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ई-कॉमर्स साइट्स पर 40% रिव्यू फर्जी:फेक रिव्यू करने वालों के वॉट्सऐप ग्रुप में घुसकर पड़ताल, जानिए कैसे काम करता है रैकेट; नकली रिव्यू की पहचान के 3 तरीके

70% लोग ऑनलाइन रिव्यूज पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं मुफ्त प्रोडक्ट, कमीशन या पैसे देकर करवाए जाते हैं फेक रिव्यू

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ऑनलाइन खरीदारी करते वक्त आपने भी सामान की रेटिंग और रिव्यू जरूर देखा होगा। एक सर्वे के मुताबिक 70% भारतीय इन रिव्यूज पर आंख मूंदकर भरोसा कर लेते हैं। इससे वो धोखे का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि ई-कॉमर्स साइट पर मौजूद करीब 40% रिव्यू फेक होते हैं।

फेक रिव्यूज की समस्या इसलिए बड़ी है, क्योंकि भारत का ई-कॉमर्स बाजार करीब 4 लाख करोड़ रुपए का है। अगले पांच सालों में इसके 15 लाख करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। 2024 तक कुल रिटेल बिजनेस में ऑनलाइन हिस्सेदारी 10% से ज्यादा हो जाएगी।

फेक रिव्यूज के पूरे मसले को समझने के लिए हमने हाल ही में प्रकाशित कुछ रिसर्च और रिपोर्ट को पढ़ा। इसके अलावा टेलीग्राम और वॉट्सऐप में चल रहे फेक रिव्यूज के धंधे की पड़ताल की।

हम यहां खुलासा कर रहे हैं कि ऑनलाइन बाजार में फेक रिव्यूज का धंधा कैसे चलता है? कंज्यूमर कोई सामान खरीदते वक्त फेक रिव्यू की पहचान कैसे कर सकते हैं? फेक रिव्यूज से कंपनियों को क्या नुकसान होता है और इससे निपटने के लिए अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां क्या कर रही हैं?

सोशल मीडिया पर दर्जनों ग्रुप, पैसे के बदले रेटिंग का खेल
फेक रिव्यू कैसे किए जाते हैं, ये जानने के लिए भास्कर ने पड़ताल की। हमने टेलीग्राम पर सर्च किया- ‘Amazon Product Review’। सामने दर्जनों ग्रुप खुलकर आ गए। Best Products Review नाम के एक ग्रुप में हम दाखिल हुए। इसमें 1477 मेंबर्स थे। यहां फेक रिव्यू करने के लिए कई तरह के ऑफर्स मौजूद थे।

हमने ग्रुप के एडमिन को मैसेज किया कि हम भी फेक रिव्यू के जरिए पैसे कमाना चाहते हैं। ‘Raw’ यूजरनेम वाले एडमिन ने हमें एक वॉट्सऐप ग्रुप जॉइन करने का लिंक भेजा। वॉट्सऐप ग्रुप में फेक रिव्यू करने के लिए कुछ शर्तें लिखी हुई थीं।

ग्रुप जॉइन करते ही वहां एक पोस्ट आई। पोस्ट में एक हैंगर की फोटो के साथ लिखा था- ‘प्रोडक्ट की कीमत 499 रुपए। पूरा पैसा रिफंड कर दिया जाएगा।’ इसके अलावा कोई लिंक नहीं था। हमने एकबार फिर एडमिन को मैसेज किया कि हम इस फील्ड में नए हैं। पूरा प्रॉसेस बताओ। एडमिन ने एक वॉइस नोट भेजा कि चिंता मत करो हम आपको एक्सपर्ट बना देंगे।

हमें पता चला कि फेक रिव्यू ग्रुप में रोजाना दर्जनों ऐसी डील आती हैं। इसमें ज्यादातर तीन तरह के ऑफर होते हैं। पहला, आप प्रोडक्ट खरीदकर फाइव स्टार रेटिंग देते हैं और आपका पैसा रिफंड कर दिया जाता है। दूसरा, आपसे कोई प्रोडक्ट ऑर्डर करवाया जाता है लेकिन बदले में छाता वगैरह भेज दिया जाता है। लेकिन रेटिंग आपको उसी प्रोडक्ट की करनी होती है जो आपने ऑर्डर किया है। तीसरा, आपको किसी प्रोडक्ट पर एक्स्ट्रा डिस्काउंट दिया जाता है जिसे पाने के लिए आपको अच्छी रेटिंग की शर्त रख दी जाती है।

आमतौर पर ऐसी पोस्ट में सेलर्स सीधे प्रोडक्ट का लिंक नहीं देते। वो चाहते हैं कि रिव्यू करने वाला सर्च करके उस प्रोडक्ट को खरीदे। इससे प्रोडक्ट की रैंकिंग में सुधार होता है।

फेसबुक पर भी फेक रिव्यूज करने वाले ग्रुप्स का बड़ा बाजार
जनवरी 2021 में ‘द मार्केट फॉर फेक रिव्यूज’ नाम से एक स्टडी सामने आई। इसमें फेसबुक पर फेक रिव्यू के लिए बने ग्रुप्स को खंगाला गया। 4 महीने चली स्टडी में रोज ऐसे 23 ग्रुप सामने आए। इनमें औसत 16 हजार मेंबर जुड़े थे और 568 फेक रिव्यूज की रिक्वेस्ट पोस्ट की जाती थी।

कुछ प्रोफेशनल्स भी फेक रिव्यूज के जरिए प्रोडक्ट की रैंकिंग सुधारने का दावा करते हैं। पड़ताल के दौरान हम Fiverr नाम की वेबसाइट पर पहुंचे, जो फ्रीलांसर मुहैया कराती है। यहां सर्च बॉक्स में हमने ‘Review’ टाइप किया और कई तरह के फ्रीलांसर दिखे। इनमें से कई रेटिंग बढ़ाने का दावा करते हैं।

यूके में ग्राहक अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन Which? ने 2020 में एक इन्वेस्टिगेशन की। इसमें ऐसी कई कंपनियों का खुलासा किया, जो अमेजन पर प्रोडक्ट को बूस्ट करने के लिए फेक रिव्यूज मुहैया कराती हैं। इसके लिए महंगी फीस भी वसूलती हैं। ये अमेजन की गाइडलाइन्स के खिलाफ है, जिसमें रिव्यू के लिए थर्ड पार्टी को पैसे नहीं दिए जा सकते।

ऐसे कर सकते हैं असली और नकली रिव्यू की पहचान
ज्यादातर फेक रिव्यूज की पहचान आप खुद कर सकते हैं। ऐसे रिव्यूज में फाइव स्टार रेटिंग के साथ ‘Too Good’ या ‘I like It’ जैसी लाइन लिखी होती है। इसके अलावा एक प्रोडक्ट पर एक ही वक्त में बहुत ज्यादा रिव्यू दिख रहे हैं तो हो सकता है कि वे फर्जी हों। ऐसे रिव्यू पर प्रोडक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती। ये व्याकरण संबंधी गलतियां भी करते हैं।

इसके अलावा कुछ ऐसी वेबसाइट्स हैं जो फेक रिव्यूज पहचानने में मदद करती हैं। ये रिव्यू की भाषा, पिछले रिव्यू और खरीदारी की हिस्ट्री के हिसाब से पता लगाते हैं कि इसके रिव्यू असली हैं या नकली। नीचे ऐसी ही कुछ वेबसाइट बता रहे हैं…

फेक रिव्यूज के नुकसान और इनसे कैसे निपट रही हैं कंपनियां
फेक रिव्यूज देखकर लोग खराब प्रोडक्ट खरीद लेते हैं। इसका असर प्रोडक्ट की रैंकिंग पर पड़ता है। मसलन किसी प्रोडक्ट की रेटिंग ज्यादा और रिव्यू अच्छे हैं तो सर्च इंजन में वो ऊपर फीचर होने लगेगा। इसका नुकसान अच्छे प्रोडक्ट और बाकी कंपनियों को उठाना पड़ता है। इसके अलावा रिव्यूज पर धीरे-धीरे ग्राहकों का भरोसा कम होने लगता है।

हॉर्वर्ड बिजनेस रिव्यू की एक रिपोर्ट के मुताबिक अपने प्लेटफॉर्म पर धोखाधड़ी और फेक रिव्यूज से निपटने के लिए अमेजन ने सिर्फ 2019 में 3.7 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं और 8 हजार से ज्यादा लोगों को काम पर लगाया है। स्टडी के मुताबिक अमेजन ऐसे 40% फेक रिव्यूज को डिलीट भी कर देता है, लेकिन इस पूरे प्रॉसेस में 100 दिन लग जाते हैं। किसी प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ाने के लिए इतना वक्त काफी है।

अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों में फेक रिव्यू को लेकर गाइडलाइन्स हैं। अमेजन आपको फेक रिव्यू को रिपोर्ट करने का भी विकल्प देता है। जो रिव्यू आपको भ्रामक लग रहा है उसे रिपोर्ट कर सकते हैं। 2015 में कंपनी ने 1,114 रिव्यू करने वालों के खिलाफ गलत, भ्रामक और अन-वेरिफाइड रिव्यू के लिए कार्रवाई की थी।

हाल ही में अमेजन ने फेक रिव्यू के खिलाफ कदम उठाते हुए करीब 20,000 रिव्यू डिलीट किए। इसी तरह फ्लिपकार्ट भी कार्रवाई कर चुका है। अप्रैल 2020 में यूके की एक इन्वेस्टिगेशन के बाद फेसबुक ने भी फेक रिव्यूज से जुड़े 16 हजार ग्रुप्स को हटाया था।

फेक रिव्यूज करने वालों ने कंपनियों की इन गाइडलाइंस का भी तोड़ निकाल लिया है। फेक रिव्यू असली लगे और कंपनियों की पकड़ में न आए इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कम से कम 1500 की शॉपिंग, डिलीवरी के 2-3 दिन बाद रिव्यू जैसी शर्तें उसी का नतीजा हैं।

फेक रिव्यूज का ये धंधा इसलिए भी ज्यादा फल-फूल रहा है क्योंकि सिर्फ 3% से 4% असली ग्राहक ही रिव्यू लिखते हैं। क्या आपको याद है आपने प्रोडक्ट खरीदने के बाद आखिरी बार उसका रिव्यू कब लिखा था? लिखना शुरू कीजिए क्योंकि जब असली रिव्यूज की बढ़ेंगे तभी तो नकली का असर कम होगा।

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