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चुनाव पर सुप्रीम टिप्पणी:फर्जी वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग करने वालों से सख्ती से निपटें, बिना डरे वोट देना हर नागरिक का अधिकार

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनाव के दौरान बोगस वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग को कड़ाई से रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव आम जनता की राय को दिखाते हैं। फ्री इलेक्शन संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं। कोर्ट ने झारखंड में 1989 के लोकसभा चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने वाले 8 आरोपियों की सजा बरकार रखते हुए यह बात कही। सभी आरोपियों पर एक पोलिंग स्टेशन के बाहर फायरिंग करने और बलवा फैलाने के मामले दर्ज थे। इस घटना में कई लोग घायल भी हुए थे।

कोर्ट ने 2013 में पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज पर फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘लोकतंत्र को मजबूत करने में निष्पक्ष और बिना डर के चुनाव जरूरी हैं। इसके लिए वोटिंग की प्रोसेस को गोपनीय रखना जरूरी है।’ कोर्ट ने 2013 के फैसले में कहा था कि वोट देने की आजादी संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी यानी फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का ही एक हिस्सा है।

वोटर को अपना वोट चुनने की आजादी मिले
कोर्ट ने आठों दोषियों को सरेंडर करने और 6 महीने की बाकी सजा पूरी करने को कहा। कोर्ट ने कहा, ‘वोटर को अपनी पसंद से वोट देने पूरी आजादी देना ही चुनाव प्रक्रिया का सार है। इसीलिए, बूथ कैप्चरिंग और फर्जी वोटिंग की किसी भी कोशिश को सख्ती से नाकाम किया जाना चाहिए। इससे लोकतंत्र में कानून-व्यवस्था पर भी असर पड़ता है।’

बिना डरे वोटिंग करना हर वोटर का हक
आठों आरोपियों ने वोटर स्लिप देने से इनकार करने पर भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता को पीटा था। इसके बाद इन लोगों ने फायरिंग की, जिससे आस-पास मौजूद लोग घायल हो गए थे। कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया में बाधा डालने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने अपने पिछले फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि संविधान के मुताबिक, बिना डर के चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेना वोटर का अधिकार है।

वोट की गोपनीयता बनाए रखना जरूरी
कोर्ट ने कहा, ‘लोकसभा या विधानसभा जैसे तमाम चुनाव में गोपनीयता रखना बेहद जरूरी है। तभी वोटर निडर होकर और अपने वोट की सीक्रेसी खत्म होने पर उसके बुरे नतीजे भुगतने की चिंता से बचा रहकर बूथ तक जा सकता है। सीधे चुनाव कराने वाले हर देश में यही व्यवस्था है।

ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लड़े आरोपी
इस मामले के आठों आरोपी; लक्ष्मण सिंह, शिव कुमार सिंह, उपेंद्र सिंह, विजय सिंह, संजय प्रसाद सिंह, राजमणि सिंह, अयोध्या प्रसाद सिंह और रामाधार सिंह ने अपनी सजा को लेकर झारखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सभी आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने जुलाई, 1999 में दंगा फैलाने और जान-बूझकर लोगों को नुकसान पहुंचाने का दोषी माना था। इस मामले में उन्हें 6 महीने की सजा सुनाई गई थी। झारखंड हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2018 को आरोपियों की अपील रद्द करते हुए उनकी सजा बरकरार रखी थी।

ऐसे मामलों में 6 महीने की सजा नाकाफी
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इन्हें मिली 6 महीने की सजा नाकाफी है। हालांकि, राज्य की तरफ से सजा बढ़ाने की मांग नहीं की गई, इसलिए कोर्ट ने इस पर कोई ऑर्डर पास नहीं किया। कोर्ट ने पाया कि सभी आरोपियों को खिलाफ चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर सजा हुई थी। चश्मदीदों ने पुलिस और ट्रायल कोर्ट को बताया था कि आरोपी पोलिंग बूथ पर वोटर लिस्ट छीनने और बोगस वोटिंग कराने के इरादे से ही पहुंचे थे।

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