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जन्माष्टमी उत्सव:दर्शन करें श्रीकृष्ण की सबसे कीमती मूर्ति के, झारखंड में बंशीधर की 1280 किलो सोने की प्रतिमा, इतने सोने की कीमत 716 करोड़ रुपए से ज्यादा

मुगल काल से जुड़ा है मूर्ति का इतिहास, 1828 में यहां की रानी को खुदाई में मिली थी मूर्ति 10 फीट ऊंची है मूर्ति, 5 फीट जमीन के अंदर और 5 फीट जमीन से बाहर है श्रीकृष्ण के साथ अष्टधातु की राधा की मूर्ति भी है स्थापित

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आज जन्माष्टमी है। झारखंड के पश्चिम में यूपी की सीमा के पास गढ़वा जिले के नगर ऊंटारी में बंशीधर मंदिर हैं। इस मंदिर में विराजित भगवान कृष्ण की प्रतिमा दुनिया की सबसे कीमती कृष्ण प्रतिमा मानी जाती है। ये मूर्ति 1280 किलो सोने से बनी है। 1280 किलो सोने की कीमत आज के समय में 716 करोड़ से भी ज्यादा आंकी जाती है। हालांकि, इस प्रतिमा की एंटिक वैल्यू 2000 करोड़ से भी ज्यादा की है, जो 2014 में आंकी गई थी।

सामान्य तौर पर यह 4-5 फीट की प्रतिमा ही नजर आती है। लेकिन, इसका एक बड़ा भाग अभी भी धरती के अंदर ही है। प्रतिमा शेषनाग पर विराजित कृष्ण की है, शेषनाग वाला हिस्सा जमीन के अंदर है। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि अभी तक इस प्रतिमा को लेकर सही समय की गणना नहीं हो सकी है।

इसकी कीमत को लेकर भी मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि भगवान की कीमत नहीं लगाई जा सकती। सन् 2018 में सरकार ने श्री बंशीधर जी की मंदिर की लोकप्रियता को देखते हुए शहर का नाम नगर ऊंटारी से बदलकर श्री बंशीधर नगर कर दिया है।

जमीन के ऊपर भगवान बंशीधर की मूर्ति का सिर्फ 5 फीट का हिस्सा दिखाई देता है। 5 फीट जमीन के अंदर दबा हुआ है।

कृष्ण के साथ राधा की 120 किलो अष्टधातु की प्रतिमा

1280 किलो सोने की कृष्ण प्रतिमा के साथ राधा की भी एक प्रतिमा है। ये मूर्ति अष्ट धातु की है और इसका वजन करीब 120 किलो है। इस प्रतिमा की भी आज के दौर में एंटिक वैल्यू करोड़ों में आंकी जाती है।

जन्माष्टमी के अवसर मंदिर को सजाया गया है, लेकिन कोरोना की वजह से यहां भक्तों का प्रवेश वर्जित है।

कोरोना के चलते मार्च से ही बंद है मंदिर

झारखंड में कोरोना के कहर को देखते हुए सारे मंदिर 15 मार्च के बाद से ही बंद हैं। बंशीधर मंदिर भी तभी से बंद है। हालांकि, इसमें पूजा-पाठ निरंतर जारी है। हर साल जन्माष्टमी पर ये उत्सव बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है और हजारों श्रीकृष्ण भक्त यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस साल कोरोना वायरस की वजह से बहुत ही कम भक्त यहां पहुंचे हैं। एक अनुमान के मुताबिक एक साल में यहां लगभग 10 लाख लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।

औरंगजेब की बेटी ने मुगलों के खजाने से बचाई थी ये मूर्ति

श्री बंशीधर मंदिर ट्रस्ट के सलाहकार धीरेंद्र कुमार चौबे के मुताबिक मुगल सम्राट औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा श्रीकृष्ण की भक्त थीं। उस समय मुगलों का खजाना कलकत्ता से दिल्ली ले जाया जाता था। नगर ऊंटारी क्षेत्र में शिवाजी के सरदार रुद्र शाह और बहियार शाह रहा करते थे।

यहां से मुगलों का जो भी खजाना जाता था, उसे शिवाजी के सरदार लूट लिया करते थे। मुगलों ने बंशीधर भगवान की मूर्ति किसी मंदिर से लूटी थी। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की जैबुन्निसा ने ये मूर्ति नगर ऊंटारी में रहने वाले शिवाजी के सरदारों तक पहुंचाई थी।

शिवाजी के सरदारों मुगलों से बचाने के लिए मूर्ति नगर ऊंटारी से 22 किमी दूर पश्चिम में एक पहाड़ी में छिपा दी थी। ये मूर्ति हजारों साल पुरानी है, क्योंकि मूर्ति के शेषनाग पर कुछ लिखा हुआ है, जिसे अब तक कोई समझ नहीं सका है, ये क्या लिखा है और किस भाषा में लिखा है। मूर्ति दक्षिण स्थापत्य शैली की है।

राजमाता को सपने दिए थे दर्शन

यहां के राजघराने के युवराज और मंदिर समिति के प्रधान ट्रस्टी राजेश प्रताप देव के अनुसार राजा भवानी सिंह देव की मृत्यु के बाद उनकी रानी शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थीं। उन्होंने 14 अगस्त 1827 की जन्माष्टमी पर व्रत किया था। उस समय राजमाता को सपने में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ।

राजघराने के युवराज और मंदिर समिति के प्रधान ट्रस्टी राजेश प्रताप देव के परिवार की राजमाता को ही भगवान ने सपने में दर्शन दिए थे।

श्रीकृष्ण ने रानी से वर मांगने को कहा तो रानी ने भगवान से सदैव कृपा बनाए रखने का वर मांगा। तब भगवान ने रानी से कनहर नदी के किनारे यूपी के महुरिया के निकट शिव पहाड़ी पर अपनी प्रतिमा के गड़े होने की जानकारी दी। इसके बाद वहां खुदाई की तो यहां 10 फीट ऊंची सोने की श्रीकृष्ण की प्रतिमा प्राप्त हुई थी।

इसके बाद वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर श्रीकृष्ण के साथ 21 जनवरी 1828 को स्थापित की गई। खुदाई में मिली बंशी-वादन करती हुई प्रतिमा का वजन 32 मन यानी 1280 किलो है।

इस साल कोरोना की वजह से बहुत कम भक्त मंदिर पहुंचे हैं।

साढ़े तीन एकड़ में बना है मंदिर

धीरेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि मंदिर में स्थापित प्रतिमा स्वयंभू है। इस तीर्थ को मथुरा और वृंदावन के समान ही माना जाता है। इस प्रतिमा में श्रीकृष्ण शेषनाग के ऊपर कमल के फूल पर बंशी-वादन नृत्य करते हुए विराजित हैं। शेषनाग वाला हिस्सा जमीन में गढ़ा हुआ है। पूरा मंदिर करीब साढ़े तीन एकड़ में बना हुआ है। मंदिर की ऊंचाई करीब 50 फीट है।

धीरेंद्र चौबे श्री बंशीधर मंदिर समिति के सलाहकार हैं।

सुरक्षा के लिए सरकारी गार्ड्स

झारखंड सरकार की ओर मंदिर में सुरक्षा के लिए गार्ड्स तैनात किए गए हैं। यूपी एटीएस को ऐसी सूचना मिली थी बंशीधर मंदिर हमला हो सकता है। आतंकी मंदिर को नुकसान पहुंचा सकते है। इसके बाद सरकार ने यहां सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की है। मंदिर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। 24 घंटे यहां गार्ड्स तैनात रहते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के लिए यहां अतिरिक्त मजिस्ट्रेट और पुलिस बल की तैनात किया गया है।

त्रिदेवों का स्वरूप है ये मूर्ति

भगवान श्रीकृष्ण की इस मूर्ति में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्वरूप है। श्री बंशीधरजी, शिवजी की तरह जटाधारी हैं, विष्णुजी की तरह शेषनाग की शैय्या पर कमल के पुष्प पर विराजित हैं। कमल के पुष्प पर ब्रह्माजी विराजते हैं। इस तरह इस मूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों के दर्शन किए जा सकते हैं।

वंश परंपरा के अनुसार नियुक्त होते हैं पुजारी

इस मंदिर के प्रधान पुजारी पं. ब्रज किशोर तिवारी हैं। मंदिर में पुजारी वंश परंपरा से ही तय होते हैं। इन्हीं के पूर्वज यहां पूजा किया करते थे। ये इनकी छठी-सातवीं पीढ़ी है। मंदिर में मंत्रोच्चार करने वाले प्रधान आचार्य पं. सत्यनारायण मिश्रा है।

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  • गर्ग संहिता और श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार रोहिणी नक्षत्र में हुआ था भगवान कृष्ण का जन्म

कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मथुरा और द्वारिका सहित देश के कई बड़े कृष्ण मंदिरों में 12 अगस्त को मनाया जा रहा है। गर्ग संहिता और श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार द्वापर युग में भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर आधी रात में रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दौरान चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में था। ग्रह नक्षत्र की ऐसी ही स्थिति आज बनने पर रात में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा।

  • जन्माष्टमी व्रत के लिए सुबह जल्दी उठकर श्रीकृष्ण की सामान्य पूजा करनी चाहिए। इसके बाद हाथ में पानी, फूल और चावल रखकर पूरे दिन व्रत रखने और रात में पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद श्रीकृष्ण मंदिर जाकर भगवान को फूल, तुलसी पत्र और मोर पंख चढ़ाएं। इसके बाद प्रसाद चढ़ाएं। फिर गौमाता की सेवा करें। किसी गौशाला में धन या हरी घास का दान करें। जन्माष्टमी के व्रत में एक बार ही भोजन करना चाहिए।
  • जन्माष्टमी पर्व पर शाम को श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप यानी लड्डू गोपाल की पूजा करने का महत्व है। साथ ही भगवान विष्णु के अवतारों की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन बाल गोपाल की विशेष पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। श्रीकृष्ण की पूजा के लिए दिन में भी शुभ मुहूर्त हैं। जिनमें अभिषेक, श्रृंगार और भजन किए जा सकते हैं। इसके साथ ही मध्यरात्रि यानी निशिता मुहूर्त में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है।

पूजा के लिए जरूरी चीजें

पूजा विधि
1. घर के मंदिर में पूजा की व्यवस्था करें। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। गणेशजी पर शुद्ध जल चढ़ाएं। वस्त्र चढ़ाएं। चंदन लगाकर चावल चढ़ाएं। फूल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं।
2. गणेशजी के बाद श्रीकृष्ण की पूजा करें। श्रीकृष्ण को स्नान करवाएं।
3. क्लीं कृष्णाय नम: मंत्र बोलते हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति को शुद्ध जल से फिर पंचामृत और उसके बाद फिर शुद्ध जल से स्नान करवाएं। इसके बाद वस्त्र अर्पित करें।
4. वस्त्र के बाद आभूषण पहनाएं। इसके बाद चंदन, चावल, अबीर, गुलाल, अष्टगंध, फूल, इत्र, जनेउ और तुलसी चढ़ाएं।
5. हार-फूल, फल, मिठाई, जनेऊ, नारियल, सूखे मेवे, पान, दक्षिणा और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं।
6. तुलसी के पत्ते डालकर माखन-मिश्री का भोग लगाएं। इसके बाद पान चढ़ाएं फिर दक्षिणा चढ़ाएं।
7. ऊँ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: मंत्र का जाप करें।
8. कर्पूर जलाएं। आरती करें। आरती के बाद परिक्रमा करें।
9. पूजा में हुई अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें।
10. इसके बाद अन्य भक्तों को प्रसाद बांट दें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।

कृष्ण से सीखें जीने की कला:जीवन के हर पहलू पर कृष्ण का नजरिया सबसे आधुनिक, खुद के लिए एकांत, परिवार के लिए सम्मान और बिजनेस में दूरदर्शिता जरूरी

  • चार किस्सों से जानिए कृष्ण का जीवन जीने का अंदाज कैसा था, जो उन्हें सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु बनाता है

जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के लाइफ मैनेजमेंट की बात ना हो, ऐसा संभव नहीं है। वृंदावन में बाललीलाओं से लेकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि तक भगवान कृष्ण अपने हर काम से किसी ना किसी तरह की सीख देते ही हैं। अगर जीवन को चार हिस्सों में बांटा जाए तो पर्सनल लाइफ, परिवार या रिश्ते, बिजनेस और समाज, में इंसान बंटा होता है। हर जगह वो किसी ना किसी तरह से परेशानी का सामना करता ही है।

भगवान कृष्ण के जीवन में ऐसे कई प्रसंग हैं जो हमें सिखाते हैं कि इन चारों भागों में सुख-शांति और सफलता कैसे लाई जाए।

  • पर्सनल लाइफ – दुनियादारी के बीच खुद की मानसिक शांति के लिए कोशिश जरूरी

निजी जीवन यानि खुद के लिए निकाला गया समय। जब व्यक्ति दुनिया से अलग खुद के साथ होता है। मानसिक शांति के लिए ये आवश्यक है। मानसिक शांति के लिए एकांत और एकांत को सफल बनाने के लिए कोई साधन आवश्यक है। कृष्ण के पास तीन साधन थे। संगीत, प्रकृति और ध्यान। ब्रज मंडल में यमुना किनारे एकांत में बांसुरी की धुन उन्हें मानसिक शांति देती थी। दूसरा, प्रकृति के निकट रहने के लिए कृष्ण अक्सर यात्राएं करते थे। एक राज्य से दूसरे राज्य। जब वे धरती से असुरों का साम्राज्य समाप्त करने निकले थे, तो एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच की यात्रा में वे प्रकृति के निकट रहते थे। तीसरा है ध्यान। कम ही लोग जानते हैं कि कृष्ण नियमित ध्यान भी करते थे। निजी जीवन को लेकर कृष्ण सचेत थे। वे अपने लिए एकांत खोज लेते थे।

  • परिवार – घर के हर सदस्य को उसका हिस्से की जिम्मेदारी और सम्मान मिले

परिवार कैसा हो और उसके संस्कार कैसे हों, ये भगवान कृष्ण के जीवन से सीखना चाहिए। परिवार की कमान एक हाथ में होनी चाहिए। द्वारिका में जब भगवान कृष्ण होते थे तो सारे राज्य का संचालन उनके हाथ में होता था, लेकिन परिवार का संचालन रूक्मिणी के हाथ में होता था। परिवार में सदस्यों का सम्मान कैसा होना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण भागवत में है। जब भगवान कृष्ण रूक्मिणी का हरण करके लाए, तो रास्ते में रूक्मिणी के भाई रूक्मी से उनका युद्ध हुआ। भगवान कृष्ण ने रूक्मी का आधा गंजाकरके छोड़ दिया।

अपने भाई का अपमान देख रूक्मिणी असहज हो गईं। द्वारिका पहुंचते ही, बलराम ने रूक्मिणी से कहा कि कृष्ण ने तुम्हारे भाई के साथ जो किया उसके लिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं। तुम अब इस घर की सदस्य हो, तुम्हें यहां वैसा ही सम्मान मिलेगा, जैसा तुम्हें अपने परिवार में मिलना चाहिए। बलराम की इस बात से रूक्मिणी एकदम सहज हो गईं। परिवार में हर सदस्य का सम्मान वैसा ही हो, जिसका वो अधिकारी है। ये कृष्ण के जीवन से सीखा जा सकता है।

  • बिजनेस – हर जानकारी का कहां उपयोग करना है, इसकी समझ जरूरी

बिजनेस में आपको हमेशा दूरदर्शी होना पड़ेगा। किसी भी छोटी बात को अनदेखा नहीं करना चाहिए। कोई मामूली सी जानकारी भी किस दिन आपके लिए गेमचैंजर की भूमिका में आ जाए ये कोई नहीं जानता। इसका उदाहरण भी कृष्ण के जीवन में है। उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा भगवान कृष्ण की आठ रानियों में से एक थीं। मित्रवृंदा के भाई विंद और अनुविंद की सेना में एक मतवाला हाथी देखा, जिसका नाम था अश्वत्थामा। कृष्ण ने उसे याद रख लिया।

सालों बाद, जब कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध लड़ा जा रहा था और द्रोणाचार्य कौरव सेना का नेतृत्व कर रहे थे। तब द्रोणाचार्य के वध के लिए उन्होंने अश्वत्थामा नाम के हाथी का उपयोग किया। विंद-अनुविंद दुर्योधन की ओर से लड़ रहे थे। तब उन्होंने युद्ध द्रोणाचार्य का ध्यान भटकाने के लिए भीम से अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार कर घोषणा करने को कहा कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। ये कूट नीति काम कर गई और द्रोणाचार्य ये समझे कि भीम ने उनके बेटे अश्वत्थामा को मार दिया। और, युद्ध से उनका ध्यान हट गया। वे ध्यान लगाकर बैठे और धृष्ट्रद्युम ने उन्हें मार दिया।

  • सोशल लाइफ – सामाजिक बदलाव की शुरुआत खुद से करें

सामाजिक मामलों में कृष्ण का नजरिया बहुत आधुनिक रहा है। हर व्यक्ति को उनके इस नजरिए से सीख लेनी चाहिए। नरकासुर नाम के राक्षस ने 16100 महिलाओं को बंदी बना रखा था। वो उनसे बारी-बारी बलात्कार करता था। कृष्ण को जब ये पता चला तो उन्होंने नरकासुर को मार कर उन महिलाओं को छुड़वाया। वे अपने घर लौट गईं। कुछ समय बाद वे सब फिर लौटीं, क्योंकि बलात्कार पीड़ित होने के कारण उनके घर वाले उन्हें अपनाने को राजी नहीं थे। वे सब मर जाना चाहती थीं। भगवान कृष्ण ने उस समय एक क्रांतिकारी निर्णय लिया। उन्होंने सभी महिलाओं से कहा कि आज से वे कृष्ण की पत्नी कहलाएंगी। उन्हें पूरा सम्मान और सुविधाएं मिलेंगी। कृष्ण कहते हैं कि समाज में क्रांति लानी है, तो शुरुआत खुद ही करनी होगी। आप दूसरों के भरोसे समाज को नहीं बदल सकते।

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