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Coronavirus Vaccine: कोरोना की वैक्सीन बनाने में इस ‘केकड़े’ के खून का क्या इस्तेमाल?

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10 आंखों वाले हॉर्सशू केकड़े करीब 30 करोड़ सालों से पृथ्वी पर रह रहे हैं। सालों से इनके शरीर के नीले खून का इस्तेमाल इंसानों के लिए दवा बनाने के लिए किया जाता रहा है। हॉर्सशू क्रैब यानी घोड़े की नाल की आकार वाले केकड़े। कोरोना महामारी के बीच ये केकड़ा अब वैज्ञानिकों की दिलचस्पी की वजह बन गए हैं। वैज्ञानिक कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन बनाने के लिए इस केकड़ा पर शोध कर रहे हैं। लेकिन इस कारण लिविंग फॉसिल (जीवित जीवाश्म) माने जाने वाले इन केकड़ों के अस्तित्व को लेकर खतरा पैदा हो गया है।

केकड़ों से कैसे मिल सकती है मदद?
माना जा रहा है कि धरती पर इस प्रजाति के केकड़ों की संख्या कम है और दवा के लिए इसके खून के इस्तेमाल से इनकी संख्या और कम हो सकती है। इन केकड़ों का खून इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे ये सुनिश्चित करने में मदद मिलती है की नई बनाई दवा में कोई हानिकारक बैक्टीरिया तो मौजूद नहीं है।
हॉर्सशू क्रैब (केकड़े)
हॉर्सशू क्रैब (केकड़े) – फोटो : Social media
केकड़े के खून से मिलने वाले ब्लड सेल (रक्त कोशिकाएं) दवा में मौजूद हानिकारक तत्वों से केमिकली रीएक्ट करते हैं और इस तरह से वैज्ञानिकों को पता चल जाता है कि नई दवा इंसानों के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हॉर्सशू केकड़ा, धरती पर पाया जाने वाला एकमात्र ऐसा जीव है जिसे इस तरह की टेस्टिंग में इस्तेमाल किया जाता है। इस काम के लिए हर साल हजारों की संख्या में हॉर्सशू केकड़ों को पकड़ कर अमेरिका की उन लैब्स में भेजा जाता है, जहां दवाइयां बनती है। यहां उनके दिल से पास मौजूद नली से खून निकाला जाता है। इसके बाद उन्हें वापस पानी में छोड़ दिया जाता है।
केकड़ों पर इसके असर के बारे में किसी को नहीं पता’
दरअसल पहले जानकार ये मानते थे कि केकड़े के शरीर से खून निकाल लेने के बाद भी वो जीवित रहते हैं। लेकिन हाल के सालों में किए गए शोध में पाया गया है कि इनके शरीर से अगर 30 फीसदी खून निकाल लिया जाता है तो इनकी मौत हो सकती है। वहीं दूसरे अध्ययन से पता चला है कि एक बार शरीर से खून निकाले जाने के बाद मादा केकड़ों के प्रजनन की शक्ति कम हो जाती है। वाइल्डलाइफ केम्पेनर मानते हैं कि यही मूल समस्या है।रिसर्च में मदद के लिए अमेरिका के न्यूजर्सी में लाखों की संख्या में हॉर्सशू केकड़े पकड़े जाते हैं। यहां पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही टीम का नेतृत्व कर रहीं डॉक्टर बार्बरा ब्रमर कहती हैं, “अभी की बात करें तो इस काम के लिए करीब 50 लाख केकड़ों का खून लिया जाता है।”

हॉर्स शू केकड़े
हॉर्स शू केकड़े – फोटो : Social media
बीबीसी रेडियो 4 के एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि “खून निकाल लेने के बाद केंकड़ों को जीवित छोड़ दिया जाता है लेकिन इस बारे में वाकई किसी को नहीं पता कि इस प्रक्रिया का उन पर कितना और क्या असर होता है।” अमरीकी हॉर्सशू केकड़ों की संख्या काफी कम है और ये आधिकारिक रूप से लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में रखे जाने के बेहद करीब हैं। लेकिन दवा बनाने वाली कुछ बड़ी कंपनियों का कहना है कि केकड़ों की संख्या से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि बीते कुछ सालों में इनकी संख्या कम नहीं हुई है।
हॉर्स शू केकड़े
क्या इनका का इस्तेमाल रोका जा सकता है?
दवा बनाने में केकड़े के खून की जगह शोध के लिए क्या किसी और मानव निर्मित चीज का इस्तेमाल कर सकते हैं? इस पर सालों से शोध जारी है। साल 2016 में इसमें एक कामयाबी हासिल हुई। वैज्ञानिकों को केकड़े के खून का विकल्प मिला जिसके इस्तेमाल को यूरोप में स्वीकृति भी मिल गई। अमेरिका की कुछ दवा कंपनियां भी इस मुहिम में शामिल हुईं।
हॉर्स शू केकड़े
हॉर्स शू केकड़े –
लेकिन इस पर आज बहस क्यों?
अमेरिका में दवाओं की सुरक्षा के बारे में फैसला लेने वाले संगठन ने बीते महीने कहा है कि वो इस बात की पुष्टि नहीं कर सकती कि हॉर्सशू केकड़े के खून का विकल्प कारगर है या नहीं। इसके बाद जो कंपनियां अमेरिका में दवा बेचना चाहती हैं उनसे कहा गया है कि दवाओं की सुरक्षा के लिहाज से उनकी टेस्टिंग में हॉर्सशू केकड़े के खून का इस्तेमाल करना जारी रखना होगा।
हॉर्स शू केकड़े का खून
हॉर्स शू केकड़े का खून – फोटो : Social media
इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई कंपनी कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाती है और उसे अमेरिका में लाखों लोगों तक पहुंचाना चाहती है तो उसे वैक्सीन की टेस्टिंग पुराने तरीके से करनी होगी।डॉक्टर बार्बरा कहती हैं कि उनकी कोशिश है कि वो सरकार से इस नियम पर पुनर्विचार करने पर राजी कर सकें। वो कहती हैं कि दूसरी जगहों को हॉर्सशू केकड़े के विकल्पों का इस्तेमाल किया जा रहा है और यहां पर भी ऐसा किया जा सकता है। वो कहती हैं, “इससे प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता भी कम होगी।”
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर – फोटो : ANI
इस मुद्दे पर कुछ दवा कंपनियों का कहना है कि कोविड-19 के वैक्सीन के अनुरूप उसकी टेस्टिंग के लिए उनके पास हॉर्सशू केकड़े के खून का पर्याप्त स्टॉक है और उन्हें अब दूसरे हॉर्सशू केकड़ों से खून निकालने की जरूरत नहीं होगी। डॉक्टर बार्बरा कहती हैं, “कोरोना के लिए वैक्सीन बनाने के काम में कम से कम 30 कंपनियां लगी हुई हैं। सभी को वैक्सीन की टेस्टिंग के लिए समान प्रक्रिया से गुजरना होगा।” “मुझे चिंता है कि इसका असर हॉर्सशू केकड़े की आबादी पर पड़ सकता है और वो पर्यावरण का अहम हिस्सा है।”

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