किसानों के समर्थन में 17 को अकाली दल का मार्च:नई दिल्ली में रकाबगंज गुरुद्वारे से संसद भवन तक जाएगा मार्च, दूसरे राज्यों के कार्यकर्ता भी शामिल होंगे, सुखबीर का 100 विधानसभा सीटों का दौरा अधर में
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के 3 नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के बीच पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (SAD) दुविधा में नजर आ रहा है। ‘गल पंजाब दी’ प्रोग्राम के तहत पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल का 100 दिन में 100 विधानसभा सीटों का दौरा करने की योजना अधर में लटक गई है। 2 सितंबर को मोगा में सुखबीर के प्रोग्राम का विरोध कर रहे किसानों पर हुए पुलिस लाठीचार्ज के बाद अब अकाली दल इस कार्यक्रम को दोबारा शुरू करने पर फैसला नहीं ले पा रहा। यही कारण है कि 6 दिन के लिए टाला गया कार्यक्रम 8 दिन बीतने के बाद भी शुरू नहीं पाया। इस बीच अकाली दल ने फैसला किया है कि वह 17 सितंबर को नई दिल्ली में किसानों के पक्ष में एक बड़ा मार्च निकालेगा। दरअसल पिछले साल यानि 17 सितंबर 2020 को ही तीनों कृषि कानून संसद में पास किए गए थे।
अकाली दल के अनुसार, 17 सितंबर को उसका मार्च नई दिल्ली में गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब से शुरू होकर संसद भवन तक जाएगा। पार्टी प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा के अनुसार, इस मार्च में पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों से भी शिरोमणि अकाली दल के कार्यकर्ता शामिल होंगे। चीमा ने बताया कि किसानों पक्ष में ये मार्च निकालने का फैसला पार्टी के जिला अध्यक्षों, विधायकों और हलका इंचार्जों की बैठक में लिया गया। हालांकि चीमा ने यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इस मार्च के बाद सुखबीर बादल के 100 दिन में 100 विधानसभा सीटें कवर करने का प्रोग्राम दोबारा शुरू किया जाएगा या इसे रद्द कर दिया जाएगा।
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की अगुवाई वाली पिछली सरकार के कार्यकाल में हुई बेअदबी की घटना से पार्टी का जनाधार हिला है। केंद्र सरकार की ओर से पास किए गए 3 नए खेती बिलों के लिए भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अकाली दल को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कांग्रेस का आरोप है कि उस समय मोदी मंत्रिमंडल में शामिल अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने इन बिलों पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। पंजाब के CM कैप्टन अमरिंदर सिंह तो इन बिलों की अच्छाइयां बताते प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर और हरसिमरत बादल का वीडियो भी सार्वजनिक कर चुके हैं।
खेती कानूनों पर किसानी नेताओं का साथ चाहता है अकाली दल
दूसरी तरफ अकाली दल अपना खोया जनाधार वापस पाने के लिए भाजपा से गठबंधन तोड़ चुका है और अब वह हर हाल में किसान यूनियनों का समर्थन पाना चाहता है। इसी वजह से सुखबीर बादल संयुक्त किसान मोर्चा की चेतावनी के बाद अपना ‘गल पंजाब दी’ प्रोग्राम दोबारा शुरू नहीं कर रहे। पिछले दिनों चंडीगढ़ में संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के साथ हुई बैठक में अकाली दल के नेताओं ने कहा था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सियासी दल राजनीतिक प्रोग्राम के जरिये ही अपनी बात जनता के बीच रख सकते हैं इसलिए उन्हें अपने प्रोग्राम दोबारा शुरू करने की इजाजत दी जाए और इस मुद्दे पर कोई बीच का रास्ता निकाला जाए।
मीटिंगों का दौर जारी
‘गल पंजाब दी’ प्रोग्राम के तहत 100 दिनों में 100 विधानसभा सीटें कवर करने का कार्यक्रम स्थगित करने के बाद सुखबीर बादल की अकाली दल और अपनी सहयोगी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के नेताओं के साथ बैठकों का दौर जारी है। सुखबीर ने पहले बहुजन समाज पार्टी और अकाली दल की तालमेल कमेटी की बैठक बुलाई और शनिवार को अकाली दल के जिला अध्यक्षों और हलका इंचार्जों की बैठक ली। इन बैठकों में इसी बात पर विचार किया गया कि किसान संगठनों को नाराज न करते हुए अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए कौन सा रास्ता अपनाया जाए। सुखबीर बादल अच्छी तरह जानते हैं कि अगर वह पंजाब के मौजूदा माहौल में संयुक्त किसान मोर्चा की चेतावनी को नजरअंदाज करके अपने राजनीतिक प्रोग्राम दोबारा शुरू करते हैं तो इसका खमियाजा उन्हें वोट बैंक गंवाकर उठाना पड़ सकता है।
मोगा रैली के बाद से रद्द हैं कार्यक्रम
2 सितंबर को मोगा में सुखबीर बादल के प्रोग्राम के दौरान किसानों और पुलिस के बीच झड़प हो गई थी। तब किसानों के पथराव करने पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। उसके बाद 200 किसानों पर आपराधिक केस दर्ज कर दिया गया। इस घटना के अगले दिन, 3 सितंबर को अकाली दल ने ऐलान किया था कि वह अपने कार्यक्रम 6 दिन के लिए टाल रहे हैं। इस लिहाज से अकाली दल के प्रोग्राम 10 सितंबर से दोबारा शुरू होने थे मगर उससे पहले अकाली दल ने संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह मोर्चा के साथ बात करना चाहते हैं। अकाली दल के पत्र के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने 10 सितंबर को चंडीगढ़ में भाजपा को छोड़कर पंजाब की बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों की बैठक बुलाई और साफ कर दिया कि जब तक चुनाव आयोग इलेक्शन की आधिकारिक घोषणा नहीं करता, तब तक कोई पार्टी चुनाव प्रचार नहीं करेगी। अगर कोई पार्टी ऐसा करती है तो उसे किसान विरोधी माना जाएगा।