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7 घंटे चली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक:अभी सोनिया ही रहेंगी अंतरिम अध्यक्ष, कहा- आगे बढ़ते हैं, जिन लोगों ने चिट्ठी लिखी, उनके लिए कोई दुर्भावना नहीं

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में फैसला- 6 महीने के भीतर ही किया जाएगा नए अध्यक्ष का चुनाव वर्किंग कमेटी की बैठक सुबह 11 बजे शुरू हुई थी, इसी दौरान सोनिया ने पद छोड़ने की इच्छा जाहिर की

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नया अध्यक्ष तय करने के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सोमवार को 7 घंटे मीटिंग की, पर यह तलाश पूरी नहीं हुई। सोनिया गांधी ने बैठक की शुरुआत में ही अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की इच्छा जाहिर कर दी थी, इसके बावजूद अभी उन्हें ही यह जिम्मेदारी संभालनी होगी। ये जरूर तय कर लिया गया है कि नए अध्यक्ष का चयन 6 महीने के भीतर कर लिया जाएगा। बैठक में यह भी फैसला लिया गया कि कांग्रेस कमेटी का अगला सेशन जल्द से जल्द बुलाया जाएगा, ताकि नए अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा सके।

सोनिया ने कहा- मतभेद होते हैं, पर आखिरकार हम एक हैं

सोनिया ने बैठक के आखिर में कहा कि हम एक बड़ा परिवार हैं। हममें भी कई मौकों पर मतभेद होते हैं, लेकिन अंत में हम सब एक साथ होते हैं। अभी वक्त की मांग है कि जनता की खातिर ऐसी ताकतों से लड़ें, जो इस देश को कमजोर कर रहे हैं। आगे बढ़ते हैं। जिन लोगों ने चिट्ठी लिखी, उनके लिए मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं है, क्योंकि वह भी मेरा परिवार ही हैं।

पुनिया ने बताया कि गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा ने लिखित में यह बात कही है कि पार्टी लीडरशिप को लेकर कोई विवाद नहीं है। पार्टी में विचारों को सामने रखने की आजादी है, लेकिन इस पर चर्चा पार्टी फोरम में होनी चाहिए, ना कि पब्लिक डोमेन में। कई सदस्यों ने इस पर चिंता जाहिर की है।

राहुल के बयान पर बैठक में हुआ बवाल, कांग्रेस ने साढ़े चार घंटे में किया डैमेज कंट्रोल

पार्टी की सबसे बड़ी संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी सीडब्ल्यूसी की सोमवार को जब बैठक शुरू हुई, तो सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष का पद छोड़ने की पेशकश की। इसके बाद ही पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोनिया को भेजी गई नेताओं की चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल उठाए। राहुल का आरोप था कि पार्टी नेताओं ने यह सब भाजपा की मिलीभगत से किया। राहुल के इस बयान को बमुश्किल 20-25 मिनट नहीं बीते होंगे कि उनका विरोध शुरू हो गया।

विरोध करने वालों में सबसे आगे थे गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल। बाद में कांग्रेस ने कहा कि राहुल ने ‘भाजपा के साथ मिलीभगत’ जैसा या इससे मिलता-जुलता एक शब्‍द भी नहीं बोला था। इसके बाद सिब्बल ने अपना ट्वीट और गुलाम नबी आजाद ने अपना बयान वापस ले लिया।

दरअसल, करीब 15 दिन पहले पार्टी के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि भाजपा लगातार आगे बढ़ रही है। पिछले चुनावों में युवाओं ने डटकर नरेंद्र मोदी को वोट दिए। कांग्रेस में लीडरशिप फुल टाइम होनी चाहिए और उसका असर भी दिखना चाहिए।

सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में आज क्या हुआ?

  • सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश करते हुए कहा कि मुझे रिप्लेस करने की प्रक्रिया शुरू करें। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने उनसे पद पर बने रहने को कहा।
  • बीते दिनों पार्टी नेतृत्व में बदलाव को लेकर कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी पर राहुल गांधी ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि जब सोनिया गांधी हॉस्पिटल में भर्ती थीं, उस वक्त पार्टी लीडरशिप को लेकर लेटर क्यों भेजा गया। पार्टी लीडरशिप में बदलाव की मांग का लेटर भाजपा की मिलीभगत से लिखा गया।
  • ‘भाजपा से मिलीभगत’ के राहुल के आरोपों पर विवाद हो गया। बमुश्किल 20-25 मिनट के अंदर पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, ‘हमने राजस्थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी का केस कामयाबी के साथ लड़ा। बीते 30 साल में कभी भी, किसी भी मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में बयान नहीं दिया। फिर भी हम भाजपा के साथ मिलीभगत में हैं?’ कुछ देर बात सिब्बल ने ट्विटर से अपना परिचय बदल दिया और कांग्रेस शब्द को हटा दिया।
  • थोड़ी ही देर में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर भाजपा से मिलीभगत होने के राहुल गांधी के आरोप साबित हुए तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।
  • कांग्रेस की पूर्व नेता दिव्या स्पंदना ने कहा कि मुझे लगता कि राहुलजी ने गलती की। उन्हें कहना चाहिए था कि कांग्रेस के नेताओं ने यह चिट्ठी भाजपा और मीडिया के मिलीभगत से भेजी। उन्होंने कहा कि ना केवल मीडिया में चिट्ठी को लीक किया, बल्कि अभी चल रही सीडब्ल्यूसी की बैठक की बातचीत को मीडिया में मिनट टू मिनट लीक भी किया जा रहा है। गजब है।
  • कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने दोपहर 1:30 बजे से कहा कि राहुल ने ‘भाजपा के साथ मिलीभगत’ जैसा या इससे मिलता-जुलता एक शब्‍द भी नहीं बोला था।
  • भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर गुलाम नबी आजाद ने दोपहर 3:50 बजे सफाई दी। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने ऐसा कभी नहीं कहा। ना ही सीडब्ल्यूसी में और ना ही इसके बाहर।
  • शाम 6 बजे बैठक खत्म हो गई। 7 घंटे चली इस बैठक में फैसला लिया गया कि सोनिया ही अभी अंतरिम अध्यक्ष पद का जिम्मा संभालेंगी। 6 महीने के भीतर नया अध्यक्ष चुना जाएगा।

पिछले साल अगस्त में अंतरिम अध्यक्ष बनी थीं सोनिया
राहुल गांधी पहले ही पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। तब सोनिया ने अगस्त में एक साल के लिए अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली।

कांग्रेस की कलह पर भाजपा का तंज
मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए कई योग्य उम्मीदवार हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रेहान वाड्रा और मिराया वाड्रा शामिल हैं। कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए कि कांग्रेस उस स्कूल की तरह है, जहां सिर्फ हेडमास्टर के बच्चे ही क्लास में टॉप आते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस में सही बात करने वाला गद्दार है। तलवे चाटने वाले कांग्रेस में वफादार हैं। जब पार्टी की ये स्थिति हो जाए तो उसे कोई नहीं बचा सकता। उधर, उमा भारती ने कहा, ‘गांधी-नेहरू परिवार का अस्तित्व संकट में हैं। इनका राजनीतिक वर्चस्व खत्म हो गया है। इसलिए अब पद पर कौन रहता है या कौन नहीं यह मायने नहीं रखता है। कांग्रेस को बिना कोई विदेशी एलीमेंट के स्वदेशी गांधी की तरफ लौटना चाहिए।’

सोमवार सुबह दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी।
सोमवार सुबह दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी।

आखिर बदलाव की मांग क्यों उठ रही?
1. पार्टी का जनाधार कम हो रहा: 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे कम 44 सीटें ही मिल सकीं। 2019 के चुनाव के दौरान राहुल गांधी अध्यक्ष थे। पार्टी सिर्फ 52 सीटें ही जीत सकी।
2. कैडर कमजोर हुआ: देश में कांग्रेस का कैडर कमजोर हुआ है। 2010 तक पार्टी के सदस्यों की संख्या जहां चार करोड़ थी, वहीं, अब यह लगभग एक करोड़ से कम रह गई। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मणिपुर समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस में नेताओं की खींचतान का असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर पड़ा है।
3. कांग्रेस की 6 राज्यों में सरकार: कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और महाराष्ट्र में बची। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमलनाथ सरकार गिर गई।

 

 सोनिया गांधीः प्रधानमंत्री की विदेशी बहू से कांग्रेस की सबसे लंबी अवधि की अध्यक्ष रहने तक का सफर

फोटोग्राफर बलदेव कपूर ने राजीव गांधी और सोनिया गांधी को इंडिया गेट पर आइस्क्रीम का लुत्फ उठाते हुए कैमरे में कैद किया था। फोटो 1970 के दशक का है।

कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर सस्पेंस गहराता जा रहा है। इस सवाल का जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा। लेकिन यह तय है कि तब तक सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी। सोनिया 1998 में पहली बार पार्टी की अध्यक्ष बनी थी और 2017 तक उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन उन्होंने जुलाई-2019 के लोकसभा चुनावों के बाद पद से इस्तीफा दे दिया। तब से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं।

सोनिया गांधी पिछले कुछ समय से बीमारी की वजह से पार्टी की गतिविधियों में सक्रियता से भाग नहीं ले रही हैं। लेकिन, उनके नेतृत्व में ही पार्टी 2004 में सरकार बनाने में सफल हो सकी थी और 2009 में सत्ता में लौटी भी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी का अब तक राजनीतिक सफर…

कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान हुई थी राजीव से मुलाकात

  • सोनिया गांधी का पूरा नाम अन्टोनिया एड्विज अल्बीना मैनो है। 9 दिसंबर 1946 को इटली के लुसियाना में उनका जन्म हुआ। 1965 में ग्रीक रेस्तरां में राजीव गांधी से मुलाकात हुई थी, जो उस समय कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे। सोनिया वहां स्मॉल लैंग्वेज कॉलेज में पढ़ रही थी।
  • इसके तीन साल बाद यानी 1968 में राजीव और सोनिया की शादी हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों अनुसार हुई। इसके बाद सोनिया भारत आकर ससुराल में अपनी सास और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रहने लगी थीं। 1970 में राहुल और 1972 में प्रियंका का जन्म हुआ।
  • सोनिया और राजीव दोनों ही परिवार से जुड़े राजनीतिक करियर से दूर थे। राजीव पायलट थे और सोनिया घर में परिवार की देखभाल करती थीं। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव प्रधानमंत्री बने। सोनिया इस दौरान जनता के संपर्क से बचती रहीं।

पति की हत्या के बाद भी सियासत से दूर ही रहीं

कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता लेने के बाद सोनिया ने 1998 के चुनावों में पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी के साथ कैम्पेन में भाग लिया था। अगले साल यानी 1999 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा।
कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता लेने के बाद सोनिया ने 1998 के चुनावों में पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी के साथ कैम्पेन में भाग लिया था। अगले साल यानी 1999 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा।
  • राजीव गांधी की 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान बम ब्लास्ट के दौरान हत्या कर दी गई थी। तब भी सोनिया ने सियासत में रुचि नहीं ली। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। लेकिन 1996 तक कांग्रेस कमजोर होने लगी थी।
  • माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, ममता बनर्जी, जीके मूपनार, पी. चिदंबरम और जयंती नटराजन जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस के उस समय के अध्यक्ष सीताराम केसरी के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। पार्टी कई खेमों में बंट गई थी।
  • कांग्रेस को एकजुट करने के लिए 51 वर्ष की उम्र में सोनिया 1997 में पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं और 62 दिन बाद ही 1998 में अध्यक्ष भी बन गईं। तब से 2017 तक वे पार्टी की अध्यक्ष बनी रहीं। यह एक रिकॉर्ड है।
  • इस बीच, सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा गरमाया था। 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने इसी मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी। 1999 में ही सोनिाय ने बेल्लारी (कर्नाटक) और अमेठी (उत्तरप्रदेश) से चुनाव लड़ा और दोनों जगह चुनाव जीता भी।

अंतरात्मा की आवाज पर प्रधानमंत्री पद ठुकराया

  • 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तब कांग्रेस ने लेफ्ट सहित अन्य दलों को साथ लेकर यूपीए (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस) बनाया। उन्होंने मनमोहन सिंह को जिम्मेदारी सौंपी। खुद प्रधानमंत्री न बनने पर उन्होंने कहा कि “मैंने अंतरात्मा की आवाज सुनी है।’
  • 2004 में उन्होंने अमेठी सीट से अपने बेटे राहुल को चुनाव लड़वाया और खुद रायबरेली सीट पर शिफ्ट हो गईं। जहां से वह आज भी सांसद हैं। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर सोनिया ने 2006 में संसदीय सीट से इस्तीफा दिया और उपचुनाव में जीतकर भी आईं।
  • सोनिया की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति के कहने पर ही सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) कानून लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • दो अक्टूबर 2007 को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया। संयुक्त राष्ट्र ने 15 जुलाई 2007 को प्रस्ताव पारित किया और यह दिन अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
  • 2004, 2007, 2009 में सोनिया गांधी फोर्ब्स की दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल रहीं। वह दुनिया के 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में से एक थीं।
  • 2009 के आम चुनावों में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1991 के बाद पहली बार 200 से ज्यादा सीटें जीतीं और सत्ता में वापसी की। इस बार भी मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाया गया।
  • 2013 में सोनिया ने कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर लगातार 15 साल रहने का रिकॉर्ड बनाया। 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन (44 सीटें) किया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनीं।

विवादों से भी रहा करीब का नाता

  • 1980 में सोनिया इटली की नागरिक थी। इसके बाद भी उनका नाम दिल्ली की मतदाता सूची में दिखा, जो भारत में गैरकानूनी था। 1983 में उन्होंने इटली की नागरिकता छोड़ी और पूरी तरह भारतीय नागरिक बनीं।
  • 1990 के दशक में बोफोर्स कांड के क्वात्रोची से उनकी दोस्ती को लेकर भी सियासी आरोप उन पर लगे। क्वात्रोची भी इटली का व्यापारी था, जिस पर इन तोपों के लिए कमीशन खाने का आरोप था।

राहुल गांधीः अनिच्छुक नेता से पराजित योद्धा तक; 2009 के चुनावों से पहले कांग्रेस को एक बार रिवाइव किया, पार्टी को फिर उनसे ही उम्मीदें

राहुल गांधी ने पिछले साल लोकसभा चुनावों में हार के बाद जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से सोनिया गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं और पार्टी का कामकाज देख रही हैं।

ऐसे में कई नेता चाहते हैं कि सोनिया गांधी औपचारिक तौर पर अध्यक्ष पद संभाल लें या राहुल गांधी को दोबारा जिम्मेदारी सौंप दी जाए। कुछ नेता पार्टी के भीतर प्रियंका गांधी को भी मुख्य भूमिका में लाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, फिलहाल कोई भी आगे आकर जिम्मेदारी लेता नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस के अंदर एक तरह की बेचैनी दिख रही है।

राहुल गांधी ने पहले भी पार्टी के युवाओं को एकजुट किया है। उन्हें प्रेरित किया। 2009 में यूपीए की सत्ता में वापसी का श्रेय काफी हद तक उनकी नेतृत्व क्षमता को दिया गया था। ऐसे में, उनसे उम्मीद है कि वे वेंटिलेटर पर चल रही पार्टी में नई ऊर्जा भरें।

राहुल जिम्मेदारी लेंगे या नहीं, कुछ दिन में सामने आ ही जाएगा। लेकिन, राहुल के फैसले पर कांग्रेस का भविष्य टिका है। ऐसे में राहुल की मनोदशा समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि उनका अब तक व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन का सफर कैसा रहा है-

दादी-पिता की हत्या की वजह से पढ़ाई प्रभावित हुई

  • राहुल की परवरिश बहुत ही अलग माहौल में हुई। 19 जून 1970 को जब राहुल का जन्म हुआ तब उनकी दादी इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। लिहाजा, घर और परिवार का माहौल आम घरों जैसा तो बिल्कुल ही नहीं था।
दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल और प्रियंका।
दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल और प्रियंका।
  • शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में हुई और उसके बाद 1981 से 1983 तक देहरादून के दून स्कूल में। 14 साल के थे जब दादी की अक्टूबर 1984 में हत्या हो गई। रातोंरात पिता राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।
  • सुरक्षा की चिंता थी, लिहाजा पिता ने राहुल को घर बुला लिया। अब उनकी पढ़ाई अपनी बहन प्रियंका के साथ घर में ही हुई। दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। वहां से अमेरिका में हार्वर्ड भेज दिए गए।
1991 में पिता राजीव गांधी को मुखाग्नि देने के बाद राहुल।
1991 में पिता राजीव गांधी को मुखाग्नि देने के बाद राहुल।
  • जब 21 साल के थे, तब पिता की 1991 में बम ब्लास्ट में हत्या कर दी गई। फिर पढ़ाई प्रभावित हुई। सुरक्षा कारणों से राहुल को फ्लोरिडा जाना पड़ा और 1994 में रोलिंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। अगले साल कैम्ब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज से एम.फिल किया।
  • सियासत में आने की कतई इच्छा नहीं थी इसलिए पहले लंदन में मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मॉनिटर ग्रुप के साथ काम किया। भारत लौटे तो मुंबई में टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिंग फर्म बैकअप्स सर्विसेस प्रा.लि. बनाई। इसके डायरेक्टर भी रहे।

34 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने

2004 में राहुल अपनी मां सोनिया गांधी के साथ अमेठी में चुनाव प्रचार करते हुए।
2004 में राहुल अपनी मां सोनिया गांधी के साथ अमेठी में चुनाव प्रचार करते हुए।
  • राहुल गांधी की उम्र 28 साल की रही होगी, जब मां सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली थी। कांग्रेस में बार-बार मांग उठ रही थी कि राहुल को राजनीति में आना चाहिए। आखिर, 2004 में राहुल भी सियासत में आ गए।
  • उत्तरप्रदेश के अमेठी से सोनिया गांधी परिवार की परंपरागत सीट से सांसद थीं। उन्होंने राहुल के लिए पास की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। बड़ी आसानी से 34 साल की उम्र में राहुल अमेठी से सांसद बने।
  • लोकसभा चुनावों में भाजपा का इंडिया शाइनिंग कैम्पेन धरा का धरा रह गया। कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्ता पर कब्जा किया। राहुल फैक्टर भी ग्रांड ओल्ड पार्टी को मिली नई ताकत में महत्वपूर्ण रहा।

37 साल में महासचिव, 43 साल में बने उपाध्यक्ष

  • राहुल को काफी जल्दी यानी 37 साल की उम्र में ही पार्टी ने 24 सितंबर 2007 को महासचिव बनाया। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन और युवक कांग्रेस का प्रभारी बनाया। राहुल की सक्रियता से युवा कार्यकर्ताओं में नया जोश भी आया।
  • 2008 में युवा राजनीति में सुधार किया। युवा नेताओं के इंटरव्यू लिए। विस्तार के लिए 40 सदस्यों को युवक कांग्रेस से जोड़ा। पूरे देशभर में युवक कांग्रेस के सदस्यों में बढ़ोतरी हो रही थी। इसका फायदा अगले साल के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिला।
2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक रोड शो में लड़की ने इस अंदाज में राहुल के साथ सेल्फी ली थी।
2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक रोड शो में लड़की ने इस अंदाज में राहुल के साथ सेल्फी ली थी।
  • राहुल ने युवा ताकत का 2009 के लोकसभा चुनावों में बखूबी इस्तेमाल किया। 80 सीटों वाले उत्तरप्रदेश में लंबे अरसे बाद पार्टी ने 20 से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाया। 8 दिन पूरे देश का दौरा किया। 125 से ज्यादा रैलियां भी की। हर राज्य में सीटें बढ़ी थीं।
  • 2009 में कांग्रेस पहले से बड़ी ताकत के साथ सत्ता में लौटी। तब से ही लग रहा था कि मनमोहन सिंह की जगह कभी भी राहुल को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन, राहुल ने जिम्मेदारी संभालने में रुचि नहीं दिखाई। कई लोग चाह रहे थे कि वे मनमोहन कैबिनेट में मंत्री बनें, लेकिन वे इससे इनकार ही करते रहे।
  • कांग्रेस ने जनवरी 2013 में जयपुर में चिंतन बैठक की। इसमें पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का अनुरोध स्वीकार कर राहुल ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। उस समय वे 43 साल के थे। लोकसभा चुनावों से एक साल पहले राहुल को पार्टी का नंबर दो नेता बनाया गया। इससे पहले पार्टी में उपाध्यक्ष पद ही नहीं होता था।
  • उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल भावुक हो गए। उन्होंने भाषण में कहा था “बीती रात मेरी मां मेरे कमरे में आकर बैठी और वो रो रही थीं। वह समझती है कि जो सत्ता बहुत सारे लोग चाहते हैं, वह असल में जहर है।’
2013 में जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल और सोनिया गांधी।
2013 में जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल और सोनिया गांधी।

लोकसभा चुनावों के बाद कम होती गई लोकप्रियता

  • राहुल के सामने उपाध्यक्ष बनने के बाद पहली चुनौती थी- मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनाव। जिसमें कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। दिल्ली में भी 15 साल का राज खत्म हो गया था। इस बैकग्राउंड में राहुल की चमक फीकी पड़ने लगी थी।
  • 2014 में राहुल का सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी से था। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू हो चुका था। टाइम्स नाऊ को दिए एक इंटरव्यू के बाद उन्हें ‘पप्पू’ कहा गया जबकि जवाब में कांग्रेस समर्थकों ने मोदी को ‘फेकू’ कहकर संबोधित किया।
  • राहुल ने 2014 चुनावों में अमेठी में स्मृति ईरानी को हराया। केंद्र में कांग्रेस 44 सीटों के साथ अपने सबसे कमजोर परफॉर्मेंस की वजह से सत्ता गंवा बैठी थी। मोदी सरकार के आने के बाद से ही कांग्रेस की परफॉर्मेंस में गिरावट आने लगी थी। असम, केरल, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे गढ़ भी कांग्रेस के हाथ से छिटक गए।
उत्तरप्रदेश में बहन प्रियंका के साथ रोड शो करते राहुल गांधी।
उत्तरप्रदेश में बहन प्रियंका के साथ रोड शो करते राहुल गांधी।
  • 11 दिसंबर 2017 को सर्वसम्मति से 47 वर्षीय राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उम्मीद थी कि इससे कांग्रेस अपने सबसे कमजोर प्रदर्शन से आगे बढ़ेगी। कुछ हद तक फायदा भी हुआ। 2018 में कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रहीं।
  • गुजरात में भी राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा को काफी परेशान किया। 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने केरल की वायनाड संसदीय सीट से जीत हासिल की, लेकिन अमेठी की परंपरागत सीट पर वे स्मृति ईरानी से हार गए।
  • 3 जुलाई 2019 को उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी ली और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। तब उनकी मां सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। तब से अब तक कांग्रेस में कोई बदलाव नहीं आया है।

खुद ही विवादों को न्योता भी देते रहे हैं राहुल

  • राहुल ने इस दौरान कुछ राजनीतिक आंदोलन भी खड़े किए। 2011 में भट्टा-पारसौल में किसानों के जमीन अधिग्रहण का मामला हो या विदर्भ की कलावती की कहानी संसद में सुनाने तक, राहुल ने एक अलग छवि प्रस्तुत की है।
जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के बीच पहुंच गए थे राहुल गांधी।
जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के बीच पहुंच गए थे राहुल गांधी।
  • संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने वाले बिल का मसला हो या समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 हटाने के मुद्दे, वे मजबूती के साथ जनभावना के साथ खड़े रहे। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण कानून के मामले में वे सख्त नेता के तौर पर नजर आए।
  • राहुल अपने बयानों को लेकर विवादों से भी घिरे रहे। 2011 में कहा कि जनलोकपाल बिल से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। फिर 2013 में इलाहाबाद की रैली में गरीबी को मानसिकता बता दिया। इतना ही नहीं, मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर कहा कि आईएसआई दंगा-प्रभावित युवाओं की भर्ती कर रही है।
  • सूट-बूट सरकार, अच्छे दिन सरकार हो या जुमलों की सरकार, राहुल गांधी का मोदी सरकार पर हर एक हमला चर्चाओं में रहा है। सियासत में परिवारवाद के मुद्दे पर स्पष्ट तौर पर बचाव करते दिखते हैं। लेकिन, पिछले कुछ समय में उनके नेतृत्व में पार्टी में युवा नेताओं की अनदेखी एक बड़ा मुद्दा रही है। फिर चाहे बात ज्योतिरादित्य सिंधिया की हो या सचिन पायलट की।
कांग्रेस के एक सम्मेलन में मां सोनिया गांधी के साथ राहुल।
कांग्रेस के एक सम्मेलन में मां सोनिया गांधी के साथ राहुल।
  • राहुल पर शुरू से ही एक अनिच्छुक या रिलक्टेंट नेता के तौर पर आरोप लगते रहे हैं, जो जिम्मेदारी लेने से बचता है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी विदेश यात्राएं भी चर्चाओं में रही हैं। कहा जाता है कि जब राहुल की जरूरत भारत में होती है, तब वे विदेश दौरे पर होते हैं। इसमें उनका चर्चित ‘अध्ययन अवकाश’ भी शामिल रहा है।

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