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संभलकर चुनें मास्क, लो रिस्क एरिया में रहते हैं तो इस्‍तेमाल करें दो लेयर वाला मास्‍क

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कोरोना से बचने के लिए जिस मास्क का इस्तेमाल हम रोजाना की जिंदगी में कर रहे हैं, उसकी गुणवत्ता सही नहीं रही तो वह सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसमें फैब्रिक के बने नॉन वोवन मास्क ज्यादा खतरनाक हैं। एक बार के बाद इनका दोबारा इस्तेमाल भी नहीं हो सकता। साथ ही देर तक इसे पहने रहने से लोगों का दम घुटता हुआ महसूस होता है। ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा इसे पहनने के बाद फेफड़ों में नहीं पहुंच पाती।

आजकल बाजार में ज्यादातर इसी तरह के मास्क बेचे जा रहे हैं। पहले इनकी कीमत थोक में लेने पर महज एक से दो रुपये पीस तक हुआ करती थी, लेकिन अब यह आठ से दस रुपये प्रति पीस के हिसाब से मिल रहे हैं। इन्हेंं बनाने में कोविड सुरक्षा के सभी मानकों का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा। दरअसल, कोरोना काल में भी कुछ मुनाफाखोर लोगों की जेब काटने के साथ-साथ उनकी जिंदगी संग खेलने से बाज नहीं आ रहे। मास्क का धंधा ऐसे लोगों के लिए बेहद मुफीद बन गया है। वजह यह है कि नॉन वोवन मास्क कीमत में सबसे सस्ते हैं, इसलिए इनकी मांग भी ज्यादा है।

आमजनों को वितरित करने के लिए भी ज्यादातर यही मास्क इस्तेमाल हो रहा है। हकीकत में सांस व हृदय रोगियों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, लो रिस्क एरिया में रहने वाले लोग इसकी बजाय दो लेयर का कपड़े वाला मास्क पहनें या फिर अंगौछा, रुमाल, दुपट्टा बांधकर निकलेंं।

नॉन-वोवन मास्क व वोवन मास्क में अंतर केमिस्ट एंड ड्रग फेडरेशन ऑफ उत्तर प्रदेश के महासचिव सुरेश गुप्ता ने बताया कि नॉन ओवन थ्री लेयर मास्क एक बार उपयोग कर फेंक दिए जाते हैं। इसलिए ऐसे मास्क को आमतौर पर सर्जरी के वक्त डॉक्टर ही पहनते हैं। इसमें माइक्रॉन फिल्टर लगा होता है, जो कि मैटबलौन कपड़े का बना होता है। जब किसी व्यक्ति की सर्जरी की जाती है तो उस दौरान चीरफाड़ होने से उसके अंदर मौजूद बैक्टीरिया, वायरस से संक्रमण का खतरा होता है।

जो डॉक्टर या स्टाफ इसे पहनकर सर्जरी करते हैं, उनके अंदर भी अगर कोई संक्रमण है तो यह बाहर नहीं जाने देगा। इससे मरीज भी संक्रमित नहीं होगा। ऑपरेेशन के बाद इसे फेंक दिया जाता है। जबकि वोवन मास्क एक से दो-तीन बार तक स्टरलाइज किए जा सकते हैं और दोबारा इनका इस्तेमाल हो सकता है।

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