राजस्थान की सियासी उठापटक LIVE:सरकार की अर्जी 2 बार लौटाने के बाद राज्यपाल ने 2 सवाल पूछे; शर्त रखी- 21 दिन का नोटिस दें, तब विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी देने को तैयार
यूपीए में कानून मंत्री रह चुके 3 नेताओं ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखी कहा- संवैधानिक जिम्मेदारी से हटना ठीक नहीं होगा, इससे संकट खड़ा हो सकता है
- यूपीए
राजस्थान के सियासी संकट के बीच राज्यपाल कलराज मिश्र 2 बार गहलोत सरकार की अर्जी लौटाने के बाद सोमवार को विधानसभा का सत्र बुलाने को राजी हो गए। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी और दो सवाल किए। शर्त यह कि- विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लीयर नोटिस देकर बुलाया जाए।
राज्यपाल ने पहला सवाल किया है कि क्या आप विश्वास मत प्रस्ताव चाहते हैं? यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल की कार्यवाही की जाती है तो यह संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की मौजूदगी में हो और वीडियो रिकॉर्डिंग करवाई जाए। इसका लाइव टेलीकास्ट भी होना चाहिए।
दूसरा सवाल- यह भी साफ किया जाए कि विधानसभा का सत्र बुलाया जाता है तो सोशल डिस्टेंसिंग का कैसे रखी जाएगी? क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिसमें 200 सदस्य और 1000 से ज्यादा अधिकारियों-कर्मचारियों के इकट्ठे होने पर उनमें संक्रमण का खतरा नहीं हो। यदि किसी को हुआ तो उसे फैलने से कैसे रोका जाएगा?
दूसरी तरफ स्पीकर सीपी जोशी ने विधायकों के अयोग्यता नोटिस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर पिटीशन सोमवार को वापस ले ली। उनके वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि इस मामले में अभी सुनवाई की जरूरत नहीं। जरूरत पड़ने पर हम दोबारा तैयारी के साथ आएंगे। पायलट खेमे की याचिका पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
अपडेट्स-
- कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता सलमान खुर्शीद, अश्विनी कुमार और कपिल सिब्बल ने राजस्थान के राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर विधानसभा का सत्र बुलाने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने कहा है कि मौजूदा हालात में संवैधानिक जिम्मेदारी से हटना ठीक नहीं होगा, इससे संकट खड़ा हो जाएगा।
- पी चिदंबरम ने कहा है कि राज्यपाल ने संसदीय लोकतंत्र को कमजोर किया है। मुख्यमंत्री बहुमत साबित करना चाहें तो उनका रास्ता कोई नहीं रोक सकता। वे सत्र बुलाने के हकदार हैं।
14 दिन पहले नोटिस देने से शुरू हुआ विवाद
- 14 जुलाई : स्पीकर जाेशी ने पायलट सहित 19 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिया, 17 जुलाई तक जवाब मांगा।
- 16 जुलाई : नोटिस के खिलाफ पायलट सहित 19 विधायक हाईकोर्ट में गए। मुख्य सचेतक महेश जाेशी ने कैविएट लगा दी।
- 17 जुलाई : हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सुनवाई की और मामला खंडपीठ में भेजा। खंडपीठ ने 18 जुलाई काे सुनवाई तय की।
- 18 जुलाई : खंडपीठ ने अगली सुनवाई 20 जुलाई तय की और स्पीकर से कहा कि वे 21 जुलाई तक नोटिस पर कार्रवाई नहीं करें।
- 20 जुलाई : बहस पूरी नहीं हुई, 21 जुलाई को भी सुनवाई।
- 21 जुलाई : हाईकोर्ट ने फैसला 24 जुलाई के लिए सुरक्षित रख लिया। स्पीकर को भी कोई फैसला नहीं करने के लिए कहा।
- 22 जुलाई : हाईकोर्ट के दखल के खिलाफ स्पीकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
- 23 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाईकोर्ट का फैसला आने दीजिए। यह हमारे फैसले के अधीन रहेगा।
- 24 जुलाई : हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी काे सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई से राेक दिया। हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए।
5 सवालों से समझिए…राजस्थान की सियासत की पूरी तस्वीर
1. हाईकोर्ट के फैसले का पायलट खेमे पर क्या असर होगा?
जवाब: हाईकोर्ट ने 19 विधायकों को नोटिस मामले में यथास्थिति को कहा है। मायने यह कि अभी उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी।
2. क्या गहलोत सरकार के पास बहुमत है?
जवाब: गहलोत सरकार ने राजभवन ले जाकर विधायकों की परेड करवाई। इसमें 102 का आंकड़ा दिया है। इनमें कांग्रेस के 88, निर्दलीय 10, बीटीपी के 2, सीपीएम और आरएलडी का एक-एक विधायक है। यदि इतने विधायक फ्लोर टेस्ट में सरकार का साथ देते हैं तो सरकार बहुमत हासिल कर लेगी। यदि दो-पांच विधायक भी इधर-उधर हुए तो सरकार खतरे में है।
3. आखिर सत्र क्यों बुलाना चाहते हैं गहलोत?
जवाब: सत्र बुलाना तो बहाना है। मंशा बिल लाकर व्हिप जारी करना है, जो बागी बिल के खिलाफ वोट देंगे उनकी सदस्यता रद्द होगी। इसीलिए राज्यपाल को जो पत्र दिया, उसमें फ्लोर टेस्ट का उल्लेख नहीं। 19 की विधायकी गई तो बहुमत को 92 विधायक चाहिए जो सरकार के पास हैं।
5. भाजपा की सत्र बुलाने में रुचि क्यों नहीं है?
जवाब: भाजपा नहीं चाहती कि सरकार सत्र बुलाकर पायलट गुट पर एक्शन ले। वह चाहती है कि 19 विधायकों की सदस्यता बची रहे और जरूरत पड़े तो सरकार को हिला सकें।
सियासी संग्राम से पहले विधानसभा में स्थिति
107 कांग्रेस
और अब ये हालात
गहलोत के पक्ष में: 88 कांग्रेस, 10 निर्दलीय, 2 बीटीपी, 1 आरएलडी, 1 माकपा यानी कुल 102
पायलट गुट: 19 बागी कांग्रेस, 3 निर्दलीय। कुल 22
भाजपा प्लस: 72 भाजपा, 3 आरएलपी। कुल 75
माकपा 1 : गिरधारी मईया फिलहाल तटस्थ।
राजस्थान का सियासी ड्रामा:मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा- राज्यपाल के रवैए के बारे में प्रधानमंत्री से बात की है, 7 दिन पहले गवर्नर को जो पत्र लिखा उसके बारे में जानकारी दी
- कांग्रेस ने कहा- राजस्थान में पहले ही राजभवन का घेराव कर चुके, दोबारा करने का मतलब नहीं
- एक्सपर्ट के मुताबिक कांग्रेस को डर- राज्यपाल ने केंद्रीय सुरक्षाबल बुलाए तो सरकार की किरकिरी होगी
राजस्थान में सियासी उठापटक के बीच राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने को तैयार नहीं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को बताया कि राज्यपाल के रवैए के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की है। 7 दिन पहले गवर्नर को जो पत्र लिखा उसके बारे में प्रधानमंत्री को बताया है। उधर, कांग्रेस आज राजस्थान को छोड़ देशभर के राजभवनों पर प्रदर्शन कर रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने राजस्थान में राजभवन का घेराव नहीं करने की वजह वजह भी बताई।
कांग्रेस 2 वजह बता रही
पहली- यहां पहले ही प्रदर्शन किया जा चुका है। दूसरी- राज्यपाल को विशेष सत्र बुलाने पर जो आपत्ति थी, उसका जवाब भेज दिया गया है। ऐसे में राज्यपाल सत्र बुलाने से मना नहीं कर पाएंगे, इसलिए राजभवन के घेराव का मतलब नहीं।
…और जो छिपा रही
कांग्रेस जो भी कहे, लेकिन राजनीति के जानकारों की राय अलग है। उनका कहना है कि राज्यपाल कलराज मिश्र के आक्रामक रुख को देखते हुए कांग्रेस बैकफुट पर है। तीन पहले गहलोत और उनके विधायकों ने जब राजभवन को घेरा था, तब चर्चाएं शुरू हो गई थीं कि राज्यपाल कहीं राष्ट्रपति शासन की सिफारिश ना कर दें। राज्यपाल ने रविवार को मुख्य सचिव और डीजीपी को बुलाकर अपनी सुरक्षा पर चिंता जताई। इससे मैसेज गया कि अगर कांग्रेस ने फिर से राजभवन को घेरा और राज्यपाल ने केंद्रीय सुरक्षा बल बुलाने का फैसला लिया तो सरकार की किरकिरी होगी।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर स्पीकअप फॉर डेमोक्रेसी अभियान शुरू किया है। कांग्रेस नेता अजय माकन ने रविवार को जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना से लड़ने की बजाए कांग्रेस से लड़ रहे हैं। बहुमत की हत्या हो रही है।
कांग्रेस ने जनता के सामने 5 सवाल रखे
1. क्या देश को प्रजातंत्र और संविधान पर भाजपा का हमला स्वीकार है?
2. क्या बहुमत और जनमत का फैसला राजस्थान की 8 करोड़ की जनता को वोट से होगा या दिल्ली के हुक्मरानों के सत्ता बल और धन बल से होगा?
3. क्या प्रधानमंत्री और भारत सरकार सत्ता हासिल करने के लिए संवैधानिक परंपराओं को कुचल सकते हैं?
4. क्या बहुमत से चुनी राजस्थान सरकार द्वारा बुलाए गए विधानसभा सत्र को राज्यपाल इजाजत देने से इनकार कर संविधान की अनदेखी कर सकते हैं?
5. क्या राज्यपाल विधायिका के अधिकार क्षेत्र में असंवैधानिक तौर पर दखलअंदाजी कर सकते हैं? क्या इससे विधायिका और न्यायपालिका में टकराव की स्थिति पैदा नहीं होगी?