देश के हर शख्स को AI की जानकारी होना जरूरी:खेती-किसानी से जहाज को रास्ता बताने तक का काम कर रही हैं AI मशीनें, इंसानी दिमाग के मॉडल की हो रही है ट्रेनिंग
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI अब बच्चों को एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाई जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CBSE के ‘AI फॉर ऑल’ प्रोग्राम को दुनिया का सबसे बड़ा जागरूकता प्रोग्राम बताया। कहा कि अब हमारे देश के हर शख्स में AI की समझ पैदा हो जाएगी। दरअसल, हुआ ये है कि बीते कुछ समय से हमारे बीच AI काम करना शुरू कर चुका है, लेकिन आम लोगों में अभी इसकी समझ नहीं बनी है। जैसे ये उदाहरण देखिए-
नोएडा सेक्टर 24 चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस का कोई कॉन्स्टेबल नहीं दिख रहा था। चालान कटने का डर भी नहीं था। शर्मा जी ने स्टॉपलाइन की परवाह नहीं की और कार को आगे बढ़ा दिया। पर वहां क्लोज सर्किट कैमरा यानी CCTV लगा था और उसने शर्मा जी की हरकत को कैमरे में कैद कर लिया। दो दिन बाद जब चालान का SMS मोबाइल पर आया तो शर्मा जी ने माथा पकड़ लिया।
उन्हें अब भी समझ नहीं आ रहा था कि जब कोई कॉन्स्टेबल चौराहे पर था ही नहीं, तो यह चालान कैसे बन गया? शर्मा जी की तरह सोचने वाले एक-दो नहीं बल्कि लाखों में हैं। उन्हें पता ही नहीं कि यह सब किस तरह होता है? और तो और, यहां ले-देकर मामला भी नहीं निपटा सकते।
इस मामले में हुआ यह कि CCTV से आए फुटेज के आधार पर मशीन ने पहले तो गाड़ी का नंबर दर्ज किया। फिर उससे कार के मालिक का पता निकालकर उसे चालान भेजा। किसी तरह की कोई शंका न रहे, इसलिए वह फोटो भी साथ भेजती है जो कानून तोड़े जाने का सबूत बनता है। यह सब होता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की वजह से। इस स्टोरी में हम दो हिस्से में AI के बारे में बता रहे हैं। पहले में ये कि AI काम कैसे करता है और दूसरे में ये कि फिलहाल हमारी जिंदगी में कहां-कहां AI का इस्तेमाल हो रहा है-
इंसानी दिमाग का मॉडल बनाकर दी जा रही ट्रेनिंग, जानिए AI कैसे काम करता है
AI मतलब स्मार्ट मशीन। ऐसी मशीन मशीन जो सोच-समझकर इंसानों की तरह फैसले करे। इसके लिए मशीनों को ट्रेनिंग दी जाती है, जिसे मशीन लर्निंग या ML कहते हैं। लेकिन कोई मशीन उतना ही काम करती है, जितना उसमें लिखकर कोड भरा जाता है। अगर उन कोड के आगे या पीछे कुछ कहा जाए तो उन्हें समझ में नहीं आता।
जैसे अगर आप मोबाइल फोन में OK Google या अलेक्सा से पूछें कि मेरे परदादा का क्या नाम था? तो वह अपने डेटा बैंक में ढूंढेगी कि क्या आपने अपने दादा का नाम लिखकर उसे बताया है, अगर नहीं, तो वो नहीं बता पाएगी।
इसलिए मशीन को लिखित में जानकारी देने के साथ ही तस्वीर दिखाकर या ऑडियो सुनाकर भी ट्रेनिंग दी जाने लगी है। इसमें मशीनों को आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉडल बनाकर ट्रेनिंग दी जा रही है। ये वही मॉडल है जो इंसानों के दिमाग में होता है। इससे मशीनें बच्चों की तरह दुनिया को देखती हैं। उन्हीं की तरह सीखती, पढ़ती, देखती और सुनती भी हैं। जैसे आपने परदादा का नाम पूछा तो वो अपने डेटा बैंक में जाकर देखेंगी, अगर गलती से कभी आपने अपने परदादा का नाम उस मशीन के सामने लिया हो, उनकी तस्वीर दिखाई हो, तब भी वो बता देंगी आपके परदादा कौन हैं।
दुकान, डॉक्टर, किसान से लेकर बिना आंख वाले कर रहे हैं AI का इस्तेमाल
हेल्थ सेक्टर में AI: डीपआईऑटिक्स नाम की कंपनी ने कोविड-19 के लिए AI एक्सरे एप्लिकेशन बनाया है। एक्सरे, टेम्परेचर, ऑक्सीजन देखकर यह एप्लिकेशन निमोनिया और कोविड में फर्क बता देता है। महाराष्ट्र सरकार ने इसका इस्तेमाल भी किया है। कोरोना काल में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के इलाकों में ड्रोन से दवाई पहुंचाने की कवायद शुरू हुई। इसमें AI के जरिए उन्हें निर्देश देते हैं कि किस जगह पर कौन सी दवाइयां देनी हैं।
बेंगलोर का एक स्टार्टअप कनाडा के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक सीटी स्कैन रिपोर्ट पढ़ने वाला AI मोबाइल ऐप बना रहा है। ये ऐप एक बार रिपोर्ट देखकर एक्यूरेसी के साथ बता देगा कि समस्या क्या है। अगर उसे प्रॉपर ट्रेनिंग दी जाए तो वह संभावित बीमारियों और उनसे बचने के तरीके भी बता देगा।
किसानों के लिए AI: AI पर पीएचडी कर चुकीं डॉ. भावना निगम कहती हैं कि, “हर साल हजारों हैक्टेयर में फसलें सड़ जाती हैं, लेकिन AI वाली मशीनें पत्तियों में छोटे-से बदलाव को भी पकड़ लेंगी और किसान को बता देगी कि फसल पर इसका क्या असर पड़ सकता है। फसल को बचाने के लिए कब और क्या करना चाहिए। ऐसी मशीनें फिलहाल दक्षिण भारत के किसान इस्तेमाल कर रहे हैं। वे नारियल के पेड़ पर लगे नारियलों की गिनती के लिए भी AI का इस्तेमाल कर रहे हैं।”
जहाज चलाने में AI: दुनियाभर में हवाई जहाजों का ट्रांसपोर्ट कंप्यूटरों पर निर्भर है। कौन-सा हवाई जहाज कब, किस रास्ते से गुजरेगा, ये कोई इंसान तय नहीं करता। ये सब मशीन बताती हैं। यात्रियों के सामान को बाहर लाने तक का निर्देश मशीन देती हैं।
बिना आंख वाले लोगों के लिए AI: नोटबंदी के बाद दृष्टिहीनों की समस्या बढ़ गई थी। नए 500-2000 के नोट छूकर अंदाजा लगाना कठिन हो रहा था। तब अयान निगम की कंपनी डीपआईऑटिक्स ने ‘माई आइज’ नाम का एक मोबाइल ऐप बनाया। यह मोबाइल के फ्रंट कैमरे का इस्तेमाल करता है और बता देता है कि नोट कितने का है। सिर्फ नोट ही नहीं बल्कि यह रास्ते में आने वाली हर चीज को देखकर उसके बारे में बता देता है।
सुपरमार्केट या मॉल में AI: दिल्ली के कुछ मॉल में AI मशीन तैनात करने की तैयारी चल रही है। इस पर काम करने वाले वाले अधिकार श्रीवास्तव बताते हैं कि ये मशीन ये तक बता देगी कि सामान को किस शेल्फ में रखने से उसकी बिक्री ज्यादा होती है।
अफ्रीका में खेती और दूध के लिए AI: दक्षिण अफ्रीका में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए जानवरों को इंजेक्शन नहीं लगते। वहां डीप लर्निंग मशीनों की मदद ली जाती है। प्रेग्नेंसी में ही दूध का उत्पादन बढ़ाने से जुड़ी जानकारी जुटा ली जाती है। वहां तो किसान भी पैदावार बढ़ाने में डीप लर्निंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उन्हें पता चलता है कि किस समय पर सिंचाई करना चाहिए और कब कितनी खाद डालनी है।
चीन, सऊदी अरब की फैक्ट्रियों में AI: फ्रंटलाइन ने मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है- ‘In The Age Of AI’ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में। इसमें चीन और सऊदी अरब में बिना किसी मदद के चलने वाले ट्रकों और कारों को दिखाया गया है। फैक्ट्रियों में काम कर रहे ये ट्रक ऑटो ड्राइव मोड में रहते हैं। दुबई में तो ऑटो ड्राइव कारें भी आ गई हैं।
यूरोप में मेंटल हेल्थ के इलाज पर AI: डीप लर्निंग के प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी ब्रेन टॉय के संस्थापक अमित का कहना है कि अमेरिका और यूरोप में डीप लर्निंग का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हेल्थ सेक्टर में हो रहा है। मेंटल हेल्थ में सबसे ज्यादा।
कनाडा में राजनेता ढूंढ रहे हैं AI: कनाडा में नेता भी अब डीप लर्निंग की मदद ले रहे हैं ताकि भविष्य की राजनीति का रुख भांप सकें। आपको लगेगा कि यह कोई ज्योतिष हैं तो आप गलत हैं। यह वही काम कर सकती है, जिसके लिए उसे ट्रेनिंग दी जाए। इसके अलावा दवा तैयार करने, नए केमिकल तलाशने, माइनिंग से लेकर स्पेस रिसर्च और शेयर मार्केट के लिए एक्यूरेट अनुमान लगाने में भी मशीनें मदद कर रही हैं।
इंटरनेट से भी तीन गुना ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहा है डीप लर्निंग का मार्केट
डेटा एनालिटिक्स फर्म ARK ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि डीप लर्निंग का मार्केट इंटरनेट की तुलना में 3 गुना तेज है। यह अगले 20 साल में 30 ट्रिलियन डॉलर यानी 2220 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का होगा। वैसे तो डीप लर्निंग, AI का ही एक हिस्सा है, जिस पर 70 साल पहले काम शुरू हुआ था। अब अचानक से आई तेजी की दो वजहें हैं। पहली, क्लाउड आने से भारी-भरकम डेटा को संभालने की सुविधा, और दूसरी बड़े डेटा को मिनटों में प्रोसेस कर देने वाला GPU।