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जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल-371 की बात: देश के 14 राज्य ऐसे जिन्हें मिलती हैं विशेष सुविधाएं; जानें इन राज्यों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में

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जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के 22 महीने बाद राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। 24 जून को कश्मीर के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इसी बीच एक और चर्चा जोर पकड़ रही है कि राज्य में आर्टिकल 371 लागू किया जा सकता है।

आर्टिकल-371 है क्या? इसे कब लागू किया गया था? इसमें किन राज्यों के लिए क्या प्रावधान हैं? आर्टिकल 370 से ये कितना अलग है? बिहार जैसे राज्य खुद को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात करते हैं ये क्या होता है? किन राज्यों को ये दर्जा मिला है? आर्टिकल-371 से ये कितना अलग है? आइए जानते हैं…

आर्टिकल-371 है क्या?

सबसे पहले बात आर्टिकल-371 की। देश का संविधान लागू हुआ तो उस समय आर्टिकल 370 और 371 दोनों इसका हिस्सा थे। 370 जहां जम्मू-कश्मीर के लिए था। वहीं, आर्टिकल 371 बॉम्बे राज्य के कुछ इलाकों के लिए था। बॉम्बे राज्य जब महाराष्ट्र और गुजरात के रूप में दो राज्यों में बंटा तो 371 (2) को इन दोनों राज्यों में लागू किया गया।

इस आर्टिकल में राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व दिया गया। इसके तहत वो महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा के लिए अलग से डेवलपमेंट बोर्ड बना सकते हैं। इसी तरह गुजरात के राज्यपाल सौराष्ट्र और कच्छ के लिए अलग से डेवलपमेंट बोर्ड बना सकते हैं।

इन इलाकों में डेवलपमेंट के कामों पर खर्च के लिए पैसे का बराबर आवंटन करना, टेक्निकल एजुकेशन, वोकेशनल ट्रेनिंग और रोजगार के लिए राज्यपाल स्पेशल अरेंजमेट कर सकते हैं। आर्टिकल 371 में ही 371A, 371B, 371C, 371D, 371E, 371F, 371G, 371H और 371J शामिल हैं। ये सभी अलग-अलग राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देते हैं। आइए इन सभी के बारे में जानते हैं…

नगालैंड को तीन विशेष अधिकार देता है आर्टिकल-371A
संविधान लागू होने के 12 साल बाद 1962 में नगालैंड में आर्टिकल-371A लाया गया। इसमें प्रावधान है कि नगा लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में भारत की संसद कोई कानून नहीं बनाएगी। दूसरा नगा लोगों के प्रथागत कानूनों और परंपराओं को लेकर संसद का कानून लागू नहीं होगा। और तीसरा संसद बिना विधानसभा की सहमति के यहां की जमीन और संसाधन किसी गैर नगा को स्थानान्तरित नहीं कर सकती। यानी, सिर्फ नगालैंड का नागरिक ही वहां जमीन खरीद सकता है।

1969 में असम में जनजातियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए आया आर्टिकल-371B
संविधान के 22वें संशोधन के जरिए आर्टिकल-371B लाया गया। ये आर्टिकल कहता है कि भारत के राष्ट्रपति असम विधानसभा की समितियों के गठन और कामकाज के लिए राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों को शामिल कर सकते हैं।

1971 में मणिपुर के लिए लाया गया आर्टिकल-371C
संविधान के 27वें संशोधन के जरिए आर्टिकल-371C लागू हुआ। ये आर्टिकल कहता है कि राष्ट्रपति चाहें तो राज्यपाल के जरिए कमेटी बनवा सकते हैं। इस कमेटी में राज्य के पहाड़ी इलाकों से चुने गए सदस्य शामिल होंगे। ये कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की निगरानी करेगी।

1973 में आंध्र प्रदेश के लिए आया आर्टिकल-371D
2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बना। अब ये आर्टिकल दोनों राज्यों में लागू है। ये सरकारी नौकरियों और शिक्षा में राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को समान अवसर देने के लिए लाया गया।

इस आर्टिकल के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि वो राज्य सरकार को आदेश दे सकता है कि किस जॉब में किस वर्ग के लोगों को नौकरी दी जा सकती है। इसी तरह एजुकेशन सेक्टर में भी राज्य के लोगों को बराबर की हिस्सेदारी मिलती है।

आर्टिकल 371E कहता है कि केंद्र सरकार संसद में कानून लाकर आंध्र प्रदेश में सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाएगी। हालांकि, अब इस आर्टिकल का कोई औचित्य नहीं रह गया है।

1975 में सिक्किम के लिए लागू हुआ आर्टिकल 371F
संविधान के 36वें संशोधन के जरिए आर्टिकल-371F लागू हुआ। इसमें कहा गया है कि राज्य के राज्यपाल सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करेंगे। राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए संसाधनों और अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करेंगे। पहले के सभी कानून जिनसे सिक्किम का गठन हुआ, जारी रहेंगे और किसी भी अदालत में किसी भी संशोधन के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।

1986 में मिजोरम में लिए लागू हुआ आर्टिकल-371G
संविधान से 53वें संशोधन के जरिए आर्टिकल-371G लागू हुआ। इसमें प्रावधान है कि मिजो लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक, प्रथागत कानूनों और परंपराओं को लेकर संसद कोई कानून नहीं बनाएगी। यहां की जमीन और संसाधन किसी गैर मिजो को स्थानान्तरित नहीं किया जा सकेगा। यानी, मिजोरम में जमीन का मालिकाना हक सिर्फ वहां बसने वाले आदिवासियों का है। हालांकि प्राइवेट सेक्टर की इंडस्ट्री खोलने के लिए राज्य सरकार ‘मिजोरम एक्ट 2016’ के तहत भूमि अधिग्रहण कर सकती है। हालांकि, विधानसभा की सहमति के बाद संसद इन सभी पर कानून बना सकती है।

1986 में अरुणाचल प्रदेश के लिए लागू हुआ आर्टिकल-371H
संविधान के 55वें संशोधन के जरिए आर्टिकल-371H लागू हुआ। इसमें राज्यपाल को राज्य की कानून और व्यवस्था के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। राज्य के मंत्रिमंडल से चर्चा करने के बाद राज्यपाल चाहे तो मुख्यमंत्री के फैसले को भी रद्द कर सकता है। उनका फैसला ही अंतिम माना जाएगा। इस तरह का अधिकार किसी राज्य के राज्यपाल के पास नहीं है, जो मुख्यमंत्री के फैसले को रद्द कर सके।

आर्टिकल-371I गोवा में विधानसभा के गठन से संबंधित है, लेकिन अब ये प्रासंगिक नहीं रह गया।

2012 में कर्नाटक के लिए लागू हुआ आर्टिकल 371J
संविधान के 98वें संशोधन के जरिए कर्नाटक के लिए आर्टिकल 371J लागू हुआ। इसमें हैदराबाद-कर्नाटक रीजन (जिसे अब कल्याण-कर्नाटक कहते हैं) के लिए अलग से डेवलपमेंट बोर्ड बनाने का प्रावधान है। इस क्षेत्र के छह जिलों के विकास के लिए फंड का समान आवंटन होता है। सरकारी नौकरियों और शिक्षा में भी इस क्षेत्र के लोगों को समान अवसर और सुविधाएं देने का प्रावधान है।

नॉर्थ ईस्ट में जाने के लिए ‘इनर लाइन परमिट’ की बात होती है वो क्या है?
नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में जाने के लिए ‘इनर लाइन परमिट’ लेना पड़ता है। इस परमिट के बिना आप इन राज्यों में नहीं जा सकते हैं। भारत सरकार की तरफ से जारी ये परमिट आपको एक निश्चित समय के लिए यात्रा की अनुमति देता है। इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था। भारत की आजादी के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया है।

बिहार के नेता अक्सर विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की बात करते हैं, आखिर ये है क्या?
संविधान में किसी भी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का कोई जिक्र नहीं है। विशेष राज्य का दर्जा देने की शुरुआत 1969 में हुई। तब 5वें वित्त आयोग ने पिछड़े राज्यों को विशेष तरजीह देने की बात कही। ये तरजीह केंद्र सरकार की ओर आर्थिक सहायता और कर में छूट के रूप में हो सकती है। शुरुआत में तीन राज्यों असम, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। बाद में आठ और राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड) को भी इसमें शामिल किया गया।

कैसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा?
विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के पीछे तर्क यह है कि कुछ राज्यों में संसाधनों की कमी है। ये राज्य विकास के लिए संसाधन नहीं जुटा सकते हैं। अब सवाल उठता है कि ये कैसे तय होगा? कौन सी चीजें देखकर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा? 2013 में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने इसके पांच आधार बताए हैं।

कौन देता है विशेष राज्य का दर्जा?
नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल तय करती थी कि किस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना है। इस कमेटी में प्रधानमंत्री, केंद्रीय कैबिनेट, राज्यों के मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य शामिल होते थे, लेकिन योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली। उसके बाद 14वें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्मूला-बेस्ड ग्रांट बंद करने का सुझाव दिया। ये विशेष राज्यों को दी जाने वाली ग्रांट थी। 2015 में 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद एक तरह से विशेष राज्य के दर्जे की अवधारणा लगभग खत्म हो गई।

यानी, अब किसी और राज्य को इस तरह का स्टेटस मिलेगा इसकी संभावना ना के बराबर है। अगर भारत के संविधान की बात करें तो उसमें भी किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का जिक्र नहीं है। हालांकि, आर्टिकल 371, 371A से 371J के रूप में राज्यों के लिए कई प्रावधान का जिक्र है।

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