अगस्त 2021 तक बनकर तैयार होगा काशी विश्वनाथ धाम, निर्माण की कुल लागत करीब 800 करोड़ रुपए की होगी,पूरा बन जाने के बाद काशी विश्वनाथ धाम में 2 लाख लोग आसानी से आ सकेंगे, पहले सिर्फ 5 हजार की जगह थी
श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के लिए जमीन अधिग्रहण में 390 करोड़ रुपए लगे हैं। जबकि इसके निर्माण में 340 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। कुल मिलाकर करीब 800 करोड़ रुपए की योजना होगी।हालांकि, स्थानीय लोगों में इसको लेकर नाराजगी भी है, उनका कहना है कि इससे बनारस की पहचान ही खत्म हो जाएगी
वाराणसी. इन दिनों वाराणसी में दो बातों की चर्चा हो रही है। एक गंगा में पानी कितना बढ़ा और घाटों पर कितना चढ़ा। दूसरी श्री काशी विश्वनाथ धाम परियोजना (कॉरिडोर) की। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर लॉकडाउन लगने के बाद से ही बंद है। अभी लोगों के कानों में मंदिर की घंटियों के बजाए भारी भरकम मशीनों की आवाजें गूंजती हैं।
800 करोड़ की लागत से बनेगा कॉरिडोर
कॉरिडोर के किनारे खड़ी की गईं टिन की ऊंची दीवारों के अंदर अभी खुदाई, फाउंडेशन और कॉलम खड़े करने का काम चल रहा है। भारी-भरकम सुरक्षा के बीच कारीगर, इंजीनियर और मजदूर 5.3 लाख वर्गफुट में करीब 800 करोड़ की लागत से बनने वाले कॉरिडोर को आकार देने में लगे हैं। प्रशासन के दावों के मुताबिक, अगस्त 2021 तक कॉरिडोर बनकर तैयार हो जाएगा। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र का सबसे अहम प्रोजेक्ट है।
दो लाख श्रद्धालु एक साथ आ सकेंगे दर्शन के लिए
जहां पहले श्रद्धालुओं के खड़े होने के लिए पांच हजार वर्गफीट की जगह भी नसीब नहीं होती थी, वहां इसके बनने के बाद दो लाख श्रद्धालु एक साथ आ सकेंगे। काशी के मणिकर्णिका और ललिता घाट से कॉरिडोर की शुरुआत होती है। 5.3 लाख वर्गफुट में तैयार होने जा रहे इस इलाके में 70 फीसदी जगह हरियाली के लिए रखी जाएगी। धाम में घाट की ओर से आने के लिए ललिता घाट पर प्रवेश द्वार बनाया जाएगा। इसके अलावा सरस्वती फाटक, नीलकंठ और ढुंढिराज गेट से भी विश्वनाथ धाम में प्रवेश किया जा सकेगा।
3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बनेगा
सुरक्षा के लिए इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर बनेगा। प्रोजेक्ट के तहत मुख्य मंदिर परिसर, मंदिर चौक, शहर की गैलरी, संग्रहालय, सभागार, हॉल, सुविधा केंद्र, मोक्ष गृह, गोदौलिया गेट, भोजशाला, पुजारियों-सेवादारों के लिए आश्रय, आध्यात्मिक पुस्तक स्टॉल सहित सभी निर्माण 30 फीसदी में होंगे। श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में करीब 3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बनेगा।
इस परिसर में गर्भगृह से लगा हुआ बैकुंठ मंदिर, दंडपाणि के साथ तारकेश्वर और रानी भवानी मंदिर रहेगा। इसके अलावा गर्भगृह से लगे बाकी विग्रहों को परिसर के पास ही बनाया जाएगा। परिसर में 34 फीट ऊंचाई वाले चार गेट होंगे। सभी गेट मजबूत लकड़ी से बने होंगे। पूरे परिसर में मकराना और चुनार के पत्थर लगेंगे। परिसर लाइट से जगमगाएगा। यहां धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व के पेड़ भी होंगे।
अगस्त 2021 में पूरा करने का लक्ष्य है
कॉरिडोर के बाहरी हिस्से में जलासेन टैरेस बनाई जाएगी। इस टैरेस पर खड़े होकर गंगा जी के साथ ही मणिकर्णिका, जलासेन और ललिता घाट काे भी निहारा जा सकेगा। वाराणसी कमिश्नर और श्री काशी विश्वनाथ धाम परियोजना के प्रशासनिक प्रमुख दीपक अग्रवाल कहते हैं कि, ‘हमने अभी 1500 से अधिक परिवारों को सेटल कर दिया है। 60 से ज्यादा छोटे-बड़े मंदिरों को रिस्टोर करेंगे।’
इसी साल जनवरी में काम शुरू हुआ है और अगस्त 2021 में पूरा करने का लक्ष्य है। दीपक अग्रवाल के मुताबिक कोरोना के चलते परियोजना में जो देरी हुई है, उसको ध्यान में रखा है और इसके कारण समय सीमा आगे न बढ़े ऐसी हमारी कोशिश है।
इसके साथ ही मुंबई-दिल्ली से लौटे प्रवासी मजदूरों की स्किल मैपिंग के बाद उनको भी इससे जोड़ा गया है। परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण में 390 करोड़ रुपए लगे हैं और निर्माण में 340 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। कुल मिलाकर करीब 800 करोड़ रुपए की योजना होगी। जमीन अधिग्रहण का काम पूरा हो गया है।
अग्रवाल कहते हैं, ‘हमने किसी मंदिर को हटाया नहीं है, कई मकानों के अंदर मंदिर निकले हैं। बड़े मंदिर को शिफ्ट करना असंभव है, छोटे मंदिर जिन पर शिखर नहीं था उन विग्रहों को विधि-विधान से हटाकर फिर से वही करेंगे।
किसी की श्रद्धा को कोई ठेस पहुंचे ऐसा कोई काम हमने नहीं किया है। धाम परियोजना पूरी होने के बाद मंदिर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दो गुनी हो जाएगी। साथ ही पर्यटकों के लिए भी एक नया आकर्षण का केंद्र यह बनेगा।
कॉरिडोर को लेकर कुछ लोग उठा रहे सवाल
कॉरिडोर का काम अहमदाबाद की कंपनी प्रह्लाद भाई श्रीराम भाई पटेल (पीएसपी) प्रोजेक्ट्स कर रही है। कंपनी ने साबरमती रिवर फ्रंट और गुजरात हाउसिंग बोर्ड जैसे सरकारी प्रोजेक्ट किए हैं। हालांकि, इस प्रोजेक्ट से काशी में हर कोई खुश है, ऐसा भी नही हैं। काशी की पहचान गलियों और कॉरिडोर के रास्ते से मंदिरों और विग्रहों को हटाने से यहां काफी लोग नाराज हैं। संकट मोचन मंदिर के महंत और आईआईटी बीएचयू में इलेक्टॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा कहते हैं कि काशी जीवित परंपराओं का शहर है।
अब जो शुरू होगा वो पारंपरिक तो बिल्कुल भी नहीं होगा। स्थापित मूर्ति आप उठा नहीं सकते। अनगिनत मंदिरों को कॉरिडोर के नाम पर तोड़ा गया है, इनमें प्रमोद विनायक, सम्मुख विनायक और दूसरे विनायक मंदिर, सरस्वती-हनुमान मंदिर प्रमुख हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति का जीवन आम आदमी के जीवन जैसा हो जाता है।
मूर्ति उखाड़कर और उन्हें म्यूजियम में रखवा दिया गया है, वहां पूजा भी नहीं हो रही है, जो गलत है। मिश्रा सवाल करते हैं कि बनारस की पहचान ही उसका हैरिटेज स्ट्रक्चर और गलियां हैं, अगर इन्हीं को खत्म कर देंगे तो फिर कोई बनारस क्या देखने आएगा?
भोजपुरी गीतकार कन्हैया दुबे कहते हैं कि कॉरिडोर के लिए न तो कोई आंदोलन हुआ न ही किसी ने कभी कोई मांग रखी। प्रशासन ने यहां बहुत मनमानी की है। प्रशासन को काशी की स्थापति परंपराओं का ध्यान रखना चाहिए, आसपास खुदाई कर दी है और ऐसे में 10-15 फीट ऊपर मिट्टी के छोटे से हिस्से पर सिर्फ कुछ मंदिर ही खड़े हैं, ऐसे में बारिश जैसे ही शुरू होगी कई मंदिरों के गिरने का खतरा हो गया है।
काशी में कॉरिडोर के मार्ग में ही कुछ मंदिर ऐसे हैं, जिनकी उम्र किसी को नहीं पता कि ये कितने पुराने हैं, फिर भी प्रशासन इन्हें खत्म करने पर लगा है। एक-दूसरे के दावों के बीच इतना तो तय है कि अब श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के कॉरिडोर का स्वरूप हमेशा के लिए बदल जाएगा।