इस्लामाबाद. पाकिस्तान में महामारी तेजी से पैर पसार रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 लाख 42 हजार संक्रमित हैं। 2 हजार 663 की मौत हो चुकी है। इमरान खान सरकार महामारी रोकने में नाकाम साबित हुई है। देश के पूर्व डिप्लोमैट वाजिद शम्स उल हसन के मुताबिक, सरकार की नाकामी से फौज सख्त नाखुश है। तमाम बड़े ओहदों पर फौज के बड़े अफसरों की तैनाती की जा चुकी है। देश में मार्शल लॉ यानी सैन्य शासन की औपचारिक घोषणा बाकी है।
प्रशासन के पदों पर लेफ्टिनेंट जनरल
वाजिद डिप्लोमैसी से पत्रकारिता में आए हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा, “फौज महामारी रोकने में सरकार की नाकामी से सख्त नाखुश है। इसलिए सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के तमाम बड़े ओहदों पर 12 से ज्यादा लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अफसरों की तैनाती या तो हो चुकी है, या फिर की जा रही है। हालांकि, अब तक औपचारिक तौर पर मार्शल लॉ का ऐलान नहीं किया गया है। सरकारी एयरलाइंस पीआईए, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ जैसे सबसे बड़े महकमों के प्रमुख फौजी अफसर हैं। यह सब दो महीनों में हुआ है।”
इमरान को कुछ नहीं पता
वाजिद के मुताबिक, प्रधानमंत्री इमरान खान को महामारी से निपटने के मामले में कुछ नहीं पता। हसन कहते हैं, “सिंध प्रांत की सरकार ने लॉकडाउन की मांग की। इमरान ने इसका विरोध किया। हालात बिगड़े तो प्रधानमंत्री स्मार्ट लॉकडाउन की बात करने लगे। अब देखिए मुल्क कहां पहुंच गया है। सरकारी आंकड़ों को ही देख लें। मरने वालों का आंकड़ा 3 हजार के करीब है। संक्रमित भी एक लाख 30 हजार के आसपास हो चुके हैं।”
डब्ल्यूएचओ की भी नहीं सुनते
पाकिस्तान में महामारी के खतरे को लेकर हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी जारी की थी। संगठन ने कहा था- पाकिस्तान में हालात बहुत बदतर हो सकते हैं। वहां सरकार को फौरन सख्त लॉकडाउन घोषित करना चाहिए। वाजिद कहते हैं- इमरान देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब बता रहे हैं। वो कहते हैं कि अगर लॉकडाउन किया तो लोग भूखे मर जाएंगे। मार्च से यही राग अलापा जा रहा है। जबकि, डब्ल्यूएचओ कह रहा है कि पाकिस्तान ऐसी स्थिति में नहीं है कि कोई शर्त थोप सके। देश की डॉक्टरों की बात भी नहीं मानी जा रही।
ऐसे चल रही है सरकार
वाजिद कहते हैं- इमरान सरकार कई छोटे दलों के भरोसे चल रही है। यह पार्टियां वास्तव में सेना के इशारे पर चलती हैं। पाकिस्तान में अगर कोई ताकतवर है तो वह फौज है। इमरान हर मोर्चे पर नाकाम रहे हैं। वे कहते हैं कि अगर लॉकडाउन लगाया तो मुल्क दिवालिया हो जाएगा। हालांकि, सेना का रोल नया नहीं माना जाना चाहिए। पाकिस्तान में शुरू से ही यह होता रहा है। पहले भी सरकारें ऐसे ही चली हैं।
पाकिस्तान में सैन्य शासकों की तानाशाही
भारत और पाकिस्तान दोनों एक ही साल 1947 में आजाद हुए। एक ओर जहां भारत में लोकतंत्र फलता-फुलता रहा, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में सैन्य शासकों की तानाशाही बढ़ती रही। पाकिस्तान के 77 साल के इतिहास में आधे से ज्यादा समय तक सैन्य शासन ही रहा है। आजादी के नौ साल के बाद ही पाकिस्तानी जनरल मोहम्मद अयूब खान ने तत्कालिन राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा का तख्ता पलट दिया था।
सैन्य शासक (जो राष्ट्रपति बन गए) | कार्यकाल |
अयूब खान | 1958-69 |
याह्ना खान | 1969-71 |
जिया उल हक | 1977-88 |
परवेज मुशर्रफ | 2001-08 |