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4 घंटे चक्काजाम के बाद शाह मैदान में:गृह मंत्री की किसान नेताओं से पहली मुलाकात जारी, प्रदर्शनकारी बोले- हां या ना में जवाब चाहिए नई

कृषि कानूनों पर फैसले की तैयारी:शाह की किसान नेताओं से पहली बैठक जारी, कल छठवें राउंड की बातचीत से पहले कैबिनेट मीटिंग

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कृषि कानूनों के खिलाफ 12 दिन से आंदोलन कर रहे किसान नेताओं से गृह मंत्री अमित शाह पहली बार मुलाकात कर रहे हैं। 13 किसान नेता ICAR भवन में गृह मंत्री से मुलाकात कर रहे हैं। हालांकि, आज किसानों ने भारत बंद बुलाया था। किसानों ने शाह से मुलाकात से पहले कहा था कि कोई बीच का रास्ता नहीं है। हमें गृह मंत्री से हां या ना में जवाब चाहिए। टिकरी बॉर्डर पर किसानों ने कहा था कि कानून वापसी से कम कुछ मंजूर ही नहीं है। किसानों से बातचीत की अगला राउंड बुधवार को होगा। किसान छठवीं बार सरकार के सामने अपनी बात रखेंगे।

ये 13 नेता शाह के साथ मीटिंग कर रहे
किसान नेता हनन मुला, शिवकुमार कक्का, बलवीर सिंह राजेवाल, राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, जगजीत सिंह, मंजीत सिंह राय, बोध सिंह मानसा, रुलदू सिंह, बूटा सिंह, शिव कुमार, दर्शन पाल और हरिंदर सिंह गृह मंत्री के साथ बैठक में शामिल हुए हैं।

इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के घर जाकर मुलाकात की है। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, यह अभी पता नहीं चल पाया है।

किसान अड़े- तीनों कानून रद्द हों
टिकरी बॉर्डर पर किसानों के मंच के पास भारी भीड़ है। दिल्ली को रोहतक से जोड़ने वाले इस हाईवे पर कई किलोमीटर तक ट्रैक्टर ट्रॉलियां खड़े हैं। सड़क के दोनों ओर किसान अपनी यूनियन के झंडे लिए नारेबाजी करते हुए चल रहे हैं। सभी किसानों का यही कहना है कि तीनों कानून रद्द करने से कम वो किसी बात पर नहीं मानेंगे।

हरियाणा के 1.20 लाख किसानों ने सरकार का समर्थन किया
सरकार से चर्चा से पहले हरियाणा के किसान दो गुटों में बंट गए हैं। 1.20 लाख किसानों ने सरकार को चिट्ठी लिखकर कृषि कानूनों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि नए कानूनों को वापस नहीं लेना चाहिए। हरियाणा के फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशंस (FPOs) से जुड़े किसानों ने यह बात कही है। हालांकि, उन्होंने किसानों के सुझावों के मुताबिक कानूनों में संशोधन करने की सिफारिश की है।

हरियाणा-दिल्ली के 4 बॉर्डर बंद
13 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों से दिल्ली चौतरफा घिर चुकी है। हरियाणा से लगते दिल्ली के 4 बॉर्डर- टिकरी, सिंघु, झारोदा और धनसा पूरी तरह बंद हैं। 2 बॉर्डर सिर्फ हल्के वाहनों के लिए खुले हैं।​​​

कल छठवें राउंड की बातचीत से पहले कैबिनेट मीटिंग

कृषि बिलों के खिलाफ किसान 13 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। फोटो टिकरी बॉर्डर की है।

कृषि कानूनों पर फैसले के आसार नजर आ रहे हैं, क्योंकि 12 दिन से आंदोलन कर रहे किसान नेताओं से पहली बार गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को मुलाकात की। ICAR भवन में चल रही इस मीटिंग में 13 किसान नेता पहुंचे हैं। कल यानी बुधवार को किसानों और सरकार के बीच छठवें राउंड की बातचीत होनी है और इससे पहले ही कैबिनेट की मीटिंग भी बुलाई गई है। माना जा रहा है कि किसान आंदोलन को लेकर कोई फैसला भी हो सकता है।

हालांकि, किसानों का कहना है कि कोई बीच का रास्ता नहीं है। हमें गृह मंत्री से हां या ना में जवाब चाहिए। टिकरी बॉर्डर पर किसानों ने कहा था कि कानून वापसी से कम कुछ मंजूर ही नहीं है।

ये 13 नेता शाह के साथ मीटिंग कर रहे
किसान नेता हनन मुला, शिवकुमार कक्का, बलवीर सिंह राजेवाल, राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, जगजीत सिंह, मंजीत सिंह राय, बोध सिंह मानसा, रुलदू सिंह, बूटा सिंह, शिव कुमार, दर्शन पाल और हरिंदर सिंह गृह मंत्री के साथ बैठक में शामिल हुए हैं।

इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के घर जाकर मुलाकात की है। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, यह अभी पता नहीं चल पाया है।

नों कानून रद्द करने से कम वो किसी बात पर नहीं हरयाणा-दिल्ली के 4 बॉर्डर बंद

13 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों से दिल्ली चौतरफा घिर चुकी है। हरियाणा से लगते दिल्ली के 4 बॉर्डर- टिकरी, सिंघु, झारोदा और धनसा पूरी तरह बंद हैं। 2 बॉर्डर सिर्फ हल्के वाहनों के लिए खुले हैं।​​

जब देश बंद, तब सिंघु बॉर्डर खुला:सिंघु बॉर्डर पर बिलकुल मेले जैसा माहौल, रोज की तरह लंगर शुरू हुए

सबसे ज्यादा भीड़ खालसा एड के स्टॉल पर नजर आ रही हैं क्योंकि यहां कभी काजू-बादाम के पैकेट बंट रहे हैं। प्रदर्शनकारियों के लिए तौलिए-चप्पल, साबुन और मास्क जैसी चीजें भी बंट रही हैं।
  • पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड के एक तरफ सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं
  • दूसरी तरफ किसानों की मीलों लंबी कतार है, इसके आसपास ‘संघर्ष का जश्न’ जारी

दिल्ली से हरियाणा को जोड़ने वाला सिंघु बॉर्डर बीते एक पखवाड़े से बंद है। हरियाणा और पंजाब से आए किसानों के लिए यही जगह सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल बनी हुई है। लेकिन किसानों के समर्थन में जब आज पूरा भारत बंद है तो इसी सिंघु बॉर्डर पर बिलकुल मेले जैसा माहौल बना हुआ है। लगभग सारी दुकानें बंद हो चुकी हैं मगर लंगरों के चलते कहीं कोई कमी नहीं दिखाई पड़ रही।

आज सुबह से ही सिंघु बॉर्डर पर रोज की तरह लंगर शुरू हो गए हैं। कहीं गोभी के पराठे बनाए जा रहे हैं, कहीं सैंडविच बन रहे तो कहीं पूड़ी-सब्जी का लंगर बांटा जा रहा है। अलग-अलग संस्थाओं की ओर से यहां आए किसानों के लिए कई तरह की चीजें वितरित की जा रही हैं।

पूरे भारत में जहां आज सड़कें लगभग सुनसान नजर आ रही हैं, वहीं सिंघु बॉर्डर पर आज सड़क में पैर रखने की भी जगह नहीं है।
पूरे भारत में जहां आज सड़कें लगभग सुनसान नजर आ रही हैं, वहीं सिंघु बॉर्डर पर आज सड़क में पैर रखने की भी जगह नहीं है।

पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड के एक तरफ सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं और दूसरी तरफ किसानों की मीलों लंबी कतार है। किसानों की इस कतार के आस-पास ही ‘संघर्ष का जश्न’ चल रहा है, जो बिलकुल किसी मेले जैसा लग रहा है। हर थोड़ी दूरी पर एक स्टॉल लगा था और हर स्टॉल पर लोगों की भीड़ थी। पूरे भारत में जहां आज सड़कें लगभग सुनसान नजर आईं, वहीं सिंघु बॉर्डर पर आज सड़क में पैर रखने की भी जगह नहीं है।

हर थोड़ी दूरी पर एक स्टॉल लगा था और हर स्टॉल पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी।
हर थोड़ी दूरी पर एक स्टॉल लगा था और हर स्टॉल पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी।

सबसे ज्यादा भीड़ खालसा एड के स्टॉल पर नजर आ रही हैं क्योंकि यहां कभी काजू-बादाम के पैकेट बंट रहे हैं, कभी देशी घी की बनी पिन्नियाँ तो कभी प्रदर्शनकारियों के लिए तौलिए-चप्पल, साबुन और मास्क जैसी चीजें बंट रही हैं। दिलचस्प ये भी है प्रदर्शन स्थल पर लंगर खाने वालों में जितनी संख्या बाहर से आए किसानों की है लगभग उतनी ही संख्या आस-पास के गांव से पहुंचे लोगों और बच्चों की भी है।

सिंघु बॉर्डर पर दुकानें भी बाकी दिनों की तरह खुली ही नजर आती हैं। हालांकि, यहां कई दुकानें आज भारत बंद के चलते बंद की गईं लेकिन कई दुकानदार ऐसे भी थे जिन्होंने पहले प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुविधा के लिए ही आज भी दुकानें खुली रखी थीं मगर बाद में बंद कर दी।

कई दुकानदार ऐसे भी थे जिन्होंने प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुविधा के लिए ही आज भी दुकानें खुली रखी थीं।
कई दुकानदार ऐसे भी थे जिन्होंने प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुविधा के लिए ही आज भी दुकानें खुली रखी थीं।

मोबाइल चार्जर और केबल की स्टॉल लगाने वाले संतोष का कहना था, ‘यहां जो लोग आए हैं वो कई दिन पहले घरों से निकले थे और कई लोग अपना चार्जर या केबल लेकर नहीं आए हैं। इन चीजों की जरूरत आजकल सबसे ज्यादा होती है। किसानों की सुविधा के लिए ही मैंने यहां स्टॉल लगाया।’

मोबाइल चार्जर और केबल की स्टॉल लगाने वाले संतोष का कहना था, ‘किसानों की सुविधा के लिए ही मैंने यहां स्टॉल लगाया।’
मोबाइल चार्जर और केबल की स्टॉल लगाने वाले संतोष का कहना था, ‘किसानों की सुविधा के लिए ही मैंने यहां स्टॉल लगाया।’

संतोष की तरह ही सोनू ने ही अपनी दुकान आज खुली रखी थी जो नाई का काम करते हैं। हालांकि, सोनू ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने उन्हें दुकान बंद करने को कहा था। अगर किसान आपत्ति करेंगे तो वे तुरंत ही अपनी दुकान बंद कर देंगे।

सोनू बताते हैं कि प्रदर्शनकारियों ने उन्हें दुकान बंद करने को कहा था। अगर किसान आपत्ति करेंगे तो वे तुरंत ही अपनी दुकान बंद कर देंगे।
सोनू बताते हैं कि प्रदर्शनकारियों ने उन्हें दुकान बंद करने को कहा था। अगर किसान आपत्ति करेंगे तो वे तुरंत ही अपनी दुकान बंद कर देंगे।

दिन चढ़ने के साथ-साथ सिंघु बॉर्डर पर भीड़ भी लगातार बढ़ रही है। किसान नेता मंच से लोगों को सं‍बोधित कर रहे हैं और सैकड़ों किसान गुनगुनी धूप में बैठकर उनकी बातें को ध्यान से सुन रहे हैं। सुबह जहां पूरे माहौल में धार्मिक संगीत और गुरु वाणी के स्वर सुनाई दे रहे थे वहीं अब आंदोलन के नारे चारों तरफ गूंजने लगे हैं। यहां आए किसानों में इस बात का जोश भी खूब दिखता है कि देश के कोने-कोने से भारत बंद को समर्थन मिल रहा है।

धरना है या लंगर:दिल्ली में किसान आंदोलन- कहीं रोटी पक रही, कहीं चाय-दूध उबल रहा, पंगत में बैठे लोग ले रहे प्रसाद

धरने पर बैठे किसानों की तैयारी पूरी है और देश-दुनिया से हर तबके का समर्थन भी मिल रहा है।
  • 24 घंटे से बंद हाइवे बना प्ले ग्राउंड, जहां दौड़ती थीं गाड़ियां, वहां खेल रहे बच्चे

 सड़क पर चूल्हा जल रहा है, जिस पर रोटियां पक रही हैं। लोग पंगत में बैठकर खा रहे हैं। बगल में दूध और चाय भी उबल रही है। नहाने के लिए पानी के टैंकर लगे हैं। जिला अस्पताल के डॉक्टरों की टीम नेशनल हाइवे नंबर-19 पर धरना देकर बैठे किसानों का हेल्थ चेकअप कर रही है। स्कूली बच्चे व युवा धरने पर बैठे किसानों में जोश भर रहे हैं।

ये नजारा पलवल में KMP-KJP चौक पर नेशनल हाइवे नंबर-19 का है, जो पिछले 24 घंटे से बंद पड़ा है। धरने पर बैठे किसानों की तैयारी पूरी है और देश-दुनिया से हर तबके का समर्थन भी मिल रहा है। देखना है कि यह लड़ाई कब और किस मुहाने पर होती है। नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के 12वें दिन सोमवार को कई रंग दिखाई दिए। एक तरफ हजारों किसान चौक पर डटे रहे। वहीं, देशभर मजदूर, व्यापारी व राजनीतिक दलों के नेता एक सुर में कह रहे हैं कि हम किसानों के भारत बंद को समर्थन देते है।

नेशनल हाइवे दोनों ओर से बंद

KMP-KJP चौक के पास आंदोलन के कारण बंद नेशनल हाइवे-19 पर आसपास के गांवों के युवा क्रिकेट खेलने लगे हैं। आंदोलन के कारण जिला पुलिस ने नेशनल हाइवे को बंद कर दिया है। वाहन चालकों व लोगों से पुलिस व प्रशासन की तरफ से अपील की गई कि वे पलवल वाया हथीन होडल जाएं व होडल से वाया हथीन पलवल आएं।

हाइवे पर धरना स्थल के बीचों-बीच पंगत में बैठकर आंदोलनकारी किसान लंगर खाते हुए
हाइवे पर धरना स्थल के बीचों-बीच पंगत में बैठकर आंदोलनकारी किसान लंगर खाते हुए

चौक पर चल रहा लंगर

धरना स्थल पर किसानों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। कोई भूखा न रहे, इसके लिए लंगर चल रहे हैं। दूध, बादाम और किशमिश मुफ्त बांटे जा रहे हैं। कई गुरुद्वारों से लंगर पार्टियां यहां पहुंच चुकी हैं, जो लोगों के लिए सुबह, दोपहर व शाम का खाना बना कर दे रहे हैं। ट्रैक्टर और ट्रालियां किसानों के अस्थायी घर बन गए हैं। इलाज के लिए डॉक्टरों की टीम मौके पर मौजूद है।

क्या कहते है आंदोलनकारी किसान

मध्य प्रदेश के ग्वालियर से आए किसान सुरेंद्र सिंह सिंधु कहते हैं कि यहां का माहौल अब कस्बे जैसे हो गया है, जहां सारी चीजों की व्यवस्था है। खाने-पीने की कोई कमी नहीं है। दवाओं और डॉक्टरों की कमी नहीं है। यहां का पूरा माहौल एक मेले जैसा हो गया है। संघर्ष है, लेकिन संघर्ष में भी एक जश्न होता है जो यहां देखा जा सकता है।

बुंदेलखंड के किसान विमल कुमार शर्मा कहते हैं कि हम बुंदेलखंड के करीब पांच सौ किसान एक साथ यहां आए हैं। ये सच है कि यहां ज्यादा संख्या मध्यप्रदेश के किसानों की है, लेकिन उसका एक कारण उनकी जिले से नजदीकी भी है।

मध्यप्रदेश के किसान निहाल सिंह गुर्जर कहते हैं कि आंदोलन जितना पंजाब के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही हमारे लिए भी है। हम सभी किसानों को एक साथ एकजुट होकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाना होगा, तभी सरकार झुकेगी।सरकार को झुकाए बिना हम वापस नहीं लौटेंगे।

किसान आंदोलन: सिंघु बार्डर के दो तरफ दो दुनिया हैं, यह बॉर्डर युद्ध का मैदान न बने, इ​सलिए सिखों की मिसली फौज बीच में खड़ी

मिसली सैनिक कहते हैंं, ‘यह धर्म की लड़ाई नहीं हैं। ये सच की लड़ाई है, हक की लड़ाई है।’
  • मिसली सैनिक कहते हैं – जब राजा चोर हो जाए तो पब्लिक को तो सड़क पर आना ही पड़ता है
  • वे कहते हैं- यह लड़ाई का मौसम नहीं है, यह सच और हक की बात करने का मौसम है

सिंघु बॉर्डर जिसकी पहचान हरियाणा और दिल्ली के बीच एक टोल नाके की थी, अब भारत में किसान आंदोलनों के इतिहास में दर्ज हो गया है। इसके एक तरफ दिल्ली पुलिस, ITBP, CRPF, CISF, BSF, RAF के जवान मुस्तैद खड़े हैं। उनके हाथों में ऑटोमैटिक बंदूकें हैं, सिर पर हेलमेट हैं और बॉडी पर आर्मगार्ड्स हैं। दूसरी तरफ हरियाणा, पंजाब और देश के दूसरे हिस्सों से आए किसान हैं जिन्होंने नेशनल हाईवे 44 पर डेरा डाल दिया है।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन को अब 12 दिन हो चुके हैं। हर बीतते दिन के साथ एक तरफ सुरक्षाबलों की तादाद बढ़ती गई है तो दूसरी तरफ किसानों की। बॉर्डर से दिल्ली की तरफ करीब एक किलोमीटर तक सिर्फ सुरक्षाबल ही नजर आते हैं।

सिंघु बॉर्डर के दोनों तरफ दो दुनिया हैं। एक सत्ता की, सरकार की दुनिया जिसके पास ताकत है, हथियार हैं, जवान हैं। दूसरी तरफ जनता की, देश की दुनिया, जहां आम लोग हैं जो ‘अपने हक’ मांग रहे हैं। और बीच में कंटीली तारों, भारी सीमेंट के स्लैब और रेत से भरे ट्रकों की दीवार है।

किसान क्यों और किनके लिए कर रहे आंदोलन, पढ़ें ये रिपोर्ट

बाॅर्डर के दो तरफ दो अलग-अलग सरकारें भी हैं। एक दिल्ली सरकार और एक हरियाणा सरकार। दिल्ली सरकार ने अपनी ओर अस्थाई टॉयलेट की एक लंबी कतार खड़ी की है। ये टॉयलेट साफ हैं और यहां इक्का-दुक्का लोग ही आ रहे हैं। दिल्ली सरकार किसानों के साथ खड़े होने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है।

दूसरी तरफ हरियाणा सरकार है। अधिकतर किसान हरियाणा की जमीन पर ही बैठे हैं। इस सरकार ने किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने की हर संभव कोशिश की। भारी पुलिस लगाई, बैरिकेड लगाए, सड़कें खोद दीं, किसानों पर पानी की बौछारें की। जो कुछ बस में था वह किया, लेकिन किसानों को दिल्ली पहुंचने से नहीं रोक पाई। यह विडंबना ही है कि हरियाणा की जमीन पर बैठे किसान शौच करने के लिए दिल्ली आ रहे हैं, क्योंकि उस तरफ उनके लिए कोई इंतजाम नहीं हैं।

मजदूरों के भूखे बच्चों के लिए आंदोलन स्थल एक मेला है और वे चाहते हैं कि यह मेला यू हीं चलता रहे।
मजदूरों के भूखे बच्चों के लिए आंदोलन स्थल एक मेला है और वे चाहते हैं कि यह मेला यू हीं चलता रहे।

बॉर्डर के दाईं और बाईं तरफ दो गांव भी हैं। एक तरफ सिंघु गांव और दूसरी तरफ कुंडली। यहां पास ही नरेला औद्योगिक क्षेत्र भी है और मजदूरों की बस्तियां भी। मजदूरों के भूखे बच्चों के लिए आंदोलन स्थल एक मेला है और वे चाहते हैं कि ये मेला यू हीं चलता रहे।

दिसंबर की सर्दी में बस शर्ट पहने इन बच्चों के चेहरों पर चौड़ी मुस्कानें हैं। वे कहीं चाय पी रहे हैं, कहीं दूध और कहीं लंगर छक रहे हैं। बीते दस-बारह दिनों में उन्होंने इतना खा-पी लिया है जितना महीने भर में उन्हें नहीं मिलता है।

तिलक नगर की रहने वाली रूपिंदर कौर ने अपनी गली में दो बार चालीस-चालीस हजार रुपए जुटाए हैं। इन पैसों का सामान खरीदकर वे आंदोलन स्थल पर बांटने आई हैं। वे बोरी खोलती ही हैं कि भीड़ उन्हें घेर लेती है। इस भीड़ में अधिकतर लोग आसपास के मजदूर हैं।

दो बुजुर्ग महिलाएं अपने नाती-पोतों के साथ आई हैं। एक कहती है, ‘हम यहां रोज आते हैं, खाना मिलता है, जितना मर्जी खाओ, पेट भरकर खाओ, कोई नहीं रोकता, जो सामान मिलता है घर ले जाते हैं।’ वे अपनी बात पूरी भी नहीं कर पातीं की दूसरी कहती है, ‘उधर चलो, वहां कुछ बढ़िया मिल रहा है।’

किसानों के ट्रैक्टर ट्रॉली अब उनका घर बन गए हैं। इनकी लंबी कतार वहां तक जाती हैं जहां तक पैदल चलकर पहुंचना संभव नहीं है। ट्रॉलियों के बीच में तिरपाल डालकर आंगन बना लिए गए हैं, यहीं रसोई भी सजी हैं जिनमें सामान की कोई कमी नहीं हैं। खाने-पीने का सामान इतना है कि रखने की जगह कम पड़ जाती है।

हरियाणा से आए एक किसान कहते हैं, 'सरकार अगर पीछे हटती है तो इसमें उसकी भलाई ज्यादा है, हमने सरकार को विचार करने के लिए इतना टाइम दे दिया है, और भी दे देंगे।
हरियाणा से आए एक किसान कहते हैं, ‘सरकार अगर पीछे हटती है तो इसमें उसकी भलाई ज्यादा है, हमने सरकार को विचार करने के लिए इतना टाइम दे दिया है, और भी दे देंगे।

जगह-जगह किसान छोटे-छोटे समूहों में बैठे हैं। हरियाणा से आए एक समूह में हुक्का गुड़गुड़ा रहे एक बुजुर्ग किसान कहते हैं, ‘सरकार अगर पीछे हटती है तो उसमें उसकी भलाई ज्यादा है, हमने सरकार को विचार करने के लिए इतना टाइम दे दिया है और भी दे देंगे। नहीं मानी तो हमारे हाथ में लट्ठ तो है ही। डंडा-सोंटा सब चलेगा। हम सरकार को बनाना जानते हैं तो तोड़ना भी जानते हैं।

बुधवार को सरकार के साथ एक और दौर की बातचीत होनी है। इससे पहले न ही किसानों ने पीछे हटने का कोई संकेत दिया है और न ही सरकार ने। ऐसे में सिंघु बाॅर्डर, टिकरी बाॅर्डर और दिल्ली के ऐसे ही दूसरे बाॅर्डर कब ‘युद्ध का मैदान बन जाएं’ कोई कुछ नहीं कह सकता।

ऐसा न हो इसके लिए सिखों की मिसली फौज बीच में खड़ी है। ये अपने साथ घोड़े और बाज भी लाए हैं। एक मिसली सैनिक कहता है, ‘यह धर्म की लड़ाई नहीं है। यह सच की लड़ाई है, हक की लड़ाई है। एक राजा है प्रजा का, जब राजा चोर हो जाए तो पब्लिक को तो सड़क पर आना ही है। यहां जज भी हैं, वकील भी हैं और जवान भी हैं। वे सच और झूठ के बीच का फर्क समझते हैं।’

वे कहते हैं, ‘किसान भी हमारे हैं, ये जवान भी हमारे हैं, सरकार भी हमारी है। नुकसान हमारा ही होना है। यह लड़ाई का मौसम नहीं है। यह सच और हक की बात करने का मौसम हैं। सच और हक पर बात होगी तो यह मसला सुलझ जाएगा।

किसानों को गद्दे और रजाइयां मिल चुकी हैं, डॉक्टर्स मुफ्त जांच कर रहे हैं, रात में स्क्रीन पर फिल्म चलती है

  • पहले जहां किसान हर सूचना के लिए सिर्फ मीडिया संस्थानों पर ही निर्भर थे, वहीं अब किसानों के कई वॉट्सऐप ग्रुप बन चुके हैं
  • यहां पेट्रोल पंप के पास ही कई पानी के टैंकर खड़े हैं, जहां किसान नहाने से लेकर अपने कपड़े धोने तक का काम आसानी से कर रहे हैं

दिल्ली का सिंघु बॉर्डर इन दिनों किसान आंदोलन का सबसे बड़ा गवाह बन रहा है। करनाल हाइवे पर जहां तक नजरें जाती हैं, किसानों की ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की कतार ही नजर आती हैं। किसानों को यहां पहुंचे नौ दिन पूरे हो चुके हैं और हर बढ़ते दिन के साथ उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह आंदोलन दिनों-दिन न सिर्फ मजबूत हो रहा है बल्कि हर रोज पहले से ज्यादा संगठित भी होता जा रहा है।

शुरुआती दौर में जहां ट्रैक्टर-ट्रॉलियां बेतरतीब खड़ी नजर आती थीं, किसान जत्थों में आपसी तालमेल में कमी दिखती थी, कोई एक बड़ा मंच नहीं था और अव्यवस्था की स्थिति नजर आती थी, वहीं अब सिंघु बॉर्डर पर चीजें काफी व्यवस्थित हो चुकी हैं।

पंजाब के मानसा जिले से आए एक किसान हरभजन मान कहते हैं, ‘यहां का माहौल अब किसी कस्बे जैसे हो गया है जहां सारी चीजों की व्यवस्था है। यहां खाने-पीने की कोई कमी नहीं है, दवाओं और डॉक्टर की कमी नहीं है, अरदास के लिए पूजा स्थल है, रात में स्क्रीन पर फिल्म चलती है और पूरा माहौल किसी मेले जैसा हो गया है। संघर्ष है लेकिन संघर्ष में भी एक जश्न होता है जो यहां देखा जा सकता है।’

आंदोलन के शुरुआती दिनों में जहां किसान अपनी छोटी-छोटी गाड़ियों में सोने और ठंड में ठिठुरने को विवश थे, वहीं अब सिंघु बॉर्डर पर रात बिताने के कई इंतजाम कर लिए गए हैं। यहां अलाव जलाने के लिए लकड़ियां भी पहुंच चुकी हैं और रात को सोने के लिए गद्दे और रजाइयां भी किसानों को मिल चुकी हैं। हालांकि कई किसान ये सामान अपने साथ लेकर ही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में लेकर चले थे, लेकिन जिन लोगों के पास ये सामान नहीं था उन्हें कई गुरुद्वारों और निजी संगठनों की मदद से यह उपलब्ध करवा दिए गए हैं।

यहां पहुंचे कई किसानों के जत्थे अपना-अपना लंगर चला रहे हैं तो कई बड़े लंगर भी यहां लग चुके हैं जिनमें देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों की भागीदारी है।
यहां पहुंचे कई किसानों के जत्थे अपना-अपना लंगर चला रहे हैं तो कई बड़े लंगर भी यहां लग चुके हैं जिनमें देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों की भागीदारी है।

पहले के मुकाबले अब प्रदर्शन स्थल पर चिकित्सकीय सुविधाएं भी काफी बढ़ चुकी हैं। यहां दर्जन भर से ज्यादा चिकित्सा शिविर लग चुके हैं जिनमें फार्मासिस्ट से लेकर डॉक्टर तक मौजूद हैं। लोगों का मुफ्त उपचार किया जा रहा है, उनकी मुफ्त जांच हो रही है और दवाएं भी मुफ्त बांटी जा रही हैं।

ऐसा ही लंगर के मामले में भी है। यहां पहुंचे कई किसानों के जत्थे अपना-अपना लंगर चला रहे हैं तो कई बड़े लंगर भी यहां लग चुके हैं जिनमें देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों की भागीदारी है। कहीं यूनिवर्सिटी के छात्र लंगरों में सेवा कर रहे हैं तो कहीं मुस्लिम संगठन किसानों के लिए बिरयानी बना रहे हैं।

किसानों के बीच आपसी संवाद और संचार भी अब पहले से ज्यादा मजबूत होता दिखाई पड़ता है। पहले जहां किसान हर सूचना के लिए सिर्फ मीडिया संस्थानों पर ही निर्भर थे, वहीं अब किसानों के कई वॉट्सऐप ग्रुप बन चुके हैं, बड़े मंच लगा दिए हैं और हर शाम होने वाली बैठकों ने एक औपचारिक रूप ले लिया है, जिससे उन किसानों तक भी सूचनाएं आसानी से पहुंच रही हैं जो सिंघु बॉर्डर से कई किलोमीटर पीछे हरियाणा की सीमा में अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ डटे हुए हैं।

प्रदर्शन स्थल पर लोगों की दिनचर्या भी अब व्यवस्थित होने लगी है। यहां पेट्रोल पंप के पास ही कई पानी के टैंकर खड़े हैं, जहां किसान नहाने से लेकर अपने कपड़े धोने तक का काम आसानी से कर रहे हैं। पेट्रोल पम्प की बाउंड्री के साथ ही कपड़े सुखाने की तार भी बांध दी गई हैं। हर शाम को यहां अरदास भी होने लगी हैं, जिस दौरान बड़े-बड़े स्पीकर से गुरुवाणी बजाई जाती है। शाम के लंगर के बाद मंच के पास लगी बड़ी स्क्रीन पर खेती-किसानी से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री और फिल्में भी चलाई जाने लगी हैं।

किसानों के इस आंदोलन में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे भी शामिल हैं।
किसानों के इस आंदोलन में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे भी शामिल हैं।

इस किसान आंदोलन पर एक आरोप शुरुआती दौर से ही लगता रहा है कि इसमें सिर्फ पंजाब और हरियाणा के ही किसान शामिल हैं। लेकिन अब यह आरोप भी धूमिल होता दिख रहा है। सिंधु बॉर्डर पर अब देश के कई राज्यों से किसान पहुंचने लगे हैं, जिनमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा से आए किसान मुख्य हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से आए किसान अमरदीप सिंह कहते हैं, ‘जब से हमने होश संभाला है, किसानों की आर्थिक स्थिति देख कर हम हमेशा परेशान ही रहे हैं।

पूरे देश के किसानों की ऐसी ही स्थिति है। इस बीच पंजाब के किसानों ने आवाज उठाई तो हमें भी हिम्मत मिली। लेकिन जब मीडिया ने पंजाब के किसानों को खालिस्तानी कहना शुरू किया, तब हमने यहां आने का मन बनाया ताकि सबको दिखा सकें कि ये आंदोलन सिर्फ पंजाब का नहीं बल्कि पूरे देश का है।’

मध्य प्रदेश के सिवरी जिले से आए युवा किसान शुभम पटेल कहते हैं, ‘हम मध्य प्रदेश के करीब सात सौ किसान एक साथ ही यहां आए हैं। ये सच है कि यहां ज़्यादा संख्या पंजाब के किसानों की है, लेकिन उसका एक कारण उनकी दिल्ली से नजदीकी भी है। हम लोग 16-17 सौ किलोमीटर दूर से आए हैं तो निश्चित ही उतनी संख्या में नहीं आ सके जितनी संख्या में पंजाब और हरियाणा के भाई आए हैं क्योंकि उनके प्रदेश से दिल्ली काफी नजदीक है। लेकिन हमारी मौजूदगी इस बात का सबूत है कि ये सिर्फ दो राज्यों का आंदोलन नहीं है। हमारी ही तरह यहां महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड के किसान भी काफी संख्या में आए हैं। ये सभी किसानों का आंदोलन है।’

यहां दर्जन भर से ज्यादा चिकित्सा शिविर लग चुके हैं जिनमें फार्मासिस्ट से लेकर डॉक्टर तक मौजूद हैं। लोगों का मुफ्त उपचार किया जा रहा है।
यहां दर्जन भर से ज्यादा चिकित्सा शिविर लग चुके हैं जिनमें फार्मासिस्ट से लेकर डॉक्टर तक मौजूद हैं। लोगों का मुफ्त उपचार किया जा रहा है।

शुभम की बात से सहमति जताते हुए उत्तर प्रदेश से आए इकबाल सिंह कहते हैं, ‘ये आंदोलन जितना पंजाब के लिए महत्वपूर्ण है उतना ही हमारे लिए भी है। नए कानूनों में जिस कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात कहीं गई है वो उत्तर प्रदेश में पहले से हो रही है। गन्ना फैक्टरी को हम कॉन्ट्रैक्ट के तहत ही गन्ना देते हैं और उन फैक्टरी ने दो-दो साल से हमें भुगतान नहीं किया है। अगर अन्य फसलें भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत बड़े-बड़े पूंजीपतियों के पास चली गई तो वो भी पैसा दबा के बैठ जाएंगे और कोई उनकी सुनवाई नहीं करेगा क्योंकि इस बिल में कोर्ट जाने का प्रावधान ही नहीं है।

ऐसा ही MSP के मामले में भी है। अगर सरकार की नियत में खोट नहीं है तो कानून में एक लाइन जोड़ने से क्या दिक्कत है कि MSP से कम पर खरीद एक अपराध माना जाएगा। MSP सिर्फ पंजाब के किसानों की मांग नहीं है, पूरे देश का किसान इसके लिए चिंतित है। बल्कि ये सिर्फ किसानों की लड़ाई नहीं है।

जिस दिन कॉर्पोरेट का एकाधिकार हो जाएगा और सारे संसाधनों पर उनका कब्जा हो जाएगा उस दिन सबसे ज़्यादा नुकसान तो ग्राहक का होगा। किसान ग्राहक नहीं है, वो तो पैदा करता है। वो अपने लिए तो तब भी पैदा करके रख लेगा लेकिन तब सबसे ज़्यादा नुकसान आम ग्राहक का होगा क्योंकि उसे ही महंगे दामों पर अनाज बेचा जाएगा।’

अलग-अलग राज्यों से आए किसानों की संख्या यहां जिस तेजी से बढ़ रही है उसी तेजी से पंजाब के युवाओं और छात्रों की भी संख्या यहां बढ़ती हुई दिख रही है। आंदोलन के नौवें दिन पंजाब में नौजवान भारत सभा और पंजाब छात्र संघ ने घोषणा की है कि उनके हजारों छात्र भी किसानों के समर्थन में दिल्ली पहुंच रहे हैं। पंजाब के मोगा, फरीदकोट, मुक्तसर, जालंधर, अमृतसर, गुरदासपुर, नवाशहर, रोपड, संगरूर और पटियाला से छात्रों के कई समूह किसानों के इस संघर्ष में शामिल होने के लिए निकल भी पड़े हैं।

किसानों के समर्थन में ग्लोबल इंडियंस: NRI बोले- बादाम-दूध पीते रहो और धरने पर डटे रहो, पैसों की चिंता ना करना

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को देश के बाहर रह रहे सिख समुदाय के लोगों का भी समर्थन मिल रहा है।
  • दुनियाभर में सिखों के बड़े संगठन आंदोलन में मदद के लिए आगे आए हैं
  • कनाडा के वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन ने भी आंदोलन को समर्थन दिया है

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को देश के बाहर रह रहे सिख समुदाय के लोगों का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। कनाडा के वैंकूवर में तो किसानों के समर्थन में प्रदर्शन भी हुए हैं। यूरोप, अमेरिका, कनाडा और दुनिया के दूसरे हिस्सों में रह रहे लोग किसानों के समर्थन में एकजुट हो रहे हैं। वे आंदोलन के लिए आर्थिक मदद भेज रहे हैं।

अमेरिका के डेनवर में रहने वाले किरनपाल सिंह सिद्धू ने किसानों के आंदोलन के लिए कई बार पैसे भेजे हैं। सिद्धू कहते हैं, ‘हमें मीडिया के जरिए किसानों के प्रदर्शन के बारे में पता चला है। अब मैं रोजाना कम से कम दो बार प्रदर्शन में शामिल लोगों से फोन पर बात करता हूं। कोलोराडो और डेनवर की सिख और इंडियन कम्यूनिटी हर तरह से आंदोलन में मदद करने की कोशिश कर रही है।’

सिद्धु कहते हैं, ‘मैं अपने दोस्तों के जरिए कई बार पैसे भेज चुका है। आगे भी जरूरत पड़ेगी तो भेजूंगा। हमारा चाहे कितना भी खर्च हो जाए, हम पीछे नहीं हटेंगे। मैं खुद एक किसान का बेटा हूं और उनके दर्द को समझ रहा हूं।’

एक नौजवान पंजाब के होशियारपुर से आंदोलन में शामिल होने दिल्ली आया है। उसका कहना है कि कनाडा में मेरे भाई रहते हैं। वे किसान आंदोलन को सपोर्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि बादाम-दूध पीते रहो और धरने पर डटे रहो, पैसों की चिंता न करना।’

विदेश में रह रहे भारतीय मीडिया रिपोर्टों, सोशल मीडिया और अपने पारिवारिक दोस्तों के जरिए आंदोलन के बारे में जानकारियां ले रहे हैं। ब्रिटेन के लीड्स में रहने वाले जसप्रीत सिंह दफ्तर आते-जाते समय रास्ते में अपनी सोशल मीडिया फीड पर सिर्फ आंदोलन के बारे में ही पढ़ते हैं। जसप्रीत भारत आकर आंदोलन में शामिल होना चाहते हैं लेकिन उनके घरवालों ने उन्हें मना किया हुआ है।

किरनपाल सिद्धू कहते हैं, 'इतना बड़ा प्रोटेस्ट दिल्ली में चल रहा है। हमें ये खुशी होती है कि इतने लोग इकट्ठे हुए हैं।
किरनपाल सिद्धू कहते हैं, ‘इतना बड़ा प्रोटेस्ट दिल्ली में चल रहा है। हमें ये खुशी होती है कि इतने लोग इकट्ठे हुए हैं।

जसप्रीत कहते हैं, ‘मेरे परिवार के लोग धरने पर बैठे हैं। मैं ब्रिटेन में बैठकर जब बुजुर्ग किसानों की तस्वीरें देखता हूं तो मन विचलित हो जाता है। किसान अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं लेकिन मीडिया के कुछ हिस्से में उनकी नकारात्मक तस्वीर पेश की जाती है। मैं बहुत चाहता हूं कि भारत आकर इस धरने में शामिल हो जाऊं।’

दोस्तों-रिश्तेदारों के जरिए दे रहे रुपये

जसप्रीत के मुताबिक, ब्रिटेन के सिख समुदाय के लोग भी आंदोलन के लिए पैसे भेज रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी इससे जुड़े पोस्ट शेयर कर रहे हैं। विदेशों में रह रहे सिख समुदाय के लोग एनजीओ के जरिए पैसे भेजने के बजाए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के जरिए पैसे भेज रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल लुधियाना से आए एक किसान के मुताबिक उनके दोस्त ने कनाडा से बीस हजार रुपए भेजे हैं। वह कहते हैं, ‘मेरे दोस्त ने आंदोलन के लिए गुप्त दान किया है। वह अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहता है।’

किरनपाल सिद्धू कहते हैं, ‘इतना बड़ा प्रोटेस्ट दिल्ली में चल रहा है। हमें ये खुशी होती है कि इतने लोग इकट्ठे हुए हैं। सिर्फ किसान ही इस धरने में शामिल नहीं है। हम यहां अमेरिका से हर तरह की सपोर्ट करने के लिए तैयार हैं। अगर ये कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो हम अपने-अपने गांव गोद ले लेंगे और किसानों की मदद करेंगे।’

हरियाणा से आए प्रदर्शनकारी अनूप चनौत के मुताबिक, अमेरिका और कनाडा में रह रहे उनके कई दोस्तों ने आंदोलन में मदद भेजने के लिए संपर्क किया है। चनौत कहते हैं, ‘विदेश में रह रहे हमारे साथी आंदोलन में हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है। वो एकजुट होकर दोस्तों के जरिए पैसे भी भेज रहे हैं।

कनाडा की आबादी में करीब 1.4 प्रतिशत सिख हैं और यहां की राजनीति में सिखों का खासा असर है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है। इसे भी कनाडा में सिखों के प्रभाव के सबूत के तौर पर ही देखा जा रहा है।

हरियाणा से आए प्रदर्शनकारी अनूप चनौत के मुताबिक, अमेरिका और कनाडा में रह रहे उनके कई दोस्तों ने आंदोलन में मदद भेजने के लिए संपर्क किया है
हरियाणा से आए प्रदर्शनकारी अनूप चनौत के मुताबिक, अमेरिका और कनाडा में रह रहे उनके कई दोस्तों ने आंदोलन में मदद भेजने के लिए संपर्क किया है

ट्रेक्टर2ट्विटर कैंपेन के जरिए भी लोग आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। इस कैंपेन में किसानों के मुद्दे पर सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है। इस कैंपेन के जरिए विदेशों में रह रहे भारतीयों ने सोशल मीडिया पर ग्रुप भी बनाए हैं और वे एक-दूसरे से संपर्क कर रहे हैं।

इन ग्रुपों में किसानों को दिल्ली पहुंचने में हुई दिक्कतों पर चर्चा हो रही है। कैसे आंदोलन की आर्थिक मदद की जाए इस पर भी लोग बात कर रहे हैं। वे सोशल मीडिया पर आंदोलन से जुड़े टॉपिक ट्रेंड कराने पर भी काम कर रहे हैं।

किसानों के समर्थन में कनाडा में प्रदर्शन

वहीं दुनियाभर में सिखों के बड़े संगठन भी आंदोलन में मदद के लिए आगे आए हैं। कनाडा की वर्ल्ड सिख आर्गेनाइजेशन ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है। वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन के पूर्व अध्यक्ष जसकरण संधू ने एक बयान में कहा है, ‘कनाडा में रह रहे अधिकतर सिखों के पास पंजाब में जमीनें हैं या उनके परिवार वहां रहते हैं। इसी वजह से कृषि कानूनों से वो सीधे तौर पर प्रभावित महसूस करते हैं।’

कनाडा के ब्रैंपटन में गुरुवार को किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। सड़क किनारों खड़े लोगों ने गाड़ियों से गुजर रहे लोगों से हॉर्न बजाने की अपील की। सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में लगातार बज रहे गाड़ियों के हॉर्न की आवाज सुनाई दे रही है जो बताती है कि किसानों का ये आंदोलन देश और विदेश में मजबूत हो रहा है।

6% किसानों को ही मिलता है MSP का फायदा, इनमें पंजाब-हरियाणा के ज्यादा, इसलिए विरोध इन्हीं इलाकों में

खेती से जुड़े 3 कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीनों कानूनों से पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों के किसान नाराज हैं। उन्हें चिंता है कि नए कानून से उपज पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो सकता है।

पंजाब और हरियाणा के किसानों की इन तीन नए कानूनों का विरोध करने की वजह भी वाजिब है। केंद्र सरकार की एक कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि देश के सिर्फ 6% किसान ही MSP का फायदा लेते हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा किसान इन्हीं दोनों राज्यों के हैं। 2016 में आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि पंजाब के 100% किसान अपनी फसल MSP पर ही बेचते हैं। हालांकि, इसमें हरियाणा का आंकड़ा नहीं दिया था।

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ये साफ कर चुके हैं कि MSP खत्म नहीं होने वाली। लेकिन 4 सवाल अब भी सबसे बड़े हैंः

  1. MSP होती क्या है?
  2. MSP की कीमत तय कैसे होती है?
  3. हर साल कितने किसानों को MSP का फायदा होता है?
  4. हर साल जितनी फसल पैदा होती, उसमें से कितनी सरकार MSP पर खरीदती है?

1. सबसे पहले MSP होती क्या है?

MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस, ये गारंटेड कीमत होती है, जो किसान को उनकी फसल पर मिलती है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम ही क्यों न हों। इसके पीछे तर्क है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें अपनी फसल की न्यूनतम कीमत मिलती रहे। MSP का सबसे ज्यादा फायदा किसान पंजाब और हरियाणा को ही मिलता है। इस वजह से ही इन नए कानूनों का विरोध भी इन दोनों राज्यों में ही दिख रहा है।

2. कैसे तय होती है MSP? और मोदी सरकार में कितनी MSP बढ़ी?

किसी फसल पर कितनी MSP होगी, उसको तय करने का काम कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CACP) करती है। सरकार CACP की सिफारिश पर ही MSP तय करती है। अगर किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है, तो उसकी कीमतें गिर जाती हैं, तब MSP किसानों के लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है। एक तरह से ये कीमतों के गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह है।

MSP के तहत अभी 22 फसलों की खरीद की जा रही है। इन 22 फसलों में धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं।

3. अभी कितने किसानों को हर साल MSP का फायदा मिलता है?

पहले बात कि देश में किसानों की संख्या कितनी है? इस बात का सरकार के पास कोई डेटा नहीं है। हालांकि, पीएम किसान योजना के तहत देश के 14.5 करोड़ किसान परिवारों को हर साल 6 हजार रुपए की मदद मिलती है। इससे पता चलता है कि देश में 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं।

अब आते हैं कितने किसानों को हर साल MSP का फायदा मिलता है? 18 सितंबर को खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने राज्यसभा में बताया कि 9 सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर MSP का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे। इनमें से 10.49 लाख पंजाब और 7.80 लाख किसान हरियाणा के थे। यानी, 42% से ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा के ही थे।

जबकि, खरीफ सीजन में MSP पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 1.24 करोड़ थी। इनमें से पंजाब के 11.25 लाख और हरियाणा के 18.91 लाख किसान थे। 25% से ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा के ही थे।

सरकार के मुताबिक खरीफ सीजन में MSP पर धान की फसल बेचने वाले किसानों की संख्या 2015 की तुलना में 2019 में 70% बढ़ गई। वहीं, रबी सीजन में गेहूं पर MSP का लाभ लेने वाले किसानों की संख्या भी 2016 की तुलना में 2020 में 112% बढ़ गई। खरीफ सीजन 2021 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है।

4. लेकिन, हर साल जितनी पैदावार, उसका आधा भी नहीं खरीदती सरकार

सरकार फसल पर जो MSP तय करती है, उसी कीमत पर किसानों से फसल खरीदती है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 साल में गेहूं और धान की जितनी पैदावार हुई, उसका आधा भी सरकार ने नहीं खरीदा।

फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के मुताबिक 2015 में 1,044 लाख टन धान की पैदावार हुई थी, जिसमें से 342 लाख टन यानी 33% ही सरकार ने खरीदा। इसी तरह 2019-20 में 1,179 लाख टन धान की पैदावार हुई, जिसमें से सरकार ने 510 लाख टन, यानी 43% खरीदी की।

वहीं, 2015 में 923 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई, जिसमें से सरकार ने 230 लाख टन, यानी 25% गेहूं खरीदा। जबकि, 2019 में 1,072 लाख टन गेहूं पैदा हुआ, जिसमें से 390 लाख टन, यानी 36% गेहूं ही सरकार ने खरीदी की।

एमएसपी: जिसके लिए किसान सड़कों पर हैं और सरकार के नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं? क्या महत्व है किसानों के लिए एमएसपी का?

  • किसानों और विपक्षी पार्टियों का आरोप- सरकार के नए कानून एमएसपी का लाभ खत्म कर देंगे
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार- जो कई दशक तक सत्ता में रहे वह किसानों से झूठ बोल रहे हैं

केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है

वह विपक्षी पार्टियों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं। एनडीए की घटक पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराज है। हरसिमरत कौर बादल ने तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। किसानों और विपक्षी पार्टियों को एमएसपी खत्म होने का डर है।

क्या है एमएसपी या मिनिमम सपोर्ट प्राइज?

  • एमएसपी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।
  • सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?

  • 1950 और 1960 के दशक में किसान परेशान थे। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। सरकार का कंट्रोल नहीं था।
  • 1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी बनाई गई थी। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) बना।
  • इन दोनों संस्थाओं का काम था देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करना। एफसीआई वह एजेंसी है जो एमएसपी पर अनाज खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है।
  • पीडीएस के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

एमएसपी का किसानों को किस तरह लाभ हो रहा है?

  • खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने 18 सितंबर को राज्यसभा में बताया कि नौ सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर एमएसपी का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे, यह पिछले साल के 35.57 लाख से करीब 22 प्रतिशत ज्यादा थे।
  • राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले पांच साल में एमएसपी का लाभ उठाने वाले गेहूं के किसानों की संख्या दोगुनी हुई है। 2016-17 में सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 20.46 लाख थी। अब इन किसानों की संख्या 112% ज्यादा है।
  • रबी सीजन में सरकार को गेहूं बेचने वाले किसानों में मध्यप्रदेश (15.93 लाख) सबसे आगे था। पंजाब (10.49 लाख), हरियाणा (7.80 लाख), उत्तरप्रदेश (6.63 लाख) और राजस्थान (2.19 लाख) इसके बाद थे। यह हैरानी वाली बात है कि कृषि कानूनों को लेकर मध्यप्रदेश में कोई आंदोलन नहीं हुआ। और तो और, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्यप्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं।
  • खरीफ सीजन में एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 2018-19 के 96.93 लाख के मुकाबले बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई यानी 28 प्रतिशत ज्यादा। खरीफ सीजन 2020-21 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है। 2015-16 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 70% से ज्यादा है।

इस कानून से किसानों को मिलने वाले एमएसपी पर क्या असर होगा?

  • कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भास्कर संवाददाता धर्मेंद्र भदौरिया को दिए इंटरव्यू में साफ किया कि नए कानून से किसानों को खुले बाजार में अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को अपनी उपज की बेहतर कीमत मिलेगी।
  • तोमर ने यह भी कहा कि मंडी के बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर कोई भी टैक्स नहीं देना होगा। मार्केट में सुधार होगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बाजार सुधरेगा और किसान को भी वाजिब दाम मिलेगा। जब किसान को दो प्लेटफॉर्म मिलेंगे तो जहां ज्यादा दाम मिलेगा वह उसी को चुनेगा।
  • कृषि मंत्री ने कहा कि बिल ओपन ट्रेड को खोल रहा है। इस बिल का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे भी एमएसपी एक्ट का हिस्सा नहीं है। एमएसपी प्रशासकीय निर्णय है यह किसानों के हित में है और यह हमेशा रहने वाला है।
  • स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप किसानों को लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर हम एमएसपी घोषित कर रहे हैं। रबी सीजन की एमएसपी घोषित कर दी थी। खरीद भी की। खरीफ सीजन की फसलों के लिए एमएसपी जल्द घोषित हो जाएगा। एमएसपी पर कोई शंका नहीं होना चाहिए।
  • शांताकुमार कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि देश में छह फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता था। इस पर तोमर ने कहा कि देश में 86% छोटा किसान है। उसका उत्पादन कम होता है और मंडी तक माल ले जाने का भाड़ा अधिक लगता है। इस वजह से उसे एमएसपी का फायदा नहीं मिलता। अब खुले बाजार में उसे मंडी तक जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

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