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नौकरी छोड़ गांव वालों के साथ हैंडीक्राफ्ट का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, एक करोड़ रु टर्नओवर, 800 कारीगरों को भी मुनाफा

सुमिरन और उनके दो और साथी हिमांशु और शिवांगी ने मिलकर 2014 में हैंडमेड प्रोडक्ट के लिए ऑनलाइन स्टोर शुरू किया। सुमिरन की टीम में अभी 13 लोग काम करते हैं, देश के साथ-साथ विदेशों में भी इनके प्रोडक्ट की डिमांड है, हर महीने 400-500 प्रोडक्ट के ऑर्डर आते हैं मध्यप्रदेश, राजस्थान, कश्मीर सहित कई राज्यों के हैंडमेड क्राफ्ट जैसे साड़ी, मिट्टी के बर्तन, पेंटिंग्स, ईयर रिंग्स इनके ऑनलाइन स्टोर पर उपलब्ध हैं

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मध्यप्रदेश के भोपाल के रहने वाले सुमिरन पांड्या ने कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की है। अभी अहमदाबाद में हैंडमेड क्राफ्ट का ऑनलाइन स्टोर चलाते हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी उनके प्रोडक्ट की डिमांड है। हर महीने 400-500 प्रोडक्ट के ऑर्डर आते हैं। सालाना एक करोड़ रुपए की कमाई हो रही है।

39 साल के सुमिरन ने 2004 में भोपाल से इंजीनियरिंग के बाद मुंबई में दो साल तक एक कंपनी में काम किया। इसके बाद वे अहमदाबाद आ गए। यहां नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से उन्होंने मास्टर्स किया। फिर कुछ सालों तक सॉफ्टवेयर डिजाइन का काम किया। अलग-अलग गवर्नमेंट प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया।

सुमिरन के पिता ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर रहे, इसलिए उनका ज्यादातर समय गांवों में गुजरा। वो भी अलग-अलग गांवों में जहां उनकी पोस्टिंग रही। वो बताते हैं, ‘जब मैं अहमदाबाद में मास्टर्स कर रहा था, तब एक प्रोफेसर एमपी रंजन के संपर्क में आया जो क्राफ्ट को लेकर एक किताब पर काम कर रहे थे। उनके साथ मैं भी जुड़ा था।

तस्वीर कश्मीर की है, जिसमें कारीगर हाथ से बास्केट तैयार कर रहा है।
तस्वीर कश्मीर की है, जिसमें कारीगर हाथ से बास्केट तैयार कर रहा है।

हम अलग-अलग गांवों में जाते थे और वहां के कारीगरों से मिलते थे, उनके काम को देखते थे, उसकी पूरी प्रोसेस समझते थे। इस तरह हमने कई गांवों का दौरा किया। उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। हैंडमेड प्रोडक्ट और उनकी खूबियों को जानने का मौका मिला।

सुमिरन कहते हैं कि जब हम गांवों में जाते थे तो कारीगरों से मिलते थे, उनका काम देखते थे। वे प्रोडक्ट को तैयार करने के तरीकों से लेकर उसकी खूबियों के बारे में बताते थे। जिसे हम अपनी डायरी में नोट करते थे। इसी दौरान हमें ख्याल आया कि जब हम अलग-अलग गांवों में जा ही रहे हैं तो क्यों न इन लोगों के बारे में कुछ लिखा जाए ताकि दूसरे लोगों को भी पता चले।

इसके बाद हमने गाथा नाम से एक ब्लॉग बनाया। हम जहां भी जाते थे, वहां के हैंडमेड क्राफ्ट और उसे बनाने वाले के बारे में स्टोरी तैयार करके उसे ब्लॉग पर पोस्ट करते थे। उस समय सोशल मीडिया और इंटरनेट का इतना क्रेज नहीं था। फिर भी काफी लोगों ने हमारी स्टोरी को पसंद किया। कई लोगों ने हमें कॉल व मैसेज कर प्रोडक्ट के बारे में जानकारी मांगी। कई लोगों ने कहा कि वे इस प्रोडक्ट को खरीदना चाहते हैं।

सुमिरन और उनके साथी अलग- अलग जगहों पर जाकर वहां के कारीगरों से मिलते हैं और उनके प्रोडक्ट को अपने ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करते हैं।
सुमिरन और उनके साथी अलग- अलग जगहों पर जाकर वहां के कारीगरों से मिलते हैं और उनके प्रोडक्ट को अपने ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करते हैं।

वो बताते हैं कि जब हम गांवों में जाते थे तो वहां के कारीगर कहते थे कि उनका प्रोडक्ट सही होने के बाद भी मार्केट में नहीं पहुंच पाता है। जो प्रोडक्ट बिकते भी हैं तो उनका सही दाम नहीं मिल पाता। उनके काम की क्रेडिट उन्हें नहीं मिल पाती है।

इसके बाद हमने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा काम किया जाए कि इन कारीगरों के सामान भी बिक जाए और जो लोग खरीदना चाहते हैं, उन्हें भी वो प्रोडक्ट मिल जाए। चूंकि हम लोग टेक्निकल बैकग्राउंड से थे तो दुकान खोलने के बजाय हमने ऑनलाइन स्टोर शुरू करने का प्लान किया और 2013 के अंत में अपने दो और दोस्त शिवानी धर और हिमांशु खार के साथ मिलकर गाथा नाम से ई-कॉमर्स पोर्टल शुरू किया।

सुमिरन 300 से ज्यादा गांवों का दौरा कर चुके हैं। हर एक गांव के कल्चर और हैंडमेड प्रोडक्ट की डिटेल्ड इन्फॉर्मेशन उनके पास है।
सुमिरन 300 से ज्यादा गांवों का दौरा कर चुके हैं। हर एक गांव के कल्चर और हैंडमेड प्रोडक्ट की डिटेल्ड इन्फॉर्मेशन उनके पास है।

सुमिरन कहते हैं कि अब तक हमें प्रोडक्ट और उनको तैयार करने वाले कारीगरों के बारे में आइडिया मिल गया था। कई कारीगरों से पहचान भी हो गई थी। इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। हमने कुछ कारीगरों से कॉन्टैक्ट किया और उनका प्रोडक्ट वेबसाइट पर अपलोड कर दिया। फिर सोशल मीडिया पर इसके बारे में पोस्ट शेयर किया। शुरुआत में ही हमें काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला।

वो कहते हैं कि हैंडमेड क्राफ्ट का सेक्टर बहुत ऑर्गनाइज्ड नहीं है। इसलिए हमें प्रोडक्ट के लिए अलग-अलग गांवों में जाना होता है। कुछ कारीगरों से हम नकद प्रोडक्ट खरीदते हैं तो कुछ को थोड़ा बहुत एडवांस पेमेंट करना होता है। बहुत से ऐसे भी कारीगर हैं जो बिना कोई एडवांस पेमेंट के ही प्रोडक्ट दे देते हैं। वे कहते हैं कि जब बिक जाए तो पैसे दे देना।

सुमिरन 300 से ज्यादा गांवों का दौरा कर चुके हैं। हर एक गांव के कल्चर और हैंडमेड प्रोडक्ट की डिटेल्ड इन्फॉर्मेशन उनके पास है। करीब 100 गांवों का डेटा तो उन्होंने अपनी वेबसाइट पर पब्लिक भी किया है, जिसे कोई भी पढ़ सकता है।

यह साड़ी मध्यप्रदेश के महेश्वर के कारीगरों ने तैयार की है। इसे महेश्वरी साड़ी के नाम से जाना जाता है।
यह साड़ी मध्यप्रदेश के महेश्वर के कारीगरों ने तैयार की है। इसे महेश्वरी साड़ी के नाम से जाना जाता है।

सुमिरन कहते हैं कि हर एक प्रोडक्ट की, उसके आर्ट एंड क्राफ्ट की अपनी खूबी होती है, कहानी होती है। जो बहुत कम लोगों को पता होती है। जैसे लाख की चूड़ी है, या चंदेरी साड़ी है, या मिटी के घड़े। हर एक प्रोडक्ट की अपनी कहानी है।

वो बताते हैं कि हम जो भी प्रोडक्ट वेबसाइट पर अपलोड करते हैं, उसके साथ उस प्रोडक्ट की खूबियां, उसे तैयार करने की प्रोसेस और उस कारीगर की कहानी को भी पोस्ट करते हैं। ताकि लोग सामान खरीदे उन्हें पता रहे कि इस प्रोडक्ट को कैसे और किसने तैयार किया है। इसकी खूबियां क्या है। इससे कारीगर का भी नाम होता है, उसकी कला के बारे में लोगों को जानकारी भी मिलती है।

सुमिरन की टीम में अभी 13 लोग काम करते हैं। 800 से ज्यादा कारीगर इनसे जुड़े हुए हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा इन कारीगरों को भी है कि उन्हें सामान बेचने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता है और सही दाम भी मिल जाता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार और कश्मीर सहित कई राज्यों के हैंडमेड क्राफ्ट जैसे साड़ी, मिट्टी के बर्तन, पेंटिंग्स, ईयर रिंग्स, चूड़ियां, श्रृंगार के आइटम्स इनके ऑनलाइन स्टोर पर उपलब्ध हैं।

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