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45 एकड़ में से 5 बीघा कोरोना के लिए अलग किया, इसका 75% हिस्सा भर चुका है, 300 को तो शमीम दफना चुके हैं

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नई दिल्ली. ‘मोहम्मद शमीम लोगों की कब्र खोदते हैं।’ यह वाक्य बेहद क्रूर लगता है, लेकिन यही शमीम की जिंदगी की हकीकत है। ऐसी हकीकत जिसे कोरोना महामारी ने और भी ज्यादा क्रूर बना दिया है। ऐसे समय में जब लोग कोरोना से मरने वाले परिजनों के शवों को छूने से भी घबरा रहे हैं, शमीम बीते ढाई महीने से लगातार इन शवों को दफनाने में जुटे हुए हैं।

शमीम दिल्ली के ‘जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम’ में कब्र खोदने का काम करते हैं। आईटीओ के पास स्थित ये वही कब्रिस्तान है, जहां कोरोना संक्रमण से मरने वाले सबसे ज्यादा लोगों को दफनाया गया है।

शमीम बताते हैं, ‘शुरुआत में तो हमने भी कोरोना से मरने वालों को यहां दफनाने से इनकार कर दिया था। हमें भी संक्रमण का डर था। लेकिन फिर डॉक्टरों ने हमें समझाया और कब्रिस्तान की समिति वालों ने भी सोचा कि अगर कोई भी इन लोगों को दफनाने को तैयार नहीं हुआ तो ऐसे लोगों का क्या होगा? किसी को तो ये जिम्मेदारी लेनी ही थी तो हम तैयार हो गए।’

मोहम्मद शमीम ही वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने दिल्ली में सबसे पहले कोरोना से मरने वाले लोगों के शव दफनाने की जिम्मेदारी ली थी। लॉकडाउन के दो दिन बाद से ही उन्होंने यह काम शुरू कर दिया था और अब तक 300 से ज्यादा शवों को दफन कर चुके हैं।

‘जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम’ करीब 45 एकड़ में फैला है। इसमें से करीब पांच बीघा जमीन कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों के अलग की गई है। शमीम बताते हैं, ‘इस पांच बीघा जमीन का करीब 75 फीसदी हिस्सा अब तक भर चुका है। जिस तेजी से लोगों की मौत हो रही हैं, एक हफ्ते के भीतर ही बाकी जगह भी पूरी भर जाएगी। तब कब्रिस्तान की समिति को शायद और जमीन कोरोना वाले शवों के लिए देनी पड़े। इसके लिए फिर से कई पेड़ काट कर जमीन तैयार करनी होगी। यह पांच बीघा जमीन भी जंगल काटकर ही तैयार की गई थी।’

शमीम बताते हैं कि लॉकडाउन खुलने के साथ ही कोरोना से मरने वालों की संख्या में अचानक तेजी आई है। उनके अनुसार जहां लॉकडाउन के दौरान एक दिन में पांच-छह शव इस कब्रिस्तान में पहुंच रहे थे वहीं लॉकडाउन खुलने के साथ ही रोजाना 12 से 15 शव आने लगे हैं। यही नहीं, अन्य वजहों से मरने वाले लोगों के शव भी इन दिनों ज्यादा आने लगे हैं।

शमीम कहते हैं, ‘कोरोना की बहस के चलते ऐसी मौतों पर किसी का ध्यान नहीं है, लेकिन इनमें भी बहुत बढ़ोतरी हुई है। औसतन यहां 6-7 शव आया करते थे, लेकिन इन दिनों कोरोना से अलग भी 10-12 शव रोज आ रहे हैं। इसका कारण शायद यही है कि कोरोना महामारी के चलते लोगों को अन्य गम्भीर बीमारियों का भी अच्छा इलाज नहीं मिल पा रहा है।’

इस कब्रिस्तान में अमूमन पुरानी दिल्ली के निवासियों को दफनाया जाता रहा है। लेकिन कोरोना महामारी के दौर में दिल्ली के कई अलग-अलग हिस्सों से शव यहां लाए जा रहे हैं। इनमें कई शव तो ऐसे भी हैं जिन्हें मौत के चार-पांच दिन बाद यहां लाया जा रहा है। यह देरी कोरोना जांच की रिपोर्ट के इंतजार में हो रही है।

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