बीरबल की खिचड़ी की तरह पक रही है इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मान्यता
परिवार कल्याण व स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बनाई आईडीसी के पास अधिकांश दस्तावेज सबमिट, मान्यता के मुद्दे पर हो चुकी है आधा दर्जन बैठकें, आपसी सहमति नहीं होने के कारण ई.एच रिक्नोजाईजेशन का मुद्दा लटका
नई दिल्ली 14 नवंबर ( )
इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मान्यता का मामला बीरबल की खिचड़ी की तरह पक रहा है। दबी जुबान में हर कोई यही सच्चाई कबूल रहा है। 1920 से हिंदोस्तान में अस्तित्व में आई देश की पांचवी पैथी इलेक्ट्रोहोमयोपैथी आज अपने वजूद के लिए लड़ रही है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी को प्रैक्टिस, प्रमोशन, रिसर्च आदि का अधिकार है। ये अधिकार केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट व विभिन्न हाई कोर्टस की ओर से दिया जा चुका है।
देश में पिछले 100 साल से इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सकों की तीन पीढ़ियां इस पैथी में प्रैक्टिस करते बीत गई हैं। इलेक्ट्रो होम्योपैथिक की बारीकियाँ पढ़ाते, किताबे लिखते दवाइयां बनाते कई जमाने गुजर गए लेकिन समाज में आज भी इलेक्ट्रो होम्योपैथिक का एक लावारिस सी जिंदगी गुजार रही है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी फाऊंडेशन के नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर डॉ. ऋतेश श्रीवास्तव, बठिंडा कहते हैं कि 1865 में इटली के डाक्टर काउंट सीजर मैटी की ओर से इजाद की गई इलेक्ट्रो होम्योपैथी
114 पौधों पर आधारित है। उक्त पैथी बहुत सस्ती है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं। आसाध्य रोगों पर यह कारगर है। गली कूचे में इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सक लोगों का इलाज करते दिख जाते हैं, इन लोगों की प्रैक्टिस तो चल रही है लेकिन मान्यता नहीं मिलने कारण इन्हें कई सुविधाएं नहीं मिल रही, वह सुविधाएं जो अन्य पैथी के चिकित्सकों को मिल रही हैं। सरकारी नौकरियों में इनकी भागीदारी नहीं है। मैडिकल कालेज में इसकी पढ़ाई नहीं है। इनका रुतबा कम है। परिवार कल्याण व स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बनाई आईडीसी कमेटी की बैठकों का दौर जारी है। आईडीसी को जो चाहिए वह दस्तावेज अभी संपूर्ण नहीं हुए हैं। इलेक्ट्रो होम्योपैथिक से जुड़ी विभिन्न एसोसिएशन, बोर्ड, काउंसिल के नेताओं में मतभेद है। हर कोई चाहता है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता मिल जाए, सुविधाएं मिलें, लेकिन एक मंच में मंच पर आने से सभी कतराते हैं। यही कारण है की मान्यता का मुद्दा बीरबल की खिचड़ी की तरह धीरे-धीरे पक रहा है, यानी मान्यता तो तो मिल जाएगी लेकिन समय कितना लगेगा। खिचड़ी कब बनेगी कोई स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकता। आईडीसी में इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का पक्ष रखने वाले प्रोपोजलिस्ट टीम का हिस्सा डॉ. कपिल सिंह ठाकुर कहते हैं कि हम आईडीसी को सन्तुष्ट करने में जुटे हुए हैं। ईएच मेडिसिन के क्लिनिकल मोनोग्राफ (भाग -1), ईएच पौधों के मोनोग्राफ (भाग -1), जीएचपी के संदर्भ में ईएच फार्मेसी पद्धति (भाग -1) ईएच औषधीय पौधों के पेपर प्रकाशन, ईएच पौधों का औषधीय उपयोग, ईएच मेडिसिन के आयात के साक्ष्य दस्तावेज (1920-2020), ईएच मेडिसिन्स प्री क्लिनिकल एंड क्लिनिकल डेटा पब्लिकेशन (भाग -1)
हौस यूएसए में आयोजित ईएच फॉर्मूलेशन का इम्यूनोमॉड्यूलेटर अध्ययन, ईएच पौधों की फाइटो स्क्रीनिंग स्पैगाइरिक्स (भाग -1), ईएच संस्थागत डेटा (भाग -1) ईएच मेडिसिन के चिकित्सीय मूल्य में सुधार के लिए आविष्कार के संबंध में दिया गया पेटेंट आईपी इंडिया द्वारा आदि हाल ही में सबमिट किए हैं। आईडीसी से पांच बैठकें हो चुकी हैं।
डॉक्टर प्रोफेसर हरविंदर सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, ईएचएफ कहते हैं। इलेक्ट्रो होम्योपैथिक देश की पांचवी ऐसी पैथी है जिसके रिज़ल्ट बेमिसाल हैं। इन्हें कई लोग तो मिरीक्लस तक कहते हैं। एम्स की मिनट बुक से लेकर देश के स्वास्थ्य मंत्री तक इलेक्ट्रो होम्योपैथिक पद्धति के कथित दीवानों में शुमार है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी ने ऐसे असाध्य रोगों का इलाज किया है। जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। कई ऐसे भी केस हैं जिनमें इनके नतीजे बुलेट से तेज दिखे हैं। इसी प्रकार
डॉक्टर परमिंदर एस पांडेय, संस्थापक व चेयरमैन इलेक्ट्रो होम्योपैथिक फाउंडेशन की माने तो यह सच है की इलेक्ट्रो होम्योपैथिक की मान्यता का मुद्दा पिछले कई साल से लटका हुआ है। हमारे पास ऐसे ऐसे दस्तावेज हैं जिनमें यह बात साबित होती है की दशको पहले इलेक्ट्रो होम्योपैथिक के रिजल्ट से सरकार के आला लोग हैरान थे, लेकिन फिर भी इस पैथी को पूर्ण रूप से मान्यता ना मिलना हैरानकुन है। कहीं ना कहीं इलेक्ट्रो होमियोपैथी प्रेक्ट्रिशनरों में तालमेल की कमी इस पैथी को मान्यता दिलाने में रुकावट बनी है। आज इलेक्ट्रो होम्योपैथिक फाउंडेशन पूरे तन मन धन से इलेक्ट्रो होम्योपैथिक को पूरे देश ही नहीं अब तो दुनिया भर में मान्यता दिलाने के लिए वचनबद्ध है। ईएचएफ के लिंक में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पाकिस्तान सहित कई देशों के इलेक्ट्रो होम्योपैथिक के चाहवान जुड़े हुए हैं। हमारा मकसद इलेक्ट्रो होम्योपैथिक की देश भर में मान्यता से है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां अन्य पैथियों की तरह पूरी सुविधाएं उठा सकें।
उधर, इंडियन इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मेडिकल एसोसिएशन के संस्थापक डॉ. प्रवीण कुमार बरेली और इलेक्ट्रो होमियोपैथी विकास मंच के अध्यक्ष डॉ. आर के त्रिपाठी बलरामपुर कहते हैं
कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। देश के कोने में बैठा ग्रामीण हो या केंद्र सरकार में मंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति हर कोई इलेक्ट्रो होम्योपैथी पद्धति से परिचित है। ऐसे में हम अगर मान्यता मान्यता चीखते हैं तो वह बेमानी है। अगर हमारी दवाई में जान नहीं है तो सैकड़ों लाखों लोग इलेक्ट्रो होम्योपैथी दवा को क्यों सही मान रहे हैं। लाखो डॉक्टर अपने परिवार का पालन पोषण कैसे कर रहे हैं। दर्जनों बोर्ड, काउंसलिंग किस तरह वर्किंग कर रहे हैं। असलियत तो यह है किस समाज ने हमें मान्यता दे दी है लेकिन सरकार ने हमें मान्यता नहीं दी है इसके कारण हमें कुछ सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। हमारा संघर्ष इन सुविधाओं को लेने का है और वह हम लेकर हटेंगे। उधर, सिन्हा अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डा. प्रभात सिन्हा ने आई.डी.सी के समक्ष अपना प्रपोजल सबमिट किया है। वहीं बस्ती से सीनियर इलेक्ट्रो होम्योपैथ डॉ. अनिल श्रीवास्तव ने भी आई.डी.सी को अपना प्रपोजल भेजा है। डॉ. राजबीर गोस्वामी, डॉ सचिन त्यागी, डा गुरबंस सिंह फतेहगढ़ साहिब, डॉ अवतार सिंह नकोदर कहते हैं कि सभी को मिल कर संघर्ष करना होगा। भारतीय अल्टरनेटिव प्रेक्टीशियनर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आशुतोष पाठक जबलपुर मानते हैं कि 100 साल से इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति मरीजों का उपचार कर रही है लेकिन आपसी सहमति नहीं होने के कारण ई.एच रिक्नोजाईजेशन का मुद्दा लटका हुआ है।
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