Newsportal

इलेक्ट्रो होम्योपैथी: मेडिकल साइंस में एक चमत्कारी पद्धति

***Dr. अशोक कुमार मौर्या की फेस बुक वॉल से साभार, Electrohomoeopathy डॉक्टर्स के लिए टिप्स

0 6,975
क्या औषधियां  बायो एनर्जी क्या है ?
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
             बायो एनर्जी को समझने से पहले एनर्जी के विषय में समझ लेना आवश्यक है। एनर्जी वह शक्ति है जिसके द्वारा कोई कार्य किया जाता है। बिना शक्ति (एनर्जी) के संसार में कोई कार्य नहीं हो सकता है अर्थात जिस शक्ति से कोई कार्य होता है उसे एनर्जी कहते हैं। एनर्जी न स्थान घेरती है न इसमे भार होता है न इसे देखा जा सकता है। एनर्जी कभी नष्ट नहीं होती है। अपना रूप  बदल लेती है। संसार में एनर्जी अनेकों प्रकार की होती है।
   जिसमें प्रमुख निम्न प्रकार से हैं:–
(1) मैकेनिकल —- यंत्रों से प्राप्त एनर्जी ।
(2) हीट एनर्जी —- आग से प्राप्त एनर्जी ।
(3) लाइट एनर्जी —– सूर्य से प्राप्त एनर्जी ।
(4) मैग्नेटिक एनर्जी —- चुंबक से प्राप्त एनर्जी
(5) साउंड एनर्जी— आवाज से प्राप्त एनर्जी ।
(6) विद्युत एनर्जी—– विद्युत से प्राप्त एनर्जी ।
(7) केमिकल एनर्जी —- रसायन से प्राप्त एनर्जी ।
(8) न्यूक्लियर एनर्जी– परमाणु से प्राप्त एनर्जी
(9) बायो एनर्जी —- जीव जंतुओं से प्राप्त एनर्जी ।
(A) बायो एनर्जी (वाह्य)—–उत्सर्जन व अंगों
 से प्राप्त एनर्जी ।
(B) बायो एनर्जी (आंतरिक) —भोजन ,
 मेटाबॉलिज  व प्रकाश संश्लेषण के द्वारा शरीर के
 अंदर प्राप्त एनर्जी ।
क्या है बायो एनर्जी ?
————————
             हमने देखा कि संसार में विभिन्न प्रकार की एनर्जी हैं। जिनमें एक बायो एनर्जी भी है। हम केवल bio-energy के विषय में यहां चर्चा करेंगे। बायो एनर्जी मुख्य रूप से दो रूपों में पाई जाती है । एक वह भाग जो बायो उत्सर्जित ( मल मूत्र पेड़ पौधों के टूटे-फूटे भाग आदि ) पदार्थो के द्वारा एनर्जी प्राप्त होती है।
         दूसरे वह जो जीव जंतु भोजन करके, उनका मेटाबोलिज्म व प्रकाश संश्लेषण आदि अनेक जटिल क्रियाओं द्वारा अपने अंदर एनर्जी। प्राप्त कर स्टोर करते हैं। यहां हम इसी एनर्जी की बात करेंगे । जीव जंतु भोजन करने के बाद अपने शरीर में एनर्जी को स्टोर कर लेते है।
       हम जानते हैं कि जीव ( जन्तु और पेड़ पौधे ) जब भोजन करते हैं उसका पाचन अनेक जटिल रासायनिक क्रियाओं के द्वारा शरीर के अंदर होता है  फिर उससे ऊर्जा (एनर्जी) प्राप्त होती है।  इसी ऊर्जा से  दैनिक जीवन के समस्त कार्य (चलना, फिरना ,भोजन करना ,श्वसन करना  उत्सर्जन करना, प्रकाश संश्लेषण करना आदि अनेक काम करते हैं। कायदा तो यह होना चाहिए जितनी ऊर्जा हम पैदा करते हैं। वह कार्य में समाप्त हो जाना चाहिए लेकिन ईश्वर ने शरीर में यह क्षमता प्रदान की है यदि हम कुछ  भी भोजन न करें तो उसके लिए हमारे शरीर में ऊर्जा स्टोर रहे और यह ऊर्जा शरीर के ऊतकों में स्टोर रहती है । जो आवश्यकता पड़ने पर शरीर से बिना भोजन किए उसे खर्च कर सकता है।
              यहां जिस विषय में हम बात कर रहे हैं वह पेड़ पौधों की है कि पेड़ पौधों में जो एनर्जी एकत्र होती है उसी एनर्जी को हम उपयोग में लाते हैं। इसलिए हमें यह भी जानना आवश्यक है कि पेड़ पौधों में एनर्जी मुख्य रूप से कहां-कहां एकत्र होती है। पेड़ पौधों में अपने जीवन को चलाने के लिए  उनके ऊतकों में एनर्जी एकत्र रहती है। जिससे पेड़ पौधे अपना जीवन चलाते हैं लेकिन कभी-कभी पेड़ पौधे हमारी तरीके से अतिरिक्त एनर्जी भी एकत्र कर लेते हैं । जो संकट के समय उनके जीवन में काम आती है। कभी-कभी अपनी वंश वृद्धि के लिए एनर्जी एकत्र करते हैं जैसे फलों में ऊर्जा एकत्र करना । पेड़ पौधों के उन भागों को ही हम अधिकतर औषधि के रूप में उपयोग करते हैं जिन भागों में पेड़ पौधे एनर्जी एकत्र करते हैं जैसे जड़ ,छाल, पत्ती ,फूल ,फल आदि।
क्या औषधियां बायो एनर्जी हैं
————––———————
      जब हम औषधि तैयार  करते हैं। तो औषधि में वही पदार्थ आते हैं । जो पौधे में बायो एनर्जी के रूप में अपने अंदर संभाल कर रखा होता है। इसी एनर्जी को कोई ओड फोर्स कहता है , कोई स्पैजेरिक  कहता है , कोई जौहर कहता है, तो कोई वाइटल फोर्स कहता है प्लांट एक्सट्रैक्ट कहता है लेकिन मूल में जीव की बायो एनर्जी (Bio energy) ही होती है।
विश्व में सीक्रेट रेमेडी का प्रचलन ●●●●●●●●●●●●
            प्राचीन काल से विश्व के सभी देशों में सीक्रेट रिमेडिका प्रचलन रहा है। इसके अंतर्गत चिकित्सक, चिकित्सा तो करते थे पर दूसरे को उस चिकित्सा का ज्ञान नहीं देता थे । जिसके कारण विश्व को चिकित्सा जगत में बहुत बड़ी हानि हुई है। भारत में भी ऐसी चिकित्सा चलती थी और आज भी चल रही है । हालांकि लोगों में कुछ जागरूकता आई है लेकिन फिर भी अभी पूरी तरह से अंधकार समाप्त नहीं हुआ है ।
              इस पर आगे कुछ कहने से पहले डा. अशोक कुमार मौर्या कहते हैं कि वह इस चिकित्सा के विषय में थोडा  प्रकाश डालना उचित समझता हूँ । हमने अपने प्रारंभिक जीवन  में देखा है कि उस समय गांव में चिकित्सक नहीं होते थे। कुछ हिंदुओं में  वैद्य और मुसलमानों में  हकीम हुआ करते थे। जो छोटी-छोटी पुस्तकों को पढ़कर कुछ जड़ी बूटियों का ज्ञान रखते थे और उसी से लोगों की निशुल्क चिकित्सा किया करते थे।
             यह चिकित्सक  जड़ी बूटियों, खनिजों , और कुछ मन्त्रो का प्रयोग करते थे। लोग चिकित्सा तो करते थे परंतु दवा मे क्या देते थे यह किसी को पता नहीं होता था और न ही कोई पता करने का प्रयास करता था। यदि किसी को सीखना हो तो पहले उसे गुरु बनाए फिर वह सिखायेगा  वह भी  शिष्य से कह देता था कि आप किसी को बताना नहीं , बताओगे तो दवा काम नहीं करेगी । इस डर से लोग अपने नुक्से खोलते नहीं थे। इस प्रकार लोग गुरु की आज्ञा का वह जीवन भर पालन करते थे । यदि उसने अपने शिष्य को बताया तो ठीक और यदि शिष्य  बनाने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई तो उसका ज्ञान वहीं से समाप्त हो जाता था।
                ऐसे बहुत  से लोग थे जो बहुत  अच्छी चिकित्सा करते थे लेकिन ज्ञान का फैलाव न होने के कारण उनकी मृत्यु के बाद वह फार्मूले लुप्त हो गए। यह केवल भारत में नहीं विश्व के सभी देशों में यही नियम बना हुआ था। इतना ही नहीं शिक्षित चिकित्सक भी अपने फार्मूले ओपेन नहीं करते थे।
           अभी कुछ दिन पहले भारत सरकार की सख्ती के कारण चिकित्सक अपने फार्मूले ओपन करने लगे हैं । पहले यदि किसी चिकित्सक के पास दवा लेने जाओ तो चिकित्सक रैपर से गोलियां निकालकर 1-1 डोज  की पुडिया बना देता था और 1 शीशी मे अपने पास से मिक्सर बनाकर देता था। जिसके कारण लोगों को पता ही नहीं चलता था कि डॉक्टर ने क्या  दवा दिया है। जिस पर्चे से  दवा दी जाती थी। उस  पर्चे को चिकित्सक अपने पास ही रखना था। अगली बार जब दवा लेने जाओ तो अपना नाम बताओ कम्पाउंडर पर्चा  निकाल कर देगा फिर आपको दवा मिलेगी । अब भारत सरकार की शक्ति के कारण लोग रैपर में दवा देने लगे हैं ।और पर्चा भी देने लगे है पर्चे पर साफ-साफ दवा लिखने लगे हैं नहीं तो ऐसी राइटिंग लिखते थे कि कंपाउंडर और मेडिकल स्टोर वाला ही पढ़ पाए अर्थात रिमेडी को सीक्रेट बना रखा था ।
       आज होम्योपैथी व इलेक्ट्रो होम्योपैथी में यही चल रहा है अपने रजिस्टर पर  दवा लिख लेते हैं और मरीज को केवल डिप की हुई गोलियां मिलती हैं कौन सी औषधि है इसकी कोई जानकारी नहीं होती है । आज बहुत से इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सक बड़े-बड़े दावे करते हैं । हमने गाल ब्लैडर से पथरी निकाल दी, कैंसर ठीक कर दिया, एड्स ठीक कर दिया ,कोरोना ठीक कर दिया, लेकिन जब उनसे नुक्सा पूछा जाता है  कि किस दवा से ठीक किया? कौन सा डायलूशन  दिया? तो बताने में कतराते रहते हैं। कहते हैं यह कैसे बता दूंगा फिर मेरा क्या होगा ? खोज मैने की है । वे यह भूल जाते हैं कि  आप जो काम कर रहे हैं जो दबा दे रहे हैं पहले वो किसी से सीखी थी ।
तो आज बताने में क्या दिक्कत है?
       कुल मिलाकर आज भी  रिमेडी को सीक्रेट रखा रखना चाहते है। प्राचीन काल में विश्व में यह प्रथा चली आ रही है कि रिमेडी को सीक्रेट रखा जाए लेकिन कुछ विद्वान लोग हुए हैं जिनमें चरक सुश्रुत और अन्य लोग भी हैं जिन्होंने औषधियों के ग्रंथ बनाएं है उनका प्रचार प्रसार हुआ और आज लोग उसे लाभ उठा रहे हैं। कुछ लोगों ने उसे सीक्रेट रखने में ही अच्छा समझा था । इनमें काउंट सीजर मैटी और डॉक्टर फादर मूलर का नाम सामने आता है। दोनों लोगों के औषधियां बहुत अच्छा कार्य करती थी। काउंट सीजर मैटी की औषधियां गोलियों के रूप में थी। जिनके नंबर पड़े हुए थे और पांच तरल रूप में थी ( पांच बिजलियाँ ) ।  इन औषधियों के फार्मूले तो गुप्त थे लेकिन अपनी औषधीय गुणों की विशेषता के कारण दुनिया भर में फैली हुई थी । इसी तरह फादर मूलर के फार्मूले गुप्त थे और नंबरों के हिसाब से औषधियां दी जाती थी। यह भी बहुत अच्छी औषधियां थी।
           हम डॉक्टर काउंट सीजर मैटी की बात करते हैं यदि उन्होंने औषधियों के फार्मूले ओपन किए होते तो आज इलेक्ट्रो होम्योपैथी का रूप ही बदला हुआ होता । दवा साजी और औषधि फार्मूले ISO जर्मन को दिए गए थे। उसने फार्मूले तो ओपन किए पर दवासाजी के  तरीकें गुप्त  रखें।  जिसके कारण इलेक्ट्रो होम्योपैथी में आज भ्रम की स्थिति बनी पड़ी है। हालांकि कुछ लोगों ने जैसे आज दवा साजी और फार्मूलो पर अनुमान लगाते हैं वैसे उस टाइम में भी अपना अनुमान लगाने लगे थे । वे अनुमान से ही इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फार्मूले ओपन करने लगे है। जो मॉडर्न मेडिसिन नामक पत्रिका में छपे थे। यह फार्मूले ISO के फार्मूलो उसे मेल नहीं खाते है। इसलिए इन्हें इलेक्ट्रो होम्योपैथी  के फार्मूले नहीं कहा जा सकता है । दवा साजी  का तरीका आज भी किसी को नहीं पता है।
(1) पेटेंटों के फार्मूले आज भी सीक्रेट है !
      ——————————————–
            आज बाजार में बहुत सारे पेटेंट मिल रहे हैं जिसमें आयुर्वेद, होम्योपैथी, एलोपैथी, इलेक्ट्रो होम्योपैथी, यूनानी आदि हैं और सारे पेटेंटस के ऊपर उनके इनग्रेडिएंट लिखे हुए है  लेकिन यदि  उनके इनग्रेडिएंट्स के आधार पर आप अपने पेटेन्ट को बनाना चाहे तो पेटेंट वैसा काम नहीं करते जैसा आप बनाना चाहते हैं।
              इसका मतलब है उसमें कुछ ऐसा डाल रखा है जो नहीं लिखा है। इसीलिए उसकी टक्कर का बन नहीं पाता है। इसी का फायदा उठाकर कंपनियां अपना माल भेजती है लोग ढूंढ ढूंढ कर उसी कंपनी का माल खरीदती है। जिसका फायदा करता है।
               इन तमाम बातों से इस बात को बल मिलता है कि प्राचीन काल से ही एक गुट ऐसा रहा है जो औषधि को सीक्रेट रखा है और आज भी सीक्रेट रखना चाहता है। इससे समाज को नुकसान भी होता है और फायदा भी होता है। अब आपको समझना है कि समाज का नुकसान करना है या फायदा करना है।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
 बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस

औषधियां शरीर मे कार्य कैसे करती है?
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
           इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां शरीर में कैसे कार्य करती है। इसको जानने से पहले हमें यह जाना आवश्यक है कि शरीर में रोग कैसे होते हैं? हर पैथी में रोग होने के अलग-अलग कारण माने गए हैं  लेकिन सारे रोग शरीर एक ही तरीके के होते हैं। एक ही तरीके के सभी को कष्ट होते हैं। इनकी दवाइयां अलग-अलग होती हैं लेकिन सभी दवाइयों का कार्य लगभग एक ही जैसा  होता है।
 (1) आयुर्वेद के अनुसार रोग का कारण
       ——————————————-
              आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन रस दूषित हो जाते हैं तो शरीर रोगी हो जाता है।
.
 (1) वात (भारीपन)
 (2) पित्त
(3) कफ (श्लेष्मा)
         आयुर्वेद के अनुसार शरीर में जब वात, पित्त, कफ या इनमें से कोई एक दो या एक दूषित हो जाता हैं तो शरीर में रोग उत्पन्न हो जाता है।  रोग को दूर करने के लिए काम्प्लेक्स रूप में जड़ी-बूटी , खनिज पदार्थ आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे यह संतुलित व स्वस्थ हो जाते हैं और रोग ठीक हो जाता है।
(2) यूनानी चिकित्सा के अनुसार रोग का कारण
       —————————————————
           यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में चार चीजें गंदी हो जाते हैं तो शरीर में बीमारी लग जाती है।
(1) सोरा (काला पित्त)
 (2) सफ्रा (पित्त)
 (3) बलगम (कफ ,स्पूटम)
 (4) खून (रक्त)
         यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में पित्ताशय में उपस्थित पित्त, रक्त में उपस्थित पित्त , स्पूटम और रक्त का संगठन जब खराब हो जाता है तो शरीर रोगी हो जाता है । उसे भी जड़ी बूटी खनिज पदार्थ तथा अन्य पदार्थों को देकर ठीक किया जाता है।
(3) होम्योपैथी के अनुसार रोग का कारण
      ——————————————–
              होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार  तीन कारणों से शरीर रोगी होता है।
(1) सोरा (विष)
(2) सिफीलिस (उपदंश)
(3) साइकोसिस  (मनोविक्षिप्त)
         होम्योपैथी के अनुसार शरीर में सोरा विष , उपदंश और मनोस्थिति खराब होने से रोग उत्पन्न होते हैं। इनमें सूक्ष्म औषधियों को देने से यह सामान्य स्थिति में आ जाते हैं और रोगी ठीक हो जाता है।
(4) बायोकेमिक
     ———-–—
         बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति में 12 साल्ट होते हैं। डॉक्टर शुसुलर का मानना था कि जब शरीर में 12 साल्ट असंतुलित हो जाते हैं तो शरीर बीमारियों से ग्रसित हो जाता है । जब तक यह साल्ट शरीर में संतुलित रहते है शरीर स्वस्थ रहता है।
(5) एलोपैथी
      ———–
         एलोपैथी के हिसाब से शरीर में बहने वाले तरल पदार्थ ब्लड ,लिम्फ ,नर्व ,बोन मैरो ,पित्त अम्ल तथा खनिज पदार्थों के कंपोजीशन में , शरीर के खाली अंगों के आयतन में, बॉडी में बहने वाले अन्य तरल पदार्थों में जब अस्थाई परिवर्तन काफी समय तक बना रहता है तो शरीर रोगी हो जाता है इसके अतिरिक्त शरीर में कट लग जाने  शरीर के खुले हुए भागो से बैक्टीरिया प्रवेश कर जाने से भी शरीर रोगी हो जाता  है।
      एलोपैथी में इसके लिए एंटीबायोटिक व अन्य बहुत सारी दवाएं देकर शरीर को नार्मल करने का प्रयास किया जाता है अर्थात यहां भी  असामान्य दशा से सामान्य दशा में लाने का प्रयास किया जाता है।
(6) इलेक्ट्रो होम्योपैथी के अनुसार
      ————————————-
              इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार जब शरीर के दो तरल रक्त रस जब दूषित हो जाते हैं तो शरीर रोगी हो जाता है।
(1) रक्त  (Blood)
 (2) रस (Lymph)
          इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में जब रक्त और रस दूषित हो जाते हैं तो शरीर बीमार हो जाता है । जब इनमें सुधार हो जाता है तो शरीर स्वस्थ हो जाता है। इनमे सुधार करने के लिए इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां दी जाती है ।
         यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि बीमारी चाहे जैसी हो चाहे पित्त बढ़ा हो, वात बढ़ा हो, सोरा हो, सिफलिस हो, रक्त हो रस हो। सभी में लगभग एक ऐसी तकलीफ होती है। एक ही तरीके से ठीक होती है।
सभी औषधियों के कार्य करने का तरीका
————————————————-
             हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की लाखों रासायनिक क्रियाएं होती है। शरीर में जब तक ये क्रियाएं संतुलित रहती है तब  तक शरीर स्वस्थ रहता है परंतु जब इन क्रियाओं में असंतुलन होता है। तब शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
           ऐसी स्थिति में (वात, पित्त, कफ ) (सोरा, सफ्रा, बलगम, खून )( सोरा ,सिफलिस साइकोसिस) (12साल्ट ) (रक्त रस) सब दूषित हो जाते हैं।
            बीमारी की स्थिति में जब पैथालोजिकल  जांच होती है तो वहां यह सब बिगड़ी हुई स्थिति में मिलते हैं लेकिन स्वस्थ शरीर में यह सब व्यवस्थित स्थित में मिलते हैं।
          इसका अर्थ है कि शरीर में सारी दवाएं एक जैसी ही तरीके से काम करती हैं और वह काम है “शरीर के विभिन्न प्रकार की असंतुलित रासायनिक क्रियाओं को संतुलित करना”।
          इन रासायनिक क्रियाओं को संतुलित करने के अलग-अलग तरीके होते हैं इन्हीं तरीकों को हम पैथी का नाम देते हैं
           वैसे तो सभी लगभग औषधियों में एंजाइम विटामिन हार्मोन होते हैं लेकिन इनके  अलग-अलग रूप होते हैं। जहां तक इलेक्ट्रो होम्योपैथी  की औषधियों बात है। हम जानते हैं इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां एंजाइमस, विटामिन हार्मोन के करीब होती हैं और यह शरीर में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया को सीधे, आपेक्षाकृत तेजी से प्रभावित करती है। यदि शरीर को आवश्यकता है कि अभिक्रिया को तेज किया जाए तो तेज कर देंगी , यदि आवश्यकता है कि अभिक्रिया को धीमा किया जाए तो यह धीमा कर देगी। तेज व धीमी अभिक्रिया की दर पर ही रोग ठीक होते हैं या व्यक्ति बीमार होता है।
नोट :—-
(1) शरीर के प्रत्येक भाग मे रक्त व रस भ्रमण करता है।
(2) जब बॉडी में बहने वाले तरल पदार्थ का कंपोजीशन बिगड़ जाता है तो शरीर रोगी हो होता है या यूं कहिए कि बाडी फ्लूड जब  सामान्य दशा (Homoeostate) से असामान्य दशा (Heterostate) में चला जाता है तो शरीर बीमार हो जाता है।
(3) इसी बॉडी फूड को सभी पैथियां असामान्य ने दशा से सामान्य दशा में लाने का प्रयास करती हैं चाहे वह प्राकृतिक पैथी हो , एलोपैथी हो होम्योपैथी हो, आयुर्वेद हो, या अन्य कोई पैथी हो।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां ओड फोर्स या
                       एन्जाइम्स ?
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
             इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियो के घटक क्या है? यह  प्रश्न लोगों के सामने हैं । कुछ लोग कहते हैं कि यह odd force  है तो  कुछ कहते हैं कि एंजाइम है। लोग सही निर्णय नहीं कर पा रहे है । आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे । इसके लिए हमें एन्जाइमस व odd force के विषय में समझना पड़ेगा । सबसे पहले हम फोर्स समझते हैं यह क्या होती है?
ओडफोर्स
————
        Od या Odd दोनों का अर्थ एक ही होता है।  इसका अर्थ अनोखा, अकेला ,अयुग्म , विचित्र  आदि अनेक  अर्थ होते है लेकिन सभी अर्थो का   एक ही मतलब होता है “ईश्वर” अर्थात वह सत्ता जिसका कोई जोड़ा नहीं है जो अकेला है अनोखा है और उसी से संपूर्ण सृष्टि चलती है। यही उसकी विचित्रता है।
      Odd के आगे force  शब्द जोड़ दिया गया है। इसका अर्थ है उस परमात्मा की शक्ति ।
बिना इस शक्ति के संसार में कोई भी चीज अपना अस्तित्व बनाकर नहीं रह सकती है। पौधों में इस शक्ति को जीवनी शक्ति कहा गया है। यह वह शक्ति है  जिससे पौधे जीवित रहते हैं। आमतौर पर लोग यह समझते हैं पौधों में जो खनिज पदार्थ विटामिंस एंजाइम्स हारमोंस आदि अनेक चीजें होती है जिनसे पौधे जीवित रहते हैं लेकिन इन सब के पीछे उसी परमात्मा (ओड फोर्स) का ही हाथ होता है। तभी यह चीजे पौधों में बनती हैं । और पौधे संसार में जीवित रहते हैं। वैसे आज तक इस शक्ति को किसी ने नहीं देखा है क्योंकि शक्ति कभी दिखाई नहीं देती है। शक्ति का केवल अनुभव किया जाता है।
       जब हम किसी पौधे को औषधि बनाने के लिए डिस्टिल वाटर में डालते हैं। तो पौधे के अंदर का घोल डिस्टिल वाटर की अपेक्षा गाढ़ा होता है जिसके कारण डिस्टिल वाटर उसके अंदर जाता है और उसके अंदर का पदार्थ बाहर निकलता है। और यह कार्य तब तक होता रहता है। जब तक दोनों धोलो में एक जैसी समानता नहीं हो जाती है। इस तरीके से पौधे के अंदर के तत्व खनिज, विटामिनस, एंजाइम, हार्मोन रेजिन आदि डिस्टिल वाटर के अंदर आ जाती है  अर्थात जिन से पौधे अपना जीवन चलाते थे वे तत्व बाहर आ जाते है। इसी घोल को  हम जीवनी शक्ति (Vital force) ,या Odd force, जौहर आदि अनेक नियमों से पुकारते हैं।
        आयुर्वेदिक, यूनानी ,एलोपैथी , होम्योपैथी, की दवाओं में इसी आदि शक्ति का प्रयोग किया जाता है और इसी शक्ति के कारण औषधियां काम करती हैं।
        अब बात आती है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों में क्या होता है? इसके जाने से पहले हम एंजाइम्स हारमोंस और विटामिंस के विषय में थोड़ा अध्ययन कर लेते हैं।
विटामिन हार्मोन व एन्जाइम्स
————————————
        यह ऐसे तत्व हैं जो वनस्पतियों में और हमारे शरीर दोनों के अंदर बहुत सूक्ष्म मात्रा में होते हैं। और शरीर में इसकी बहुत कम आवश्यकता होती लेकिन इनकी सूक्ष्म  मात्रा ही बहुत बड़ा काम कर देती है। यदि यह शरीर में असंतुलित हो जाए तो शरीर स्वस्थ नहीं रहता चाहे  जंतु शरीर हो या वनस्पति शरीर हो।
     जब इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां कोहोबेशन द्वारा तैयार की जाती हैं। तो उसमें बहुत सारे तत्व औषधि में नहीं जा पाते है। केवल कुछ ही तत्व उस में जा पाते हैं। जिनकी अभी तक कोई वैज्ञानिक जांच नहीं की गई है। केवल ISO जर्मन द्वारा प्रकाशित एक बुक में यह लिखा गया है “कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां एंजाइम विटामिन हार्मोन के करीब हैं”। वर्तमान में  हमारी फर्म द्वारा  तैयार की गई औषधियों के गुण स्वभाव से भी प्रतीत ऐसा प्रतीत होता है। कि औषधियां एंजाइम हार्मोन विटामिंस या तो है, या उनके करीब है।
          इस प्रकार हम देखते हैं इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक औषधियों में विटामिन एंजाइम हार्मोन जैसा ही कुछ होता है अर्थात वह तत्व होता हैं जो को कोहोबेशन द्वारा फिल्टर होकर स्पेजिरिक में आता हैं लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों में जो तत्व होता है वह आदि शक्ति (odd force में मौजूद रहता है।
       इस प्रकार हम यह कह सकते हैं इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों में आदिशक्ति मौजूद रहती है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों में एन्जाइम हार्मोन विटामिन जैसा कोई तत्व होता है जो औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(1) पौधों की odd force को प्रयोगशाला में टेस्ट किया जा सकता है और उसके घटक मालूम किए जा सकते हैं और किये भी गए हैं । अलग-अलग पौधों की ओडफोर्स के घटक अलग-अलग होते हैं।
(2) कोहोबेशन  द्वारा तैयार स्पैजेरिक की जांच अभी तक प्रयोगशाला में नहीं की गई है । इसलिए उसके घटकों के विषय में 100 प्रतिशत कुछ नहीं कहा जा सकता है। केवल लिटरेचर और प्रयोग के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों में एंजाइम हार्मोन और विटामिंस होते हैं।
   ( अभी इस पर रिसर्च की आवश्यकता है)
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस

 

सीजोफ्रेनिया ( schizophrenia )
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
               यह एक मानसिक बीमारी है जो विश्व में बहुत तेजी से फैल रही है। सिजोफ्रिनिया ग्रीक भाषा का शब्द है और यह दो शब्दों से मिलकर बना है । Schizo का अर्थ होता है ” split ” और phrenia का अर्थ होता है दिमाग या ” mind ” । सन्  1911 में एक स्विस मनोवैज्ञानिक Eugen Bleuler  ने यह नाम दिया था ।  यह बीमारी व्यक्ति की सोचने ,काम करने और क्या वास्तविक है क्या नही हैं । यह समझने की क्षमता को प्रभावित कर देती है । यह स्त्री पुरुष दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है । इसके लक्षण तो एक दूसरे से अलग हो सकते हैं। यह समय के साथ कम ज्यादा भी हो सकते है । पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा जल्दी लक्षण विकसित होते हैं ।
 प्रारंभिक लक्षण
———————
      (1)  व्यक्ति उन चीजों पर विश्वास करता है जो वास्तविकता में नहीं होते है और उसे लगता है कि लोग उसके विचारों को पढ़/समझ रहे हैं।
       (2) व्यक्ति उन चीजों को देखता सुनता और महसूस करता है । जिन्हें कोई और नहीं कर सकता।
(3)व्यक्ति अव्यवस्थित रूप से बोलता है और व्यवहार करता है।
(4) व्यक्ति अपने विचारों को व्यवस्थित करने में परेशान होता है ।
(5) सामाजिक या व्यवसायिक दुष्क्रियाएं होती हैं।
(6) व्यक्ति को लगता है कि लोग उसके खिलाफ लोग  साजिश कर रहे हैं।
   कुल मिलाकर व्यक्ति को काल्पनिक चीजें दिखती हैं । कानों में आवाज आती हैं । उसे ऐसा लगता है कि हमारे विचारों को कोई पढ़ रहा है । टी वी रेडियो पर जो आ रहा है वह सब मेरे विषय में आ रहा । यही सोच सोच कर रोगी परेशान रहता है । सबसे बड़ा डर यह रहता है कि कानों में जो आवाज आ रही है वह किस समय क्या रोगी को गाइड करदेे जिससे वह  जीवन के लिए खतरनाक कदम उठा ले। यही इस रोग में सबसे बड़ा डर बना रहता है ।
सिज़ोफ्रेनिया होने के कारण
———————————
        सिजोफ्रेनिया होने के कारणों पर अभी तक चिकित्सकों की एक राय नहीं है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे कारण हैं जो सिजोफ्रिनिया होने में योगदान दे सकते हैं।
(1) अनुवांशिक कारण
       ———————
                  इसके अंतर्गत माता पिता भाई बहन में से किसी को यदि यह रोग पहले रहा है तो 10% संभावना बनी रहती है।
(2)  वातावरण संबंधी कारण
        ————————-
                उच्च स्तरीय तनाव, विषाणु संक्रमण का प्रसव पूर्व संपर्क जन्म से पहले कुपोषण एवं बच्चे के दौरान ऑक्सीजन की कमी से यह विकार हो सकता है।
(3) मस्तिष्क की सामान्य संरचना
        ———————————-
                 मस्तिष्क की असामान्य संरचना की भूमिका भी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों के मामलों में होती है।
(4) भांग का नशा
       —————
                   भांग के नशे से सीजोफ्रेनिया होने की संभावना बढ़ जाती है । इसके लक्षणों की अवधि लंबी हो जाती है और इससे सुधार की संभावना में कमी आ जाती है ।
सीजोफ्रेनिया और मादक द्रव्यों का सेवन
————————————————
                     जब किसी को सीजोफ्रेनिया हो और वह मादक द्रव्यों का भी सेवन कर रहा हो तो उसका निर्धारण या डायग्नोसिस बहुत कठिन हो जाती है और उस पर दवाओं का असर भी बहुत कम होता है।
  आमतौर पर प्रयोग होने वाले मादक द्रव्यों में हेरोइन शराब कोकीन एम्फेटामिन्स से मनोरोग संबंधी लक्षण बढ़ते है।
      आहार एवं व्यायाम
       ———————-
                    सिजोफ्रेनिया से ग्रसित व्यक्ति को अच्छा संतुलित आहार करना चाहिए ।
 पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम करना चाहिए
     कैफीन व निकोटिन (चीनी चाय बडी सिगरेट आदि ) से परहेज करना चाहिए शराब एवं अन्य नशीली दवाओं से बचना चाहिए अध्यात्म से जुड़ना चाहिए ।
    तमीरदार या अटेंडेंट के कर्तव्य
     ————————————
                  तमीरदार को चाहिए कि वह रोगी से किसी बात में उलझे नहीं । उसकी बात का विरोध न करें। जहां तक विरोध करने वाली बात हो सीधे तौर पर विरोध न कर उसे बहला-फुसलाकर रखे
। रोगी की हरकत को नजर में रखें और रोगी पर पूरी नजर बनाकर रखें क्योंकि सीजोफ्रेनिया के रोगी अधिकतर आत्महत्या कर लेते हैं । हमेशा इसी बात का डर बना रहता है । अटेंडेंट रोगी को दवा अपने हाथ से खिलाएं या उस पर नजर रखें रोगी सही ढंग से सही समय पर सही मात्रा में दवा ले रहा है या नहीं ।
नोट  —–
     यदि मनुष्य के अंदर  बिना दवा लिए  कम से कम 6 महीने तक  उपरोक्त लक्षणों में से  कोई दो लक्षण दिखाई देते हो तो सीजोफ्रेनिया हो सकती है । ऐसी स्थित मे तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी  चाहिए । उचित चिकित्सा और उचित देखभाल से रोगी पूरी लाइफ चल  सकता है ।
सिजोफ्रेनिया के और आध्यात्मिक ज्योति नाद में अंतर
—————————————————————
              सिजोफ्रेनिया मे भी चीजें दिखाई देती है और आवाजें सुनाई देती है और आध्यात्मिक जगत में अध्यात्म का जानकार  चीजों को देखता है और आवाजों को सुनता है दोनों में केवल एक ही व्यक्ति देख और सुन सकता है साथ में दूसरा कोई इन दृश्यो  और आवाजो  को  देख सुन नही पाता है ।
         यह दोनों में एक यह समानता है लेकिन सिजोफ्रेनिया में व्यक्ति दृश्योऔर आवाजो को  देख सुन कर परेशान होता है और रोता चिल्लाता भागता है अजीबो गरीब हरकतें करता है । यहाँ तक कि आत्महत्या  भी कर सकता है  लेकिन आध्यात्मिक में जब किसी जानकार को आवाज सुनाई देती है और दृश्य दिखाई देते हैं तो वह खुश होता है और उसे कोई परेशानी नहीं होती है।
                इतना ही नहीं सिजोफ्रेनिया में व्यक्ति जो देखता है और सुनता है वह किसी दूसरे को दिखा और सुना नहीं सकता लेकिन आध्यात्मिक जगत का जानकार उस आवाज को और प्रकाश को दूसरे को भी सुना और  दिखा सकता है
            यही सिजोफ्रिनिया और आध्यात्मिक जगत की आवाज में अंतर है । सिजोफ्रिनिया की आवाजों और दृश्यों को औषधि द्वारा बंद किया जा सकता है  लेकिन आध्यात्मिक जगत के ज्योति और नाद को किसी औषधि से द्वारा बंद नही किया जा सकता है।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
मदर टिंचर से इलेक्ट्रो होम्योपैथी औषधि बनाने
                            की विधि
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
           इलेक्ट्रो होम्योपैथी में जो औषधियां आज उपलब्ध है ये सारी औषधियां होम्योपैथी में भी उपलब्ध है। यही भ्रम का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन दोनों औषधियों के बनाने के तरीके अलग-अलग है। इन्हीं के आधार पर दोनों पैथियां अलग-अलग है । लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथी की औषध निर्माण विधि सार्वजनिक न होने के कारण लोगों ने होम्योपैथी की औषधियों को ही आपस में मिलाकर उसे इलेक्ट्रो होम्योपैथी का नाम देकर बेचना शुरू कर दिया जो एक जो एक बिल्कुल गलत तरीका है। हम इसका कभी समर्थन नहीं करते हैं।  पैथी की पहचान उसकी दवा बनाने की विधि से होती है। कोई औषधि उसके नाम पर लोगों को लाभ कर रही है यह पैथी  की औषधियो पहचान नहीं होती है। होम्योपैथी से इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की औषधि बनाने के प्रचलित कई तरीके हैं:——
(1) मदर टिंचर से
    ——————
        इसमें मूल मेडिसिन (मदर टिंचर) को बाजार से खरीद कर इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फार्मूले के अनुसार आपस में मिला लेते हैं। उदाहरण के लिए मान लो S1 बनाना है तो S1 नौ इनग्रेडिएंट (पौधे) है। यह होम्योपैथिक दुकान पर आसानी से मदर टिंचर के रूप में मिल जाते हैं फिर नौ में से 1-1 ml दवा निकालकर आपस में मिला लेते हैं। इस प्रकार 9 ml मिक्स मदर टिंचर तैयार हो गया है। इलेक्ट्रो होमियो पैथी के हिसाब इसे Complex od. force नाम देते हैं अब इसके आगे की प्रक्रिया लोग निम्न प्रकार से करते हैं जो अलग-अलग लोग अलग-अलग प्रकार से करते हैं।
(1) 9 ml मिक्स मदर टिंचर में 81 डिस्टिल्ड वाटर / अल्कोहल मिला देते हैं । इस प्रकार जो तैयार मैटर होता है वह 90 ml होता है । इसे D1 कहते हैं।
     इस 90 ml तैयार मैटर D1 में 810 ml एल्कोहल क्या डिस्टिल्ड वॉटर मिलाते हैं इस प्रकार 900 ml तैयार मैटर मिलता है इसे D2 कहते हैं।
     अब 900 ml में 8100 ml पुनः डिस्टिल वाटर या अल्कोहल मिलाते हैं तो 9000 ml मैटर तैयार होता है इसे D3 करते हैं।
      इस प्रकार हम देखते हैं 9 ml मदर टिंचर से 9 लीटर D3 तैयार हुई । कुछ लोग यहीं से चिकित्सा करना शुरू कर देते हैं । कुछ लोग इसे स्पैजिरिक कहकर ऊंची कीमत पर बेचते हैं और लोग मजबूरी में खरीदते हैं ।
         जो लोग स्पैजिरिक कहकर इसे बेचते हैं वे कहते हैं इसके आगे डायलूशन बना लेना और रोगी को देना इसके आगे आप कितने भी डायलूशन बना सकते हो उसका भी वे एक अनुपात बता देते हैं।
          कुछ लोग कहते हैं किसकी आगे डायललूशन न बनाना यानी उसमें स्टोक मत मारना 1 लीटर डिस्टिल्ड वाटर या एल्कोहल में 30 ml स्पेजिरिक डाल कर हिला  देना और उसको निकाल कर रोगी को देना ।।   उसको रोज बता देते है बड़ी आयु वाले को 20 को 30 बूद और छोटी को पांच बूंद बूंद । इस तरीके से निर्देशित कर देते हैं यह निर्देश अलग-अलग लो अलग-अलग ढंग से लोगों को देते है।
        9 लीटर स्पेजिरिक से डाइल्यूशन बना कर बेचते हैं इनके डायललूशन सन बनाने के लिए अलग-अलग अनुपात होते हैं। कोई 1:9  से , कोई 1:47 से , कोई 1:49 से  कोई 1:99 से बनाता है।
          कुछ लोग मदर टिंचर अपने आप बना लेते हैं। कुछ लोग जब प्लांट का अर्क निकालते हैं तो उसमें एल्कोहल नहीं डालते केवल डिस्टल वाटर डालकर फर्मेंटेशन करते हैं। ऐसी स्थिति पर प्लांट पूरी तरह सड़ जाते हैं। बदबू करने लगते हैं। फफूद लग जाती है। बाद में वही फिल्टर ऊपर की विधि से दबाव बना देते हैं । कुछ लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि प्लांट सड़ने न पाए लेकिन प्रक्रिया यही रखते है ।
       वह लोग भी इसी अनुपात में दवा बनाकर बेच देते हैं। कोहोबेशन की क्रिया कोई नहीं करता या यूं कहिए किसी को पता ही नहीं है।
(2) निम्न डायलूशन से
      ———————–
      इस में लोग बाजार से होम्योपैथी के निम्न पोटेंसी डायलूशन खरीद लेते हैं और उसे इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फार्मूले के अनुसार मिला लेते हैं। और उसे इलेक्ट्रो होम्योपैथी का दाम दे देते हैं ।जैसे S1 में 9 इनग्रेडिएंट्स है उन सब के निम्न पोटेंसी बाजार से खरीद लेते हैं और उसे से 1-1ml दवा निकाल कर आपस में मिला लेते हैं । फिर 9 ml तैयार औषधि को स्पेजरिक नाम देते है   फिर इसी से आगे डाइल्यूशन तैयार करते हैं ।
मजे की बात तो यह है कि यदि एक आध दवा इन्हें बाजार मैं नहीं मिली उसे छोड़ देते हैं।
        इस प्रकार इन्हें सिर्फ पैसा कमाने कमाने की फिक्र रहती है औषधि की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं रहता है । इन्हें यह भी नहीं पता होता है कि उच्च पोटेंसी में जब दबाए आपस में मिलाई जाती हैं तो वे एग्री वेट करती हैं यही कारण है कि कथित इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवाएं कभी-कभी भयंकर एग्रीवेट करती है।
नोट:—
(1) इस तरीके से औषधियां तैयार करना एक प्रकार से नैतिक अपराध है और पैथी के साथ धोखा है।
(2) चिकित्सकों को इससे अच्छा रिजल्ट नहीं प्राप्त होता है वह भ्रमित होते हैं।
(3) हम इस तरीके से तैयार औषधियों की आलोचना करते हैं और कभी उसका समर्थन नहीं करते हैं ।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
औषधि बनाने की अवैज्ञानिक विधि
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
              काउन्ट सीजर मैटी ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी की  औषधियां बनाई  थी और उसे सीक्रेट रिमेडी की तरह रखा था । उसी से वे ट्रीटमेंट करते रहे । औषधि बनाने के  अपने फार्मूले  किसी को नहीं दिए थे  बल्कि उन्हें एक डायरी में लिखें अपने पास रखे रहे थे।  जो उनकी मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र (दामाद) वेन्ट्रोकुली को प्राप्त हुए थे उन्होंने ही यह फार्मूले  जर्मन की ISO कंपनी को दिया था। विश्व में औषधि बनाने का काम ISO के अलावा किसी को नहीं पता है। क्योंकि किसी को औषधि बनाने की विधि बताई ही नहीं गई थी। एक विवाद में फंस कर जर्मन की ISO ने 1952 ई0 में केवल औषधियों के फार्मूले ओपन किए थे औषधि बनाने के तरीके ओपेन नहीं किए थे ।
        लेकिन लाख छिपाने के बाद  सच्चाई कभी कभी निकल ही जाती है। काउंट सीजर मैटी से किसी के सामने बात बात में किसी प्रश्न के उत्तर में यह निकल गया था कि औषधियां कोहोबेशन के द्वारा बनाई जाती है । स्पेजिरिक  के भौतिक गुण भी गुण भी लोगों को पता चल गए थे  लेकिन कोहोबेशन करने की विधि नहीं पता थी  फिर क्या था इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां बनाने के लिए लोगों ने तरह-तरह के उपाय सोचना शुरू कर दिया कुछ होम्योपैथ के जानकार लोगों ने इसमें सहयोग किया और इलेक्ट्रो होम्योपैथी को होम्योपैथी में तोड़ कर रख दिया।
        आज इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की औषधि बनाने के  मुख्य रूप से दो तरीके होते हैं:—-
(अ) पारम्परिक तरीका
      ———————
                  जैसा कि हमने ऊपर बताया कि  काउंट सीजर मैटी ने किसी को को भी औषधि बनाने का तरीका नहीं बताया था । जर्मन की कंपनी ने केवल फार्मूले ओपन किए थे और फिर लोगों ने अपने अपने हिसाब से और औषधियां बनाना शुरू कर दिया । जिसने जो विधि बताई,और आपने आप जो समझ में आया, उसी हिसाब से लोगों ने औषधि बनाना शुरू कर दिया चूंकि औषधियों में पेड़ पौधे होते ही हैं वह काम करते गए । उन लोगों को विश्वास होता गया कि हमारी और औषधियां ही इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां है जबकि वे औषधियां इलेक्ट्रो होम्योपैथिक नहीं है।
         यहां हम कुछ पारंपरिक तरीके बता रहे हैं जो इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधि बनाने के वैज्ञानिक तरीके नहीं है फिर भी औषधियां काम करती हैं और लोग इन्हें  इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां ही मानते हैं।
(1) पौधों को जार में सडाना
      —————————–
               लखनऊ में एक मेरे सीनियर मित्र थे एक बार मैं उनकी फार्मेसी में घूमते हुए गया तो उन्होंने बड़े हर्ष से मुझे अंदर बुलाया सोचा कि यह दवा लेने वाला अच्छा मुर्गा फंस गया है । उन्होंने अपनी फार्मेसी हमें दिखाई । यह भी बताया कि फला फला पौधे की यह स्पेजिरिक  निकल रही है। मैं सब देखता गया जब वह पूरी फार्मेसी दिखा चुके तो मैंने उनसे पूछा कि यह जो पौधे आपने जार में डाल रखा है। यह कितने दिनों से पडे हुए हैं। यह तो सड़ गए हैं कहने लगे जब सड जाते हैं तभी दवा बनती है । उनका जवाब था कोई 15 दिन से पड़ा है कोई 8 दिन से पड़ा है कोई महीनों से पड़ा हुआ है। तो मैंने उसमें ध्यान से देखा , तो उसमें फफूंद और कीडे लगे हुए थे । मैंने कहा इसमे तो कीडें लगे हुए हैं। कहीं लगे सड़ने का तो मतलब यही होता है। यही फर्मेंटेशन होता है।
          मैंने मत्था पीटा, मन ही मन समझ गया लेकिन कुछ बोल नहीं सका क्योंकि हमारे सीनियर थे । सड़े हुए पानी को छानकर निकाल लेते हैं और फिर उसमें 1 : 9 के अनुपात मे डिस्टल वाटर मिलाकर D बनाते हैं।  जब पहली बार 1 : 9 का अनुपात करते हैं तो उसे D2 कहते हैं । जब  दूसरी बार करते हैं तो उसे D3 कहते हैं। और उसके बाद डाइल्यूशंस बनाते हैं। जो प्लांट के सडने के बाद में मूल अर्क निकालते हैं उसको D कहते हैं या प्लांट एक्सट्रैक्ट कहते हैं। यह उन्हीं के शब्द है। कुछ लोग प्लांट एक्सट्रैक्ट को od force  कहते हैं उसके बाद D1, D2, D3 बनाते हैं। D3 के बाद कुछ लोग डायलूशन बनाते हैं ।
(2) पौधौ को सूरज की रोशनी में सडाना
————————————————
            शिक्षा का प्रसार हुआ कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि पौधों में कीड़े पड़ जाते हैं इसलिए दवाइयां दूषित हो जाती हैं कोहोबेशन/फर्मेन्टेशन तो 38 डिग्री सेंटीग्रेड पर होता है। यह तो गलत बनाते हैं। लोगों ने दिमाग लगाया और उसमें सुधार करने की बात करने लगे कहने लगे।कहने लगे वह तरीका गलत है हमारा तरीका सही है। सूरज का प्रकाश लगभग 38 डिग्री सेंटीग्रेड होता है और उसमें सौर ऊर्जा होती है सूरज की रोशनी में ही फर्मेंटेशन करना उचित है। इनके अनुसार:——
           एक शुध्द साफ सुथरी  हर्ब  को लेते हैं और एक जार में  डिस्टल वाटर डाल कर उसमें हर्ब  को डुबो देते हैं और जार को धूप में रख देते हैं। कभी-कभी जार में डिस्टल वाटर खौला कर ठंडा कर लेते हैं फिर डालते हैं । यदि डिस्टिल वाटर में सूखी हर्ब में डाला है तो दो-तीन दिन के बाद उसे निकाल कर बाहर कर देते हैं और उसमें नई हर्ब में डाल देते हैं । इस तरह जब संतुष्ट हो जाते हैं कि हर्ब अब इसमें सर नहीं सड रही है तब उसे छानकर बाहर निकाल लेते हैं इसको D कहते हैं।
        कभी-कभी डिस्टिल वाटर में हरी हर्ब डालते हैं दो-तीन दिन के बाद फिर उसे निकाल लेते हैं इनका मानना होता है जब हरी हर्ब में नए किल्ले निकलने लगे तो समझ लो स्पेजिरिक तैयार हो गई है। उसे जानकर साफ कर लेते हैं। इस प्लांट ऐस्ट्रैक्ट को भी D कहते हैं कोई कोई इसे odd फोर्स कहता है। इसके आगे D2 व D3 बनाते हैं इनके अनुपात भी लोग अपने अपने हिसाब से अलग-अलग रखते हैं। कोई 1 : 9 , कोई 1 : 47 , कोई 1 : 49 कोई , 1 : 99 रखते हैं । कोई D3 के बाद डाइल्यूशन बनाता है कोई कहता है डाइल्यूशन में स्टोक के मारने की कोई आवश्यकता नहीं है। कोई स्टोक मार कर बनाता है। तो कोई कहता है D3 को पानी में मिलाकर सीधे पिलाना शुरू कर दो। कोई कोई सजन D4, D5, D6, D7, D8, D9, D10 तक बनाते हैं।
(3) अर्क निकालने के बाद ऐश (राख) बनाना
      ————————————————
       इस के अंतर्गत पहले फर्मेंटेशन करते हैं जैसे कि ऊपर हमने बताया है। उसके बाद उसको एक फ्लासक में डालकर 60 से 100 डिग्री ( अलग अलग लोग अलग अलग टेंपरेचर पर डिस्टिलेशन करते हैं) के बीच डिस्टिलेशन करते हैं और भाप को द्रवित कर जल बनाते हैं इसे स्पेजिरिक कहते हैं और वाष्पन करने के बाद फ्लास्क में जो तलछट पड़ता है। उसे जलाकर राख बना देते हैं। और उसे भी औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं।
      इस प्रकार हम देखते हैं कि औषधि बनाने का किसी के पास कोई सर्व मान्य व वैज्ञानिक तरीका नहीं है। सब अपने अपने हिसाब से बनाते हैं इसलिए औषधियों एकरूपता न  होने के कारण प्रैक्टिस करने में बहुत कठिनाई आती हैं ।
(ब) वैज्ञानिक तरीका
      ——————-
              इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधि बनाने का तरीका वैज्ञानिक होना चाहिए। जो विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरे और उसमें 100% हाइजीन होनी चाहिए। जब फर्मेंटेशन करते हैं तो हर्ब सड जाती है और आप जानते हैं कि कोई चीज तभी सडती है जब उसमें बैक्टीरिया पनप जाता है । उसमें फफूंद भी लगेगी और बाद में उसमे बदबू भी आएगी और यह भी जानते हो जिस चीज में फफूंद लग जाती है और हानि कारक बैक्टीरिया पनप जाता है उसकी गुणवत्ता कम हो जाती है फिर इन औषधियों की गुणवत्ता कैसे अच्छी हो सकती है ????? जब हमने औषधि निर्माताओं से इस प्रश्न का जवाब मांगा तो का कहना था कि Od फोर्स / प्लांट एक्सट्रैक्ट /  D का बहुत छोटा भाग औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है इसलिए न वह हानिकारक है न ही औषधि मे गंदगी है। क्या आप लोग भी यही सही मानते हैं ???? हमारी समझ से आप लोग कभी इसे सही नहीं मानेंगे।
         हमारी दूसरी बुक ओड फोर्स, कोहोबेशन, स्पेजिरिक, डायलूशन,टार्चुरेशन पर आने वाली है । इसलिए उन सारी चीजों को हम यहां स्पष्ट नहीं कर सकते हैं। जब बुक प्रिंट हो जाएगी तब हम  उसे ग्रुप से उसे स्पष्ट करेंगे । हमारा दावा है कि  दुनिया का कोई भी व्यक्ति हमारे बनाए हुए तरीके से इलेक्ट्रो होम्योपैथी अवैज्ञानिक, अनहाईजिनिक,  होम्योपैथी या आयुर्वेद नहीं साबित कर सकता है।
नोट :—
(1) होम्योपैथी में अनेक गंदी चीजों जैसे चेचक के वायरस से, बलगम से, जंतुओं के विष से औषधियां तैयार की जाती है लेकिन यहां एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि वहां फर्मेंटेशन नहीं होता है । कोई चीज सडाई नहीं जाती है। उसमें बैक्टीरिया नहीं पनपता है, उसमें फफूंद नहीं लगती है जीवो की वाइटल फोर्स ज्यों की त्यों सुरक्षित रहती है।
(2) हमने यहां कुछ ही अनहाईजेनिक और अवैज्ञानिक तरीके से औषधियां बनाने की विधियां बताई है। लोग अनेकों तरीकों से औषधियां बनाते हैं। जिन्हे वैज्ञानिक विधि नहीं कहा जा सकता हैं ।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
क्या है पॉजिटिव ,निगेटिव दबा व रोग?
◆◆◆◆◆◆◆
            आज शिक्षा का प्रसार अधिक है बड़ी बड़ी चीजें आसान लगती है लेकिन पुराने समय में शिक्षा का अभाव था।  छोटी-छोटी चीजें बहुत कठिन लगती थी । प्रैक्टिस को आसान करने के लिए नेगेटिव पॉजिटिव का सिद्धांत बनाया गया था । जिसे एन. एल. सिन्हा ने अपनी पुस्तक में  भी स्थान दिया है लेकिन कहीं कहीं पर त्रुटि होने के कारण उसे समझना कठिन हो गया है और बाद में जो नए एडिशन बने उनमे उन चीजों को न समझ पाने के कारण निकाल दिया गया है  लेकिन जो बात दिमाग में बैठ जाती है या पुरानी पुस्तकों में लिख जाती है उसे निकालना बहुत कठिन हो जाता है पहले हम नेगेटिव पॉजिटिव औषधि के विषय में समझते हैं:—
          पाजिटिव निगेटिव के आधार पर औषधि को दो भागों में बांटा जा सकता है।
(1) पाजिटिव औषधि
     ———————-
    (A) ऐसी औषधि जिसमें औषधीय तत्व अधिक हो पॉजिटिव कहलाती है लेकिन इनमें औषधीय शक्ति  कम होती  है :—-जैसे पौधे का कंसन्ट्रेट मूल एस्ट्रेक्ट, काम्प्लेक्स स्पेजिरिक, डायलूट काम्प्लेक्स स्पेजरिक,  फर्स्ट, सेकंड ,थर्ड डायलूशन——आदि अर्थात निम्न , कम नंबर का डायलूशन ।
     (B) ऐसी औषधि जिसमें है औषधीय शक्ति अधिक हो पॉजिटिव कहलाती है लेकिन इनमे औषधीय तत्व कम होते हैं:—– जैसे उच्च शक्ति का डायलूशन 1M, 500, 200 आदि।
(2) निगेटिव औषधि
      ——————-
       (A) ऐसी औषधि जिसमें औषधीय तत्व कम हो नेगेटिव औषधि कहलाती है लेकिन इनमें औषधीय शक्ति अधिक होती है :—- जैसे उच्च शक्ति के डायलूशन 1M ,500  ,200,
        (B) ऐसी औषधि जिसमें औषधीय शक्ति कम हो नेगेटिव औषधि कहलाती है लेकिन इनमें औषधीय तत्व अधिक होते हैं जैसे कंसंट्रेट प्लांट एक्सट्रैक्ट, काम्प्लेक्स स्पैजिरिक ,डाइलूट स्पैजिरिक, फर्स्ट , सेकंड , थर्ड डायलूशन आदि ।
नोट:—- यहां ध्यान से देखें तो (1) व (2) नंबरों में एक ही बात लिखी है। केवल समझने का फर्क है। आप लोग यहीं पर कंफ्यूज हो जाते हैं इसे समझ नहीं पाते हैं । ऊपर के 4 पॉइंटों 2 में केवल दो ही पॉइंट लिखे हैं ।
————————————————————
          अब हम नेगेटिव पॉजिटिव रोग के विषय में समझने का प्रयास करेंगे।
 (1) पाजिटिव रोग
           —————–
     ( A) ऐसी बीमारी जिसमें रोगी को अधिक बेचैनी हो पॉजिटिव बीमारी कहलाती है। कोई बीमारी जितनी एक्यूट (नई) होती है उतना अधिक कष्ट करती है लेकिन जितनी पुरानी होती जाती है इतने कष्ट कम होते जाते हैं लेकिन प्रॉब्लम ज्यादा होती जाती हैं।
      उदाहरण के लिए एक टीवी का पेशिएन्ट हो जब नई बीमारी होगी तो उसे खांसी, बुखार अधिक होगा उसे हर तरीके की बेचैनी अधिक होगी लेकिन जब वही पुराना हो जाता है तो उसका स्वास्थ्य गिरता जाता है बुखार कभी आता है कभी नहीं आता है खांसी में खून के साथ बलगम आता है कभी ठीक हो जाता है।  इस तरीके के लक्षण होते रहते हैं बेचैनी पहले की अपेक्षा कम होती है ऐसे रोगों को पॉजिटिव बीमारी कहा जाता है।
      (B) निगेटिव रोग
            ————–
                 ऐसी बीमारी जिसमें रोगी की बेचैनी कम हो नेगेटिव बीमारी कहलाती है । कोई बीमारी  जितनी पुरानी हो जाती है बेचैनी उतनी ही कम हो जाती है लेकिन कष्ट ज्यादा हो जाते है ।
        उदाहरण के लिए एक रोगी हो जिसके कान के पस आ रहा हो शुरू शुरू में उसे बहुत बेचैनी होती है लेकिन जैसे रोग पुराना होता जाता है ।बेचैनी कम होती जाती है लेकिन कान का बहना ठीक नहीं होता वह अंदर ही अंदर अन्य अंगों को जकडता जाता है और वह भयानक होता जाता है ऐसी स्थिति को निगेटिव रोग कहा जाता है ।
           अब यहां समझने के बात यह है जब बीमारी नई होती है उसमें औषधीय तत्व अधिक दिए जाते हैं और सब पुरानी बीमारी हो जाती है तो उसमें औषधीय तत्व कम दिए जाते हैं। अर्थात
          ( बीमारी पोजिटिव तो दवा पोजिटिव )
          ( बीमारी  नेगेटिव  तो  दवा  निगेटिव )
         संक्षेप में आप यह समझ सकते हैं कि बीमारी जितनी एक्यूट होगी उतना कम डाइल्यूशन देना होगा जितना पुरानी होगी इतना ऊंचा डायलूशन देना पड़ेगा अभी रोग परमानेंट ठीक होगा ।
नोट:—-
(1) बीमारी का नया या पुराना होने का कोई पैरामीटर नहीं  होता है ।यह पूरी तरह तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है तुम उसे कैसे समझते हो । उसके आधार पर दवा व डायलूशन का चुनाव करना तुम्हारे ऊपर है इसका कोई पैरामीटर नहीं होता है यह तुम्हारे प्रैक्टिस के ऊपर है इसमें कोई बुक कोई लेख कुछ मदद नहीं कर सकता है ।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
 बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
नॉर्मल ताप व ph पर औषधियां अधिक काम करती हैं
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
       औषधियों को मुख्य रूप से दो श्रेणी में बांटा जा सकता है :—-
(1) भारी या क्रूड औषधियां
     —————————–
             भारी औषधियों के अंतर्गत वे औषधियां होती हैं जिनमें पेड़ों के औषधीय तत्व भारी मात्रा में होते हैं। जैसे आयुर्वेदिक, यूनानी और अंग्रेजी दवाएं ।
(2 ) सूक्ष्म या हल्की औषधियां
      ——————————–
               इसके अंतर्गत वे औषधियां आती है जिनमें औषधीय तत्व सूक्ष्म मात्रा में होते हैं। जैसे होम्योपैथिक, बायोकेमिक, इलेक्ट्रो होम्योपैथिक और बैच फ्लावर रेमेडीज ।
          हमारा  शरीर एक निश्चित ताप, पीएच और दाब पर अच्छा काम करता है। जब इस में अधिक परिवर्तन  हो जाता है और ज्यादा देर तक बना रहता है तो यह अस्वस्थ होने लगता है।
     शरीर के अंदर का ताप दाब और पीएच
      ———————————————–
           हमारे शरीर के अंदर का तापक्रम 37 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रहता है इससे अधिक होने पर हम डिशकम्फर्टेबल (असहज) महसूस करते हैं। इसी तरह हमेशा ही हमारे शरीर का पीएच 7 के आसपास रहता है तो हम स्वस्थ महसूस करते हैं अधिक या कम होने पर प्रॉब्लम होने लगती है । इसी तरह हमारे शरीर का आंतरिक दाब 120 / 80 होता है इससे अधिक कम ज्यादा होने पर शरीर में प्रॉब्लम होने लगती है।
        शरीर के बाहर का ताप दाब और पीएच
        ———————————————–
              शरीर के बाहर का ताप दाब भी शरीर को प्रभावित करता है उदाहरण के लिए मई जून के महीने में जब बाहर का तापक्रम 50 के आसपास पहुंच जाता है तब शरीर के अंदर विटामिंस की मात्रा घटने लगती है और शरीर में तकलीफ होने लगती है। इसी तरह दिसंबर जनवरी के महीने में शरीर का आंतरिक तापक्रम नॉर्मल होते हुए भी बाहर ठंडी हवा लगने के कारण अंगों का ताप घटने  लगता है। तो शरीर में  विटामिंस की मात्रा  कम होने लगती है। तो प्रॉब्लम होने लगती है । नॉर्मल तरीके से हम मैदानी क्षेत्रों में रहते हैं लेकिन यदि कभी पहाड़ो पर चले जाएं तो सांस फूलने की समस्या होने लगती है। किसी- किसी को तो ब्लीडिंग भी होने लगती है।
      अत: बाहर का दाब कम होने पर भी प्रॉब्लम होने लगती है ।
      जब भारी औषधियों (नं 1) के द्वारा उपचार किया जाता है । तो वहां पर औषधियो में औषधीय तत्वों की मात्रा अधिक होती है अतः उपरोक्त अवस्थाओं में औषधियों पर ( ताप ,पीएच ) का प्रभाव कम पड़ता है।
              जब सूक्ष्म औषधियों (नं 2) का प्रयोग किया जाता है तो उन पर ताप ,पीएच का भारी प्रभाव पड़ता है।
         इसीलिए होम्योपैथिक, बायोकेमिक, बैच फ्लावर और इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों से उपचार करते समय यह हिदायत दी जाती है कि अधिक खट्टे भोज्य पदार्थों का सेवन न करें नहीं तो शरीर का पीएच मान बढ़ जाएगा।
        इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां, होम्यो पैथिक औषधियों की अपेक्षा ज्यादा सूक्ष्म होती हैं। इसलिए वह तेज बुखार की स्थिति में कम  काम करती हैं। उन्हें काम में लाने के लिए पहले शरीर की स्पंजिंग कर बुखार को नीचे लाना पड़ता है। जबकि होम्योपैथिक में ऐसा नहीं होता है। जल्सेनियम  आदि कुछ ऐसी दवाएं हैं जो बहुत शीघ्रता से फीवर को उतार देती । पीएच मान का सभी पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।
        इसलिए सभी सूक्ष्म औषधियों से इलाज करने  में खट्टे भोज्य पदार्थ बंद कर दिए जाते हैं।
          यहां हम एक बात और स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां पौधों के एंजाइम, विटामिन और हार्मोन के करीब मानी गई है । जो नॉर्मल ताप और पीएच पर शरीर के अंदर अच्छा कार्य करती हैं और तापक्रम व पीएच प्रभावित होने पर औषधियां काम करना धीमा कर देती हैं ।
आज की परिस्थितियों में यूनीवर्सल रिमेडी ???
●●●●●●●●●●●●●●●●●
          इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन में सर्व भौमिक औषधि के प्रश्न पर अनेक लोगों ने उत्तर दिये है। कुछ लोगों ने फोन पर डिस्कस किए, कुछ कमेंट पर डिस्कस किए , कुछ मैसेंजर पर डिस्कस किए और अन्य साधनों पर भी डिस्कस किया है । कुछ लोगों ने S1 को यूनिवर्सल रिमेडी बताया कुछ लोगों ने L2 को यूनिवर्सल रिमेडी बताया । तो कुछ लोगों ने कहा दोनों यूनिवर्सल है। लेकिन 2 – 3 लोगों को छोड़, किसी ने नहीं बताया कि दोनों यूनिवर्सल क्यों है एक सज्जन तो यहां तक कह दिया कि जो आप जो बतायेगें वह प्रमाणित पुस्तक से होना चाहिए। तो हम आपको प्रमाणित पुस्तक से ही बताएंगे । जिसे विश्व मे प्रमाणित माना जाता है। आप उसे प्रमाणित मानते हो या न मानते हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है । अपने सवाल का जवाब देने से पहले मैं उस पुस्तक के विषय में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं
प्रमाणित पुस्तक
——————–
          सन् 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध हो रहा था उस समय इटली से बाहर दवाई जाना बंद हो गई थी । तब इलेक्ट्रो होम्योपैथी की दवाओं की सप्लाई करने के लिए काउंट सीजर मैटी के दामाद एमबी मैटी ने औषधि बनाने का सम्पूर्ण अधिकार व फार्मूले जर्मन की ISO कंपनी को सौंप दिया था। उस समय तो कंपनी  केवल दवा बनाकर सप्लाई करती थी। कोई फार्मूले ओपन नहीं किए थे लेकिन जब कई लोग यह कहने लगे कि सीजर मैटी ने फार्मूले हमें दे गए थे और हमारी दवाई ही मैटी की दवाएं हैं। तो 3 नवंबर 1952 को ISO ने इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों के फार्मूले ओपन कर दिए थे।
          एम बी मैटी ने आधिकारिक रूप से फार्मूले और  औषधि बनाने का कार्य कंपनी को दिया था । इसलिए कंपनी जो बात कहेगी उसे ही प्रमाणित माना जाएगा । चाहे वह गलत ही क्यों न कह रही हो ।
          हम यूनिवर्सल रिमेडी की जो बात कर रहे हैं । उसी कम्पनी के फार्मूले के आधार पर कर रहे हैं  जो एक छोटी बुक के रूप में हमारे पास उपलब्ध है।
जर्मन की बनी S1 यूनिवर्सल है
————————————–
        जर्मन की पुस्तक में पेज नंबर 26 पर S1 का वर्णन करते हुए Indication में लिखा है :—-
Universal remedy for the entire metabolism .
           एन. एल. सिन्हा कानपुर ने भी अपनी बुक में S1  को यूनिवर्सल रिमेडी कहा है। अब सवाल यह उठता है कि S1 को यूनिवर्सल रिमेडी क्यों कहा गया है छोटी सी पुस्तक में ISO ने इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया है। न  कानपुर के एन. एल. सिन्हा ने जिक्र किया। हमें लगता है कि एन.एल सिन्हा ने जर्मन की बुक देखकर यूनिवर्सल रिमेडी केवल लिख दिया है लेकिन उनका निजी अनुभव नहीं था क्योंकि एन .एल. सिन्हा अपनी बुक में लिखते हैं :—
         जब किसी रोगी को S1 सूट न करें तो उसे S2 या A3 मिला कर देना चाहिए। यहां प्रश्न यह उठता है कि एन. एल. सिन्हा जब कह रहे हैं कि S1 यूनिवर्सल है तो फिर सबको सूट क्यों नहीं कर रही है। इसका मतलब है कि भारत और जर्मनी की दवाइयों में फर्क है। इसी फर्क होने के कारण भारतीय S1 सूट नहीं करती हैं। जब जर्मन कंपनी की S1 सबको सूट करती है क्योंकि जर्मनी की दवा कोहोबेशन मैथड से बनी होती है। वहीं यूनिवर्सल रिमेडी है लेकिन भारत में दवा फर्मेंटेशन के तरीके से दवाएं बनती  है इसलिए यहाँ की S1 यूनिवर्सल नहीं है।
भारत की बनी L2 यूनिवर्सल है
————————————–
              L2 के विषय मे जर्मन कंपनी ने कुछ विशेष नहीं लिखा है न एन.एल. सिन्हा ने लिखा है लेकिन S1 के सूट न करने पर एन.एल. सिन्हा ने लिखा है कि ऐसी स्थिति में S1के साथ A3 मिलाकर देना चाहिए अब L2 मे S1, A3 और L1 तीन औषधियां मिली हुई है।
         जब हम किसी रोगी को L2 देते हैं तो मेडिसिन मे 24 इनग्रेडिएंट एक साथ रोगी को प्राप्त होते हैं L1 पूरे लिंफेटिक सिस्टेम ,नर्वस सिस्टेम ,ब्लड सिस्टेम सिस्टम  काम करता है । A3 पूरे ब्लड सिस्टम और हार्ट, पर काम करता है। S1 मेटाबॉलिक सिस्टम पर काम करता है । यह शरीर के मोटे मोटे सिस्टेम है जिन पर L2 को काम करता है। वैसे इसका प्रभाव संपूर्ण शरीर पर होता है । इसलिए इसे भारतीय इलेक्ट्रो होम्योपैथिक यूनिवर्सल रिमेडी कहा जा सकता है।
नोट:—–
(1) मैं जब प्रैक्टिस करता था तो अपने साथ L2 रखता था । मेरा L2 पर अनुभव यह है कि यह मौत के मुंह से लोगों को निकाल लेती है ।
        यहां आपको यह बताना आवश्यक है कि जब तक हमारे पास अपनी बनाई हुई दवाइयां नहीं थी तब तक हम बाहर से ही दवाइयां खरीद कर ही प्रैक्टिस करते था ।
(2) कोहोबेशन  द्वारा अपने तैयार की गई अपनी औषधि S1 का कभी दुष्प्रभाव नहीं देखा है ।
रिएक्शन ,साइड इफ़ेक्ट और एग्रीवेशन
 ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
       (1)  रिएक्शन
              ————
              चिकित्सा जगत में चिकित्सक विभिन्न प्रकार की औषधियों को , विभिन्न प्रकार के रोगियों पर प्रयोग करता है लेकिन कुछ औषधियों को शरीर ग्रहण कर लेता है और कुछ को ग्रहण नहीं करता तुरंत बाहर फेक देता है। शरीर यह क्रिया मुख व मल, मूत्र , त्वचा के द्वार से करता है।
        आप लोगों ने देखा होगा कभी-कभी कोई इंजेक्शन या दवा देने के तुरंत बाद उल्टी हो जाती है या दस्त / यूरिन  आ जाता है अथवा स्किन पर चकत्ते आ जाते हैं। या पसीने से तरबतर हो जाता है। या चक्कर खा कर पेशेंट गिर जाता है
         इसका मतलब है जो दवा दी गई है बॉडी उसे स्वीकार नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में कहा जाता है की दवा “रिएक्शन” कर गई है । यह क्रिया दवा देने के 1 घंटे के अंदर ही हो जाती है।
       ऐसा अधिकतर एलोपैथी दवाओं में होता है। दूसरी चिकित्सा पद्धतियों में ऐसा बहुत कम या न के बराबर होता है।
       (2)  साइड इफेक्ट
               —————
                     कभी-कभी लोग कुछ दवाएं अपने आप खाते रहते हैं,  लाभ मिलता रहता है या चिकित्सक लिखता रहता है और खाते रहते हैं।  लाभ मिलता जाता है लेकिन दो ,चार, पांच साल बाद  पता चलता है कि किडनी खराब होने लगी या  आंखों की रोशनी कम हो गई, या डायबिटीज हो गई , या लीवर खराब हो गया , आदि अनेको समस्याएं हो सकती हैं ।  पता ही नहीं चलता कि कैसे हो रहा है और दवा को बराबर खाते जा रहे हैं। शरीर  धीमे-धीमे डैमेज होता जा रहा है । जब कभी किसी योग्य चिकित्सक के पास पहुंचे तो वह डायग्नोस्टिक सा है कि इस दवा के कारण यह समस्या हो रही है तब दवा बंद होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है दवा का पूरा प्रभाव शरीर पर आ चुका होता है ऐसी स्थिति को दवा का साइड इफेक्ट कहते हैं जो तुरंत नहीं पता चलता बाद में पता चलता है।
          इस तरह के साइड इफेक्ट एलोपैथिक , आयुर्वेदिक ,यूनानी दवाओं में देखने को मिलते हैं। क्योंकि इनमें जो दवाएं दी जाती हैं उनमें  में एल्केलाइड्स आदि अनेक चीजें होती हैं जो क्रूड या रिफाइंड होते जिनका साइड इफेक्ट शरीर पर पड़ता है । इसीलिए खतरनाक दवा की शीशी पर एक निर्देश लिखा होता है इसे डॉक्टर की सलाह से प्रयोग करें या उसके संरक्षण में प्रयोग करें ।
       (3) एग्रीवेशन
            ————-
                   कभी-कभी चिकित्सक औषधि के डायलूशन नंबर के चुनाव  में गलती कर जाता है । ऐसी स्थिति में जिस रोग  के शमन के लिए दवा दी गई है वह रोग शमन न होकर उग्र हो जाता है।
          जैसे एक्जिमा को ठीक करने के लिए कोई औषधि दी गई और उसका  डायलूशन नंबर सटीक नहीं बैठा और एग्जिमा ठीक होने के बजाय और बढ़ गया और रोगी को परेशानी होने लगी ।
         ऐसी स्थिति में कहा जाता है की दवा एग्रीवेट कर गई या दवा का एग्रीवेशन हो गया है।
इस तरह की घटनाएं होम्योपैथिक मेडिसिन में होती हैं क्योंकि होम्योपैथिक मेडिसिन में अधिकतर नंबर सिलेक्शन की गलती हो जाती है और दवाओं के उचित डायलूशन प्रयोग किए जाते हैं। निम्न डायलूशन में एग्रवेशन बहुत कम होता है। दवा सटीक होने के बाद भी यदि नंबर सटीक नहीं है। तो रोग को बढ़ा देती है।
           बढ़े हुए रोग को ठीक करने के लिए उसी दवा का नंबर ठीक से चुनाव कर पुनः दे देने से रोग का शमन (ठीक) हो जाता है। कई इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सकों ने  फेसबुक पर इस बात का उल्लेख किया है कि यदि कोई दवा देने से रोगसे बढ़ जाए तो उसी दवा का डायलूशन नं  बदल देना चाहिए तो रोग ठीक हो जाता है।
        यदि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा से ऐसा हो रहा है तो इसका मतलब है दवा 100%  होम्योपैथिक विधि से बनी है।
Lassativo or Slass व Synthesis or. Sy.
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
     डॉ.अशोक Moura लिखते हैं की जब वे मेडिकल स्टूडेंट लाइफ में कॉलेज में पढ़ते थे, उस समय मुझे इलेक्ट्रो होम्योपैथी की  60 मेडिसिन बताई गई थी और 115 पौधे बताए गए थे। जिनसे औषधियां तैयार की जाती है।
          जिसमें हैं 37 मूल औषधियां , 21 मूल औषधियों को मिलाकर थूडरक्रास द्वारा तैयार की गई औषधियां और Slass व Sy 2 औषधियां कुल 60 औषधियां थी।
      शोध काल में मुझे Count Mattei,s System of Vegetable Medicin नामक बुक मिली उसमे Slass के जो घटक लिखे थे । उसे देख कर मेरा माथा खटक गया । मैंने विषय में खोजबीन कर ही रहा था कि  विदेश से छपने वाली एक ऑफिशियल मैगजीन “मॉडर्न मेडिसिन” का कुछ लिटरेचर हाथ लगा ।
           उस लिटरेचर के अनुसार Modern Medicine पत्रिका जो जनवरी 1917 में छपी थी उसके पेज नंबर 297 पर Slass में जो घटक पढ़ते हैं । उनकी सूची दी हुई थी। वह सूची निम्न प्रकार से हैं:—
(1) Euonymus atropurpures
(2) Hura crepitans
(3) Mercurials annual
(4) Momordiea elaterum
(5) Ordinance Major
(6) Podophyllum peltatum
(7) Polygonatum bikhare
(8) Rosa centifolia
             इन पौधों के नाम हमने ठीक उसी तरीके से लिखा है जिस तरीके से उन पन्नों में लिखा था। यदि वहां गलती हुई है तो यहां भी गलती हुई होगी   यही पौधे जिस बुक का ऊपर वर्णन किया है उसमे भी लिखे हैं। क्योंकि वह बुक भी मॉडर्न मेडिसिन के आधार पर ही लिखी गई है।
      जर्मन से जो बुक प्रकाशित हुई है उसमें आज भी Slass नामक दवा सूची में नहीं है लेकिन भारत में पढ़ाई जा रही है । तो सवाल यह उठता है कि इस दबाव को किसने तैयार किया है । तारीफ की बात तो यह है कि  में पत्रिका मॉडर्न मेडिसिन  में जो घटक दिए हैं वह भारत में पढ़ाए जा रहे वह Slass नामक मेडिसिन  में नहीं है ।
     आज जो Slass पढ़ाया जाता है उसे Scrofoloso Lassativo or Slass कहा जाता है इसमें केवल दो इनग्रेडिएंट होते हैं:—-
(1) Gentiana lutia
(2) Aloe capensis
       उपरोक्त घटक डा नंदलाल सिन्हा की बुक में लिखा है और उन्हीं की बुक की नकल कर लगभग 80%  पहले लिखी गई है। इसलिए यही घटक सभी पुस्तकों में उपलब्ध है। इस प्रकार इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि डॉक्टर नंदलाल सिन्हा ने हीं इस मेडिसिन  का इजाद किया हो।
     अब हम बात करते हैं Sy की यह मेडिसिन भी जर्मन से प्रकाशित बुक की औषधि लिस्ट मे नहीं है और आज भी है। डॉक्टर नंदलाल सिन्हा ने Sy की जो करैक्टर लिखे हैं उससे साबित होता है कि उसमें है आवश्यक सारी दवाएं ( S1 + A3 +  L1 + C1 + P1 + Wer1 मिली हैं)
            इस विषय में मेरा निजी विचार है कि डॉ नंदलाल सिन्हा जब पेशियन्ट देखने जाते होंगे तो इस Sy की शीशी को साथ ले जाते होंगे जैसे आजकल लोग स्टेथो साथ लेकर जाते हैं । पेशियन्ट को देखकर तुरंत Sy की कुछ बूदें रोगी के मुंह में डाल देते होंगे और फिर उसके घरवालों को क्लीनिक पर दवा लेने के लिए बुला लेते होंगे । अगर हम संक्षेप में कहें तो यह उनकी इमरजेंसी दवा होगी होगी ।
       अभी हम कुछ दिन पहले एक बुक देख रहे थे उसमें इसी आधार पर एक डॉक्टर साहब ने इलेक्ट्रो होम्योपैथिक कम्पोनेंट को मिलाकर केवल 7 दवाइयां तैयार की है। इन्हीं सात दवाइयों से वे इलाज करने का दावा करते हैं।
काम्प्लेक्स होम्यो पैथी व इलेक्ट्रो होम्यो पैथी
            आज के समय मे एक ही है
★★★★★★★★★★★★★★★★
        हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं की होम्योपैथी में हनीमैन ने सिंगल रिमेडी प्रयोग करने का निर्देश दिया था । जबकि इलेक्ट्रो होम्योपैथी में शुरू से ही काम्प्लेक्स रिमेडी प्रयोग करने का निर्देश है। लेकिन वर्तमान समय में होम्योपैथी में काम्प्लेक्स रिमेडी का प्रचलन तेजी से बड़ा है। चाहे जर्मन के होम्योपैथ Dr.Reckeweg  के आर कम्पाउंड हो ( R Compound ) या S B L के कम्पाउंड हो बाजार में बहुत तेजी से बिक रहे हैं इसका मतलब है कि यह सारे काम कर रहे हैं।
       Dr.Reckweg के 89 कम्पाउंड है। पहले इनके इनग्रेडिएंट भी लिख कर आते थे लेकिन अब शायद नहीं आते दूसरी ओर SBL के कम्पाउंडों में आज भी इनग्रेडिएंट लिख कर आते हैं । जो प्रोडक्ट के ऊपर और सम्बंधित बुकलेट में छपे होते हैं प्रोडक्टों में जो इनग्रेडिएंट डाले जाते हैं चाहे SBL के हो या डा रिकवेग के सभी में निम्न पोटेंसी में दवाएं पड़ी होती हैं इन दवाओं के बनाने की तरकीब हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि होम्योपैथिक दवाएं कैसे तैयार की जाती है एक बार पुनः रिपीट कर देते हैं:—-
        साफ सुधरी हर्ब लेकर एल्कोहल और डिस्टल वाटर मिले हुए जल में डाल दी जाती है जब उसकी वाइटल फोर्स (ओड फोर्स) निकल आती है तब मदर टिंचर तैयार माना जाता है इस मदर टिंचर को निम्न प्रकार से X में पोटेंसी तैयार करते हैं :—
एक्स पोटेंसी बनाने की विधि
———————————-
(1) 1 ml मदर टिंचर +9 ml एल्कोहल =10 ml
 दवा 1X तैयार है। (इसमें 10 स्टोक पड़ते हैं)
(2)1X दवा 1ml +9 ml एल्कोहल =10 ml
 दवा 2X तैयार है (10 स्टोक किस में भी लगेंगे)
          ऐसे ही 3X, 4X,  5X, 6X, 7X, 8X, 9X, 10X बनाते जाते हैं।
डी पोटेंसी बनाने की विधि
——————————–
          अब वर्तमान काल में जिस तरीके से लोग इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा तैयार करते हैं  हम वह आपको बता रहे हैं। हालहां की इसे हम इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा नहीं कहते  है। आप भी निर्णय कर सकते हैं कि यह इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा है या होम्योपैथिक दवा है ।
        साफ-सुथरी हर्बल लेकर कुछ लोग केवल डिस्टल वाटर में कुछ लोग डिस्टिल वाटर + एल्कोहल मिले हुए मिश्रण में हर्व में डालते हैं। जब हर्व की ओडफोर्स  मिश्रण में आ जाती है तब उसे छान लेते हैं और इसे ओड फोर्स का नाम देते हैं । वास्तव में यह मदर टीचर ही होता है।
       अब D बनाने के लिए लोग अलग-अलग तरीके ,अपनाते हैं। कुछ लोग 1 : 9 कुछ 1 : 99 कुछ 1 : 999 का पैमाना अपनाते हैं
  (1) 1 ml od force + 9 ml डिस्टिल वाटर या एल्कोहल मिलाकर 10ml दवा D1 बनाते हैं
 (2) D1एक ml + 9 ml डिस्टल वाटर या एल्कोहल मिलाकर 10ml दवा D2 बनाते हैं
              इसी तरह आगे D3, D4, D4, D5, D6, D6, D7, ——– D10 बनाते जाते हैं।
         इस तरह आप देख रहे होंगे की होम्योपैथिक और इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा बनाने में कोई अंतर विशेष नहीं है यहां जो अंतर दिखाई दे रहा है वह यह है कि डी बनाने में स्टोक नहीं लगाए जा रहे हैं  लेकिन आपको बता दें कोई कोई कोई सज्जन ऐसे भी हैं जो D बनाने में भी स्टोक लगाते हैं ।
          अब ओड फोर्स निकालते समय डिस्टिल वाटर के साथ में एल्कोहल मिला दिया करते है और ” D ” बनाते समय स्टोक लगा दिया करते है तो होम्योपैथिक मदर टिंचर और इलेक्ट्रो होम्योपैथिक ओड फोर्स बनाने में क्या अंतर है ????? कोई अंतर नहीं । जब इन दोनों में कोई अंतर नहीं है तो इनसे आगे बढ़ने वाली दवाओं में भी कोई अंतर नहीं होगा यह बात स्पष्ट हो चुकी है।
       इस तरह काम्प्लेक्स होम्योपैथी और इलेक्ट्रो होम्योपैथी दोनों की दवाएं एक ही तरीके से तैयार हुई हैं। हालांकि हमने इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवाएं नहीं कहते हैं और न ही हम इनका समर्थन करते हैं ।
      एक डॉक्टर साहब का कहना है ” कि कुछ लोग कहते है कि D3 के आगे की पोटेंसी अच्छा काम करती हैं वास्तव में वह लोग इलेक्ट्रो होम्योपैथिक की दवाई प्रयोग नहीं करते है )।
            मेरा कहना यह है जब दोनों दवाएं मूल मे एक ही तरीके से बनी है तो फिर जब होम्योपैथिक दवा काम करती है उसमें 5X, 10X, 30X, 200X 30, 200, 1M, 10 M, और 50M दवाएं काम करती हैं तो इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा क्यों नहीं काम करेगी ???????
            यदि नहीं काम करती हैं तो दवाओं में कहीं घपला हो सकता है। हो सकता है दवा के नाम पर केवल एल्कोहल भर दिया गया हो????
        इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा न काम करने के  बहुत से कारण हो सकते हैं। जिसमें निम्नलिखित कारण प्रमुख हो सकते है :—-
(1) प्रत्येक फार्मेसी का दवा बनाने का तरीका अलग अलग होने के कारण चिकित्सक सही तरीके से दवा निर्धारण नहीं कर पाता है जिसके कारण दवा के परिणाम में अंतर आ जाता है।
(2) फार्मेसी के लोग स्टोक संख्या में अंतर कर देते हैं इसलिए दवा के परिणाम में अंतर आ जाता है।
(3) फार्मेसी के लोग डाइल्यूशन व D बनाने में अनुपात अलग अलग कर देते हैं । इसलिए दवा के परिणाम में अंतर आ जाता है।
(4) फार्मेसी द्वारा अल्टरनेट पौधे मिलाने के कारण परिणाम में अंतर आ जाता है।
(5) पौधों की संख्या उचित अनुपात में न मिलाने के कारण औषधि प्रणाम में अंतर आ जाता है।
(6) मटेरिया मेडिका व प्रैक्टिस आफ मेडिसिन का साहित्य बढ़ा चढ़ाकर लिखने के कारण भी औषधि परिणाम प्राप्त करने में अंतर हो जाता है।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
इलेक्ट्रो होम्योपैथी का भारतीय इतिहास
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
          इलेक्ट्रो होम्योपैथी के इतिहास को मुख्यता दो भागों में बांटा जा सकता है।
( 1) पूर्वाद्ध काल
      —————-
                इसमें सीजर मैटी के जन्म से ISO कंपनी जर्मन को दवा के फार्मूले हस्तांतरित करने तक का वर्णन आता है।
(2)  उत्तरार्द्ध
      ———–
             इसमें सीजर मैटी की मृत्यु के बाद भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी  का जो प्रचार प्रसार हुआ उसका वर्णन आता है।
    उत्तरार्द्ध भाग
     —————
             इटालियन नोबेल सीजर मैटी की मृत्यु 1896 ई0 में होने के बाद उनके दामाद ने औषधि बनाने का कार्य जर्मन की एक कंपनी IS0 को सौंप दिया था। जिसे नंदलाल सिन्हा ने अपनी बुक में JS0 (जेसो)  नाम से लिखा है । वास्तव में नंदलाल सिन्हा ने कोई गलती नहीं की थी।  ISO कंपनी जर्मन का जो ट्रेडमार्क है उसमें ही आई को JSO जैसा लिखा गया है । इसी से लोग जर्मन की कंपनी को JS0 ( जेसो ) पढ़ते हैं।
        काउंट सीजर मैटी की मृत्यु के बाद पूरे विश्व के इलेक्ट्रो जगत में उथल-पुथल मच गया था। कुछ लोग अपनी रोटी इलेक्ट्रो के नाम पर सेकने लगे थे।  यानी लोगों को इलेक्ट्रो होम्योपैथी  के नाम पर गुमराह करने लगे थे क्योंकि काउंट सीजर मैटी ने इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक मेडिसिन के फार्मूले अपने जीवन में किसी को नहीं दिया था। उसे एक “सीक्रेट रिमेडी” की तरह रखा था । ऐसे लोगों में कई विदेशी लोग है। जिनमें डा0 फादर मूलर का नाम सामने आया है।
            कुछ लोग ऐसे भी थे जो इलेक्ट्रो होम्योपैथी को आगे बढ़ाना चाहते थे लेकिन उनके पास औषधि फार्मूले न होने के कारण मजबूर थे । ऐसे लोग भी दुनिया में बहुत से थे। जिनका इतिहास समय की आंधी में उड़ गया है। भारत में भी इलेक्ट्रो होम्योपैथी को चाहने वाले कई लोग थे जो औषधि फार्मूले तो नहीं जानते थे लेकिन औषधियों से प्रैक्टिस करते थे। ऐसे लोगों में बंगाल के राधा माधव हलधर का नाम प्रसिद्ध है।
            इन्होंने 1896 ई0 कलकत्ता में प्रैक्टिस करना शुरू किया था।  यह औषधियां इटली से मंगाते थे। इनकी प्रैक्टिस के कारण इलेक्ट्रो होम्योपैथी बहुत तेजी से कलकत्ता के आसपास में तेजी से फैलने लगी। यहीं से यह पैथी पूरे बंगाल बिहार, उड़ीसा ,कर्नाटक ,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में तेजी से फैलने लगी थी।
            डा0 टी. बनर्जी ने 1897 में ही Bangal Medical Electric Institute नाम की संस्था कलकत्ता में स्थापित की थी । यह भारत की पहली शैक्षणिक संस्था थी । इसके बाद दूसरी संस्था इलाहाबाद में 1911 में डॉ एस. पी. श्रीवास्तव एम. डी. द्वारा स्थापित की गई । अभी तक दबाए बाहर से आ रही थी परंतु 1914 में विश्व युद्ध छिड जाने के कारण बाहर से दवाइयां आना बंद हो गई लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथिक डॉक्टरों का उत्साह बंद नहीं हुआ । लखनऊ के बलदेव प्रसाद सक्सेना केसर बाग में प्रैक्टिस करते थे। यह उसी बिल्डिंग मे प्रैक्टिस करते थे  जिसमें पहले “नेशनल होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज” चलता था इस बिल्डिंग को हमने आंखों से देखा है और अंदर गए हैं। इस तरह से अनेक इलेक्ट्रो होम्योपैथिक डॉक्टर थे जिन लोगों ने इस पैथी के प्रचार प्रसार में काफी सहयोग किया है उनमें डा0 वी एम कुलकर्णी, डॉक्टर तांम्बे(पूना), ड0 रमण , डॉक्टर युद्धवीर सिंह, डॉक्टर नंदलाल सिन्हा (कानपुर) ,के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।
           प्रथम विश्व युद्ध से पहले लंदन में “मैटी एसोसिएशन” की स्थापना हो चुकी थी। इस एसोसिएशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य संचालित किया गया था। इस एसोसिएशन की पहली पत्रिका  “Modern  Medecine” नाम से प्रकाशित गई थी । प्रथम विश्व युद्ध के कारण इटली से दवाइयां बाहर नहीं जा पाती थी। इसलिए फार्मूले जर्मन कीJSO कंम्पनी को मैटी के दामाद द्वारा आधिकारिक रूप से सौप गए थे और वहां से दवाइयां बाहर भेजी जाने लगी लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथी का रूप बदलकर ISO के डॉ 0 थूडरक्रास ने इलेक्ट्रो कांप्लेक्स होम्योपैथी नाम कर दिया गया था और इलेक्ट्रो होम्योपैथी में मैटी के द्वारा छूटे हुए नंबरों की दवाओं को पूरा कर दिया था।
          भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी के बहुत से शिक्षण संस्थान खुली। इनमे  पढ़ाने हेतु साहित्य का भी निर्माण किया गया। साहित्य निर्माण में कानपुर के नंदलाल सिन्हा, वी. एम. कुलकर्णी, और विदेशी डॉ ए. जे.गिल्डेन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वी .एम. कुलकर्णी ने अपनी पुस्तक में पौधौ  के विषय में जो लिखा है उसका आधार मॉडर्न मेडिसिन को बनाया है । और उसी आधार पर फार्मेसी भी लिखी है लेकिन नंदलाल सिन्हा ने सिन्हा ने प्लांटों के विषय में जो लिखा है उसका आधार ISO वर्क रिजेनबर्ग जर्मनी द्वारा प्रकाशित पुस्तक को आधार बनाया है । यहां मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि दोनों पुस्तकों को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि किस पुस्तक की कौन सी पुस्तक नकल की गई है । दोनों में मेडिसिन के जो इनग्रेडिएंट लिखे है वह एक ही क्रम में लिखे हैं।
      वी. एम. कुलकर्णी की पुस्तक में जो औषधि इनग्रेडिएंट (पौधे) लिखे हैं वे ISO के औषधि इनग्रेडिएंट से या नंदलाल सिन्हा कानपुर की पुस्तकों से मेल नहीं खाते है ।
         चूंकि कोहोबेशन  करने की विधि JSO ने ( भारत मे प्रचलित नाम ) नहीं ओपन की थी उसे मैटी की तरह सीक्रेट रखा था। इसलिए कोहोवेशन किसी भी बुक में नहीं लिखा गया है। लोगों को इस बात की तो जानकारी थी कि दवाएं  कोहोबेशन  विधि से तैयार की जाती हैं लेकिन कोहोबेशन कैसे किया जाता है इसमें भ्रम था । कोहोवेशन से पहले फर्मेंटेशन किया जाता है। यह भी लोगों को पता था लेकिन समस्या वहां खड़ी हो गई कोहोबेशन शब्द प्रचलित न होने के कारण इसे शब्द कोष  से ही बाहर निकाल दिया गया है  लिहाजा लोग कोहोवबेशन नहीं समझ पाए । इधर डॉक्टर नंदलाल सिन्हा ने फर्मेंटेशन को ही कोहोबेशन  समझकर अपनी पुस्तकों में लिख दिया । जिससे लोगों में भ्रम फैल गया और नकल करने वाले लोगों ने अपनी पुस्तकों में फर्मेंटेशन को ही कोहोबेशन लिखकर फैला दिया। जो आज तक चला रहा है। यही हाल और odd force और Spagiric  का हुआ है ।
        कोहोबेशन पर लखनऊ के स्व0 डा0 कैलाश नाथ श्रीवास्तव , डॉ अशोक कुमार मौर्य ने शोध किया है और 2014 तक  मेडिसिन तैयार की है जिसके अच्छे रिजल्ट आए हैं।
       आज के समय में प्रदेश सरकार  द्वारा अधिनियम 21, सन् 1860 मे रजिस्टर्ड अनेक शिक्षण संस्थाएं चल रही हैं। जिनमें इलेक्ट्रो होम्योपैथी का प्रचार प्रसार  शिक्षण प्रशिक्षण किया जा रहा है जो एक सराहनीय कार्य है। इन्हीं लोगों के बल पर आज इलेक्ट्रो होम्योपैथी जीवित है । इन लोगों में नंदलाल सिन्हा और मोहम्मद हाशिम इदरीसी जैसे अनेक लोग  है जो प्रचार प्रसार शिक्षण प्रशिक्षण  के साथ साथ इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मान्यता के लिए भी प्रयास कर रहे हैं।
नोट—
(1) इलेक्ट्रो होम्योपैथी का इतिहास भारत में बहुत अधिक है जिसको लिखना यहां संभव नहीं है।
(2) इलेक्ट्रो होम्योपैथी के प्रचार प्रसार और शिक्षण प्रशिक्षण में भी बहुत से लोग हैं जिनके नाम यहां लिखना संभव नहीं है हम उन सब को आदर व नमन करते हैं।
(3) इलेक्ट्रो होम्योपैथी के डाक्टरों को आपने शिक्षक , चिकित्सक, व गुरुओं का आदर करना चाहिए ताकि प्रचार प्रसार शिक्षण प्रशिक्षण और मान्यता की लड़ाई में युद्ध लड़ने वाले लोग हतोत्साहित  न हो।
(4) इलेक्ट्रो होम्योपैथिक संस्थान भारत में ही नहीं जापान जर्मन कनाडा इटली पाकिस्तान बांग्लादेश अफगानिस्तान आदि अनेक देशों में स्थापित है लेकिन दुनिया की किसी भी देश में इसकी अलग से सरकारी मान्यता नहीं है।
(5) हम जानते हैं कि बहुत से हमारे सीनियर्स, टीचर्स और शोधकर्ताओं के नाम छूट गए हैं। जिनके नाम यहां आने चाहिए थे पर नहीं आ पाए उनके लिए हम उन सब से क्षमा मांगते हैं।
इलेक्ट्रो काम्प्लेक्स होम्योपैथी और काम्प्लेक्स
                     होम्योपैथी में अंतर
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
         इलेक्ट्रो होम्योपैथिक  डॉक्टरों में एक भ्रम फैला हुआ है  कि ‘इलेक्ट्रो काम्प्लेक्स  होम्योपैथिक” और “होम्योपैथिक काम्प्लेक्स” दवाओ  मैं अंतर है ? या नहीं है? यदि है तो कैसे हैं? मैं यहां एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि दोनों दबाए अलग अलग है। इनमें कोई समानता नहीं है। बशर्ते इलेक्ट्रो काम्पलेक्स होम्योपैथिक की दवाईयां इलेक्ट्रो होम्योपैथिक प्रोसेस (कोहोबेशन) से बनी हुई हो। पहले हम होम्योपैथिक काम्प्लेक्स को समझ लेते हैं कि यह क्या है? और कैसे बनते हैं ?
(1) होम्योपैथिक काम्प्लेक्स
       —————————
              आप किसी भी होम्योपैथिक स्टोर पर जाओ वहां पर काम्प्लेक्स दवाओं का ढेर मिल जाता है किसी डॉक्टर की क्लीनिक पर जाओ एक दो काम्प्लेक्स रिमेडी दे देगा और हम उसे लेकर चले आते हैं । होम्योपैथी मे कांम्प्लेक्स रेमेडी की खोज कैसे हुई यह हम पीछे फादर मूलर के लेख में बता चुके हैं। पहले होम्योपैथी मे सिंगल रिमेडी चलती थी ।
         हम पहले ही आपको बता चुके हैं कि मदर टिंचर होम्योपैथिक औषधि में नहीं आता है। उसे हम आयुर्वेदीक औषधि कह सकते हैं। मदर टिंचर डिस्टिल्ड वाटर और अल्कोहल में निकाला गया हर्ब का अर्क होता है। जब वह डिसमिल या सेंटि मिल में पोटेंटाइज होता है तब होम्योपैथिक रिमेडी में सिद्धांतन आता है । होम्योपैथी के किसी भी पेटेन्ट कांबिनेशन को उठाकर देख लीजिए उसमें आपको Q या 1x, 2x,3x ,6x,10x में औषधियां पड़ी हुई मिलेंगी यह औषधियां निम्न पोटेंसी में गिनी जाती हैं। इसलिए यह नवीन रोगों में अधिक लाभ करती हैं। पेशेंट को शीघ्रता से लाभ चाहिए। इसलिए उसे कम्न्बिनेशन के रूप में निम्न पोटेंसी में दवा देने की आवश्यकता होती है। ताकि पेशंट क्लीनिक छोड़कर चला न जाए। होम्यो पैथिक मदर टिंचर से ही आगे की पोटेंसी बनाई जाती है । इसलिए होम्योपैथिक मदर टिंचर की विषय में जान लेना आवश्यक है।
.        एक बर्तन में डिस्टिलवाटर और एल्कोहल का घोल डाला जाता है। उसी घोल में हर्ब डाल दी जाती है हर्ब का जो भाग डिस्टल वाटर में घुलन शील होता है वह डिस्टल वाटर में घुलता है जो भाग एल्कोहल में घुलन शील होता है। वह एल्कोहल में घुल जाता है । इस तरह से तैयार हुआ घोल उस सिंगल पौधे  का अर्क होता है । जिसे हम मदर टिंचर कहते हैं। इस मदर टिंचर में एल्केलॉइड्स रेजिन एंजाइम विटामिन हार्मोन सभी कुछ घुला हुआ होता है। हमने आपको पहले बताया है कि एल्केलाइड्स शरीर को लाभ भी पहुंचाते हैं और हानि भी पहुंचाते हैं लेकिन जब यह बड़ी पोटेंसी में पुटेंटाइज प्रयोग किए जाते हैं । जैसे:—–
    200x या 200 1M , 50M, 1CM,  50 CM आदि
         पेटेंट कंबीनेशन ने निम्न (नीची) पोटेंसी प्रयोग की जाती है इसलिए वह किसी को हानि नहीं पहुंचाती है । इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि होम्योपैथिक कम्प्लेक्स में  एल्केलाइड्स  हार्मोन विटामिंस एंजाइम्स रेजिन ग्लूकोस फैट तथा वे समस्त पदार्थ जो एल्कोहल और डिस्टिल्ड वाटर में घुलनशील होते हैं पोटेंटाइज होकर औषधि के रूप में शामिल होते हैं।
         होम्योपैथिक कांप्लेक्स का आधार प्रत्येक पौधे या साल्ट की निम्न पोटेंसी होती है।
(2) इलेक्ट्रो काम्प्लेक्स होम्योपैथी
       ———————————-
           “इलेक्ट्रो काम्प्लेक्स होम्योपैथी” कोहोबेशन द्वारा तैयार स्पेजिरिक से बनी इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिंस को आपस में मिलाकर थूडरक्रास द्वारा तैयार किया था।
          इनका आधार स्पेजिरिक नहीं मैटी द्वारा तैयार की गई औषधियां है। सीजर मैटी की विभिन्न औषधियों को विभिन्न अनुपात में मिलाकर यह इलेक्ट्रो काम्प्लेक्स तैयार किये गये थे। कोहोबेशन द्वारा तैयार की गई स्पेजिरिक में एल्केल्इडस नहीं होते है  क्योंकि एल्केल्इडस डिस्टिल वाटर में या तो नहीं घुलते हैं या कम घुलते हैं । डिजिटल वाटर में पौधे के वही भाग होते हैं जो डिस्टल वाटर में घुल सकते हैं इसमें शीत कसाय ( एक प्रकार की हालकी किंड्वन क्रिया / फर्मेंनटेशन ) बनाते समय इसमें केवल डिस्टल वाटर प्रयोग किया जाता है । एल्कोहल  प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए यह दवाएं उच्य पोटेन्सी में भी एग्रीवेट नहीं करती है।
            पुराने समय में उच्य पोटेंसी का प्रचलन नहीं था । इसलिए सीजर मैटी ने ऊंची पोटेंशियां नहीं बनाई थी। केवल तीन-चार पोटेंसी तक ही सीमित रखा था। होम्योपैथी में भी उस समय 2× 3× 4× या नंबर 30 नंबर 60 नंबर आज की दवाएं चलती थी।
        आज परिस्थितियां बदल गई हैं हर जगह नई खोज हो रही है होम्योपैथी में ऊंचे डायलूशन बनान बनने लगे इस इलेक्ट्रो होम्योपैथी में भी ऊंचे डायलूशन बनने लगे हैं।
            चूंकि आज इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां होम्योपैथिक मदर टिंचर मिलाकर लोग तैयार करते हैं । इस लिए उच्य पोटेंसी  देने पर एग्रीवेट करने का ख़तरा रहता है । इसलिए लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन में डायलूशन नहीं तैयार किए जाते हैं। निम्न पोटेंसी में ही दवा इस्तेमाल करते हैं। जिससे एग्रीवेशन का खतरा नहीं रहता है।
          अब आपको आज के हिसाब से एक नमूना बताते हैं जैसे लोग मेडिसिन तैयार करते हैं। हालांकि हम इस इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन नहीं कहते हैं। केवल समझाने के लिए आपको बता रहे हैं:—-
       कैंसरासो ग्रुप में एक मेडिसिन C11 है जिसको थूडरक्रास ने Rhus Toxicodendron cp नाम दिया है इस इलेक्ट्रो होम्योपैथिक काम्पलेक्स में Berberis cp 20 ,Conium cp20 , Echinacea cp 10 अब लोग क्या करते हैं होम्योपैथिक दुकान पर पहुंचते हैं और इनका मदर टिंचर खरीद लेते हैं इन्हें आपस में अनुपात के अनुसार मिलाकर 1 सीसी में भर लेते हैं
       मान लो इन सब को मिलाकर 1 MLमिश्रण बना यह लोग इसे ओडफोर्स कहते हैं । इसके आगे क्या प्रोसेस अपनाते हैं ध्यान दे।
(1) 1ML od forcs + 9 ML डिस्टिल वाटर =
 10ML ( 1ml से 10ml ऐसे ही बनी है) इसे
 D1भी कहते हैं
(2) 10 ML+ 90 ML डिस्टिल वाटर = 100
 ( ML 10 ML 100 ML स्पेजिरिक बनी है )
 इसे D2 कहते हैं ।
(3) 100.ML+ 900ML डिस्टिल वाटर =
 1000 ML( 100 ML से 1000ML स्पेजिरिक
 बनी है ) इसे D3 भी कहते हैं ।
           कुछ लोग यहीं से चिकित्सा करना शुरू कर देते हैं। इसमें रिजल्ट मिलते हैं लेकिन क्रॉनिक पेशेंट नहीं ठीक होंगे क्योंकि इसमें केवल मेडिसिन को डायलूट किया गया है पोटेंसी नहीं बनी है कुछ लोग इस 1000 ML को स्पेजिरिक मान कर का लोगों को बेच देते हैं और कहते हैं कि आगे डायलूशन बनाकर प्रेक्टिस करना । डायलूशन बनाने की विधि बता देते हैं । कुछ लोग यहां भी डाइल्यूशन नहीं बनाते हैं और इसे आगे भी डाइल्यूट कर प्रैक्टिस करने की सलाह देते हैं।
         इस प्रकार हम देखते हैं कि लोग विभिन्न तरीके से od फोर्स व Spagyric बनाते है और लोगों को ऊंचे दाम पर बेच देते हैं। यह एक हमने सामान्य विधि बताई है होम्योपैथिक दवाइयों से कैसे लोग इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवा बनाते हैं।
           हम इस विधि का कभी समर्थन न तो किया है और न करेंगे क्योंकि यह तरकीब सही नहीं है। इससे बनाई हुई दवाइयां इलेक्ट्रो होम्योपैथिक दवाइयां नहीं हो सकती है।
          इस तरह हम तमाम जानकारी देते हुए आपको यह बताना चाहते हैं कि “इलेक्ट्रो काम्पलेक्स होम्योपैथी” और “होम्यो काम्पप्लेक्स मेडिसिन” दोनों अलग-अलग सिद्धांतिक मेडिसिन है इनमें कोई समानता नहीं है ।
**संकलन
 डॉ. रितेश श्रीवास्तव
बी.एन.वाई.एस, डी.ई.एम.एस, बी.ई.एम.एस
फादर मुलर के सिद्धांत और औसधिया
★★★★★★★★★★★★★★
        डॉक्टर फादर मुल्लर का जन्म 13 मार्च 18 41 ई0 में के जर्मनी के वेस्टफेलिया नामक स्थान में हुआ था। इनकी मृत्यु 1 नवम्बर सन 1910 में हुई थी । फादर मुल्लर बचपन से ही चिकित्सा के क्षेत्र में रुचि रखते थे। एक बार 18 61 ई0 के आसपास इन्हें डिसेंट्री हो गई तब यह जर्मनी से अमेरिका चले गए और सोसायटी आफ जीजस हॉस्पिटल में भर्ती हो गए। वहां इनकी हालत काफी गंभीर हो गई। उस समय वहां चिकित्सा के उत्तम प्रबंध नहीं थे। इन्हें केवल जुलाब देकर पेट साफ किया जाता था लेकिन बचाने वाले को कौन मार सकता है।
           डॉक्टरों ने भरसक प्रयास किया और इन्हें बचा लिया गया । यह अपने जीवन में कई बार अनेक प्रकार की बीमारियों से बीमार हुए लेकिन ठीक होते रहे। इसलिए इनकी मन में यह इच्छा जागी कि जो दर्द हम झेल रहे हैं वह कोई दूसरा न झेले। इसलिए इन्होंने एक हॉस्पिटल बनाने की सोची जिसमें लोगों को फ्री इलाज दिया जाए। उस समय यह बहुत बड़ा काम था। उस समय एलोपैथी का चलन शुरू हो गया था लेकिन उसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं थे। फादर मुल्लर का इलाज होम्योपैथी से ही हुआ था। इसलिए उनका होम्योपैथी पर अधिक विश्वास बना था। उन्होंने होम्योपैथी का अध्ययन करना शुरू कर दिया और इन्होंने भारत में “दि होम्योपैथिक पुअर डिस्पेंसरी” कंकनाडी मंगलूर-2 में स्थापित किया। यहां उस समय 200 से 300 तक मरीज बाहर से प्रतिदिन दवा लेने आते थे। पत्र व्यवहार द्वारा भी लोगों की चिकित्सा की जाती थी। वह समय आज का समय नहीं था दवाइयों की सप्लाई होना और दवा प्राप्त करना बहुत कठिन काम था ।
        उसी समय फादर मुल्लर की मुलाकात काउंट सीजर मैटी से हुई और उनकी औषधियां भी फादर मुल्लर को प्राप्त हुई। फादर मुल्लर ने मुख्यतः  स्क्रूफोलासो और एंजियाटिको  ग्रुप की दवाएं प्रयोग की थी। उसी में फादर मुल्लर की काउंट सीजर से दोस्ती हो गई थी। फादर मुल्लर के हॉस्पिटल में काउंट सीजर ने निर्माण के लिए लगभग ढाई हजार (2365) रुपए की धनराशि भी दी थी। दोस्ती बढ़ती गई। एक बार फादर मूलर ने काउंट सीजर मैटी से बात बात मे कहा औषधि बनाने के फार्मूले मुझे बता दो। काउंट सीजर मैटी ने दोस्ती में हां कर दिया था लेकिन 6 महीने बाद काउंट सीजर मैटी की मृत्यु हो गई थी । फार्मूले नहीं बता पाए। यह बात कुछ लोगों को पता भी थी कि फार्मूले बताने की बात कांउट सीजर मैटी ने कही है ।
       फादर मुल्लर की दवाएं उन्ही की डिस्पेंसरी में बनती थी जिनके फार्मूले गुप्त थे जैसे मैटी की दवाओं के फार्मूले गुप्त थे । जब मैटी की  दवाओं की चर्चा संसार में फैलने लगी तो फादर मुल्लर कहने लगे मेरी दवाएं ही मैटी की दवाएं हैं। उन्होंने दवाओं के फार्मूले हमें बताया था। (  क्योंकि मैटी और फादर मुल्लर  दोनों की दवाओं के फार्मूले गुप्त थे ) यह खबर जब जर्मनी पहुंची जहां पर मैटी  दामाद ने मैटी की दवाओं के फार्मूले दे (मैटी की मृत्यु के बाद) रखे थे तो उन्होंने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फार्मूले Jso-Complex- Mode of Medical Treatment and it’s medicaments में ओपन कर दिए।
          हमारे पास जो फादर मुल्लर  की जो पुस्तक है वह दूसरे संस्करण की है तब उन्होंने अपनी बात को छुपाने के लिए इलेक्ट्रो होम्योपैथी वा मैटी के विषय में गोल मोल बातें लिखने लगे। फादर मुल्लर की पुस्तक का दूसरा संस्करण  संस्करण 1953 में छपा है। जबकि जर्मनी की पुस्तक का पहला संस्करण 3 नवंबर 1952 को छपा है।
फादर मूलर की औषधियां शुसलर बायोकेमिक  और होम्योपैथिक औषधियों को मिलाकर तैयार की गई हैं। जिनके नाम  मैटी की औषधियों की तरह नंबर मे  नाम है । जैसे Specific. No 1-2-3-4-5 आदि हिंदी में इन औषधियों को सिद्धौषधि नंबर 1-2-3-4-5 नाम है। इनमे  कुछ औषधियां गोलियों में है और कुछ डिस्केट में हैं।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
———————————-
       डॉक्टर एब्बे. गौडेन्सिसस सेलोरी जो ट्यूरिन के निवासी थे और एक दरबार में दान अधिकारी थे इन्होंने वैदिक शास्त्र का बहुत गहराई से अध्ययन किया था इन होम्योपैथी के  शास्त्र से बड़ी रुचि थी वे होम्योपैथिक शास्त्र का अध्ययन कर लोगों को दवाएं देने लगे थे एक दिन एक बीमार आदमी उनके पास आया उन्होंने कई दवाओं की अलग-अलग पोटलिया बांधी और बता दिया इस दवा के बाद यह दवा खाना इसके बाद यह दवा खाना जब यह समाप्त हो जाए तब यह दवा खा लेना लेकिन वह व्यक्ति घर जाकर इन सारी दवाओं को एक में मिलाकर खा गया कुछ दिनों बाद जब वह व्यक्ति स्वस्थ होकर डॉक्टर साहब को धन्यवाद करने आया तो डॉक्टर सोलेरी उसे देख कर चौक गए मुझसे पूछा इतनी जल्दी कैसे ठीक हो गए तो उसने बताया मैंने आपकी दी हुई औषधियों को सेवन किया है डॉक्टर ने पूछा उन सबको आपने खा लिया उत्तर मिला हां उसने बताया मैं घर जाकर सारी दवाइयों को एक दिन भर मे खा लिया अब मैं बिल्कुल ठीक हूं फादर मूलर कहते हैं कि सैलरी से मेरी भेंट हुई है और मैंने पूरी बात उनसे सुनाइ थी इसी तरह के कई उदाहरण सामने आए जिससे होम्योपैथी में काम्प्लेक्स  होम्योपैथी का सिद्धांत डिवेलप हुआ ।
           होम्योपैथी में सिंगल रिमेडी का फार्मूला था लेकिन 1877 ई0 में डॉक्टर से फिनेल्ला होम्योपैथी का मिश्रित सिद्धांत रखा था जिस पर एक पुस्तक लिखी गई थी। जिस पुस्तक में औषधियों की रचना तत्व और उसके गुणों के विषय में लिखा गया है। यह 390 पृष्ठो की पुस्तक थी । उसका संपादन काउंट सीजर मैटी ने किया था।
नोट:—–
(1) उपरोक्त लेख फादर मुल्लर के होम्योपैथिक पुअर डिस्पेंसरी कंकनाडी द्वारा छपी पुस्तक 1953 के आधार पर लिखा गया है।
(2) डॉक्टर सैमुअल हैनीमैन का जीवनकाल 1755 से 1843 तक रहा है।
 (3) होम्योपैथी में काम्प्लेक्स होम्योपैथी का सिद्धांत जब डॉक्टर पिनैल्ला ने रखा था । उससे पहले ही  डॉक्टर हनीमैन का स्वर्गवास हो चुका था । तो आज जो कहा जाता है कि आर्गनान के छठे भाग में काम्प्लेक्स होम्योपैथी का सिद्धांत है। तो क्या होम्योपैथी का आर्गनान डा 0 हनीमैन के देहांत के बाद लिखी गई है ??????????
इलेक्ट्रो काम्पलेक्स व इलेक्ट्रो होम्योपैथी में समानता
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
           इलेक्ट्रो होम्यो पैथी और काम्प्लेक्स इलेक्ट्रो होम्यो पैथी को लेकर है चिकित्सकों में एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग इसमें लोगों को गुमराह भी कर रहे हैं क्योंकि कुछ नया लिखने के चक्कर में दूसरे को भ्रम में डाल देना आज का फैशन हो गया।
         इसलिए आज इस बात को स्पष्ट कर लेना आवश्यक है कि दोनों पैथियो में क्या समानता है। क्या अंतर है? वैसे तो दोनों एक ही पैथी हैं लेकिन थोड़ देर के लिए हम मान लेते हैं कि दोनों अलग-अलग है। इसलिए हम दोनो के विषय में समझने का प्रयास करते हैं।
(अ) इलेक्ट्रो होम्यो पैथी
      ★★★★★★★
(1) पैथी के जन्मदाता
       ——————–
           इलेक्ट्रो होम्योपैथी का जन्म 18 65 ई0 के आसपास इटालियन नोबेल काउंट सीजर मैटी  के द्वारा किया गया था इनकी दवाओं के घटक  पेड़ पौधे थे। इलेक्ट्रो होम्यो पैथी में कुल 57 मेडिसिन थी।
(2) 57 मेडिसिन थी तो (37) क्यों कही जाती है?
      ————————————————–
          रोम के एक सरकारी अस्पताल में काउंट सीजर मैटी को इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक दवाओं के परीक्षण करने का अवसर प्राप्त हुआ था । इस परीक्षण में उन्होंने जिन दवाओं को ज्यादा सफल पाया उनको उन्होंने अपनी लिस्ट में रखा और जिन्हें सफल नहीं पाया उन्हें लिस्ट से निकाल दिया था तथा उनके फार्मूले भी नष्ट कर दिए थे लेकिन लिस्ट में उन दवाओं के नंबर सही नहीं किया था । इसी बीच में उनका देहांत हो गया। अतः नंबर वैसे के वैसे ही रह गए ।
          जैसे लिम्फैटिक ग्रुप में 2 दवाएं थी तो दो नंबर पड़े हुए थे L1 , L2 लेकिन L2 का फार्मूला  सीक्रेट डायरी में नहीं था । इसलिए काउंट सीजर मैटी की 38 दिनों में L1 है L2 नहीं है। इसी तरह यह स्क्रोफुलासो ग्रुप में S1 से S12 तक नंबर पड़े थे   लेकिन फार्मूले S1, S2, S3,  S5, S6, S10, S11, S12 के ही थे इसलिए 38 दवाओं में यही मेडिसिन शामिल है । शेष  S7, S8, S9 नहीं है। रोम के अस्पताल में परीक्षण हुआ था बोलोग्ना यूनिवर्सिटी के M.D मास्क्यूसी ने उस वर्ष की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दिया है जो वहां के रिकॉर्ड में उपलब्ध होगा ।
           काउंट सीजर मैटी की 37 दवाएं निम्नलिखित थी:—–
A1, A2, A3 S1, S2 S3, S5, S6, S10, S11, S12, F1, F2 , Ven1, W1, W2 L1, C1, C2, C3, C4, C5, C6, C10, C12, C13, C15,  C17, P1, PE, P3 ,BE, GE, YE, RE, WE, A.P.P.
       कुल 37 इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन
——————————————————-

Leave A Reply

Your email address will not be published.