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देश में 9 लाख सेक्स वर्कर, जो इसी पेशे के बूते बच्चों की पढ़ाई के लोन, बूढ़ी मां का इलाज कराती थीं अब आर्थिक तंगी से जूझ रहीं

एआईएनएसडब्लू के मुताबिक यौनकर्मियों को सबसे ज्यादा परेशानी लॉकडाउन खत्म होने के बाद आएगी। क्योंकि प्रवासी मजदूर जो शहरों में रह रहे थे, वो अपने घर जा चुके होंगे। ज्यादातर इनके क्लाइंट वही थे। एआईएनएसडब्लू के अमित कुमार कहते हैं- कोविड ने देश के 95% सेक्स वर्कर को बेरोजगार कर दिया, फिजिकल डिस्टेंसिंग के मानक ने इनका काम ठप कर दिया लॉकडाउन में भी एनजीओ के जरिए इन तक सूखा राशन, सैनिटाइजर और मास्क पहुंचाया जा रहा, लेकिन यह मदद नाकाफी साबित हो रही

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लॉकडाउन

के बाद भुखमरी की कगार पर आ चुका एक तबका है सेक्स वर्कर का। इनके पास न सरकारी सुविधाएं हैं, न कानून, न योजनाएं। यहां तक की समाज की सहानुभूति भी इनके हिस्से नहीं आती।

यौनकर्मियों के लिए काम करने वाले संगठन ‘ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्सवर्कर्स’ (एआईएनएसडब्लू) की अध्यक्ष कुसुम का कहना है कि ‘यौनकर्मियों को सबसे ज्यादा दिक्कत लॉकडाउन खत्म होने के बाद आएगी। क्योंकि प्रवासी मजदूर जो शहरों में रह रहे थे, वो अपने घर जा चुके होंगे। ज्यादतर इनके क्लाइंट वही थे।

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक देश में लगभग 9 लाख सेक्सवर्कर हैं। हालांकि, एआईएनएसडब्लू इस आंकड़ों को जमीनी हकीकत नहीं मानती हैं। उसके मुताबिक देश में सेक्स वर्कर की संख्या तीस लाख से भी ज्यादा है।

‘लॉकडाउन ने हमारे काम पर एकदम से ताला लगा दिया’

तर्क ये है कि इनमें घरेलू महिलाएं, प्रवासी महिलाएं और दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिलाओं की भी एक बड़ी तादाद शामिल है। उन्हीं महिलाओं में शामिल रांची की सोहानी भी हैं। कहती हैं- ‘लॉकडाउन ने हमारे काम पर एकदम से ताला लगा दिया है। हम किसी को कह भी नहीं सकते कि हम क्या करते हैं, हमारा काम क्या है। किसी को पता नहीं हैं और हम कभी चाहते भी नहीं कि किसी को पता चले हमारे काम के बारे में।

रांची में यौनकर्मियों से मुलाकात करती हुई कांग्रेस विधायक दीपिका पांडे (ब्लैक साड़ी में) और मृगनयनी सेवा संस्थान की अध्यक्ष प्रतिमा कुमारी ( ग्रे कलर की सूट में)।

सोहानी बीते दो साल से सेक्स वर्कर का काम करके न सिर्फ अपने दो बच्चों को पढ़ा रही हैं, बल्कि अपनी बुजुर्ग मां की देखभाल का जिम्मा भी उन्हीं पर है। एस्बेस्टस के एक कमरे में बाकी सेक्स वर्कर के साथ बैठी हुई सोहानी कहती हैं- ‘पति बहुत मारता- पीटता था। आठ साल पहले छोड़कर चला गया। फिर हमारे पापा भी मर गए। तब हम कलकत्ता में ही मजदूरी का काम करते थे। लेकिन वहां ठेकेदार कभी पैसा देता, कभी नहीं देता। पैसा मांगते तो गलत करने को कहता। फिर लोगों के यहां झाड़ू-पोछा किया, लेकिन इससे अपने दो बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा था।’

पेट की मजबूरी और बच्चों की अच्छी परवरिश करने के लिए दो साल पहले कोलकत्ता से रांची आ गई। सोहानी आगे कहती है- ‘तीन महीने से एक भी कस्टमर नहीं मिला है। घर भेजने के लिए पैसा भी नहीं है। अब तो रांची में घर का किराया देने के लिए भी मुश्किल हो रही है। कुछ लोगों ने सूखा राशन दिया था, नहीं तो भुखे मरना पड़ता।

यौनकर्मियों को राशन वितरण करने के दौरान मृगनयनी सेवा संस्थान’  की अध्यक्ष प्रतिमा कुमारी। (पीले सूट में)

लॉकडाउन ने परेशानियां पहले से और ज्यादा बढ़ा दी

रांची की रहने वाली बिंदिया देवी का पति 12 साल पहले परिवार को छोड़कर भाग गया था। तब से ही बिंदिया के कंधे पर परिवार के भरण-पोषण का बोझ है। बिंदिया कहती हैं- ‘लॉकडाउन ने परेशानियां पहले से और ज्यादा बढ़ा दी है। मुझे तीन बेटों और दो विवाहित बेटियों और उनके बच्चों को देखना पड़ता है। पहले एक कंपनी में काम करती थी। लेकिन जब बीमार पड़ी तो उसने काम से हटा दिया। फिर लोगों के यहां झाड़ू-पोछा करने लगी, लेकिन उतने पैसों से इतने लोगों का पेट नहीं पाल सकते, इसलिए परिवार से लुकछुप कर यह काम करने लगी।’

हर जगह से मिली नाउम्मीदी के बाद बिंदिया भी दो साल पहले इस पेशे में आई थीं, लेकिन कोरोना ने उनकी परेशानी बढ़ा दी। वो आगे कहती हैं- ‘सब चीज तो पहले जैसी हो रही है और हो जाएगी, लेकिन हमारा क्या होगा, बच्चा बीमार है, उसका इलाज कहां से होगा?’

यौनकर्मियों को राशन वितरण करने के दौरान मृगनयनी सेवा संस्थान की अध्यक्ष प्रतिमा कुमारी।( ग्रे कलर की सूट में)।

महिला और सेक्स वर्कर के अधिकारों के लिए काम करने वाली ‘मृगनयनी सेवा संस्थान’ की अध्यक्ष प्रतीमा कुमारी का कहना है कि कोरोना का संक्रमण जैसे-जैसे बढ़ेगा, सेक्स वर्कर की परेशानी भी बढ़ती जाएगी। अकेले झारखंड में यौनकर्मियों की संख्या 20 हजार से भी ऊपर है। पिछले साल हमारी संस्था ने झारखंड में 5500 को ट्रेस किया था। इसमें 600 से ज्यादा तो रांची में ही मिली थीं।

यौनकर्मियों की समस्याओं पर एआईएनएसडब्लू की अध्यक्ष कुसुम कहतीं हैं कि ‘ये लोग मदद के लिए किसी से कुछ बोल भी नहीं सकती हैं, और उन तक कोई मदद पहुंचा भी नहीं पाता है। इनका काम फिजिकल होना ही होता है और कोरोना की वजह से कोई भी इनके पास नहीं आ रहा है। इनकी स्थिति भूखे मरने जैसी हो गई है। और अगर किसी दूसरे काम में जाना चाहेंगे तो जल्दी काम नहीं मिलेगा। झारखंड स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (जेएसएसीएस) का दावा है कि राज्य में सेक्स वर्कर की संख्या लगभग 10 हजार है। इन लोगों तक सरकारी स्कीमों की सर्विस पहुंचाई जा रही है। लॉकडाउन में भी एनजीओ के जरिए उन तक मदद पहुंचाई है, जैसे सूखा राशन, सैनिटाइजर और मास्क। इसके अलावा कोडिव-19 को लेकर लगातार काउंसलिंग भी कर रहे हैं।’

लेकिन रांची की ही प्रमिला कहती हैं उन्हें कुछ भी नहीं मिला। बच्चों की पढ़ाई के लिए लॉकडाउन से कुछ महीने पहले ही उसने 20 हजार रुपए लोन पर कर्ज लिया था। वो कहती हैं- ‘सोचा था कर्ज कमाई से चुकता कर देंगे, बीते तीन महीने से एक भी ग्राहक नहीं मिला है। हम तो बाहर निकलकर राशन भी नहीं मांग सकते हैं। काम ऐसा करते हैं कि बता भी नहीं सकते किसी को।

रांची में यौनकर्मियों को लेकर आयोजित कार्यशाला में मृगनयनी सेवा संस्थान की अध्यक्ष प्रतिमा कुमारी (तस्वीर लॉकडाउन से पहले की है)

प्रमिला अपने बच्चों को पढ़ाई करवाने इस पेशे में आई थी। पति के निधन को 14 साल हो गए। बच्चे बहुत छोटे थे। दूसरों के यहां झाड़ू-पोछा करके अपना और अपने बच्चों का पेट पाल लेती थी लेकिन जैसे-जैसे खर्च बढ़ा तो यह काम करना पड़ा। वो पूछती हैं अब क्या काम करें, हमें कौन काम देगा?

कोरोना से 95% सेक्स वर्कर बेरोजगार

एआईएनएसडब्लू के नेशनल कॉर्डिनेटर अमित कुमार का कहना है कि कोविड ने देश के 95% से भी अधिक सेक्स वर्करों को बेरोजगार कर दिया है। आगे स्थिति और भयावह होने वाली है। कोविड के दौरान फिजिकल डिस्टेंसिंग के मानकों ने इनका काम लगभग ठप कर दिया है। जहां ये रहती हैं, वहां किराया न देने की वजह से धमकियां मिलने लगी हैं। घरेलू हिंसा और मानसिक तनाव के मामले भी बढ़े है, जिसकी शिकायत तक नहीं कर सकतीं।

एआईएनएसडब्लू की अध्यक्ष कुसुम कहती हैं, ‘मैं एक आम नागरिक हूं तो सारी सुविधाएं मिलेगी लेकिन एक सेक्स वर्कर होकर कहीं कुछ लेने जाती हूं तो मुझे कुछ नहीं मिलेगा। जैसे ही मेरी पहचान सेक्स वर्कर के रूप में उजागर होती है वहीं पर मेरे सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। तब मैं एक मजबूर महिला, एक मां और बहन नहीं रह जाती हूं।

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