अफगानी राष्ट्रपति गनी आज दे सकते हैं इस्तीफा; काबुल के मुहाने तक पहुंचा तालिबान, नजदीकी शहर मैदान में भीषण लड़ाई जारी
तालिबान की गीदड़ भभकी:भारत ने अफगानिस्तान में मिलिट्री भेजी तो अच्छा नहीं होगा; भारत की दो टूक- ताकत के बल पर बनी सरकार मान्य नहीं
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी इस्तीफा दे सकते हैं। काबुल में सूत्रों का कहना है कि सरकार आज इसकी घोषणा कर सकती है। हालांकि कल देर रात तक राष्ट्रपति से जुड़े सूत्रों का कहना था कि गनी अंतिम समय तक राष्ट्रपति रहेंगे।
इस समय तालिबान और अफगान बलों के बीच मैदान शहर में गवर्नर कंपाउंड के पास भीषण लड़ाई चल रही है। मैदान शहर को काबुल का गेटवे भी कहा जाता है। शनिवार सुबह तालिबानियों ने पक्तिया प्रांत की राजधानी शरना को भी कब्जे में ले लिया। इसके बाद तालिबान काबुल से महज एक घंटे की दूरी पर रह गया था।
19 प्रांतों पर तालिबान की हुकूमत
पक्तिया तालिबानियों के कब्जे में जाने वाला 19वां प्रांत है। पिछले 7 दिन में तालिबान ने 18 प्रांतों पर कब्जा किया है। तालिबान प्रवक्ता के मुताबिक यहां भीषण लड़ाई के बाद कब्जा हुआ है। यहां पर भारी हथियार बरामद किए गए हैं।
काबुल एयरपोर्ट पर हमले की आशंका
तालिबान अब काबुल एयरपोर्ट के बेहद करीब आ गया है, ऐसे में आशंका है कि तालिबानी यहां हमला कर सकते हैं। दो दिन पहले तक कयास लगाए जा रहे थे कि तालिबान को काबुल पहुंचने में 90 दिन लगेंगे। एक दिन बाद तालिबान काबुल से 30 दिन की दूरी पर आ गया और अब काबुल पर कब्जा करने के करीब है।
काबुल लौट रहे अफगान सैनिकों को तालिबान ने निशाना बनाया
तालिबान के कब्जे में आए प्रांतों से सैन्यबल काबुल की तरफ लौट रहे हैं। तालिबान ने अपने लड़ाकों से कहा है कि काबुल की तरफ जा रहे लोगों के दस्तावेज जांचें। तालिबानी सूत्रों ने कई जगह काबुल की तरफ लौट रहे अफगान सैनिकों को निशाना बनाने का दावा किया है।
अमेरिकी सैनिकों का पहला दल काबुल पहुंचा
इस बीच, अमेरिका का पहला सैन्य दल काबुल पहुंच गया है। तालिबान से निपटने में अफगान सैनिक बुरी तरह नाकाम रहे हैं। कई प्रांतों में सैनिकों ने बिना लड़े ही तालिबान के सामने हथियार डाल दिए। तालिबान की रफ्तार को देखते हुए अमेरिकी सरकार ने अपने नागरिकों को काबुल से निकालने के लिए सैन्य दल भेजा है।
एक दिन पहले अमेरिका की बाइडेन सरकार ने आशंका जताई थी कि एक महीने के भीतर काबुल पर भी तालिबान का कब्जा हो जाएगा और अफगान सरकार गिर जाएगी। ऐसे में अफगानिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों को निकालने के लिए सरकार ने 3 हजार सैनिकों को वापस अफगानिस्तान भेजने की बात कही थी। हालांकि, सरकार ने साफ कर दिया है कि ये सिर्फ टेम्परेरी मिशन है।
बल्ख में भारत से मिला हेलिकॉप्टर मार गिराने का दावा
जो तालिबान सूत्र संपर्क में हैं उन्होंने बल्ख प्रांत के कोद-ए-बर्क इलाके में भारत से मिले हेलिकॉप्टर को मार गिराने का दावा किया है। हालांकि, कोई तस्वीर अभी उन्होंने इस बारे में नहीं दी है। इस दौरान यह भी खबरें हैं कि अफगानिस्तान का एक उच्च प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान जा रहा है।
हेरात प्रांत की सरकार ने किया सरेंडर
हेरात प्रांत की पूरी सरकार ने तालिबान के आगे सरेंडर कर दिया है। अफगानिस्तान में हेरात प्रांत के गवर्नर, पुलिस चीफ, एनडीएस ऑफिस के हेड को तालिबान ने हिरासत में ले लिया है। तालिबान के खिलाफ जंग के प्रतीक रहे मोहम्मद इस्माइल खान (75) को भी तालिबान ने पकड़ लिया है।
भारत ने अफगानिस्तान में मिलिट्री भेजी तो अच्छा नहीं होगा; भारत की दो टूक- ताकत के बल पर बनी सरकार मान्य नहीं
अफगानिस्तान के कंधार समेत 19 प्रांतों पर कब्जा कर चुका तालिबान अब काबुल एयरपोर्ट से भी महज एक घंटे की दूरी पर है। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने भारत को भभकी दी है कि अगर भारत ने अफगानिस्तान में मिलिट्री भेजी तो अच्छा नहीं होगा। अफगानिस्तान में दूसरे देशों की मिलिट्री का हाल आप देख चुके हैं, इसलिए ये मसला एक खुली किताब है। तालिबान प्रवक्ता ने शनिवार को न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में ऐसा कहा है।
इधर भारत भी दो टूक कह चुका है अफगानिस्तान में ताकत के बल पर बनी सरकार को मान्यता नहीं देंगे। भारत के अलावा जर्मनी, कतर, तुर्की और कई अन्य देशों ने अफगानिस्तान में हिंसा और हमले तुरंत रोकने की अपील की है।
तालिबान प्रवक्ता ने ANI को दिए इंटरव्यू में ये भी कहा कि भारत ने अफगानिस्तान के लोगों और यहां के प्रोजेक्ट्स में जो मदद की है, वह अच्छा है। अफगानिस्तान के पक्तिया में गुरुद्वारे से निशान साहिब का झंडा हटाने की घटना पर तालिबान प्रवक्ता का दावा है कि झंडा सिख समुदाय ने खुद ही हटाया था। जब हमारे सुरक्षा अधिकारी वहां गए तो सिख समुदाय ने कहा कि कोई झंडे को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन हमने उन्हें भरोसा दिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा तो उन्होंने झंडा फिर से लगा दिया।
तालिबान का दावा- दूसरे देशों के दूतावासों को खतरा नहीं
तालिबान प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने दावा किया है कि दूसरे देशों के दूतावासों और अधिकारियों को तालिबान से कोई खतरा नहीं है। ये बात हम कई बार कह चुके हैं और ये हमारा कमिटमेंट है। तालिबान प्रवक्ता ने भारतीय डेलिगेशन से बातचीत की रिपोर्ट्स की पुष्टि नहीं की है। उसने कहा है कि बीते दिन दोहा में हुई एक मीटिंग में भारतीय डेलिगेशन जरूर शामिल था, लेकिन अलग से हमारी कोई मीटिंग नहीं हुई है।
तालिबान प्रवक्ता से जब पूछा गया कि क्या ये भरोसा दे सकते हैं कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होगा। इसके जवाब में उसने कहा कि हम इस बात के लिए वचनबद्ध (कमिटेड) हैं कि अफगानी जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं होने देंगे। तालिबान प्रवक्ता ने पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से गहरे रिश्तों की बात को गलत बताया है। उसका कहना है कि ये आरोप सिर्फ कुछ तय नीतियों और राजनीति लक्ष्यों की वजह से लगाए जाते हैं।
काबुल से महज एक घंटे की दूरी पर है तालिबान
तालिबान ने दावा किया है कि उसने शनिवार सुबह पक्तिया प्रांत की राजधानी शरना को भी कब्जे में ले लिया है। यहां पर भारी हथियार बरामद किए गए हैं। तालिबान काबुल एयरपोर्ट के अब महज एक घंटे की दूरी पर है। दो दिन पहले तक कयास लगाए जा रहे थे कि तालिबान को काबुल पहुंचने में 90 दिन लगेंगे, लेकिन वह काफी तेजी से आगे बढ़ते हुए अब काबुल पर कब्जा करने के करीब है।
20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में 2200 करोड़ का निवेश किया
सामरिक लिहाज से अफगानिस्तान भारत के लिए महत्वपूर्ण रहा है। पिछले दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान में 2200 करोड़ से ज्यादा का निवेश किया है। तालिबान अफगान सत्ता पर काबिज होता है तो भारत पर क्या असर पड़ेगा? इस बारे में कुछ दिन पहले तालिबान के प्रवक्ता से खास बातचीत की थी….
तालिबान के लिए कंधार की अहमियत:पाकिस्तान से भी लगता है बॉर्डर; इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लेकर भौगोलिक स्थतियां तक तालिबान के माफिक
तालिबान ने पिछले दो दिनों में अफगानिस्तान के कई इलाकों में बड़ी तेजी से कब्जा किया है। तालिबान ने गुरुवार रात कंधार में भी अपनी हुकूमत जमा ली। इसे तालिबान की बड़ी जीत माना जा रहा है, क्योंकि कंधार का कब्जा करने के बाद तालिबान के लिए असरदार तरीके से सत्ता हासिल करना आसान हो गया है। कंधार अफगानिस्तान का दूसरा बड़ा शहर तो है ही, साथ ही सामरिक और आर्थिक रूप से भी इसकी अहमियत सबसे ज्यादा है।
तालिबान के लिए कंधार की अहमियत को 2 पॉइंट्स में समझिए-
1. सामरिक महत्व
- कंधार में इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यह अफगानिस्तान का इकोनॉमिक हब भी है।
- कंधार की सीमा ईरान और पाकिस्तान से लगती है। कहा जा रहा है कि तालिबान को पाकिस्तान से मदद मिल रही है।
- अफगानिस्तान के अन्य हिस्सों के मुकाबले कंधार में ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं बेहतर हैं।
2. रणनीतिक महत्व
- कंधार के पश्तून समुदाय के लोगों का तालिबान में असर है।
- यहां के दूसरे कबायली समुदाय के लोगों को भी तालिबान में भर्ती किया जाता है।
- तालिबान की शुरुआत भी यहीं से हुई, फाउंडर मौलाना मुल्ला उमर कंधार का ही था।
- तालिबान का पसंदीदा युद्धक्षेत्र है। यहां की भौगोलिक स्थिति उसकी स्ट्रैटजी के माफिक हैं।
- यहां चट्टानी इलाके, रेगिस्तानी रास्ते और खेत भी हैं। ये चरमपंथियों की शरणस्थली माने जाते हैं।
1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत रही। इस दौरान दुनिया के सिर्फ 3 देशों ने इसकी सरकार को मान्यता देने का जोखिम उठाया था। ये तीनों ही देश सुन्नी बहुल इस्लामिक गणराज्य थे। ये देश थे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और पाकिस्तान।
कंधार विमान अपहरण में थी तालिबान की भूमिका
1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 को हाईजैक किया गया था, तब इसका आखिरी ठिकाना अफगानिस्तान का कंधार एयरपोर्ट ही बना था। उस वक्त पाकिस्तान के इशारे पर तालिबान ने भारत सरकार को एक तरह से ब्लैकमेल किया। भारत की जेल में बंद तीन आतंकियों को रिहा करने के बाद हमारे यात्री देश लौट सके थे।
क्या तालिबान भारत और दुनिया के लिए कोई खतरा है?
कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि तालिबान अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक संस्थानों, नागरिकों के अधिकारों और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इस संगठन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली सिक्योरिटी अलाएंस नाटो का सामना किया है। ऐसे में उसका मोराल काफी हाई है।
तालिबान को मॉनिटर करने वाली UN की टीम ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान के आतंकी संगठन अल-कायदा से मजबूत संबंध हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अल-कायदा पर तालिबान की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है। यहां तक कि अल-कायदा को संसाधन मुहैया कराने से लेकर ट्रेनिंग तक का इंतजाम तालिबान कर रहा है। करीब 200 से 500 अल-कायदा आतंकी अभी भी अफगानिस्तान में हैं। इसके कई नेता पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर के आसपास छिपे हुए हैं। यहां तक कि अमेरिकी अथॉरिटीज मानती हैं कि अल-कायदा चीफ अल-जवाहरी भी यहीं कहीं छिपा है। हालांकि 2020 में उसके मारे जाने की भी अफवाह थी।