलरी बढ़ने के बाद बाकी राज्यों की तुलना में यहां विधायकों को सैलरी ज्यादा हो जाएगी?

नहीं, ऐसा नहीं है। सैलरी बढ़ने के बाद भी दिल्ली के विधायकों की सैलरी कई राज्यों के विधायकों की तुलना में काफी कम होगी। इसके साथ ही कई ऐसी सुविधाएं भी हैं, जो दूसरे राज्यों के विधायकों को मिलती हैं, लेकिन दिल्ली के विधायकों नहीं मिलतीं हैं। जैसे- HRA, कार्यालय किराया और कर्मचारियों के खर्च, ऑफिस इंस्ट्रूमेंट खरीदने के लिए भत्ता, इस्तेमाल करने के लिए गाड़ी, ड्राइवर अलाउंस।

तेलंगाना के विधायकों को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती है। यहां के विधायक हर महीने 2.5 लाख रुपए पाते हैं। दिल्ली सरकार की ओर से दिए गए डेटा के मुताबिक उत्तर प्रदेश में एक विधायक को हर महीने करीब 95 हजार, गुजरात में 1 लाख 5 हजार, बिहार में 1.30 लाख, राजस्थान में 1.425 लाख, हरियाणा में 55 हजार, उत्तराखंड में 1.98 लाख, हिमाचल में 1.90 लाख मिलते हैं। हालांकि कई तरह के भत्तों की वजह से इसमें अंतर हो सकता है। जैसे- उत्तर प्रदेश में ही सभी तरह के भत्तों को मिलाने के बाद एक विधायक को करीब 1.87 लाख रुपए मिलते हैं। वहीं, एक से ज्यादा बार विधायक रह चुके विधायकों की सैलरी इससे भी ज्यादा होती है।

कोरोना के दौर में सांसदों की सैलरी पर क्या असर पड़ा?

कोरोना की वजह से 6 राज्यों ने विधायकों, MLC की सैलरी 15% से 30% तक कम की थी। यहां तक कि केंद्र ने प्रधानमंत्री समेत सभी सासंदों की सैलरी 30% घटा दी थी। हालांकि, ये सभी कटौती अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक के लिए की गई थी।

विधायकों की सैलरी कम करने वाले राज्य थे, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना ने भी इसी तरह के आदेश जारी किए। गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश ने विधायकों की बेसिक सैलरी और अलाउंस 30% कम कर दिए थे। वहीं, बिहार सरकार ने इसमें 15% की कटौती की थी। हालांकि अप्रैल 2021 के बाद इन राज्यों के विधायकों को फिर से पुरानी सैलरी मिलने लगी है।

राज्यपाल, निर्वाचन आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से कम होती है विधायकों की सैलरी

देशभर में विधायकों की बेसिक सैलरी 2,000 से लेकर 78 हजार के बीच है, लेकिन ये दूसरी सीनियर पब्लिक ऑफिसर्स से काफी कम है। जैसे- राज्य निर्वाचन आयुक्त की सैलरी 2.5 लाख रुपए होती है तो राज्यपास की सैलरी 3.5 लाख रुपए महीना होती है। वहीं, पुलिस के डीजी की सैलरी भी 2.25 लाख रुपए महीना होती है।

दुनियाभर में किस तरह तय होती है जनप्रतिनिधियों की सैलरी?

दुनिया के अलग-अलग देश अपने जनप्रतिनिधियों की सैलरी तय करने के लिए अलग-अलग मैथड्स का इस्तेमाल करते हैं। भारत में सांसदों की सैलरी हर पांच साल पर बढ़ाने का प्रावधान है। सैलरी बढ़ाने का आधार कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स होता है।

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