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30 अप्रैल तक जितने कोरोना टेस्ट हुए, उनमें से 70% लोगों का डेटा ही नहीं रखा; इस दौरान 44% मरीज ऐसे भी थे, जिनमें संक्रमण कैसे फैला, इसका पता ही नहीं चला

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नई दिल्ली. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की तरफ से देश में कोरोना टेस्टिंग को लेकर एक स्टडी की गई है।

इसमें आईसीएमआर सरकारी एजेंसी है, जबकि पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया एक पब्लिक-प्राइवेट एजेंसी है। इसमें कुछ इंडिपेंडेंट रिसर्चर भी शामिल थे।

इस स्टडी में सामने आता है कि 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच तीन महीनों में जितने कोरोना मरीजों की टेस्टिंग हुई थी, उनमें से 70.6% मरीजों का डेटा ही नहीं रखा गया। स्टडी कहती है कि डेटा नहीं होने से देश में कोरोनावायरस किस तरह से फैल रहा है? इसे समझना मुश्किल है।

इस स्टडी के मुताबिक, 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच मिले कोरोना पॉजिटिव मरीजों में से 28% ऐसे थे, जिनमें कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। 30 अप्रैल तक देश में 40 हजार 184 कोरोना मरीज थे।

इस दौरान जितने टेस्ट हुए थे, उनमें 67% पुरुष और 33% महिलाएं थीं। हर 10 लाख में से 41.6 पुरुषों और 24.3 महिलाओं की जांच हुई। हालांकि, पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। जितने टेस्ट हुए, उनमें से 3.8% पुरुष और 4.2% महिलाएं पॉजिटिव थीं।

स्टडी को तैयार करने के लिए 10 लाख 21 हजार 528 टेस्ट और 40 हजार 184 कोरोना पॉजिटिव मरीजों का डेटा एनालाइस किया गया। ये स्टडी सुझाव देती है कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग करने की जरूरत है।

30 अप्रैल तक हर 10 लाख में 770 लोगों की ही टेस्टिंग हुई
स्टडी की मानें तो 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच देश में हर 10 लाख लोगों में से सिर्फ 770 लोगों की ही टेस्टिंग हुई। सबस कम 172 लोगों की टेस्टिंग मिजोरम में हुई और सबसे ज्यादा 8,786 लोगों की टेस्टिंग लद्दाख में हुई।

महाराष्ट्र जहां कोरोना के सबसे ज्यादा मामले हैं, वहां 30 अप्रैल तक हर 10 लाख लोगों में से सिर्फ 1 हजार 70 लोगों की ही टेस्टिंग हुई थी। जबकि, दिल्ली में 2 हजार 149 और गुजरात में 1 हजार 133 लोगों के टेस्ट हुए।

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