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अमरिंदर को सिद्धू की सीख:राहुल-प्रियंका से मुलाकात के 2 दिन बाद सिद्धू फ्रंटफुट पर, कैप्टन को नसीहत- बिजली की व्यवस्था ठीक करें

बिजली सरप्लस राज्यों में पंजाब भी शामिल रहा है। 5 साल बाद बिजली संकट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बिजली संकट प्रदेश के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है। ऐसे में अभी प्रदेश में बिजली का कितना उत्पादन है, अचानक यह संकट क्यों खड़ा हुआ? पावरकॉम के सीएमडी ए. वेणुप्रसाद खुद कहते हैं, धान के सीजन में पंजाब पावर सरप्लस नहीं रहा। डिमांड हर साल करीब 1000 मेगावाट बढ़ रही है। डिमांड और सप्लाई में 1500 मेगावाट का अंतर है। पढ़ें उन तमाम सवालों के जवाब जो आपके लिए जानने जरूरी हैं...

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♦दो दिन पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू फिर खुलकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने आ गए हैं। इस बार मुद्दा पंजाब में महंगी बिजली और पावर कट का है। सिद्धू ने शुक्रवार को कई ट्वीट किए और कहा कि अगर पंजाब के मुख्यमंत्री सही दिशा में चलें तो बिजली कटौती की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

सिद्धू के 9 ट्वीट में पंजाब का पावर गेम और कैप्टन को नसीहत

  • पहला: पंजाब की बिजली दरों, बिजली खरीदने का समझौता और पंजाब के लोगों को 24 घंटे फ्री बिजली दिए जाने का सच जानिए। अगर हम सही दिशा में कदम उठाएं तो मुख्यमंत्री को पंजाब में बिजली कटौती, दफ्तरों की टाइमिंग बदलने की और आम आदमी के AC के इस्तेमाल को लेकर नियम बनाने की जरूरत नहीं है।
  • दूसरा: पावर परचेज कॉस्ट- पंजाब एक यूनिट 4.54 रुपए में खरीद रहा है। नेशनल एवरेज 3.85 रु. पर यूनिट का है और चंडीगढ़ एक यूनिट बिजली 3.44 रु. में खरीद रहा है। पंजाब 3 प्राइवेट थर्मल प्लांट पर जरूरत से ज्यादा निर्भर है। एक यूनिट के 5-8 रुपए देने वाला पंजाब दूसरे राज्यों से ज्यादा कीमत चुका रहा है।
  • तीसरा: पावर परचेज एग्रीमेंट (PPAs)- बादल सरकार ने पंजाब के 3 निजी थर्मल पावर प्लांट के साथ PPA साइन किए थे। इन समझौतों की गलत शर्तों के चलते पंजाब वैसे ही 2020 तक 5400 करोड़ दे चुका है और फिक्स चार्ज की शक्ल में अभी पंजाब की जनता के पैसों से 65 हजार करोड़ और दिए जाने की उम्मीद है।
  • चौथा: पंजाब नेशनल ग्रिड से किफायती दरों पर बिजली खरीद सकता है, लेकिन बादल ने जिन समझौतों पर दस्तखत किए, वो पंजाब के लोगों के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। हो सकता है कि पंजाब इन समझौतों पर दोबारा डील और मोलभाव न कर पाए, क्योंकि इन्हें अदालतों से प्रोटेक्शन मिली हुई है।
  • पांचवां: विधानसभा में नया कानून पास किया जा सकता है, जिसके जरिए बिजली खरीद की दरों को किसी भी समय की नेशनल पावर एक्सचेंज की दरों तक सीमित किया जा सकता है। नया संशोधित कानून पास करने से ये सारे समझौते रद्द हो जाएंगे और पंजाब की जनता के पैसे बचेंगे।
  • छठवां: पंजाब में एक यूनिट पर जो रेवेन्यू मिलता है, वो पूरे भारत में सबसे कम है। ये पावर परचेज और सप्लाई सिस्टम के पूरी तरह मिसमैनेजमेंट की वजह से हुआ है। PSPCL सप्लाई होने वाली हर यूनिट के लिए 0.18 रुपए अतिरिक्त देता है। ऐसा तब है, जब उसे राज्य से 9 हजार करोड़ की सब्सिडी मिलती है।
  • सातवां: रिन्यूएबल एनर्जी सस्ता विकल्प है। पंजाब की सोलर और बायोमास की क्षमता का इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने कई फाइनेंस स्कीम चलाई हैं, जिनसे ऐसे प्रोजेक्ट बन सकते हैं। पंजाब एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (PEDA) अपना टाइम केवल बिजली की क्षमता पर जागरूकता लाने में बिता रही है।
  • आठवां: पंजाब में 9 हजार करोड़ पावर सब्सिडी दी जाती है, दिल्ली में केवल 1699 करोड़ पावर सब्सिडी दी जाती है। अगर पंजाब दिल्ली मॉडल को कॉपी करता है तो हमें भी केवल 1600 से 2000 करोड़ सब्सिडी देनी होगी। हालांकि, पंजाब की जनता की बेहतर सेवा के लिए ओरिजिनल पंजाब मॉडल चाहिए होगा, कॉपी किया हुआ नहीं।
  • नौवां: पंजाब का पावर मॉडल- जो पैसा प्राइवेट थर्मल प्लांट पर गलत तरीके से और खुलकर दिया गया है, उसे जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे घरेलू इस्तेमाल के लिए 300 यूनिट बिजली फ्री देना। 24 घंटे बिजली की सप्लाई। इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य में इन्वेस्ट करना।

पंजाब चुनावों से पहले बिजली का खेल क्यों?
पंजाब में 6 महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के दो दिग्गजों मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तकरार साफ नजर आने लगी है। सिद्धू ने बिजली का मुद्दा उठाया है, क्योंकि पंजाब में बिजली के बिलों को लेकर जनता में नाराजगी है। ऑफिस टाइमिंग को लेकर कर्मचारियों ने प्रदर्शन भी किए हैं। सीएम से नाराज चल रहे सिद्धू दो दिन पहले ही प्रियंका गांधी से मिलकर लौटे हैं। इसके बाद उनके इन ट्वीट्स से जाहिर है कि आलाकमान भी उनके कदमों से नाराज नहीं है।

दूसरी बात ये कि चुनावों के लिए ही आम आदमी पार्टी ने भी अपना दांव खेला है। अरविंद केजरीवाल ने चंडीगढ़ में एक सभा में फ्री बिजली का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि गरीबों के बिल 70 हजार तक आ रहे हैं और उनके कनेक्शन काटे जा रहे हैं। केजरीवाल ने कहा कि पंजाब में आप की सरकार बनी तो घरेलू बिजली के बिल माफ होंगे। उन्होंने दिल्ली की तर्ज पर पंजाब में भी 300 यूनिट बिजली फ्री देने का ऐलान किया है।

 

क्यों बढ़ा संकट क्या है समाधान:डिमांड और उत्पादन क्षमता में गैप से बढ़ी दिक्कत, सोलर पर हो फोकस

जालंधर10 घंटे पहले

बिजली सरप्लस राज्यों में पंजाब भी शामिल रहा है। 5 साल बाद बिजली संकट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बिजली संकट प्रदेश के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है। ऐसे में अभी प्रदेश में बिजली का कितना उत्पादन है, अचानक यह संकट क्यों खड़ा हुआ? पावरकॉम के सीएमडी ए. वेणुप्रसाद खुद कहते हैं, धान के सीजन में पंजाब पावर सरप्लस नहीं रहा। डिमांड हर साल करीब 1000 मेगावाट बढ़ रही है। डिमांड और सप्लाई में 1500 मेगावाट का अंतर है। पढ़ें उन तमाम सवालों के जवाब जो आपके लिए जानने जरूरी हैं…

1. इतना बड़ा संकट क्यों?
-बिजली की मांग और जेनरेशन कैपेसिटी में गैप बढ़ा है। जेनरेशन कैपेसिटी 13473 मेगावाट है जबकि डिमांड 1550 मेगावाट ज्यादा हो गई है। हर साल 7 से 10% ब मांग बढ़ रही है। थर्मल प्लांटों की क्षमता कम हो गई है।
2. समाधान क्या है?
2018 की रोपड़ प्लांट्स के 6 में से 2 यूनिट 210-210 मेगावाट के बंद किए थे, अगर इन दोनाें व तलवंडी साबो प्लांट (660 मेगावाट) को चालू कर दें तो संकट से बाहर निकल सकते है।
3. विकल्प क्या हैं?
-312 मेगावाट बिजली सोलर से पैदा होती है। छतों और ट्यूबवेलों पर सोलर पैनल से समस्या हल हो सकती है। केंद्र की कई स्कीम हैं, जिनसे रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दिया जा सकता है।
4. तलवंडी साबो प्लांट की यूनिट मार्च से खराब, जिम्मेदार कौन?
-यूनिट मार्च में खराब है पर तब बिजली की इतनी मांग नहीं थी। रिपेयर के लिए कलपुर्जे विदेश से आने हैं। सितंबर तक रिपेयर होगी। सीएमडी और थर्मल प्लांट संचालक की जिम्मेदारी है।
5. पंजाब किस रेट पर बिजली खरीद रहा है?
-पंजाब सरकार अलग-अलग जगहों से अलग-अलग रेट पर बिजली खरीदती है। मोटे तौर पर सरकार प्रति यूनिट 4.54 रुपए खर्च कर रही है। राष्ट्रीय औसत प्रति यूनिट 3.85 रुपए का है।
6. प्लांटों में क्षमता से कम प्रोडक्शन का कारण क्या है?
-इंजीनियर्स काे समय पर सामान न मिलने से मेंटेनेंस समय पर नहीं होती। फील्ड स्टाफ की कमी है। तूफान से ट्रांसमिशन सिस्टम खराब व ट्रांसफार्मर फीडर खराब हैं।
7. क्या निजी प्लांटों पर निर्भर होने से सरकार का खर्च बढ़ा है?
-निजी प्लांटों का जेनरेशन में 3920 मेगावाट का हिस्सा है। निजी प्लांटों से समझौता है कि बिजली खरीद न होने पर भी फिक्स चार्ज देने होंगे। ये सालाना खर्च 1700 करोड़ है। फिक्स चार्जेज से बचने को सरकारी थर्मल प्लांट स्टैंडबाय रखे।
8. बिजली संकट कितने दिन?
-6 जुलाई तक मानसून एक्टिव होने से भारी बारिश केवल टेंपरेरी राहत देगी। पूरे राज्य में पक्के तौर पर पावरकट खत्म नहीं होंगे।
9. क्या रेवेन्यू घट रहा है? सब्सिडी पर कितना खर्च है?
-पावरकाॅम 3300 करोड़ के घाटे में है। किसानों, इंडस्ट्री व कमजोर वर्ग को 17,796 करोड़ की सब्सिडी मिलती है। बिजली चोरी भी रेवेन्यू घटने का कारण है।

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