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एनकाउंटर के बाद विकास दुबे पर फिल्म / मनोज बाजपेयी निभा सकते हैं गैंगस्टर का किरदार, करीब 15 करोड़ के बजट में फिल्म की तैयारी कर रहे प्रोड्यूसर संदीप कपूर,आत्मरक्षा में पीछे से चलाई गईं 2 गोलियां सीने पर ही कैसे लगीं? हादसे की वजह शाम तक बदल गई? पुलिस पर भी चलेगा हत्या का केस; साबित करना होगा आत्मरक्षा में की गई हत्या

विकास एनकाउंटर की कहानी में झोल / गाड़ी में एक इंस्पेक्टर, दो दरोगा और दो सिपाही थे, पलटने पर सभी पुलिसवाले कुछ देर अचेत हुए और विकास पिस्टल छीनकर भाग गया, 19 साल पहले भी पुलिस ने एनकाउंटर की तैयारी कर ली थी, तब बच गया लेकिन इस बार मारा गया

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मुंबई  कानपुर बेस्ड गैंगस्टर विकास दुबे शुक्रवार सुबह एसटीएफ के साथ एनकाउंटर में मारा गया। नाटकीय ढंग से हुई दुबे की गिरफ्तारी और फिर एनकाउंटर के बाद बॉलीवुड को फिल्म की नई स्क्रिप्ट मिल गई है। प्रोड्यूसर संदीप कपूर ने तो फिल्म का ऐलान भी कर दिया। उन्होंने टाइटल तो नहीं बताया। लेकिन यह जरूर कहा कि लीड रोल के लिए मनोज बाजपेयी को अप्रोच किया गया है और इस फिल्म का बजट 10-15 करोड़ रुपए तक जाएगा।

‘जुगाड़’ और ‘अनारकली ऑफ आरा’ जैसी फिल्में बना चुके संदीप ने दैनिक भास्कर से बातचीत में फिल्म की प्लानिंग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद फिल्म को लेकर मनोज बाजपेयी से उनकी बात हुई थी। अभी उन्होंने फिल्म साइन नहीं की है, लेकिन बातचीत जारी है।

‘डर है कहीं कोई और फिल्म का ऐलान न कर दे’

संदीप के मुताबिक, उन्हें डर है कि कहीं कोई और इस टॉपिक पर फिल्म की घोषणा न कर दे। वे कहते हैं, ‘‘अभी डायरेक्टर ढूंढेंगे। उम्मीद करता हूं कि कोई बड़ा प्रोड्यूसर ऐलान न कर दे। मैं तो छोटा प्रोड्यूसर हूं। मनोज जी भी कह रहे हैं कि प्रायोरिटी पर यह फिल्म करनी चाहिए। अभी स्टोरी पर बैठेंगे। इस बीच किसी बड़े बैनर ने घोषणा कर दी तो फिर सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में होगा।’’

टाइटल पर बात करना जल्दबाजी होगा

जब संदीप से पूछा गया कि फिल्म का टाइटल क्या रख रहे हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘अभी इस पर बात करना जल्दबाजी होगा। तीन-चार टाइटल दिमाग में हैं, जिन्हें आज या कल में रजिस्टर करा लूंगा।’’

डायरेक्टर पर अभी विचार कर रहे

बकौल संदीप, ‘‘अभी किसी डायरेक्टर को फाइनल नहीं किया है। हम सभी ऑप्शंस पर विचार करेंगे। तीन-चार डायरेक्टर्स को अप्रोच करेंगे।’’ संदीप के मुताबिक, इस लिस्ट में तिग्मांशु धूलिया और शाद अली शामिल हैं। हालांकि, अभी अंतिम सहमति बननी बाकी है।

दो-तीन महीने कहानी पर रिसर्च होगी

संदीप कहते हैं कि पहले तो पूरी कहानी पर दो-तीन महीने की रिसर्च होगी। बतौर प्रोड्यूसर वे जल्द से जल्द काम पर लग जाएंगे। यह कोई वेबसीरीज नहीं होगी। हार्डकोर फिल्म होगी। उनके मुताबिक, मनोज इस रोल के साथ जस्टिस करेंगे। इसकी बड़ी वजह उनका यूपी और बिहार का बैकग्राउंड है।

संदीप की मानें तो मनोज उनके बहुत पुराने दोस्त हैं और वे उन्हें इस फिल्म के लिए जबर्दस्ती भी हां करा सकते हैं। वे कहते हैं, ‘‘मनोज ने ही कहा था कि यह सिनेमैटोग्राफिकली बहुत अच्छा सब्जेक्ट है।’’

मनोज बाजपेयी का ऑडियो व्हाट्सऐप पर सर्कुलेट

इस बीच मनोज ने ट्विटर पर खबर को गलत बताया, जबकि शुक्रवार को दिनभर व्हाट्सऐप पर उनका एक ऑडियो सर्कुलेट होता रहा, जिसमें वे कह रहे हैं, ‘‘अगर किरदार व स्क्रिप्ट ढंग से लिखी जाए तो कोई भी रियल लाइफ कैरेक्टर करने में मजा आता है। जिस शख्स को लेकर बात की जा रही है, उनकी जिंदगी भी बड़ी नाटकीय रही है। इसे पर्दे पर लाना बहुत इंट्रेस्टिंग होगा।’’

विकास एनकाउंटर की कहानी में झोल / गाड़ी में एक इंस्पेक्टर, दो दरोगा और दो सिपाही थे, पलटने पर सभी पुलिसवाले कुछ देर अचेत हुए और विकास पिस्टल छीनकर भाग गया

  • शुक्रवार सुबह यूपी एसटीएफ की टीम विकास को उज्जैन से कानपुर ला रही थी, लेकिन शहर से 17 किमी पहले सचेंडी थाना क्षेत्र में सुबह 6:30 बजे काफिले की गाड़ी पलट गई।शुक्रवार सुबह यूपी एसटीएफ की टीम विकास को उज्जैन से कानपुर ला रही थी, लेकिन शहर से 17 किमी पहले सचेंडी थाना क्षेत्र में सुबह 6:30 बजे काफिले की गाड़ी पलट गई।
  • यूपी एसटीएफ ने शुक्रवार शाम प्रेस नोट जारी कर गाड़ी पलटने से लेकर एनकाउंटर की कहानी बताई
  • गाड़ी के पलटने के कारण से लेकर विकास के भागने और एनकाउंटर तक की कहानी में कई सवाल

नई दिल्ली. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर कई तरह के झोल सामने आए हैं। यूपी एसटीएफ ने शुक्रवार सुबह उसे लाने के दौरान गाड़ी पलटने और एनकाउंटर की पूरी कहानी शाम को एक प्रेस नोट जारी कर बताई। हालांकि, एसटीएफ की कहानी में कई ऐसी बातें सामने आ रही हैं, जिन पर सवाल उठना लाजमी है।

1. हादसे की वजह शाम तक बदल गई?
सुबह पुलिस ने बताया कि गाड़ी बारिश के कारण पलटी। शाम को एसटीएफ ने कहा- गाय-भैंस को बचाने में गाड़ी पलट गई।

2. विकास की गाड़ी के सामने ही कैसे आईं गाय-भैंस?
सुरक्षा के लिहाज से विकास की गाड़ी काफिले के बीच में होनी थी। गाड़ियों के बीच ज्यादा फासला भी नहीं होना था। ऐसे में विकास की गाड़ी के ही सामने गाय-भैंस कैसे आईं।

3. गाड़ी में विकास के साथ 5 पुलिस वाले थे। सभी कुछ देर के लिए एक साथ अचेत कैसे हुए?
एसटीएफ ने कहा कि विकास के साथ गाड़ी में इंस्पेक्टर रमाकांत पचौरी, दरोगा पंकज सिंह, दरोगा अनूप सिंह, सिपाही सत्यवीर और सिपाही प्रदीप थे। गाड़ी पलटने पर ये सभी कुछ देर के लिए अचेत हो गए। इतने में विकास मौका पाकर इंस्पेक्टर की पिस्टल निकालकर भागने लगा।

4. विकास की गाड़ी से ठीक पीछे चल रही काफिले की गाड़ी इतनी दूर क्यों थी?
एसटीएफ का कहना है कि विकास की गाड़ी से पीछे चल रही काफिले की दूसरी गाड़ी जब मौके पर पहुंची तब उसमें सवार डीएसपी तेजबहादुर सिंह और अन्य पुलिसवालों को हादसे के बारे में पता चला। सवाल उठता है कि यह गाड़ी क्या इतनी दूर थी कि इसमें सवार लोगों को हादसा होते नजर ही नहीं आया, बल्कि मौके पर पहुंचने पर पता चला।

5.इतनी देरी होने के बाद भी विकास ज्यादा दूर क्यों नहीं भाग पाया?
एसटीएफ के मुताबिक, डीएसपी जब मौके पर पहुंचे तब उन्हें घटना की जानकारी मिली। उन्होंने पहले सभी घायलों के इलाज के लिए निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने विकास का पीछा किया। इतना सब होने तक भी विकास सिर्फ 200 मीटर दूर ही भाग पाया था।

6. आत्मरक्षा में पीछे से चलाई गईं 2 गोलियां सीने पर ही कैसे लगीं?
एसटीएफ का कहना है कि वे विकास को जिंदा पकड़ना चाहते थे, लेकिन वह लगातार फायरिंग कर रहा था। आत्मरक्षा में पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी। सवाल यह कि आत्मरक्षा में पीछे से चलाई गईं 2 गोलियां सीधे विकास के सीने में कैसे लगीं।

एसटीएफ का प्रेस नोट

 

विकास दुबे एनकाउंटरः पुलिस पर भी चलेगा हत्या का केस; साबित करना होगा आत्मरक्षा में की गई हत्या

  • तमाम विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि विकास दुबे कई नेताओं का पर्दाफाश कर सकता था, इसलिए उसे मार गिराया
  • पुलिस की कहानी अपनी जगह है, वहीं विशेषज्ञ कह रहे हैं कि प्रक्रिया के तहत केस तो हत्या का ही दर्ज होगा

नई दिल्ली. कानपुर के बिकरू गांव में सीओ समेत 8 पुलिसवालों की हत्या करने वाला गैंगस्टर विकास दुबे शुक्रवार सुबह एनकाउंटर में मारा गया। एनकाउंटर में मारे गए पुलिसकर्मियों के परिजन के साथ ही आम जनता इसे जायज ठहरा रही है। दूसरी ओर, सियासत भी गरमा गई है।

तमाम विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि विकास दुबे कई नेताओं का पर्दाफाश कर सकता था, इसलिए उसे मार गिराया। एनकाउंटर के तौर-तरीकों पर भी विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं। पुलिस की कहानी अपनी जगह है, वहीं विशेषज्ञ कह रहे हैं कि प्रक्रिया के तहत केस तो हत्या का ही दर्ज होगा।

विकास दुबे के एनकाउंटर में क्या है पुलिस की कहानी?
यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर ले जा रही थी। शहर से 17 किमी पहले बर्रा थाना क्षेत्र में सुबह 6:30 बजे काफिले की एक कार पलट गई। विकास दुबे उसी गाड़ी में था। गैंगस्टर विकास दुबे ने पुलिस से पिस्टल छीनकर हमला करने की कोशिश की। जवाबी कार्रवाई में उसे तीन गोलियां लगी और अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई।

सुबह 7 बजकर 55 मिनट पर मृत घोषित कर दिया गया। विकास दुबे को तीन गोली छाती में और एक बांह में लगी। एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार का कहना है कि गाड़ी पलटने के बाद विकास ने भागने की कोशिश की। उसने एक घायल जवान की पिस्टल छीनी थी। हमने विकास से सरेंडर के लिए कहा, लेकिन उसने फायरिंग कर दी। पुलिस को बचाव में उस पर गोली चलानी पड़ी।

अब आगे क्या होगा, क्या पुलिस ने जो किया वह सही है?
सीनियर वकील advocate कुलदीप बंगी,  एडवोकेट अमनदीप सिंह अग्रवाल कहना है कि कानून में एनकाउंटर जैसा कोई शब्द नहीं है। कानूनन यह एक हत्या है। एफआईआर होगी। लोगों को गलतफहमी है कि पुलिस एनकाउंटर कर बच जाती है। ऐसे दसियों मामले हैं जहां फेक एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को सजा मिली है। पुलिस को एनकाउंटर में किसी को मार देने की छूट नहीं है। इसे भी हत्या की तरह ही ट्रीट किया जाता है।

केस दर्ज होगा और स्वतंत्र पुलिस अधिकारी जांच करेंगे। जांच में ही यह स्पष्ट होगा कि पुलिसकर्मियों ने आत्मरक्षा के अधिकार के तहत अपराधी पर गोली चलाई है या फेक एनकाउंटर किया है। फिलहाल इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। एनकाउंटर हुआ है, सही है या फेक, जांच के बाद ही स्पष्ट होगा।

बंसी लाल सचदेवा एडवोकेट  कहते हैं  की राइट फॉर प्राइवेट डिफेंस यानी आत्मरक्षा के अधिकार के तहत उन्हें अपनी कार्रवाई को जायज ठहराना होगा। इसके अलावा, विकास दुबे का कोई रिश्तेदार किसी थाने में हत्या की एफआईआर दर्ज करवा सकता है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट में एनकाउंटर केस लड़ चुके वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया कि यह एक्स्ट्रा-ज्युडिशियल किलिंग का एक स्पष्ट केस है। दुबे एक गैंगस्टर आतंकी था, जिसे शायद मरना ही चाहिए था। लेकिन यूपी पुलिस ने स्पष्ट तौर पर उसकी हत्या की है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस अपराध पर नोटिस नहीं लेता है, तो इसका मतलब होगा कि भारत में कानून का शासन बचा ही नहीं है।

क्या है राइट फॉर प्राइवेट डिफेंस?
आईपीसी के सेक्शन 96 से 106 तक राइट ऑफ प्राइवेट डिफेंस को परिभाषित किया गया है। इसमें व्यक्ति की सुरक्षा और अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए दिए गए अधिकार शामिल है। इसमें भी सेक्शन 100 में स्पष्ट किया गया है कि किन परिस्थितियों में आत्मरक्षा के लिए की गई हत्या को अपराध नहीं माना जाता। इसमें चार प्रावधान बताए गए हैं।

1. जिस व्यक्ति ने हत्या की है, मुठभेड़ में उसकी कोई गलती नहीं होनी चाहिए।
2. यह स्पष्ट होना चाहिए कि यदि वह हत्या नहीं करता तो उसकी जान को खतरा या शरीर को गंभीर चोट पहुंच सकती थी।
3. आरोपी के पास पीछे हटने या भागने का कोई रास्ता नहीं था।
4. सामने वाले को जान से मारना उस वक्त की आवश्यकता थी।

तो क्या पुलिस आत्मरक्षा को आधार बनाकर बच निकलेगी?
यह इतना आसान नहीं है। एक मामले में 26 तो एक में 30 साल बाद भी आरोपी पुलिसकर्मियों को हत्या सजा सुनाई गई है।
1. पंजाब के अमृतसर में दो पुलिसकर्मियों ने 18 सितंबर 1992 को एक 15 वर्षीय नाबालिग का एनकाउंटर कर दिया था। जांच की गई। 26 साल बाद, 2018 में दोनों पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
2. देहरादून में 3 जुलाई 2009 को रणवीर की एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। इस केस में भी विस्तृत जांच के बाद 18 पुलिसकर्मियों को जून 2014 में उम्रकैद की सजा दी गई। बाद में, 11 रिहा हो गए, जबकि सात की सजा कायम है।
3. जुलाई 1991 में पीलीभीत में 47 पुलिसकर्मियों ने 11 सिखों को आतंकी बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था। पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में दोषी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। तब तक 10 की मौत हो चुकी थी।
4. दिल्ली में 1997 में दो उद्योगपतियों को मुठभेड़ में मार गिराने वाले सहायक पुलिस आयुक्त सहित दस अधिकारियों को 2011 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

क्या है एनकाउंटर हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 16-सूत्री गाइडलाइन?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एनकाउंटर हत्याओं के संबंध में कहा था कि सरकार किसी भी व्यक्ति को संविधान के तहत मिले जीने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। इसके बाद उसने 16-सूत्री गाइडलाइन भी जारी की थी।
1. आपराधिक गतिविधियों से जुड़ी मुखबिरी का रिकॉर्ड लिखित या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रखा जाएं।
2. यदि किसी टिप-ऑफ पर पुलिस हथियारों का इस्तेमाल करती है और किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उचित आपराधिक जांच को शुरू करती हुई एफआईआर दर्ज की जाएं।
3. इस तरह की मौत के मामले की जांच स्वतंत्र सीआईडी टीम करेगी, जिसने कम से कम आठ जांच इससे पहले की हो।
4. एनकाउंटर हत्याओं में मजिस्ट्रियल जांच अनिवार्य तौर पर की जाए।
5. एनएचआरसी या राज्य के मानव अधिकार आयोग को एनकाउंटर में हुई मौत की जानकारी तत्काल दी जाए।
6. घायल पीड़ित/अपराधी को तत्काल चिकित्सकीय मदद दी जाए और मजिस्ट्रेट उसका बयान दर्ज करें।
7. बिना किसी देरी के एफआईआर और पुलिस डायरी को कोर्ट भेजना सुनिश्चित करें।
8. तत्काल ट्रायल शुरू करें और उचित प्रक्रिया का पालन करें।
9. कथित अपराधी के निकट रिश्तेदार को मौत की सूचना दें।
10. सभी एनकाउंटर मौतों का ब्योरा दो साल में एनएचआरसी और राज्य आयोगों को निर्धारित फॉर्मेट में सौंपा जाए।
11. यदि कोई एनकाउंटर गलत तरीके से किया जाता है तो दोषी पुलिस अधिकारी को निलंबित कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
12. सीआरपीसी के तहत मृतक के रिश्तेदार को मुआवजा दिया जाए।
13. पुलिस अधिकारियों को संविधान के आर्टिकल 20 के तहत मिले अधिकारों के संबंध में जांच के लिए अपने हथियार तत्काल सरेंडर करने होंगे।
14. आरोपी पुलिस अधिकारी के परिवार को तत्काल सूचना दी जाएं और उन्हें वकील/सलाहकार की सेवाएं दी जाए।
15. एनकाउंटर हत्या में शामिल अधिकारियों को कोई आउट ऑफ टर्न पुरस्कार या प्रमोशन नहीं दिया जाए।
16. पीड़ित के परिवार को यदि लगता है कि गाइडलाइंस को फॉलो नहीं किया गया है तो वह सेशंस जज को शिकायत कर सकता है। जज संज्ञान लेंगे।

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विकास दुबे और एनकाउंटर / 19 साल पहले भी पुलिस ने एनकाउंटर की तैयारी कर ली थी, तब बच गया लेकिन इस बार मारा गया

  • गैंगस्टर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की शिवली थाने में घुसकर सरेआम हत्या कर दी थी। बावजूद इसके इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई। 2006 में वह इस केस से बरी हो गया। पुलिसकर्मियों ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी।गैंगस्टर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की शिवली थाने में घुसकर सरेआम हत्या कर दी थी। बावजूद इसके इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई। 2006 में वह इस केस से बरी हो गया। पुलिसकर्मियों ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी।
  • अक्टूबर 2001 में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की विकास दुबे ने शिवली थाने के अंदर की थी हत्या
  • तब के डीजीपी ने विकास पर 50 हजार का इनाम घोषित किया था और एनकाउंटर के निर्देश दिए थे

कानपुर. कानपुर के बिकरु गांव में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का मास्टरमाइंड विकास दुबे शुक्रवार को एनकाउंटर में मारा गया। आज हुए एनकाउंटर की चर्चा सभी जगह है, लेकिन आज से 19 साल पहले भी पुलिस ने विकास के एनकाउंटर की तैयारी कर ली थी, लेकिन सियासी संरक्षण के चलते विकास दुबे बच निकला था।

राज्य मंत्री की हत्या के बाद सख्त हुए थे पुलिस के तेवर
अक्टूबर 2001 में कानपुर में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला का मर्डर थाने में हुआ था। इसमें विकास दुबे मुख्य आरोपी था। सरेआम थाने में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री की हत्या के बाद कानपुर से लेकर डीजीपी ऑफिस तक हड़कंप मच गया।

यह कटिंग कानपुर के अखबार की 2001 की है। तब राज्यमंत्री की हत्या के बाद विकास के एनकाउंटर की पुलिस ने तैयारी कर ली थी।

कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार शरद कुमार बताते हैं कि राज्यमंत्री की हत्या के बाद तब के डीजीपी वीके गुप्ता ने विकास दुबे पर 50 हजार का इनाम घोषित किया था और कानपुर पुलिस को निर्देश दिए थे कि विकास का एनकाउंटर किया जाए। उस समय विकास के 10 साथियों पर 25 हजार का इनाम घोषित किया गया था।

यह तस्वीर दिवंगत दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की है। फोटो में वे बाएं से पहले शख्स हैं। फाइल फोटो 

कानपुर के सीनियर जर्नलिस्ट अनूप बाजपेई बताते हैं कि तब विकास की तलाश के लिए 120 पुलिसकर्मियों की टीम बनाई गई थी। इस काम में एसटीएफ भी लगी थी, लेकिन पुलिस सफल नहीं हो पाई। विकास दुबे दो महीने तक फरार रहा और फिर मामला शांत होने पर गिरफ्तारी दी थी।

पुलिस सूत्र बताते हैं कि विकास को फरारी काटने में महारत थी। राज्यमंत्री की हत्या के बाद 2001 दिसंबर में भी उसने जब उसने पुलिस के सामने सरेंडर किया था तब भी उसने सोच समझ कर ही किया था। इस समय भी उसने सोच समझकर ही सरेंडर किया था, लेकिन उस इस बार वह बच नहीं सका और उसका एनकाउंटर हो गया।

एनकाउंटर के डर से ग्रामीणों ने थाना घेर लिया था
जर्नलिस्ट शरद कुमार बताते हैं कि जब दिसंबर में इसे गिरफ्तार कर लिया गया और इसकी जानकारी आसपास के गांव वालों को हुई तो उन्होंने शिवली थाने का घेराव कर दिया। ग्रामीणों को डर था कि पुलिस विकास का एनकाउंटर कर देगी। इस वजह से पुलिस विरोधी खूब नारे लगे। आखिरकार पुलिस को विकास को कोर्ट में पेश करना पड़ा।

गैंगस्टर विकास दुबे। -फाइल फोटो

यही से विकास चढ़ा राजनीतिक सीढियां
सुल्तानपुर के हितेश श्रीवास्तव राजू व रूपेश श्रीवास्तव संजय जानकारी देते हैं कि राज्यमंत्री की हत्या के बाद विकास के हौसले बुलंद हो गए। क्योंकि, इसे ग्रामीणों का साथ मिलना भी शुरू हो गया था। लेकिन, यह बात राजनीतिक गलियारे तक पहुंच गई। फिर क्या था चाहे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा। हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियों में उसकी पूछ होने लगी। देखते ही देखते अपराधी विकास दुबे के सियासी कनेक्शन हो गए।स्थितियां यह बन गई की पुलिस भी विकास पर हाथ डालने से पहले सोचती थी।

अभी भी जांच हो तो खुलेंगे कई राज…
कानपुर के निवासी विशाल श्रीवास्तव,  प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि विकास को क्षेत्र में बाहुबली बनाने में सैकड़ों खादी और खाकी के लोग भी इसके जिम्मेदार हैं। अब देखना है कि आतंक का पर्याय बना विकास दुबे तो मारा गया, लेकिन क्या उन लोगों तक जांच की आंच पहुंचेगी।

 

 

शिवली कस्बे में जश्न, यहां विकास की गैंग ने की थी तीन लोगों की हत्या

गैंगस्टर विकास दुबे का पूरे क्षेत्र में आतंक था। उसके मारे जाने के बाद बिकरु गांव से करीब ढाई किमी दूर शिवली कस्बे में जश्न का माहौल है। यहां विकास के जानी दुश्मन लल्लन बाजपेयी की अगुवाई में लोगों ने विकास दुबे की मौत पर खुशियां मनाई। साल 2002 में विकास दुबे ने लल्लन पर बम और गोलियों से हमला कराया था। इसमें तीन ग्रामीण मारे गए थे। उससे पहले तक विकास और लल्लन गहरे दोस्त हुआ करते थे, लेकिन बमकांड के बाद से दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हो गए। वहीं, कानपुर शहर में लोगों ने पुलिस वालों का सम्मान किया है।

यह तस्वीर कानपुर में विकास दुबे के गांव के पास शिवली कस्बे की है। यहां उसके एनकाउंटर के बाद जश्न का माहौल है। लोगों ने एक दूसरे को मिठाकर खिलाकर उसकी मौत पर खुशी जताई। शिवली में विकास ने तीन लोगों की हत्या कर दी थी।

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