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कश्मीर पर मोदी का मंथन:PM बोले- कश्मीर में जल्द होंगे विधानसभा चुनाव; उमर परिसीमन से सहमत नहीं, महबूबा ने कहा- पाकिस्तान से भी बात हो

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर पर 8 दलों के 14 नेताओं के साथ करीब 3 घंटे तक बैठक की। प्रधानमंत्री आवास पर चली इस बैठक में मोदी ने संदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर से दिल्ली और दिल की दूरी कम होगी। उन्होंने परिसीमन के बाद जल्द विधानसभा चुनाव कराए जाने की बात भी कही और नेताओं से ये भी कहा कि वे इस प्रक्रिया में शामिल हों।

बैठक में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत गुपकार अलायंस के बड़े नेता भी मौजूद थे। इनके अलावा गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद भी बैठक में शामिल हुए।

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीतिक मतभेद होंगे लेकिन सभी को राष्ट्रहित में काम करना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर के लोगों को फायदा हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर में सभी के लिए सुरक्षा और सुरक्षा का माहौल सुनिश्चित करने की जरूरत है।

महबूबा ने कहा- कश्मीर में सख्ती खत्म होना चाहिए
PDP नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि मैंने मीटिंग में जम्मू -कश्मीर के लोगों की मुसीबतें सामने रखीं। कश्मीर के लोग 5 अगस्त 2019 के बाद से नाराज हैं और शोषित महसूस करते हैं। असंवैधानिक तरीके से अनुच्छेद-370 को हटाया गया, वह जम्मू-कश्मीर के लोगों को पसंद नहीं है। ये हमें पाकिस्तान से नहीं मिला था। ये हमें जवाहर लाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल ने हमें दिया था।

हमने कहा कि चीन के साथ आप बात कर रहे हैं। आपने पाकिस्तान से बातचीत की और इससे सीजफायर कम हुआ, इसका हम स्वागत करते हैं। पाकिस्तान से फिर बातचीत करनी चाहिए ताकि जो ट्रेड उनके साथ रुका है, वो बहाल हो। UAPA की सख्ती बंद हो, जेलों में बंद कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लोग तंग आ गए हैं कि जोर से सांस भी लें तो उन्हें जेल में डाला जाता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मीटिंग में शामिल सभी नेताओं के पास जाकर उनसे बात भी की।
प्रधानमंत्री मोदी ने मीटिंग में शामिल सभी नेताओं के पास जाकर उनसे बात भी की।

उमर अब्दुल्ला बोले- एक बैठक से दिल की दूरी कम नहीं होगी
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि हम आर्टिकल-370 पर अपनी लड़ाई अदालत में लड़ेंगे। हमने प्रधानमंत्री से भी कहा कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र के बीच विश्वास को दोबारा कायम करना आपकी जिम्मेदारी है। जम्मू-कश्मीर को यूनियन टेरेटरी का दर्जा दिया गया है, कश्मीरी इसे पसंद नहीं करते हैं।

उमर ने कहा कि प्रधानमंत्री दिल की दूरी कम करना चाहते हैं, लेकिन एक मुलाकात से न दिल की दूरी कम होती है और न दिल्ली की दूरी कम होती है। एक मीटिंग में इस बात की उम्मीद करना गलतफहमी होगी। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। हमने ये भी कहा कि परिसीमन की कोई जरूरत नहीं है। इससे बहुत संदेह पैदा होते हैं।

अमित शाह ने कहा- हम कश्मीर के लिए प्रतिबद्ध
बैठक के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जम्मू-कश्मीर पर आज की बैठक बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। सभी ने लोकतंत्र और संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। साथ ही जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने पर जोर दिया गया।

उन्होंने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने जम्मू और कश्मीर के भविष्य पर चर्चा की। परिसीमन और चुनाव संसद में किए गए वादे के अनुसार राज्य का दर्जा बहाल करने में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं।

पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का भरोसा
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम और भाजपा नेता कवींदर गुप्ता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के मामलों पर विस्तार से चर्चा हुई है। लगता ऐसा है कि परिसीमन के बाद जल्द ही चुनाव कराए जाएंगे। सभी नेता सामान्य तरीके से चुनाव चाहते हैं। प्रधानमंत्रीजी ने भरोसा दिलाया है कि हम जम्मू-कश्मीर के विकास पर काम करेंगे। गुप्ता ने बताया कि प्रधानमंत्रीजी ने कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर भी पूरा भरोसा नेताओं को दिलाया है।

दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मीटिंग के लिए पहुंचे जम्मू-कश्मीर के नेता। साथ में हैं गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा।
दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मीटिंग के लिए पहुंचे जम्मू-कश्मीर के नेता। साथ में हैं गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा।

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के सामने रखीं 5 मांगें
मीटिंग के बाद कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आजाद ने बताया कि हमने 5 बड़ी मांगें सरकार के सामने रखीं हैं।
पहली: जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्दी दिया जाना चाहिए। सदन के अंदर गृहमंत्री जी ने हमें आश्वासन दिया था कि राज्य का दर्जा वक्त आने पर बहाल किया जाएगा। हमने तर्क दिया कि अभी शांति है तो इससे ज्यादा अनुकूल वक्त नहीं हो सकता।
दूसरी: आप लोकतंत्र की मजबूती की बात करते हैं। पंचायत और जिला परिषद के चुनाव हुए हैं और ऐसे में विधानसभा के चुनाव भी तुरंत होने चाहिए।
तीसरी: केंद्र सरकार गारंटी दे कि हमारी जमीन की गारंटी और रोजगार की सुविधा हमारे पास रहे।
चौथी: कश्मीरी पंडित पिछले 30 साल से बाहर हैं, जम्मू-कश्मीर के हर दल की जिम्मेदारी है कि उन्हें वापस लाया जाए और उनका पुनर्वास कराया जाए।
पांचवीं: 5 अगस्त को राज्य के दो हिस्से किए थे। हमने इसका विरोध जताया।

मोदी की बैठक से पहले चुनाव आयोग की भी बैठक हुई
बताया जा रहा है कि मोदी की बैठक में जम्मू-कश्मीर से राजनीतिक गतिरोध खत्म करने और चुनाव कराने का रोडमैप तैयार किया गया है। इस बैठक से पहले चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर के सभी 20 उपायुक्तों से विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्गठन और 7 नई सीटें बनाने पर भी विचार-विमर्श किया है।

इससे 3 घंटे पहले गृह मंत्री अमित शाह PM मोदी के घर पहुंचे और कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा की। माना जा रहा है कि इस दौरान मोदी की कश्मीर के नेताओं के साथ होने वाली मीटिंग के एजेंडे पर बात हुई। वहीं, कश्मीर के नेताओं के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पार्टी मुख्यालय पर अहम मीटिंग हुई। इस बैठक में रविन्द्र रैना, कवींद्र गुप्ता, निर्मल सिंह और मंत्री जितेंद्र सिंह शामिल हुए थे।

मोदी के साथ मीटिंग में ये नेता शामिल हुए

  • महबूबा मुफ्ती: पीडीपी की चीफ और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नजरबंद किए जाने वाले नेताओं में शामिल।
  • फारूक अब्दुल्ला: नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं। 2009 से 2014 की यूपीए सरकार में मंत्री रहे। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने के बाद इन्हें भी नजरबंद किया गया था।
  • उमर अब्दुल्ला: नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता। जम्मू-कश्मीर की पिछली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के वक्त विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। वे राज्य के मुख्यमंत्री का जिम्मा भी संभाल चुके हैं। इन्हें भी PSA के तहत नजरबंद किया गया था।
  • सज्जाद लोन: जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं। वे अब्दुल गनी लोन के बेटे हैं, जिनकी 2002 में श्रीनगर में एक रैली के दौरान हत्या कर दी गई थी। सज्जाद गुपकार अलायंस के नेताओं में शामिल हैं।
  • रविंदर रैना: जम्मू-कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष हैं। संघ में लंबे समय तक काम करने के बाद उन्हें पार्टी के काम में लगाया गया है।
  • कविंदर गुप्ता: पीडीपी-भाजपा सरकार में डिप्टी सीएम का जिम्मा संभाल रहे थे। 13 साल की उम्र में स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। लंबे समय तक संघ के साथ काम करने के बाद उन्हें भाजपा में भेजा गया।
  • गुलाम नबी आजाद: वरिष्ठ कांग्रेस नेता। राज्यसभा में विपक्ष के नेता। 2005 से 2008 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे।

मीटिंग में ये भी शामिल

  • निर्मल सिंह: BJP नेता डॉ. निर्मल कुमार सिंह पूर्ण राज्य रहने के दौरान जम्मू और कश्मीर विधान सभा के अंतिम अध्यक्ष थे। वह जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
  • एमवाई तारिगामी: CPI के नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी पीपुल्स अलायंस के संयोजक और प्रवक्ता हैं। तारिगामी 1996, 2002, 2008 और 2014 में कुलगाम से विधायक चुने गए थे।
  • गुलाम अहमद मीर: कांग्रेस नेता गुलाम अहमद मीर दूरू विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। वह जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में हार गए थे।
  • तारा चंद: प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारा चंद 2009 से 2014 तक जम्मू और कश्मीर के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह विधान सभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
  • भीम सिंह: भीम सिंह जम्मू और कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी (JKNPP) के संस्थापक हैं।। भीम सिंह 30 साल तक पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष रहे। 2012 में उन्होंने अपने भतीजे को यह जिम्मेदारी सौंप दी।
  • मुजफ्फर बेग: मुजफ्फर हुसैन बेग जम्मू और कश्मीर के उप मुख्यमंत्री रहे हैं। वह मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व वाली जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं।

महबूबा के पाकिस्तान वाले बयान पर बवाल
इस बीच महबूबा के पाकिस्तान से बातचीत वाले बयान पर बवाल शुरू हो गया है। जम्मू में डोगरा फ्रंट ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि महबूबा को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए। इसके लिए उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।

जम्मू में डोगरा फ्रंट ने महबूबा मुफ्ती के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि पाकिस्तान वाले बयान के लिए उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।
जम्मू में डोगरा फ्रंट ने महबूबा मुफ्ती के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि पाकिस्तान वाले बयान के लिए उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।

2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता आ गई थी
5 अगस्त 2019 को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेट्स को खत्म कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। उसके बाद से राजनीतिक हालात अस्थिर हो गए थे। ज्यादातर बड़े नेता नजरबंद रहे। कुछ को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत जम्मू और कश्मीर के बाहर जेलों में भेज दिया गया। अब मोदी की मुलाकात को केंद्र की ओर से जम्मू-कश्मीर में जम्हूरियत कायम करने के लिए सभी दलों से बात करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।कश्मीर की सियासत:नेहरू से मोदी तक प्रधानमंत्रियों ने अमन बहाली की कोशिश की; भाजपा PDP के साथ गठबंधन कर पहली बार सत्ता में आई

2015 में PDP के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनी थी। पार्टी ने प्रदेश में पहली बार BJP के साथ गठबंधन किया था। सईद के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। - Dainik Bhaskar
2015 में PDP के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनी थी। पार्टी ने प्रदेश में पहली बार BJP के साथ गठबंधन किया था। सईद के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे।

जम्मू कश्मीर देश की आजादी के बाद से ही विवादों के साये में रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच पहले युद्ध की वजह बना यह विवाद सियासी न रहकर एक समय बाद आतंकवाद की राह पर चला गया। इस दौरान दिल्ली से रिश्ते सुधारने की कोशिशें चलती रहीं।

हर सरकार जम्मू-कश्मीर को खास तवज्जो देती रही ताकि अलगाववादी अपनी जड़ें न फैला सकें। इसके बावजूद दिलों की दूरियां अब भी कायम हैं। फोटोज में देखिए दिल्ली और कश्मीर के नेताओं ने कब-कब सुलह की गंभीर कोशिशें कीं। देखिए ऐसे ही मौकों की कुछ खास तस्वीरें…

कश्मीर के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू। दोनों के रिश्ते कभी एक जैसे नहीं रहे। 1953 में जम्मू-कश्मीर की सत्ता से हटाए जाने के करीब 22 साल बाद अब्दुल्ला 1975 में मुख्यमंत्री बने थे। शेख अब्दुल्ला को नेहरू का समर्थन हासिल था। इसके बावजूद कश्मीर कॉन्सपिरेसी केस में शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटाने के बाद 11 साल तक जेल में बंद रखा गया। अब्दुल्ला ने आरोप लगाया था कि उनकी बर्खास्तगी के पीछे जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली केंद्र सरकार का हाथ है।

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ कश्मीरी नेता बख्शी गुलाम मोहम्मद और जीएम सादिक। बख्शी गुलाम मोहम्मद 1953 से 1964 तक जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे थे। मार्च 1965 में प्रधानमंत्री पद खत्म होने के बाद जीएम सादिक जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे वीपी सिंह और मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 13 नवंबर, 1988 को श्रीनगर में एक बड़ी जनसभा की थी। इस दौरान उन्होंने मुफ्ती मोहम्मद सईद (बाएं) और दूसरे स्थानीय नेताओं के साथ जन मोर्चा (पीपुल्स फ्रंट) नाम की एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू की। सईद 1987 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनमोर्चा में शामिल हो गए थे। वीपी सिंह ने उन्हें अपनी सरकार में गृहमंत्री भी बनाया था। 1989 में उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की थी। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री और अलगाववादी नेताओं के बीच पहली मुलाकात थी। वाजपेयी ने हुर्रियत के साथ बिना शर्त बातचीत की पेशकश कर कश्मीर मसले को सुलझाने की कोशिश की थी। वाजपेयी ने इससे पहले अलगाववादी नेता शब्बीर शाह से मार्च 1995 में संसद भवन में मुलाकात की थी। तब वाजपेयी ने कश्मीर की समस्या हल करने की जरूरत बताई थी।

7 जनवरी 2016 को मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के ढाई महीने के बाद 4 अप्रैल 2016 को महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। शुरुआत में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके अच्छे संबंध रहे, लेकिन 2018 में यह गठबंधन टूट गया। गठबंधन टूटने के बाद महबूबा ने कहा था कि हमें मालूम था कि यह कदम आत्मघाती होगा। उसके बावजूद हमने सब कुछ दांव पर लगा दिया।

कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की बैठक:एक्सपर्ट का मानना- भाजपा कश्मीर समस्या का हल निकालने के लिए जम्मू के किसी हिंदू को CM बनाने की कोशिश करेगी

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के 8 दलों के 14 नेताओं के साथ मीटिंग की। इसमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत गुपकार अलायंस के बड़े नेता भी मौजूद थे। इस दौरान मोदी ने संदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर से दिल्ली और दिल की दूरी कम होगी। उन्होंने परिसीमन के बाद जल्द विधानसभा चुनाव कराए जाने की बात भी कही। इस बैठक के बाद आगे क्या कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है, इसे कश्मीर मामलों के जानकार राहुल पंडिता से इन 6 पॉइंट्स में समझते हैं…

1. प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ मीटिंग की। जम्मू-कश्मीर के लोगों को इससे कितनी उम्मीदें हैं?

इस मीटिंग को लेकर जम्मू और कश्मीर के लोगों की उम्मीदें एक जैसी नहीं है। यहां तक कि कश्मीर घाटी में भी लोगों की राय मिली-जुली ही है। ज्यादातर कश्मीरी मुसलमानों को लगता है कि केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म करके उनका विशेष दर्जा छीन लिया है।

वे चाहते हैं कि कश्मीर की मुख्यधारा के नेता इसे वापस बहाल करवाएं। इनमें एक साइलेंट वर्ग भी है जिसे लगता है कि दिल्ली की अब तक की सरकारों ने उसके साथ सौतेला व्यवहार किया है। वे चाहते हैं कि ये दोहरापन खत्म हो। चूंकि, यह सरकार फिर से उन्हीं लोगों के साथ मीटिंग की, जो कश्मीर में आज के हालात के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए भी इस बैठक से ज्यादा उम्मीद नहीं है।

2. जम्मू कश्मीर के नेताओं को PM मोदी से कितनी उम्मीदें हैं?

यहां की दो मुख्य पार्टियां नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP अगस्त 2019 के बाद से दबाव में हैं। स्थानीय राजनीति में दोनों की अहमियत खत्म सी हो गई है। इसको लेकर लोगों में गुस्सा भी है। खास करके PDP के खिलाफ जिसने 2015 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। यह भाजपा और PDP दोनों की बहुत बड़ी भूल थी। कश्मीर के पत्रकार मजाकिया लहजे में कहते हैं कि भाजपा और PDP का साथ आना RSS और हिजबुल मुजाहिद्दीन के बीच हाथ मिलाने जैसा था। धारा 370 खत्म होने के बाद PDP को काफी हद तक नुकसान पहुंचा है।

मोदी की मीटिंग के बाद अगर कश्मीर के लोगों को कुछ रियायतें मिलती हैं तो फारूक अब्दुला और महबूबा मुफ्ती दोनों उसका क्रेडिट लेने की कोशिश करेंगे। महबूबा ने कश्मीर मसले पर बातचीत के लिए पाकिस्तान को पार्टी बनाने की बात कहकर खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश की है। मुझे लगता है कि अगर इस तरह की मानसिकता के साथ कुछ होता है तो वह कश्मीर के लिए सही नहीं होगा।

5 अगस्त, 2019 को कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद बाद पहली बार केंद्र सरकार कश्मीरी नेताओं से बात करेगी। इस बैठक में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत कश्मीर के 8 राजनीतिक दलों के 14 नेताओं को बुलाया गया है।
5 अगस्त, 2019 को कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद बाद पहली बार केंद्र सरकार कश्मीरी नेताओं से बात करेगी। इस बैठक में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत कश्मीर के 8 राजनीतिक दलों के 14 नेताओं को बुलाया गया है।

3. परिसीमन पूरा होने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 111 से 114 सीटें हो सकती हैं। जिसमें PoK के लिए भी 24 सीटें रिजर्व्ड होंगी। आप इसको कैसे देखते हैं?

इसको लेकर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगा, लेकिन इतना तो तय है कि जम्मू की हिंदू बहुल आबादी, जिसे लगता है कि उसे जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कम प्रतिनिधित्व मिला है। उसे साधने की कोशिश भाजपा करेगी। यह सब कुछ कैसे होता है, इसके लिए अभी इंतजार करना होगा।

4. परिसीमन के पीछे क्या राजनीति है? क्या यह जम्मू-कश्मीर में शांति और सुरक्षा के लिहाज से मददगार साबित होगा?

मैं फिर से यही कहूंगा कि अभी इसको लेकर कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगा, लेकिन मुझे लगता है कि भाजपा यहां की समस्या का हल निकालने के लिए जम्मू के किसी हिंदू को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेगी। मुझे नहीं पता, यह कारगर होगा कि नहीं या इससे यहां के लोगों का भला होगा कि नहीं।

लेकिन एक चीज तो साफ है कि अगर नया कश्मीर चाहिए, जैसा कि भाजपा बनाने का दावा कर रही है तो कश्मीरी फिर से महबूबा मुफ्ती जैसे पुराने नेताओं के साथ नहीं जा सकते।

5. क्या आपको लगता है कि 370 खत्म करने से जमीनी स्थिति बदली है? अगर हां तो किस तरह के बदलाव हुए हैं?

ज्यादातर कश्मीरी मुसलमान जो आजादी का सपना देखते थे, वो चाहते थे कि कश्मीर पाकिस्तान में मिल जाए। आर्टिकल 370 हटने के बाद उस पर विराम लग गया। यह कभी मुमकिन नहीं होगा।

इतना ही नहीं आर्टिकल 370 के खत्म होने के बाद एक दिलचस्प चीज यह भी देखने को मिली कि इस्लामिक जिहाद में यकीन रखने वाले कश्मीरियों को लगा कि पाकिस्तान उनकी मदद के लिए आएगा। दूसरी तरफ पाकिस्तान को उम्मीद थी कि कश्मीरी भारत के खिलाफ आवाज उठाएंगे। इससे पहले आप, पहले आप जैसे हालात हो गए और आखिरकार कुछ नहीं हुआ।

6. पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर में हुए नए बदलाव के दो साल पूरे हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यहां किस तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं?

मुझे लगता है कि हमें कश्मीर में जवाबी कार्रवाई के मॉडल पर फिर से विचार करने की जरूरत है। आतंकियों को मार गिराना ठीक है, लेकिन यह हमारी कामयाबी का पैरामीटर नहीं हो सकता है। कश्मीर में हम तब ही कामयाब हो सकते हैं, जब यहां के युवाओं को कट्टरपंथी बनने से रोक सकें।

पुलवामा केस में पुलिस ने संपन्न परिवार से आने वाले वैज उल इस्लाम नाम के एक युवक को गिरफ्तार किया, जो पुलवामा से बहुत दूर का रहने वाला था। वह जैश के संपर्क में आने के पहले मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था। उन लोगों ने उसका इतना ब्रेनवाश किया कि वह उनके लिए काम करने लगा। जब सरकार वैज उल इस्लाम जैसे युवाओं तक जैश के पहुंचने से पहले पहुंचेगी, तब हम कश्मीर में स्थाई शांति बहाल होते देख सकेंगे।

 

 

 

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