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मोदी कैबिनेट का विस्तार टलने की INSIDE STORY:BJP की नजर चिराग की आशीर्वाद यात्रा पर, वह देखना चाहती है कि उनमें पिता रामविलास जैसी चमक है या नहीं

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लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में जारी उठा-पटक का असर केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार पर भी पड़ा है। पहले कहा जा रहा था कि 20 जून तक मोदी कैबिनेट का विस्तार हो जाएगा, लेकिन नहीं हो सका। अब बताया जा रहा है कि जुलाई में होगा। कुछ जानकार विस्तार में हो रही देरी को LJP में जारी घमासान से भी जोड़कर देखने लगे हैं। अब भाजपा वेट एंड वॉच के मूड में चली गई है। वह चिराग और पशुपति पारस के प्रति वोटरों का मूड भांपने में लग गई है।

चर्चा थी कि इस बार के मंत्रिमंडल विस्तार में LJP को भी शामिल किया जाएगा, क्योंकि LJP सुप्रीमो रामविलास पासवान का निधन केंद्रीय मंत्री रहते हो गया था। ऐसे में चिराग पासवान को केंद्र में मंत्री बना दिया जाएगा, लेकिन ऐन मौके पर ही चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस ने विरोध कर दिया।

पशुपति पारस ने पांच सांसदों को लेकर LJP पर दावा ठोक दिया है। हालांकि पारस को लोकसभा में संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता मिल चुकी है, लेकिन LJP पर हक की लड़ाई ने मंत्रिमंडल विस्तार पर ग्रहण लगा दिया है।

5 जुलाई वाली ‘आशीर्वाद यात्रा’ पर नजर
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार LJP विवाद में फंसा है। BJP अभी चिराग पासवान की 5 जुलाई वाली ‘आशीर्वाद यात्रा’ पर नजर टिकाए हुए है। इस यात्रा को चिराग पासवान हाजीपुर से शुरू कर रहे हैं। BJP देखना चाहती है कि चिराग पासवान में उनके पिता रामविलास पासवान वाली बात है कि नहीं। चिराग पासवान की इस यात्रा के बाद ही BJP भी फैसला लेगी और संभवत: चुनाव आयोग भी इसी के आसपास अपना फैसला सुनाएगा।

LJP पर चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार
LJP टूट के ऑपरेशन को JDU के कुछ नेताओं ने अंजाम दिया था, लेकिन अंतिम मौके पर पारस गुट ने अपने लिए अलग दल की मांग कर दी, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। पशुपति पारस को LJP संसदीय दल का नेता बना दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया के बाद पारस और चिराग ने चुनाव आयोग के पास दलील दी है कि पार्टी उनकी है। अब गेंद चुनाव आयोग के पास है कि वो किसके पक्ष में फैसला सुनाता है।

खबर यह है कि दो-चार दिनों में ही इस पर फैसला हो जाना है। यदि फैसला पशुपति पारस के पक्ष में गया तो चिराग पासवान कोर्ट चले जाएंगे। इस बीच यदि मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो NDA दोनों पक्ष को इस विस्तार से अलग रखेगी। केंद्र सरकार में चिराग पासवान का दावा है। इसको नकारा नहीं जा सकता।

लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चिराग पासवान।
लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चिराग पासवान।

चुप्पी साध भाजपा कर रही जमीनी आकलन
चिराग पासवान को लेकर भाजपा जमीनी आकलन करने में जुटी है। अपने संगठन के साथ ही पार्टी सर्वे एजेंसियों के जरिए भी पासवान जाति के वोटरों के मन की बात जानने में लगी है। LJP में टूट के बावजूद चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति पारस के लिए लगातार नरमी दिखा रहे हैं।

यही नहीं, उन्होंने बिहार की जनता के नाम भी एक भावुक पत्र लिखा है। ये सारी कोशिशें वोटरों को भावनात्मक तौर पर अपने साथ जोड़े रखने की हैं। भाजपा चिराग की इन कोशिशों को बखूबी समझती है। यही वजह है कि वह चिराग को लेकर कुछ भी बोलने से पहले वोटरों के मिजाज को समझना चाहती है।

चुपके से PM मोदी के करीबी से मिले चिराग
LJP के अध्यक्ष चिराग पासवान सोमवार को अचानक अहमदाबाद पहुंच गए। इस दौरान उन्होंने भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त माने जाने वाले परिंदु भगत से मुलाकात की। भगत भाजपा में चुनाव और क्राइसिस मैनेजमेंट के विशेषज्ञ माने जाते हैं।

भगत पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के समधी हैं। हालांकि चिराग ने इस मुलाकात को निजी बताया, लेकिन कहा जा रहा है कि उन्होंने पार्टी की टूट के बारे में चर्चा की है। चर्चा यह भी है कि चिराग संभावित केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार के बारे में भगत के माध्यम से भाजपा नेतृत्व तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं।

बिहार में पासवान वोट 3 से 5 फीसदी
बिहार में जातियों की जनसंख्या को लेकर कोई नया आंकड़ा मौजूद नहीं है। 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य में पासवान जाति के 3 से 5 फीसदी वोट हैं। इसे LJP का आधार वोट बैंक माना जाता है। LJP के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान अपने इसी वोट बैंक के जरिए बिहार से लेकर केंद्र की राजनीति में प्रभावी रहे। अब जब LJP टूट गई है तो सवाल ये खड़ा हो रहा है कि ये वोटर किसके साथ हैं, चिराग पासवान के साथ या फिर उनके चाचा पशुपति पारस के साथ?

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