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किसान का आविष्कार: चंपा के बीज से बनाया तेल, उसी से चलाते हैं मोटर!

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पिछले कुछ सालों में जिस तरह से नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काफी जागरूकता आयी है। उसी तरह अब भारत सरकार की कोशिश है कि नवीकरणीय ईंधन के क्षेत्र में भी काम हो। साल 2018 में नेशनल पॉलिसी ऑन बॉयोफ्यूल्स भी बनाई गई। इस पॉलिसी के तहत देश में प्लास्टिक, सॉलिड वेस्ट, कृषि अपशिष्ट और पेड़-पौधों के ज़रिये ऊर्जा और ईंधन बनाने की कोशिश की जाएगी।

हमारे देश में जैविक ऊर्जा के क्षेत्र में ज़्यादा काम नहीं हुआ है। ऊर्जा के विकल्प के तौर पर अगर बॉयो फ्यूल को उपयोग में लिया जाए तो यह देश के विकास में काफी बेहतर साबित होगा और इससे किसानों की आय व रोज़गार भी बढ़ेगा।

दिलचस्प बात यह है कि तमिलनाडु का एक किसान कई सालों से अपनी खेती में बॉयो फ्यूल का इस्तेमाल कर रहा है। हम बात कर रहे हैं नागपट्टिनम के किलवेलूर तालुका के एक गाँव में रहने वाले सी. राजशेखरन की। पिछले लगभग 10 साल से राजशेखरन अपने खेत पर इंजन के लिए सुल्तान चंपा (Calophyllum inophyllum) नामक पेड़ के तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह अपने मोटरपंप की 5 एचपी मोटर को चलाने के लिए इस तेल का प्रयोग करते हैं।

राजशेखरन ने द बेटर इंडिया को बताया कि 9-10 साल पहले उनकी ज़मीन बंज़र हुआ करती थी। लेकिन उन्होंने इसे उपजाऊ बनाने के लिए जैविक खेती के तरीके अपनाए। आज उनकी यही 5 एकड़ की ज़मीन 35 किस्म के पेड़ों का बाग़ है।

अपने जैविक तरीकों के साथ-साथ राजशेखरन को बॉयो फ्यूल के उपयोग के लिए भी जाना जाता है। वह बताते हैं, “लगभग 10 साल पहले हमारे इलाके में डीजल की बहुत समस्या थी। उस वक़्त मुझे पता चला कि चेम्बूर में लोग सुल्तान चंपा का तेल वाहनों में इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारे यहाँ नारियल का तेल भी इन कामों में इस्तेमाल होता है। तब मेरे यहाँ भी सुल्तान चंपा के पेड़ थे और मैंने भी ट्राई करने का सोचा।”

सुल्तान चंपा पेड़ को बहुत से अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसके फलों को सूखा कर उनमें से तेल निकाला जाता है और इस तेल को बॉयो फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। राजशेखरन ने जब इसका उपयोग शुरू किया, तब उन्हें कोई साइंटिफिक विधि नहीं पता थी बल्कि वह तो सिर्फ कोशिश कर रहे थे।

वह कहते हैं कि अगर किसी किसान के खेत में सुल्तान चंपा के दो पेड़ भी हैं तो वह डीजल की लागत कम कर सकता है। किसानों को बहुत ज्यादा मेहनत करने की ज़रूरत भी नहीं है। “सुल्तान चंपा का पेड़ जितना ज्यादा पुराना होता है, उतनी ही ज्यादा उपज देता है और इसकी छांव भी बहुत अधिक होती है। यह मधुमक्खियों और चमगादड़ों को आकर्षित करता है। मधुमक्खियों की वजह से इसमें पोलिनेशन होता है तो चमगादड़ इसके फल खाती हैं और उसमें से निकलने वाले बीज नीचे गिर जाते हैं,” उन्होंने आगे बताया।

इन बीजों को इकट्ठा करके पहले 10 दिन सुखाया जाता है। सूखने के बाद ये बीज टूटने लगते हैं और इनके अंदर से कर्नेल निकलता है। अब इस कर्नेल को और दस दिन सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इनमें से तेल निकाला जाता है। आप अपने आस-पास किसी स्थानीय जगह से यह तेल निकलवा सकते हैं।

राजशेखरन के मुताबिक, एक किलो सुल्तान चंपा के बीजों से लगभग 800 मिलीलीटर तेल निकलता है और इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं लगती। अपने 5 एकड़ के खेत के लिए वह 5 एचपी मोटर पंप इस्तेमाल करते हैं। उसमें उन्होंने इस तेल को डाला और एक घंटे में उनकी 600 मिली तेल की खपत हुई।

“मुझे इस तेल को बायोडीजल कैसे बनाना है, यह सब नहीं पता था। मैंने हमेशा इसे सीधे ही इस्तेमाल किया और रिजल्ट भी काफी अच्छा मिला। डीजल और इस तेल में मुझे कोई खास फर्क नहीं लगा, बल्कि इसे इस्तेमाल करने पर धुआं कम निकलता है और इससे जंग भी नहीं लगता,” राजशेखरन ने कहा। उनके मुताबिक, तेल निकालने के बाद बीजों का जो अपशिष्ट बचता है, उसे खेतों में खाद के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

वह कहते हैं कि किसानों को इस तेल को इस्तेमाल करते समय बस एक ही सावधानी बरतनी चाहिए और वह है कि बहुत ज़्यादा स्पीड वाले इंजन में इसे इस्तेमाल न करें। उनका कहना है कि उन्हें नहीं पता कि यह तेल किस प्रक्रिया से बॉयोडीजल बनता है और उन्होंने जो कुछ सीखा है अपने अनुभव से सीखा है। इसलिए वह किसी भी तरह के रिस्क से दूर रहने के लिए कहते हैं।

उनके इस तेल के बारे में जब आस-पास के किसानों को पता चला तो वह भी उनके फार्म पर पहुँचने लगे। राजशेखरन ने इलाके के बहुत से किसानों को अपनी इस तकनीक से अवगत कराया और उन्हें भी इसे इस्तेमाल करने की प्रेरणा दी। वह बताते हैं कि उन्होंने लगभग 500 किसानों को सुल्तान चंपा के बीज भी बांटे हैं ताकि वे अपने खेतों में यह पेड़ लगा सकें। ताड़ के पेड़ों की तरह सुल्तान चंपा के पेड़ भी आपको सड़कों के किनारे ज्यादा मिलेंगे क्योंकि किसानों को इनके महत्व के बारे में नहीं पता है तो वे इन्हें नहीं लगाते।

हालांकि, गाजा सायक्लोन के वक़्त, उनका फार्म भी तहस-नहस हो गया था और फ़िलहाल वह अपने फार्म को फिर से बनाने में जुटे हुए हैं। वह कहते हैं कि फ़िलहाल वह नियमित रूप से इस तेल का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन ऐसे बहुत से किसान हैं उनके इलाके में जो यह तेल सफलता से उपयोग में ले रहे हैं। अगर कोई उन्हें अपने फार्म पर इस तेल के बारे में बताने के लिए बुलाता है तब भी जाते हैं। अभी उनका पूरा ध्यान फिर से अपने फार्म को हरा-भरा बनाने में हैं जहां एक बार फिर सुल्तान चम्पा के पेड़ लहलाएं।

अच्छी बात यह है कि सुल्तान चंपा के तेल को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन भी हो रहे हैं और इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि इसे बॉयोफ्यूल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

अंत में राजशेखरन सिर्फ यही कहते हैं कि अगर प्रशासन स्थानीय तौर पर उपलब्ध इन देशी पेड़ों का सही अध्ययन करे और किसानों तक सही तकनीक पहुंचाए तो यकीनन देश में डीजल और पेट्रोल के अच्छे विकल्प मिल सकते हैं।

अगर आप राजशेखरन से इस बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें 97510 02370 पर मैसेज कर सकते हैं!

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