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अफगानिस्तान में सत्ता बदली:काबुल पर कब्जे के बाद मुल्ला बरादर का पहला बयान- उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी और इतनी आसान जीत मिलेगी

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अफगानिस्तान में जिसकी आशंका थी, वही हुआ। तालिबान ने राजधानी काबुल को भी कब्जे में ले लिया। रविवार को तीन बेहद अहम डेवलपमेंट हुए। पहला- राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह ने अपने कुछ करीबियों के साथ देश छोड़ दिया। दूसरा- तालिबान ने राष्ट्रपति भवन (अर्ग) पर भी कब्जा कर लिया। देर रात कुछ वीडियोज भी सामने आए। इनमें तालिबान काबुल की सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं। तीसरा- तालिबान नेता मुल्ला बरादर का बड़ा बयान सामने आया। उसने कहा- सभी लोगों के जान-माल की रक्षा की जाएगी। अगले कुछ दिनों में सब नियंत्रित कर लिया जाएगा। हमने सोचा नहीं था कि इतनी आसान और इतनी जल्दी जीत मिलेगी। अगले कुछ दिनों में सभी चीजें सामान्य हो जाएंगी।

राष्ट्रपति भवन में तालिबानी दाखिए हुए और उन्होंने इंटरव्यू दिए।
राष्ट्रपति भवन में तालिबानी दाखिए हुए और उन्होंने इंटरव्यू दिए।

तालिबान के नेता राष्ट्रपति भवन में बैठकर चैनलों को इंटरव्यू दे रहे हैं। उनका दावा है कि राष्ट्रपति गनी 50 लाख डॉलर कैश ले जाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ये पैसा राष्ट्रपति महल के हेलीपैड पर ही रह गया। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, देर रात काबुल में कुछ धमाकों की आवाजें भी सुनाई दीं। हालांकि तालिबान के सूत्रों ने इसकी पुष्टि नहीं की। काबुल एयरपोर्ट से कॉमर्शियल उड़ानों पर रोक लगा दी गई है।

राष्ट्रपति भवन में बैठे तालिबानी। अफगानिस्तान पर तालिबानी सत्ता काबिज हो गई है।
राष्ट्रपति भवन में बैठे तालिबानी। अफगानिस्तान पर तालिबानी सत्ता काबिज हो गई है।

अमन बहाली के लिए काउंसिल बनी, करजई लीड करेंगे
इस बीच, देश में अमन बहाली के लिए एक समन्वय परिषद बनाई गई है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई इसकी अगुआई करेंगे। इसमें अफगानिस्तान के मौजूदा सीईओ अब्दुल्ला अब्दुल्ला और जिहादी नेता गुलबुद्दीन हिकमतयार भी होंगे। न्यूज एजेंसी ने तालिबान के सूत्रों के हवाले से कहा है कि यह संगठन बहुत जल्द राष्ट्रपति भवन से इस्लामिक एमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान का ऐलान कर सकता है।

मुल्ला शीरीन बने काबुल के गर्वनर
तालिबान ने मुल्ला शीरीन को काबुल का गवर्नर बनाया है। वो तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के करीबी थे और उनके सुरक्षा गार्ड भी रह चुके हैं। वो कंधार के हैं और पुराने तालिबानी हैं। सोवियत संघ के खिलाफ भी लड़ चुके हैं। तालिबान की लड़ाका यूनिटों के सबसे प्रमुख लोगों में से हैं। मुल्ला शीरीन को युद्ध विशेषज्ञ माना जाता है। मौजूदा तालिबान के सबसे प्रमुख लोगों में हैं।

अमेरिका ने सिक्योरिटी अलर्ट जारी किया
काबुल में तेजी से बदले हालात के बीच अमेरिका ने सिक्योरिटी अलर्ट जारी किया है। इसमें कहा गया- काबुल में एयरपोर्ट समेत सुरक्षा हालात तेजी से बदल रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, एयरपोर्ट पर आग लगी हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास अब खाली हो चुका है। अमेरिकी राजदूत भी अफगानिस्तान छोड़कर जा चुके हैं।

पैसेंजर्स के बिना चली गईं फ्लाइट्स

काबुल हवाई अड्डे के कर्मचारी जल्दबाजी में भाग गए, जिसकी वजह से कई विमान बिना सभी यात्रियों के ही उड़ गए। इस समय काबुल हवाई अड्डे पर कोई सिविलियन एयरक्राफ्ट नहीं है। सिर्फ अमेरिकी सेना के विमान हैं। एक तरह से एयरपोर्ट पैसेंजर फ्लाइट्स के लिए बंद सा है। फ्लाइट रडार के मुताबिक सोमवार के लिए फ्लाइट्स शेड्यूल्ड हैं। तालिबान के सूत्रों ने दैनिक भास्कर को बताया है कि उनका इरादा काबुल हवाई अड्डे के काम को प्रभावित करने का नहीं है और सभी एयरलाइंस को उड़ानें संचालित करने दी जाएंगी। जर्मनी भी अपने दूतावास कर्मचारियों को काबुल से निकालने जा रहा है। अमेरिका और दूसरे देशों की मदद करने वाले अफगानी नागरिकों को बाहर निकाला जा रहा है।

कुछ इलाकों में लूटपाट

काबुल के कुछ इलाकों में लूटपाट भी हुई है। तालिबान हालात संभालने की कोशिश कर रहा है। करीब 200 अफगानी भी भारत पहुंचे हैं। इनमें अशरफ गनी के सीनियर एडवाइजर और कुछ सांसद शामिल हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, काबुल में तालिबान ने चोरी करके भाग रहे तीन लोगों को गोली मार दी। संगठन का कहना है कि लूटपाट करने वालों को गोली मार दी जाएगी। हालांकि जिन तीन लोगों को मारा गया है वो वास्तव में चोर थे या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी।

तालिबान ने बयान जारी किया
इस बीच, तालिबान ने एक बयान जारी कर विदेशी नागरिकों और दूतावासों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया है। बयान में कहा गया है- हम सभी दूतावासों, राजनयिक केंद्रों और विदेशी संस्थानों और नागरिकों को भरोसा देते हैं कि उन्हें कोई खतरा नहीं है। काबुल के सभी लोगों को ये भरोसा रखना चाहिए कि इस्लामी अमीरात के बलों को सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है। काबुल और सभी दूसरे शहरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।

अमेरिका जा रहे हैं गनी?
गनी के करीबी सूत्रों के मुताबिक वे संभवत: किसी पड़ोसी देश के रास्ते अमेरिका जा रहे हैं। उनके साथ उपराष्ट्रपति सालेह और उनके कुछ बेहद करीबी लोग भी हैं। अफगान रक्षा मंत्री ने बिना नाम लिए इशारों में गनी और सालेह पर तंज कसा। काबुल में पुलिसकर्मी सरेंडर कर रहे हैं। उन्होंने अपने हथियार भी तालिबान को सौंप दिए हैं। काबुल के लोगों ने सुबह जब आंखें खोलीं तो तालिबान दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। दोपहर होते-होते राजधानी पर उनका कब्जा हो गया और कुछ देर बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के देश छोड़ने की खबर आ गई। तालिबान से जुड़े सूत्रों के मुताबिक मुल्ला बरादर अखंद अंतरिम सरकार के प्रमुख हो सकते हैं। देर रात एक फेसबुक पोस्ट में गनी ने कहा- मेरे पास आज मुश्किल विकल्प थे। यदि मैं काबुल में रुकता तो बहुत खून खराबा होता।

कौन हैं मुल्ला बरादर?
मुल्ला बरादर अभी कतर में हैं। अभी वो तालिबान के कतर में दोहा स्थित दफ्तर के राजनीतिक प्रमुख हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए कई लोगों के नामों पर विचार किया जा रहा है, लेकिन उनका नाम शीर्ष पर है। वे अफगानिस्तान में तालिबान के को-फाउंडर हैं।

तालिबान शांति से सत्ता हासिल करना चाहता है
इससे पहले अफगानिस्तान के कार्यवाहक गृहमंत्री अब्दुल सत्तार मीरजकवाल ने बताया था कि तालिबान काबुल पर हमला नहीं करने के लिए राजी हो गया है। वो शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का ट्रांसफर चाहता है और ये इसी तरह होगा। नागरिक अपनी सुरक्षा को लेकर बेफिक्र रहें। तालिबान ने भी बयान जारी करके कहा था कि वो नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी लेता है।

तालिबान ने काबुल के चार जिलों पर कब्जा किया
तालिबान ने काबुल के चार बाहरी जिलों पर कब्जा किया है। ये हैं- सारोबी, बगराम, पगमान और काराबाग। हालांकि तालिबान ने अपने लड़ाकों से काबुल के बाहरी गेट पर रुकने के लिए कहा था। काबुल के नागरिक बता रहे हैं कि लोग काबुल में अपने घरों पर तालिबान के सफेद झंडे लगा रहे हैं।

तालिबान ने काबुल की बगराम जेल के बाद पुल-ए-चरखी जेल को भी तोड़ दिया, करीब 5 हजार कैदियों को छुड़ा लिया है। पुल-ए-चरखी अफगानिस्तान की सबसे बड़ी जेल है। यहां ज्यादातर तालिबानी बंद थे।

तालिबान ने बताया था कि काबुल में जंग नहीं हो रही है, बल्कि शांति से सत्ता हासिल करने के लिए बातचीत चल रही है। साथ ही कहा है कि काबुल एक बड़ी राजधानी और शहरी इलाका है। तालिबान यहां शांतिपूर्ण तरीके से दाखिल होना चाहता है। वह काबुल के सभी लोगों के जान-माल की सुरक्षा की गारंटी ले रहा है। उसका इरादा किसी से बदला लेने का नहीं है और उन्होंने सभी को माफ कर दिया है। वहीं अफगानिस्तान के सरकारी मीडिया का कहना है कि काबुल के कई इलाकों में गोलीबारी की आवाजें सुनी गई हैं।

तालिबान ने बामियान के गवर्नर कार्यालय पर भी बिना जंग के कब्जा कर लिया। यह इलाका हजारा शिया समुदाय का गढ़ है। तालिबान ने 20 साल पहले बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को धमाके से उड़ा दिया था।
तालिबान ने बामियान के गवर्नर कार्यालय पर भी बिना जंग के कब्जा कर लिया। यह इलाका हजारा शिया समुदाय का गढ़ है। तालिबान ने 20 साल पहले बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को धमाके से उड़ा दिया था।

जलालाबाद पर भी तालिबान का कब्जा
इससे पहले रविवार तड़के तालिबान ने नंगरहार प्रांत की राजधानी जलालाबाद पर भी अपनी हुकूमत कायम कर ली थी। न्यूज एजेंसी फ्रांस प्रेस के मुताबिक जलालाबाद के लोगों ने बताया कि रविवार सुबह जब वे जागे तो देखा कि पूरे शहर में तालिबान के झंडे लहरा रहे थे और यहां कब्जा करने के लिए उन्हें जंग भी नहीं लड़नी पड़ी।

जलालाबाद के गवर्नर जियाउलहक अमरखी अपना ऑफिस तालिबान के लड़ाकों के हवाले करते हुए। जलालाबाद पर कब्जा करने में तालिबान को कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा।
जलालाबाद के गवर्नर जियाउलहक अमरखी अपना ऑफिस तालिबान के लड़ाकों के हवाले करते हुए। जलालाबाद पर कब्जा करने में तालिबान को कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा।
तालिबान ने मनी चेंजर्स के साथ बैठक कर उन्हें दिशा-निर्देश जारी किए हैं। तालिबान ने कहा है कि सब अपना काम जारी रखें, किसी को परेशान नहीं किया जाएगा।
तालिबान ने मनी चेंजर्स के साथ बैठक कर उन्हें दिशा-निर्देश जारी किए हैं। तालिबान ने कहा है कि सब अपना काम जारी रखें, किसी को परेशान नहीं किया जाएगा।

अफगान सेना का सबसे मजबूत गढ़ मजार-ए-शरीफ भी तालिबान के पास
तालिबान ने शनिवार को अफगानिस्तान सरकार और सेना के सबसे मजबूत गढ़ मजार-ए-शरीफ पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद ही माना जा रहा था कि अब काबुल को सुरक्षित रखना मुश्किल होगा। तालिबान अफगानिस्तान के 34 में से 21 प्रांतों पर कब्जा कर चुका है।

अफगानिस्तान के हालात का भारत पर क्या असर होगा?
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि भारत के सामने सबसे प्राथमिक चुनौती अफगानिस्तान में अपने नागरिकों और राहत कर्मियों की हिफाजत करना है। एक बड़ी चुनौती यह भी है कि तालिबान के वर्चस्व के बाद लश्कर और जैश को खुला खेत मिल जाएगा। वे भारतीय हितों को निशाना बनाना शुरू कर देंगे। ताकि बाकी भारतीय वहां से हट जाएं। पाकिस्तान की सेना और ISI की भूमिका वहां बढ़ जाएगी। रविवार को 100 से ज्यादा भारतीय नागरिकों को देश वापस लाया गया।

इन 5 बिंदुओं पर विचार कर सकता है भारत

  • अमेरिका और सहयोगी देशों के बीच लामबंदी कर अफगानिस्तान के लिए समर्थन जारी रखने का झंडा बुलंद करे।
  • काबुल की मौजूदा सरकार को समर्थन जारी रखने के फैसले पर कायम रहे। जब तक संभव है, तब तक मानवीय राहत दी जाए।
  • अफगानिस्तान की सेना को सैन्य आपूर्ति की जाए और उसकी हवाई ताकत मजबूत की जाए। तालिबान को इसका खतरा लग रहा है। इसी कारण भारत को धमकियां दी जा रही हैं।
  • तालिबान से संपर्क साधें। ऐसा पर्दे के पीछे हो भी रहा है। चीन-पाकिस्तान विरोधी तालिबान भी अफगानिस्तान में सक्रिय हैं।
  • अंतिम विकल्प आसान है। वह यह कि स्थिति पर सिर्फ निगाह रखी जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि तालिबान उसी इलाके में खुद को सीमित रखे और हमारी सरहदों की ओर रुख न करे। इससे चीन-पाकिस्तान को अफगानी गृहयुद्ध की आंच सीधे झेलनी होगी।

तालिबान का अफगानिस्तान:अब काबुल भी तालिबान का, बिना गोली चलाए ही राजधानी पर काबिज हो गए लड़ाके

तालिबान ने बीते 10 दिन में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम हो गया है। इन लड़ाकों की रफ्तार ने दुनियाभर के सुरक्षा विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। तालिबान ने कई जिलों और शहरों पर बिना एक भी गोली चलाए कब्जा किया है।

तालिबान ने 6 अगस्त को ईरान सीमा से सटे जरांज पर कब्जा किया था। यह तालिबान के नियंत्रण में आने वाली पहली प्रांतीय राजधानी थी। इसके बाद एक-एक करके अफगानिस्तान की कई प्रांतीय राजधानियां तालिबान के कब्जे में आती गईं।

जलालाबाद में सड़कों पर तालिबान लड़ाकों की गाड़ियां घूमती नजर आईं।
जलालाबाद में सड़कों पर तालिबान लड़ाकों की गाड़ियां घूमती नजर आईं।

अफगानी सेना लोगों का भरोसा नहीं जीत पाई
विश्लेषक मानते हैं कि अफगानिस्तान की सेना के पास हथियार और प्रशिक्षण तो था, लेकिन वह स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने में नाकाम रही। कई सालों से अफगान सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। स्थानीय लोगों के लिए सवाल ये था कि वे किसे ज्यादा नापसंद करते हैं। अफगान सरकार और उसके सुरक्षा बलों को, या तालिबान को। तालिबान ने हाल के सालों में स्थानीय स्तर पर कूटनीति का इस्तेमाल किया और लोगों को अपने साथ मिलाने की कोशिश की। यही वजह है कि बहुत से इलाके तालिबान ने एक भी गोली चलाए बिना ही कब्जा कर लिए।

दोस्तम के सैनिक लड़े, लेकिन टिक नहीं पाए
शनिवार (14 अगस्त) को मजार-ए-शरीफ में कमांडर अता नूर और मार्शल दोस्तम के संगठित बलों ने कुछ टक्कर जरूर दी, लेकिन अफगान सेना के भीतरघात की वजह से उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। अफगान सेना के भारी हथियार और हेलिकॉप्टर तथा लड़ाकू विमान सीधे तालिबान के हाथों में पहुंच गए।

इधर, शनिवार रात को तालिबान पाकिस्तान से काबुल जाने वाले हाईवे पर बसे अहम शहर जलालाबाद में दाखिल हुए और बहुत आसानी से सुबह होते-होते गवर्नर हाउस पर झंडा फहरा दिया। वहीं हजारा शिया बहुत बामियान प्रांत में भी तालिबान ने बिना गोली चलाए फतह हासिल कर ली। ये वही बामियान है जहां साल 2000 में तालिबान ने प्रसिद्ध बुद्ध प्रतिमाओं को बारूद से उड़ा दिया था। माना जा रहा था कि बामियान में उनका विरोध होगा, लेकिन ये प्रांत भी आसानी से उनके हाथों में आ गया।

काबुल में ईरानी दूतावास के बाहर वीजा के लिए लंबी कतार में लगे लोग।
काबुल में ईरानी दूतावास के बाहर वीजा के लिए लंबी कतार में लगे लोग।

रविवार सुबह काबुल पहुंचे तालिबानी लड़ाके
रविवार सुबह जब काबुल में लोगों की आंख खुली, तो तालिबान उनके दरवाजे पर खड़े थे। दोपहर होते-होते ये साफ हो गया कि राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा रहे हैं और पूरे अफगानिस्तान की कमान तालिबान के हाथों में जा रही है। तालिबान की रफ्तार पर उसके प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने भास्कर से कहा, ‘हम जानते थे कि यदि शांति प्रक्रिया और वार्ता कामयाब नहीं होती है तो हम सैन्य रूप से ऐसी प्रगति कर सकते हैं। हमें अपनी ताकत पर पूरा भरोसा था।’

आखिर इतनी तेजी से कैसे आगे बढ़ा तालिबान?
अब सवाल उठ रहा है कि तालिबान बिजली जैसी रफ्तार से कैसे आगे बढ़ा? अफगान सेना इतनी जल्दी पस्त कैसे हुई? यही समझने के लिए हमनें अफगानिस्तान युद्ध पर लंबे समय से नजर रख रहे रक्षा विश्लेषकों से बात की।

फरान जैफरी कई सालों से अफगानिस्तान के युद्ध पर नजर रखे हुए हैं। वे ब्रिटेन स्थित आतंकवाद विरोधी संस्थान ITCT के डिप्टी डायरेक्टर हैं। पॉल डी मिलर अफगानिस्तान में रह चुके हैं। वे CIA और अमेरिका की सुरक्षा परिषद से भी जुड़े रहे हैं। अभी जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस में इंटरनेशनल अफेयर के प्रोफेसर हैं।

तालिबान के लड़ाके हथियारबंद तो हैं, लेकिन कई शहरों में उन्हें बिना लड़े ही जीत मिली है।
तालिबान के लड़ाके हथियारबंद तो हैं, लेकिन कई शहरों में उन्हें बिना लड़े ही जीत मिली है।

प्रोफेसर मिलर कहते हैं कि वे तालिबान की कामयाबी से हैरान नहीं है, लेकिन तालिबान की रफ्तार ने उन्हें चौंका दिया है। प्रोफेसर मिलर कहते हैं, ‘मैं इस बात से बिल्कुल भी हैरान नहीं हूं कि अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने पर तालिबान युद्ध जीत रहा है, पर तालिबान की गति ने मुझे हैरान कर दिया है। इसकी एक वजह ये है कि इस समय अफगान सेना के हौसले पस्त हैं।’

तालिबान की रफ्तार पर टिप्पणी करते हुए फरान जैफरी कहते हैं, ‘तालिबान का इस रफ्तार से आगे बढ़ना कोई संयोग नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का नतीजा है। तालिबानी चुपचाप जमीन पर अपना होमवर्क कर रहे थे। जो रिपोर्टें अब मिल रही हैं उनसे पता चलता है कि तालिबान के नेता अफगानिस्तान में कई राजनीतिक और सैन्य कमांडरों के संपर्क में थे।

काबुल की सरकार बहुत भ्रष्ट थी। सरकार को ये भी नहीं पता था कि काबुल के बाहर लोग क्या सोचते हैं? सरकार ने पिछले सालों के दौरान देशभर में स्थानीय नेताओं और मिलीशिया कमांडरों को निशाना बनाया और अब वे चाहते हैं कि यही तालिबान के खिलाफ लड़ाई में उनका साथ दें।’

अफगानिस्तान में लंबी तैनाती के बाद वापस लौटते हुए अमेरिकी फोर्स के सैनिक।
अफगानिस्तान में लंबी तैनाती के बाद वापस लौटते हुए अमेरिकी फोर्स के सैनिक।

जिस सेना को अमेरिका ने तैयार किया, वह बिखर गई
जैफरी कहते हैं, ‘यदि ये रिपोर्ट्स सही हैं तो इसका मतलब यही है कि तालिबान लोकल मिलिट्री और राजनीतिक नेताओं को चुपचाप आत्मसमर्पण करने या मैदान छोड़ने के लिए मना रहा था। ये अभी स्पष्ट नहीं है कि अफगान सेना के बारे में इतनी गुप्त जानकारियां तालिबान को पहले से ही मिल गईं थीं, लेकिन ये तो पक्का है कि इस होमवर्क के बिना तालिबान इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ सकता था।’

वहीं प्रोफेसर मिलर का मानना है कि अफगान सेना के हौसले पस्त होने की वजह अमेरिका का रवैया है। प्रोफेसर मिलर कहते हैं, ‘इसकी एक वजह ये भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने का एकतरफा फैसला लिया है। तालिबान ने कतर में 2020 में हुए समझौते की अपनी शर्ते पूरी नहीं की हैं, बावजूद इसके अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकल रहा है।

जब राष्ट्रपति बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी का फैसला लिया तो उन्होंने अफगान लोगों को ये संदेश दिया कि आगे जो भी हो, अमेरिका तो छोड़कर जा रहा है। इससे अफगान सैनिकों को ये लगा कि उनके पास युद्ध लड़ने लायक संसाधन ही नहीं होंगे, ऐसे में वे इस नतीजे पर पहुंचे कि उनके पास लड़ने की कोई वजह ही नहीं है।’

अमेरिका 9/11 हमलों के बाद अल-कायदा को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान आया था। तब अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था। अब 20 साल बाद अमेरिका अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति लाने के अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा किए बिना ही लौट रहा है। अभी अमेरिकी सेना पूरी तरह से अफगानिस्तान से गई भी नहीं है और जिस अफगान सेना को अमेरिका ने 20 सालों से तैयार किया था, वह ताश के पत्तों की तरह बिखर रही है।

काबुल में रविवार को दिनभर चिनूक हेलिकॉप्टर उड़ान भरते नजर आए।
काबुल में रविवार को दिनभर चिनूक हेलिकॉप्टर उड़ान भरते नजर आए।

सिर्फ स्पेशल फोर्सेज के भरोसे रहना अफगान की बड़ी भूल
अमेरिका ने कुछ महीनों में ही तालिबान को सत्ता से हटा दिया था। बहुत से लोगों ने मान लिया था कि तालिबान अब खत्म हो जाएगा, लेकिन जैफरी कहते हैं कि ये आकलन गलत था। वे कहते हैं, ‘लोगों ने सालों पहले ही तालिबान को खत्म मान लिया था। यही सबसे बड़ी गलती थी। तालिबानी पूरी तरह अफगानिस्तान से कभी नहीं गए थे।

जब अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सुरक्षा बल अपनी कामयाबी के शिखर पर थे, तब भी तालिबानी पूरी तरह खत्म नहीं हुए थे। हाल के सालों में तालिबान के फिर से उठ खड़े होने के कई कारण हैं। हलांकि इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि अफगानिस्तान सरकार स्थानीय स्तर पर एक सक्षम सेना और पुलिस बल खड़ा करने में नाकाम रही।’

फरान जैफरी कहते हैं, ‘अफगानिस्तान में कई जगह ऐसा होता रहा कि रेगुलर आर्मी अपने ठिकाने बिना लड़े तालिबान को समर्पित करती रही। फिर सेना के स्पेशल फोर्सेज इन्हें तालिबान से मुक्त करा कर रेगुलर आर्मी को सौंपते और वे फिर से इन्हें गंवा देते। अफगानिस्तान के स्पेशल फोर्सेज देश में हर मोर्चे पर नहीं लड़ सकते थे। अफगान सरकार शहरों की सुरक्षा के लिए सिर्फ स्पेशल फोर्सेज पर ही निर्भर रही और ये भारी भूल साबित हो रही है।’

अमेरिका की मदद के बिना तालिबान से टक्कर लेना संभव नहीं
तालिबान की सबसे प्रमुख मांग है देश में शरिया कानून (इस्लामी कानून) लागू करना। अफगान सेना के पास वायुसेना भी थी और विदेशी सैन्य बलों की मदद भी। तालिबान के पास कोई वायुसेना नहीं है। अफगान सेना के मुकाबले उनके पास भारी हथियार भी कम थे। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अफगान सेना इतनी पस्त क्यों साबित हुई है?

इसके कारण समझाते हुए फरान जैफरी कहते हैं, ‘अफगान सुरक्षा बलों की एक और सबसे बड़ी समस्या ये रही कि उनके पास इतने सैनिक नहीं थे जितने कि कागजों में हैं। इन्हें घोस्ट सोल्जर कहा जाता है। अफगानिस्तान पर नजर रखने वाले सभी लोग इस बारे में जानते हैं। अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उस सेना के लिए फंड हासिल कर रहा था, जो जमीन पर उस संख्या में मौजूद ही नहीं थी। इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका और नाटो की मदद के बिना अफगानी सेना तालिबान से टक्कर नहीं ले सकती थी।’

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