एक साल के भीतर देश में फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन वाली गाड़ियां लाने की कोशिश; 40% तक कम हो सकते हैं तेल के दाम
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) और ऑटोमोबाइल कंपनियों के CEO को फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन मैन्युफैक्चर करने को कहा है। इसी साल मार्च में सरकार ने एथेनॉल को स्टैंडअलोन फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत दी है।
इसके साथ ही गडकरी ने सभी कार निर्माता कंपनियों से कार में 6 एयरबैग देने का भी आग्रह किया है। फिलहाल कारों में केवल 2 एयरबैग ही आते हैं। उन्होंने कहा है कि किसी भी कीमत या क्लास के सभी कार मॉडल्स में 6 एयरबैग होने चाहिए। सड़क हादसों में बढ़ती हुई मौतों को देखते हुए यात्रियों की सुरक्षा के लिए ये जरूरी है।
आइए समझते हैं, फ्लेक्सी-फ्यूल व्हीकल्स होते क्या हैं? अभी इस्तेमाल हो रहे वाहनों से ये कितने अलग हैं? इस बदलाव से आपको क्या फायदे-क्या नुकसान हो सकते हैं? और सरकार क्यों फ्लेक्सी -फ्यूल व्हीकल्स को बढ़ावा दे रही है?…
सबसे पहले समझिए फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन होता क्या है?
फिलहाल गाड़ियों में हम जो पेट्रोल इस्तेमाल करते हैं, उसमें अधिकतम 8.5% तक एथेनॉल मिला होता है। एथेनॉल यानी बायो फ्यूल। पर फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन में आपके पास ये विकल्प होगा कि आप पेट्रोल और एथेनॉल दोनों को अलग-अलग अनुपात में इस्तेमाल कर सकें। उदाहरण के लिए 50% पेट्रोल और 50% एथेनॉल।
गाड़ी का इंजन खुद-ब-खुद फ्यूल में मौजूद अलग-अलग ईंधन का कंसंट्रेशन पता कर इग्निशन को एडजस्ट कर लेगा।
आसान भाषा में समझें तो इन वाहनों में आप दो या दो से ज्यादा अलग-अलग तरह के फ्यूल का मिश्रण ईंधन के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
इससे पेट्रोल पंप पर क्या बदलेगा?
ज्यादा कुछ नहीं। पेट्रोल पंप पर एक मशीन और बढ़ जाएगी, जिससे आपको एथेनॉल बेस्ड फ्यूल भी मिलेगा।
एथेनॉल क्या है?
एथेनॉल अल्कोहल बेस्ड फ्यूल है। इसे अलग-अलग अनुपात में पेट्रोल के साथ मिलाकर वाहनों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। एथेनॉल का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यह एक बायो-फ्यूल है। इसे स्टार्च और शुगर के फर्मेंटेशन से बनाया जाता है। इसे बनाने में आमतौर पर गन्ना, मक्का और बाकी शर्करा वाले पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। ये सस्ता भी होता है और इससे पेट्रोल-डीजल के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है।
अभी इस्तेमाल हो रही गाड़ियों से कितना अलग है?
फिलहाल जो गाड़ियां हम लोग इस्तेमाल करते हैं, उनमें केवल एक ही तरह का फ्यूल डाला जा सकता है। इसके अलावा एक बड़ा अंतर फ्यूल टैंक का भी होता है। अगर आपकी गाड़ी LPG और पेट्रोल दोनों से चलती है, तो दोनों के लिए अलग-अलग फ्यूल टैंक होता है। पर फ्लेक्सी इंजन वाली गाड़ियों में आप एक ही फ्यूल टैंक में अलग-अलग तरह के फ्यूल (पेट्रोल-एथेनॉल) डाल सकते हैं।
इसके फायदे क्या हैं?
- ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी के मुताबिक, इस ईंधन की कीमत 60-62 रुपए प्रति लीटर होगी, जबकि पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटर से भी ज्यादा है। यानी तेल के दाम 40% तक घट सकते हैं।
- भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। एथेनॉल बनाने के लिए गन्ना, मक्का, कपास के डंठल, गेंहू का भूसा, खोई और बांस का उपयोग किया जाता है। अगर एथेनॉल का इस्तेमाल बढ़ेगा तो इससे सीधे तौर पर किसानों को फायदा होगा।
- एथेनॉल के इस्तेमाल से कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन 35 फीसदी तक कम होता है। साथ ही सल्फर डाईऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम होता है। यानी पर्यावरण के लिए ये फायदेमंद है।
- फिलहाल भारत अपनी जरूरत का 80% से ज्यादा क्रूड ऑयल इम्पोर्ट करता है। एथेनॉल का इस्तेमाल बढ़ने से भारत की क्रूड ऑयल पर निर्भरता कम होगी और इम्पोर्ट में भी कमी आएगी। देश का पैसा देश में ही रहेगा।
नुकसान क्या है?
- गाड़ी के फ्यूल सिस्टम और इंजन में बदलाव करने होंगे। इससे गाड़ियों की कीमत बढ़ जाएगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे फोर-व्हीलर की कीमत 17 से 30 हजार रुपए तक बढ़ सकती है। वहीं, टू-व्हीलर व्हीकल की कीमतों में 5 से 12 हजार रुपए तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
- पेट्रोल-डीजल के मुकाबले एथेनॉल की फ्यूल एफिशिएंसी कम होती है। अगर आप अपने वाहन में 70% एथेनॉल का इस्तेमाल करेंगे, तो गाड़ी का माइलेज कम हो जाएगा। इससे रनिंग कॉस्ट में बढ़ोतरी हो सकती है।
- एथेनॉल की उपलब्धता भी बड़ा मसला है। फिलहाल ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ी दिक्कतों और एथेनॉल की कमी की वजह से चुनिंदा राज्यों में ही 8.5% एथेनॉल बेस्ड पेट्रोल मिलता है।
किन-किन देशों में हो रहा है फ्लेक्सी-फ्यूल का इस्तेमाल?
फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन की गाड़ियां सबसे ज्यादा ब्राजील में इस्तेमाल की जा रही हैं। ब्राजील सालों पहले से ही फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन वाली गाड़ियों को बढ़ावा दे रहा है। जिसका नतीजा ये हुआ है कि वहां 70% से भी ज्यादा कारों में फ्लेक्सी-फ्यूल का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसके अलावा कनाडा, अमेरिका और चीन भी फ्लेक्सी-फ्यूल के उत्पादन में टॉप देशों में शामिल हैं। यहां इस ईंधन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर वाहनों में किया जाता है।
यूरोप के 18 से भी ज्यादा देशों में फ्लेक्सी-फ्यूल व्हीकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। दुनिया की सभी टॉप ऑटोमोबाइल कंपनी फ्लेक्सी-फ्यूल वाले वाहनों का उत्पादन कर रही हैं।
क्या भारत में फ्लेक्सी फ्यूल इंजन वाली गाड़ियां उपलब्ध हैं?
नहीं। भारत में केवल ट्रायल के लिए ही कंपनियों ने फ्लेक्सी-फ्यूल इंजन वाले वाहन पेश किए थे, लेकिन आम लोगों के लिए फिलहाल इस तरह के वाहन उपलब्ध नहीं हैं। 2019 में TVS ने अपाचे का फ्लेक्सी-फ्यूल बेस्ड मॉडल पेश किया था, लेकिन ये कभी शोरूम में बिकने नहीं आया।
सरकार क्यों फ्लेक्सी-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा दे रही है?
दरअसल देश में मक्का, चीनी और गेहूं का उत्पादन सरप्लस में है। इस सरप्लस उत्पादन को गोदामों में रखने के लिए जगह भी नहीं है। इसी वजह से सरकार ने इस सरप्लस उत्पादन का इस्तेमाल एथेनॉल बनाने में करने का फैसला लिया है। इससे देश के किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिलेगी, क्रूड का इम्पोर्ट भी कम होगा और पर्यावरण के लिए भी ये फायदेमंद है।
भारत सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2030 तक पेट्रोल में एथेनॉल कंसंट्रेशन को बढ़ाकर 20% और डीजल में बायोडीजल के कंसंट्रेशन को बढ़ाकर 5% तक करना है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी ये बड़ा कदम है।
(ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट अमित खरे से बातचीत के आधार पर)