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बर्न्स ने कहा- कोरोना संकट में मोदी, ट्रम्प और जिनपिंग के पास मिलकर काम करने का मौका था, अगला संकट आएगा तो बेहतर काम की उम्मीद

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नई दिल्ली. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेरिका के पूर्व डिप्लोमैट निकोलस बर्न्स से चर्चा की। शुक्रवार सुबह 10 बजे इसका वीडियो जारी किया गया। बर्न्स ने कहा कि भारत और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। हमारे सैन्य संबंध मजबूत हुए हैं। दोनों को एक-दूसरे के लिए अपने दरवाजे खुले रखने चाहिए। बर्न्स अभी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में डिप्लोमैसी एंड इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं।

बर्न्स ने 7 मुद्दों पर बात रखी

1. कोरोना पर मिलकर काम नहीं किया
अगर भविष्य में कोई महामारी आए तो दोनों देश मिलकर अपने गरीबों के लिए काफी कुछ कर सकते हैं। कोरोना संकट में मोदी, ट्रम्प और शी जिनपिंग के पास मिलकर काम करने का मौका था। मुझे लगता है कि अगला संकट आएगा तो बेहतर काम की उम्मीद की जा सकती है।

2. चीन-अमेरिका संबंध
हम चीन के साथ संघर्ष नहीं चाहते। हम खुद को चीन से अलग नहीं रख सकते। मैं बिना हिंसा के सहयोगी तरीके से कॉम्पिटीशन के पक्ष में हूं।

3. चीजें छिपाता है चीन
लोग कह रहे हैं कि चीन कोरोना से जीत रहा है, लेकिन भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों के मुकाबले चीन में खुलेपन की कमी है।

4. अहिंसा भारत की परंपरा 
स्वयं ही खुद को सही करने का भाव हमारे डीएनए में है। लोकतंत्र के रूप में, हम इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में बैलेट बॉक्स के जरिए हल करते हैं। हम हिंसा की ओर नहीं मुड़ते। यह भारतीय परंपरा ही है, जिसकी वजह से हम शुरूआत से ही भारत से प्यार करते हैं।

5. नस्लभेद की वापसी
अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड का पुलिस के हाथों मारा जाना एक भयानक घटना थी। पिछले 100 साल से मार्टिन लूथर किंग जूनियर अमेरिका की महान शख्सियत के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने अमेरिका को बेहतर बनाया। महात्मा गांधी उनके आदर्श थे। हमने अफ्रीकी-अमेरिकन बराक ओबामा को प्रेसिडेंट चुना था, लेकिन अब नस्लभेद वापस आता दिख रहा है। अफ्रीकी-अमेरिकियों से गलत बर्ताव हो रहा है।

6. ट्रम्प सत्तावादी हैं
डोनाल्ड ट्रम्प खुद को एक झंडे में लपेटते हैं। वे कहते हैं कि अकेले की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। मुझे लगता है कि वे कई मायनों में सत्तावादी हैं, लेकिन हमारे देश के संस्थान मजबूत हैं।

7. अप्रवासियों का देश है अमेरिका
पुलिस ज्यादती से जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के खिलाफ अमेरिका के लाखों लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति उनके साथ आतंकियों जैसा व्यवहार करते हैं। देशों को आपस में चर्चा करनी चाहिए। इस बारे में राजनीतिक चर्चा होनी चाहिए कि हम कौन हैं? हमारे देश की पहचान क्या है? हम अप्रवासी और सहिष्णु देश हैं।

डेढ़ महीने में छठे एक्सपर्ट से चर्चा
कोरोना और उसके असर को लेकर राहुल अलग-अलग फील्ड के देश-विदेश के एक्सपर्ट से डिस्कस कर रहे हैं। चर्चा के बाद रिकॉर्डेड वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है। निकोलस बर्न्स से पहले राहुल करीब डेढ़ महीने में 5 एक्सपर्ट से बात कर चुके हैं।

30 अप्रैल: आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से चर्चा हुई थी। राजन ने कहा था कि गरीबों की मदद के लिए 65 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की जरूरत है।
5 मई: अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी से बातचीत की। बनर्जी ने कहा था कि कोरोना के आर्थिक असर को देखते हुए बड़े आर्थिक पैकेज की जरूरत है।
27 मई: राहुल ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशीष झा और स्वीडन के कैरोलिंसका इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर जोहान गिसेक से चर्चा की थी। प्रोफेसर झा ने कहा था कि कोरोना का वैक्सीन अगले साल तक आने की उम्मीद है। प्रोफेसर जोहान का कहना था कि भारत में सॉफ्ट लॉकडाउन होना चाहिए। लॉकडाउन सख्त होगा तो अर्थव्यवस्था जल्दी बर्बाद हो जाएगी।
4 जून: बजाज ऑटो के एमडी राजीव बजाज से बात हुई थी। बजाज ने कहा था कि देश में लॉकडाउन से संक्रमण तो नहीं रुका बल्कि अर्थव्यवस्था ठहर गई।

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