Newsportal

राजस्थान की सियासी उठापटक:सत्र बुलाने के लिए गहलोत के तीसरे प्रस्ताव पर राज्यपाल के जवाब का इंतजार; बसपा ने अपने 6 विधायकों के कांग्रेस में जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में अर्जी लगाई

बसपा विधायकों के मामले को भाजपा ने भी कोर्ट में चुनौती दी है गोविंद सिंह डोटासरा आज राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालेंगे

0 150

राजस्थान में सियासी घमासान के बीच विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच खींचतान जारी है। पहले दो प्रस्ताव खारिज होने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को तीसरी अर्जी राजभवन भेजी। अब राज्यपाल के जवाब का इंतजार है। दूसरी तरफ बसपा ने अपने 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के खिलाफ हाईकोर्ट में पिटीशन फाइल कर दी है। पार्टी के महासचिव सतीश मिश्रा की ओर कोर्ट में अर्जी लगाई गई।

विधानसभा सत्र के मामले में आगे क्या हो सकता है?
राज्यपाल तीसरी अर्जी मंजूर करेंगे या नहीं?
तीसरी बार फाइल लौटाने की संभावना कम है। राज्यपाल पिछले 6 दिन से चल रहे टकराव को खत्म करने के मूड में हैं। ऐसे में 31 जुलाई या किसी और तारीख से सत्र बुलाने की मंजूरी दे सकते हैं।

अगर इस बार भी अर्जी खारिज हुई तो?
गहलोत के कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का कहना है कि राज्यपाल संविधान के खिलाफ जाकर सत्र बुलाने की फाइल लौटा देते हैं तो सरकार फिर से इसे कैबिनेट में ले जाएगी। फिर मुख्यमंत्री जो फैसला लेंगे वो फाइनल होगा।

बसपा विधायकों के मामले में भाजपा की 2 पिटीशन

  • अदालत में कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और बसपा के दांवपेंच चल रहे हैं। यह मामला 9 महीने पहले बसपा के सभी 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने से जुड़ा है। भाजपा विधायक मदन दिलावर ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
  • सोमवार को दिलावर की पिटीशन खारिज हो गई थी, लेकिन मंगलवार को उन्होंने नए सिरे से 2 अर्जी लगा दीं। एक अर्जी बसपा विधायकों के कांग्रेस में जाने के खिलाफ है। दूसरी दलबदल के खिलाफ स्पीकर से शिकायत करने के बावजूद कार्यवाही नहीं होने और बिना वजह बताए शिकायत खारिज करने को लेकर है। दोनों पर आज सुनवाई की उम्मीद है।

दूसरी तरफ बसपा खुद भी हाईकोर्ट पहुंची है। पार्टी प्रमुख मायावती ने मंगलवार को कहा था कि हमने राजस्थान में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया, लेकिन अशोक गहलोत ने बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिए हमारे विधायकों को असंवैधानिक तरीके से कांग्रेस में शामिल करवा दिया। अब उन्हें सबक सिखाने का वक्त आ गया है।

बसपा के ये 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हुए थे
लखन सिंह (करौली), राजेन्द्र सिंह गुढ़ा (उदयपुरवाटी), दीपचंद खेड़िया (किशनगढ़ बास), जोगेन्दर सिंह अवाना (नदबई), संदीप कुमार (तिजारा) और वाजिब अली (नगर भरतपुर)।

अपडेट्स

  • सचिन पायलट ने ट्वीट कर विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को जन्मदिन की बधाई दी है। जोशी ने ही पायलट समेत 19 विधायकों को नोटिस देकर पूछा था कि क्यों ना आपके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही की जाए। इस मामले में सरकार की तरफ से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी जोशी ही पार्टी थे।
  • राज्यपाल कलराज मिश्र ने 15 अगस्त को राजभवन में होने वाला ऐट होम कार्यक्रम रद्द कर दिया। इसकी वजह कोरोनावायरस का संक्रमण बताई जा रही है। दूसरी तरफ राजनीति के जानकारों का कहना है कि विधानसभा सत्र को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चल रही खींचतान भी इसकी वजह हो सकती है।
  • राजस्थान की महिला बाल विकास मंत्री ममता भूपेश ने कहा कि हम राज्यपाल से लोकतांत्रिक परंपराओं को शुद्ध रखने की अपील करना चाहते हैं। हमने कैबिनेट की मीटिंग के बाद तीसरी बार सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा है। राज्यपाल के सवालों के आधार पर हम जवाब भेजते हैं, लेकिन हर बार कोई नया सवाल आ जाता है।
  • सियासी उठापटक के बीच गोविंद सिंह डोटासरा आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालेंगे। सचिन पायलट के बागी होने की वजह से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर डोटासरा को जिम्मेदारी दी गई थी।

पायलट गुट भी हाईकोर्ट पहुंचा, एसओजी जांच रद्द करने की मांग
सचिन पायलट खेमे के विधायक भंवरलाल शर्मा ने मंगलवार को हाईकोर्ट में अर्जी लगाई। उन्होंने अपील की है कि विधायकों की खरीद-फरोख्त मामले की जांच राजस्थान सरकार की एसओजी की जगह केंद्र की जांच एजेंसी एनआईए से करवाई जाए। एसओजी ने सोशल मीडिया पर वायरल हुई ऑडियो क्लिप के आधार पर एफआईआर दर्ज की है, इसलिए जांच रद्द होनी चाहिए। भंवरलाल ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ जांच अधिकारी को भी पक्षकार बनाया है।

राज्य vs राज्यपाल की 5 कहानियां:अरुणाचल में गवर्नर ने समय से पहले सत्र बुलाकर सरकार को बर्खास्त कर दिया था, यूपी में महज एक दिन के लिए सीएम बन सके थे जगदंबिका पाल

राजस्थान में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच तकरार बना हुआ है। विधानसभा सत्र को जल्दी बुलाने के प्रस्ताव को राज्यपाल कलराज मिश्र दो बार वापस भेज चुके हैं।
  • साल 2016 में उत्तराखंड में राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया, मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और फिर से हरीश रावत की सरकार बनी
  • 1989 को कर्नाटक के सीएम एसआर बोम्मई को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया गया, 5 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराया

राजस्थान में पायलट वर्सेज गहलोत से शुरू हुई सियासी उठापटक अब राज्य सरकार वर्सेज राज्यपाल हो गई है। गहलोत सरकार 31 जुलाई से ही विधानसभा का सत्र बुलाने पर अड़ी है, लेकिन राज्यपाल की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल रही है। कांग्रेस का आरोप है कि राज्यपाल दबाव में काम कर रहे हैं। वे कैबिनेट के प्रस्ताव को खारिज नहीं कर सकते हैं। उधर राज्यपाल का कहना है कि इस समय कोरोनाकाल चल रहा है, ऐसे में इतना जल्दी सत्र बुलाना ठीक नहीं है, सरकार को 21 दिनों का नोटिस देना चाहिए।

इस पूरे मामले को लेकर राजनीति तेज हो गई है। भारत में आजादी के बाद से ही कई बार राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच आमने-सामने की स्थिति देखने को मिली है, कई बार राज्यपाल अपने फैसलों से विवादों में भी रहे हैं।

कर्नाटक : राज्यपाल ने 1989 में बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया था

एसआर बोम्मई 1988-1989 के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे। अक्टूबर 2007 में इनकी मृत्यु हो गई।

बात 1989 की है, राज्य में जनता दल की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे एसआर बोम्मई। अप्रैल 1989 में उनकी पार्टी के कुछ विधायकों ने बगावत कर दी। तब की सरकार पर अल्पमत में होने का आरोप लगा। बोम्मई ने राज्यपाल से एक हफ्ते के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाने और बहुमत साबित करने की इजाजत मांगी। लेकिन, राज्यपाल पी वेंकट सुबैया ने मंजूरी नहीं दी। राज्यपाल ने केंद्र की कांग्रेस सरकार से राज्य सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश कर दी। 21 अप्रैल, 1989 को बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

बोम्मई इस मामले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में ले गए, लेकिन वहां राहत नहीं मिली। न्यायालय ने राज्यपाल की भूमिका को सही ठहराया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। पांच साल तक मामले की सुनवाई हुई। उसके बाद 1994 में 9 जजों की बेंच ने राज्यपाल द्वारा सरकार को बर्खास्त करने के फैसले को गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि किसी सरकार का बहुमत साबित करना हो या सरकार से समर्थन वापस लेना हो, इसके लिए विधानसभा में शक्ति परीक्षण ही अकेला तरीका है। कोर्ट ने तब कहा था कि राष्ट्रपति शासन का रिव्यू भी हो सकता है।

उत्तर प्रदेश : महज एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे जगदंबिका पाल

जगदंबिका पाल अभी यूपी के डुमरियागंज से लोकसभा के सांसद प्रत्याशी हैं। पहले कांग्रेस में थे, लेकिन 2014 में भाजपा में शामिल हो गए।

बात 1998 की है, यूपी में भाजपा की मिली-जुली सरकार थी, कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। तब यूपी के गवर्नर थे रोमेश भंडारी। जगदंबिका पाल ने सरकार से समर्थन ले लिया और कहा कि 22 विधायक उनके साथ हैं और उनके पास बहुमत है। इसके बाद फरवरी 1998 को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया और रातोंरात जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। राज्यपाल के इस फैसले का पुरजोर विरोध हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में आमरण अनशन शुरू कर दिया।

कल्याण सिंह ने इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। फ्लोर टेस्ट में कल्याण सिंह के पक्ष में 225 और पाल के पक्ष में 196 वोट पड़े थे। इसके बाद कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने।

बिहार : बूटा सिंह ने विधानसभा भंग कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया

पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह कांग्रेस के सीनियर लीडर हैं, वे बिहार के राज्यपाल रह चुके हैं।

2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। सभी एक दूसरे से जोड़तोड़ की कोशिश कर रहे थे। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और राज्यपाल थे बूटा सिंह।

उन्होंने 22 मई, 2005 को बिहार विधानसभा भंग कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राज्यपाल पर आरोप लगा कि उन्होंने जल्दी में फैसला लिया है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने बूटा सिंह के फैसले को असंवैधानिक बताया था। इसके बाद अक्टूबर- नवंबर 2005 में चुनाव हुआ। जिसमें एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।

अरुणाचल प्रदेश : राज्यपाल ने समय से पहले ही सत्र बुला लिया था, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को गलत बताया

जेपी राजखोवा 2015-2016 के दौरान अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं।

साल 2015 की बात है, राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे नबाम तुकी और राज्यपाल थे जेपी राजखोवा। आज जो हालात राजस्थान में है, कुछ इसी तरह के हालात अरुणाचल प्रदेश में भी हुआ था। कांग्रेस के 21 विधायकों ने बगावत कर दिया था। उस समय विधानसभा का शीत सत्र 2016 में जनवरी में शुरू होना था, लेकिन राज्यपाल ने 9 दिसंबर 2015 को आदेश जारी किया और शीत सत्र से एक महीना पहले यानी 15 दिसंबर 2015 को बुला लिया।

इसके बाद विपक्षी विधायकों ने बागियों के साथ मिलकर मुख्यमंत्री तुकी और विधानसभा अध्यक्ष नाबम रेबिया को ही बर्खास्त कर दिया। 9 फरवरी को कालिखो पुल को मुख्यमंत्री बनाया गया। कांग्रेस के बागी 20 और भाजपा के 11 विधायकों ने समर्थन दिया था।

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2016 में राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराया और 9 दिसंबर 2015 से पहले की स्थिति बहाल करने का आदेश दिया। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल अपनी मर्जी से कभी भी और कहीं भी विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकते।

उत्तराखंड : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस की सरकार बहाल हुई थी

कृष्णकांत पाल पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं, वे मेघालय,मणिपुर और उत्तराखंड के राज्यपाल रह चुके हैं।

साल 2016 की बात है, मुख्यमंत्री थे हरीश रावत। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के नौ विधायकों ने बगावत कर दी और भाजपा के साथ चले गए। 27 मार्च 2016 को स्पीकर ने इन विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी। तब राज्यपाल थे कृष्णकांत पाल। उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी। जिसका कांग्रेस ने विरोध किया। इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटाने का फैसला किया।

इसके बाद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2016 को हरीश रावत को बहुमत साबित करने को कहा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन बागी 9 विधायकों को फ्लोर टेस्ट में वोटिंग पर रोक लगा दी। 10 मई को शक्ति परीक्षण हुआ और हरीश रावत फिर से मुख्यमंत्री बने।

Leave A Reply

Your email address will not be published.