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एक ऐसी जगह जहां पर महिलाएं 80 की उम्र में भी दिखती हैं जवान, ये है वजह

कश्मीर में हुंजा घाटी एक ऐसी जगह है, जहां के लोगों को यह पता ही नहीं, कि दवा आखिर होती क्या है। यहां के लोग आम तौर पर 120 साल या उससे ज्यादा जिंदा रहते हैं और महिलाएं 65 साल की उम्र तक गर्भ धारण कर सकती हैं।

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हर इंसान के अंदर चाहत होती है कि वो खूबसूरत दिखे. खासकर महिलाएं तो अपने को सजाने संवारने में सबसे आगे रहती है. आज कल पुरूषों में भी अच्छा दिखने और सजने संवरने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी जगह के बारे में जहां की महिलाएं और पुरूष दोनों सुंदर होते हैं. यहां की महिलाएं 80 की उम्र में भी जवान दिखती हैं.

पाकिस्तान के उत्तर में काराकोमा पहाडियों में स्थित है हुंजा घाटी. यहां पर हुंजा समुदाय के लोग रहते हैं. यहां की महिलाएं दुनियाभर में सबसे खूबसूरत होती हैं. यहां की महिलाओं पर बढ़ती उम्र का भी असर नहीं होता है. यहां के पुरूष भी 90 साल की उम्र में पिता बनने का सुख उठा लेते हैं. ये समुदाय बहुत ही शिक्षित होता है. यहां रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 85 हजार है.

ये लोग मुस्लिम धर्म को ही मानते हैं. यहां पर रहने वाले लोग शारीरिक और मानसिक तौर पर बड़े ही मजबूत होते हैं. इनकी जीवन शैली भी आम लोगों से बिल्कुल अलग है और यही इनकी खूबसूरती का राज भी है. यहां के लोग सुबह सवेरे बहुत जल्दी उठ जाते हैं. ये लोग आने जाने के साइकिल या गाड़ी का इस्तेमाल करने की बजाए पैदल चलना पसंद करते हैं.

खानपान की बात करें तो यहां के लोग दिन में दो बार ही खाना खाते हैं. खाने में फल, सब्जी और दूध का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इनके खाने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती. ये लोग जौ, बाजरा, कुट्टू और गेहूं का आटा इस्तेमाल करते हैं. ये लोग मांस का सेवन बहुत कम करते हैं.

हुंजा घाटी पाकिस्तान के मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक है. दुनियाभर से लोग यहां पहाड़ों की खूबसूरती देखने आते हैं. इस समुदाय के ऊपर कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं, जिसमें ‘द हेल्दी हुंजाज’ और ‘द लॉस्ट किंगडम ऑफ द हिमालयाज’ शामिल हैं.

 

सुनने में अजीब लगता है कि भूख लगे तो अखरोट, अंजीर, खूबानी खाइए, प्यास लगे तो नदी का पानी पी लीजिये, हलकी फुलकी बीमारी हो तो वहीं आसपास लगी जड़ी बूटियों से इलाज कीजिए, कहीं जाना हो तो मीलों पैदल चलिए और 120 साल का स्वस्थ जीवन गुजारिए। आम तौर पर उम्र बढऩे के साथ शहरों में रहने वाले लोगों की दवाओं की खुराक बढऩे लगती है, लेकिन कश्मीर में हुंजा घाटी एक ऐसी जगह है, जहां के लोगों को यह पता ही नहीं, कि दवा आखिर होती क्या है। यहां के लोग आम तौर पर 120 साल या उससे ज्यादा जिंदा रहते हैं और महिलाएं 65 साल की उम्र तक गर्भ धारण कर सकती हैं। इस जनजाति के बारे में पहली बार डॉ. रॉबर्ट मैक्कैरिसन ने ‘पब्लिकेशन स्टडीज इन डेफिशिएन्सी डिजीज’ में लिखा था। इसके बाद ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें इस प्रजाति के जीवनकाल और इतने लंबे समय तक स्वस्थ बने रहने के बारे में बताया गया था।   लेख के अनुसार, यहां के लोग शून्य से भी कम तापमान में ठंडे पानी में नहाते हैं। कम खाना और ज्यादा टहलना इनकी जीवन शैली है।

दुनिया भर के डाक्टर हैं हैरान
दुनिया भर के डॉक्टरों ने भी ये माना है कि इनकी जीवनशैली ही इनकी लंबी आयु का राज है। ये लोग सुबह जल्दी उठते हैं और बहुत पैदल चलते हैं।
इस घाटी और यहां के लोगों के बारे में जानकारी मिलने के बाद डॉ. जे मिल्टन हॉफमैन ने हुंजा लोगों के दीर्घायु होने का राज पता करने के लिए हुंजा घाटी की यात्रा की। उनके निष्कर्ष 1968 में आई किताब ‘हुंजा- सीक्रेट््स ऑफ द वल्र्ड्स हेल्दिएस्ट एंड ओल्डेस्ट लिविंग पीपल’ में प्रकाशित हुए थे। इस किताब को सिर्फ हुंजा की जीवन शैली के साथ साथ स्वस्थ जीवन के रहस्यों को उजागर करने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जाता है।

सिकंदर को मानते हैं वंशज
सिकंदर को अपना वंशज मानने वाले हुंजा जनजाति के लोगों की अंदरूनी और बाहरी तंदरूस्ती का राज यहां की आबोहवा है। यहां न तो गाडिय़ों का धुआं है न प्रदूषित पानी। लोग खूब मेहनत करते हैं और खूब पैदल चलते हैं, जिसका नतीजा यह है कि तकरीबन 60 साल तक जवान बने रहते हैं और मरते दम तक बीमारियों से बचे रहते हैं। हुंजा घाटी एक समय भारत का हिस्सा थी, लेकिन बंटवारे के बाद यह पाक अधिकृत कश्मीर में आती है

गिलगित-बाल्टिस्तान में है हुंजा घाटी
गिलगित-बाल्टिस्तान के पहाड़ों में स्थित हुंजा घाटी भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के पास स्थित है। इस प्रजाति के लोगों की संख्या तकरीबन 87 हजार के पार है। आधुनिक समय में दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी दिल की बीमारी, मोटापा, ब्लड प्रेशर, कैंसर जैसी दूसरी बीमारियों का हुंजा जनजाति के लोगों ने शायद नाम तक नहीं सुना है। इनकी सेहत का राज इनका खान-पान है। यहां के लोग पहाड़ों की साफ हवा और पानी में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

जो उगाते हैं वहीं खाते हैं
ये लोग खूब पैदल चलते हैं और कुछ महीनों तक केवल खूबानी खाते हैं। ये लोग वही खाना खाते हैं जो ये उगाते हैं। खूबानी के अलावा मेवे, सब्जियां और अनाज में जौ, बाजरा और कूटू ही इन लोगों का मुख्य आहार है। इनमें फाइबर और प्रोटीन के साथ शरीर के लिए जरूरी सभी मिनरल्स होते हैं। ये लोग अखरोट का खूब इस्तेमाल करते हैं। धूप में सुखाए गए अखरोट में बी-17 कंपाउंड पाया जाता है, जो कैंसर से बचाव में मददगार होता है।

कुदरत के करीब खुश और सेहतमंद

शहरी जिंदगी ने भले इंसान के लिए सुविधाओं के दरवाजे खोले हों, लेकिन उसके बदले में भारी कीमत भी वसूल की है। कुदरत के करीब रहने वाले लोग आज भी खुश हैं स्वस्थ हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम भाग तो रहे हैं, लेकिन बीमारियों की गठरी भारी होती जा रही है और उम्र की डोर छोटी।

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